माननीयों और मीडिया के बीच से हटी शीशे की दीवार

The glass wall between dignitaries and the media has been removed

इंद्र वशिष्ठ

दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने विधानसभा में माननीयों/विधायकों और मीडिया/जनता के बीच से अलोकतांत्रिक और तानाशाही की प्रतीक शीशे की दीवार को हटा दिया है।

पारदर्शिता अनिवार्य-
विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने शुक्रवार को कहा, मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। उनके कार्य में कोई भी रुकावट या बाधा स्वीकार्य नहीं हो सकती। यह विधानसभा जनता की है और प्रेस की भूमिका जनता को सूचित रखने की है। विधानसभा की कार्यवाही में पारदर्शिता अनिवार्य है।

विजेंद्र गुप्ता ने यह भी कहा कि पूर्ववर्ती सरकार द्वारा इन अवरोधों की स्थापना, खुले शासन और प्रेस की स्वतंत्रता की मूल भावना के विपरीत थी। इन काँच के अवरोधों को हटाकर, दिल्ली विधानसभा ने मीडिया को सशक्त बनाने और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को जनदृष्टि में लाने के अपने संकल्प को पुनः स्पष्ट किया है। यह पहल लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व को मजबूत करने और विधानसभा को एक पारदर्शी, जन-केंद्रित संस्था के रूप में पुनर्स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

जेल बना दी-
विधानसभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार का यह ऐसा अलोकतांत्रिक और अमानवीय कारनामा था, जो किसी सरकार ने कभी नहीं किया। जिसे लोकतंत्र में किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता।

विधानसभा सदन में माननीयों/विधायकों और मीडिया/जनता के बीच में शीशे की पारदर्शी दीवार खड़ी कर गई थी।

यह दीवार जेल में कैदी और मुलाकाती के बीच लगी शीशे की दीवार जैसा अहसास कराती थी।

पिंजरे से मुक्त-
यह मामला इस पत्रकार द्वारा ‌24 फरवरी 2025 को उजागर किया गया। जिस पर विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने संज्ञान लिया।
विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने इस दीवार को हटा कर मीडिया और जनता को इस पिंजरे/कैद से मुक्त करके पहले जैसी लोकतांत्रिक/ खुली स्थिति को बहाल कर दिया।

तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका-
विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष रामनिवास गोयल के कार्यकाल में विधायकों की सुरक्षा के नाम पर मीडिया और दर्शक दीर्घा में शीशे की यह दीवार लगाई गई।

जेल में बंद कैदी की तरह पत्रकार शीशे की दीवार के पीछे से ही सदन की कार्यवाही देखने/कवर करने को मजबूर थे।

जो जनता इन नेताओं को चुन कर विधानसभा में बैठने के लायक बनाती है। वह जनता भी सदन की कार्यवाही शीशे की दीवार के पीछे से देखने को मजबूर थी। यह अलोकतांत्रिक, अमानवीय और सरासर तानाशाही थी।

वैसे तो आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा मीडिया और दर्शक दीर्घा में जब यह दीवार लगाई थी। तभी तत्कालीन विपक्ष यानी भाजपा और मीडिया को इसका विरोध करना चाहिए था।

केजरीवाल की तानाशाही-
मीडिया की कृपा/मदद के कारण ही अरविंद केजरीवाल का राजनीति में इतना वजूद बना है। लेकिन धूर्त और अहसान फरामोश अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री बनते ही सबसे पहले मीडिया पर ही तानाशाही दिखाई। मुख्यमंत्री बनते ही उसने दिल्ली सचिवालय में पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगा दी थी। पत्रकारों ने विरोध किया तो सचिवालय में पत्रकारों के प्रवेश के लिए एक समय सीमा निश्चित कर दी थी। ऐसा करने से केजरीवाल का असली चेहरा, दोहरा चरित्र और घटिया मानसिकता उजागर हुई।

पहले तो भाजपा और कांग्रेस के शासनकाल में सचिवालय ही नहीं, मंत्रियों के घर और दफ़्तर के दरवाजे पत्रकारों के लिए हमेशा खुले रहते थे।