गंगा का मैल सख्ती व जवाबदेही से ही दूर होगा

The filth of Ganga will be removed only through strictness and accountability

ललित गर्ग

गंगा की सफाई, उसे प्रदूषण मुक्त करने एवं नदियों के माध्यम से आर्थिक विकास, धार्मिक आस्था एवं पर्यटन की संभावनाओं को तलाशने की दृष्टि से वर्तमान उत्तरप्रदेश सरकार एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तमाम प्रयासों के बावजूद गंगा आज भी मैली क्यों है? यह सवाल सरकार के नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए लंबे समय से चल रही तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों की पोल खोलते हैं। सरकार की ओर से घोषणाएं करने में शायद ही कभी कमी की जाती है, मगर उन पर अमल को लेकर कहां चूक या लापरवाही बरती जा रही है, इस पर गौर करना कभी जरूरी नहीं समझा जाता। यह गौर करना राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की उस टिप्पणी के कारण भी जरूरी हो गया है, जिसमें कहा गया है कि प्रयागराज में गंगा का पानी इतना प्रदूषित हो गया है कि वह आचमन करने लायक भी नहीं रह गया है। एनजीटी का यह खुलासा इसलिये भी चिंता बढ़ाने वाला है क्योंकि कुछ ही माह बाद यानी जनवरी 2025 की पौष पूर्णिमा से प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत होने वाली है।

कुंभ मेले की तैयारियां अंतिम चरण में हैं और अखाड़ों की सक्रियता बढ़ गई है। महाकुंभ को लेकर देश ही नहीं विदेश में भी खूब चर्चा होती है। यदि गंगाजल की गुणवत्ता को लेकर ऐसे ही सवाल उठते रहे तो देश-दुनिया में अच्छा संदेश नहीं जाएगा। सवाल इस बात को लेकर भी उठेंगे कि विभिन्न सरकारों द्वारा शुरू की गई अनेक महत्वाकांक्षी व भारी-भरकम योजनाओं के बावजूद गंगा को साफ करने में हम सफल क्यों नहीं हो पाए हैं। आखिर कौन है गंगा को प्रदूषित करने के गुनहगार? सरकारों को यह समझना होगा कि उसे केवल गंगा को साफ ही नहीं करना, बल्कि उसकी निर्मलता एवं अविरलता के लिये एक अनूठा उदाहरण भी पेश करना है। ऐसा करके ही देश की अन्य नदियों को भी प्रदूषणमुक्त करने की दिशा में सकारात्मक वातावरण निर्मित किया जा सकेगा। यह जानकारी भी सामने आई कि उत्तरकाशी में सुरंग के निर्माण के कारण ढे़र बने मलबे एवं कचरे को गंगा नदी के किनारे डाल दिया गया। औद्योगिक कारखानों का जहरीला कचरा ही नहीं बल्कि सरकार की अन्य विकास योजनाएं ही गंगा को प्रदूषित करने का जरिया बन रही है, जो अधिक शर्मनाक एवं चिन्ताजनक है। गंगा नदी एवं अन्य नदियों में उद्योगों से विभिन्न रसायन, चीनी मिल, भट्टी, ग्लिस्रिन, टिन, पेंट, साबुन, कताई, रेयान, सिल्क, सूत, प्लास्टिक थेलियां-बोतले आदि जहरीला कचरा बड़ी मात्रा में सरकार की चेतावनियों के बावजूद मिल रहा है।

गंगा कायाकल्प का दृष्टिकोण ‘अविरल धारा’ (सतत प्रवाह), ‘निर्मल धारा’ (प्रदूषणरहित प्रवाह) को प्राप्त करके और भूगर्भीय और पारिस्थितिक अखंडता को सुनिश्चित करके नदी की अखंडता को बहाल करने की समग्र योजना और रखरखाव के बावजूद गंगा लगातार प्रदूषित हो रही है। जबकि सरकार क्रॉस-सेक्टोरल सहयोग को प्रोत्साहित करने वाली नदी बेसिन रणनीति को लागू करके गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और पुनरोद्धार को सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रही है। यह पानी की गुणवत्ता और पारिस्थितिक रूप से जिम्मेदार विकास को बनाए रखने की दृष्टि से गंगा नदी में न्यूनतम जैविक प्रवाह भी सुनिश्चित करता है। वर्ष 2014 से गंगा की सफाई का महत्वाकांक्षी अभियान ‘नमामि गंगे’ में अब तक करीब चालीस हजार करोड़ की लागत से गंगा की सफाई की करीब साढ़े चार सौ से अधिक परियोजनाएं आरंभ भी की गई हैं। इस परियोजना के अंतर्गत गंगा के किनारे स्थित शहरों में सीवर व्यवस्था को दुरुस्त करने, उद्योगों द्वारा बहाये जा रहे अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण के लिये शोधन संयंत्र लगाने, गंगा तटों पर वृक्षारोपण, जैव विविधता को बचाने, गंगा घाटों की सफाई के लिये काफी काम तो हुआ लेकिन अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आए हैं। जो हमें बताता है कि जब तक समाज में जागरूकता नहीं आएगी और नागरिक अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं करेंगे, गंगा मैली ही रह जाएगी। अधिकारियों की लापरवाही या फिर गड़बड़ियों की वजह से किसी बड़ी और बेहद महत्वपूर्ण पहलकदमी का भी हासिल शून्य कैसे हो सकता है, इसका उदाहरण गंगा का प्रदूषण है।

दरअसल, लगातार बढ़ती जनसंख्या का दबाव और गंगा तट पर स्थित शहरों में योजनाबद्ध ढंग से जल निकासी व सीवरेज व्यवस्था को अंजाम न दिये जाने से समस्या विकट हुई है। गंगा को साफ करने के लिये जरूरी है कि स्वच्छता अभियान एक निरंतर प्रक्रिया हो। एक बार की सफाई निष्प्रभावी हो जाएगी यदि हम प्रदूषण के कारकों को जड़ से समाप्त नहीं करते। इसके लिये गंगा के तट वाले राज्यों में पर्याप्त जलशोधन संयंत्र युद्ध स्तर पर लगाए जाने चाहिए। साथ ही गंगा सफाई अभियान की नियमित निगरानी होनी चाहिए। इसमें आधुनिक तकनीक का भी सहारा लिया जाना चाहिए। लोगों को बताया जाना चाहिए कि गंगा सिर्फ नदी नहीं है यह खाद्य शृंखला को संबल देने वाली तथा हमारी आध्यात्मिक यात्रा से भी जुड़ी है। गंगा में जहरीला कचरा बहाने वाले उद्योगों पर भी आर्थिक दंड लगाना चाहिए। इसी से यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके जरिए मानव सभ्यता के लिए एक बेहद जरूरी नदी में फिर से जीवन भर सकेगा। वास्तव में गंगा एक संपूर्ण संस्कृति की वाहक रही है, जिसने विभिन्न साम्राज्यों का उत्थान-पतन देखा, किंतु गंगा का महत्व कम न हुआ। आधुनिक शोधों से यह भी प्रमाणित हो चुका है कि गंगा की तलहटी में ही उसके जल के अद्भुत और चमत्कारी होने के कारण मौजूद है। यद्यपि औद्योगिक विकास ने गंगा की गुणवत्ता को दूषित किया है, किन्तुु उसका महत्व यथावत है। उसका महात्म्य आज भी सर्वोपरि है। गंगा स्वयं में संपूर्ण संस्कृति है, संपूर्ण तीर्थ है, उन्नत एवं समृद्ध जीवन का आधार है, जिसका एक गौरवशाली इतिहास रहा है।

‘नमामि गंगे’ परियोजना व स्वच्छ गंगा हेतु राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत प्रदेश में गंगा किनारे के 1,604 गांवों में 3,88,340 शौचालयों का निर्माण करवाकर उन्हें खुले में शौच से मुक्त गांव घोषित किया गया और नदी किनारे एक करोड़ 30 लाख पौधों का रोपण किया गया। गंगा को निर्मल बनाने के लिए घाट, मोक्षधाम, बायो डायवर्सिटी आदि से जुड़े 245 प्रोजेक्ट पर तेजी से काम हो रहा है। गंगा की 40 सहायक नदियों में प्रदूषित जल का प्रवेश रोकने के लिए दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार में 170 परियोजनाओं पर काम चल है। एक और राहत की खबर जो उम्मीद की किरण बन कर सामने आयी है कि गंगा में विषाक्त कचरा उड़ेलने वाली औद्योगिक इकाइयों में कमी आ रही हैं। सरकार के प्रयासों से गंगा के तटों का सौन्दर्यकरण भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है, जिससे पर्यटन को प्रोत्साहन मिलेगा। मोदी सरकार ने एक सराहनीय पहल करके स्वच्छ गंगा कोष की स्थापना की है, जिसमें स्थानीय नागरिक व भारतीय मूल के विदेशी व्यक्ति और संस्थाएं आर्थिक, तकनीकी व अन्य सहयोग कर सकते हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें मिली विभिन्न भेंटों व स्मृति चिह्नों की नीलामी से प्राप्त 16 करोड़ 53 लाख रुपये की राशि इसी कोष में दी है।

यह खबर आई थी कि सरकार 2022 तक गंगा नदी में गंदे नालों के पानी को गिराने से पूरी तरह रोक देगी और इस मसले पर एक मिशन की तरह काम चल रहा है। लेकिन ताजा स्थितियां एवं गंगा का प्रदूषण बताता है कि इस नदी के निर्मलीकरण के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं की उपलब्धि वास्तव में कितनी है? नीतियों और योजनाओं के बरक्स उन पर अमल की यह तस्वीर राजनीति इच्छाशक्ति एवं प्रशासनिक लापरवाही को ही दर्शाती है। अन्यथा क्या कारण है कि नदियों के प्रदूषण को दूर करने के क्रम में सबसे ज्यादा जोर गंगा को स्वच्छ बनाने पर ही दिया गया, मगर इसका हासिल आज भी संतोषजनक नहीं है। सही मायनों में आज गंगा के उद्धार के लिये सरकार के साथ-साथ हर भारतीय को भगीरथ जैसा दायित्व निभाना होगा। तभी सदियों से अविरल बह रही जीवनदायी गंगा की प्रतिष्ठा एवं पवित्रता भी फिर से स्थापित हो सकेगी। फिर एनजीटी को यह न कहना पड़ेगा कि फलां जगह का गंगाजल आचमन करने लायक नहीं रह गया है।