बरसात की बूंदों में जीवन का उल्लास

The joy of life in raindrops

विजय गर्ग

मनुष्य भौतिक लिप्साओं और आपाधापी की जिंदगी में प्रकृति में हो रहे सूक्ष्म परिवर्तनों को महसूस नहीं करता। साथ ही बदलते मौसम चक्र के हमारे शरीर में पड़ने वाले प्रभावों और बदलावों को भी हम अनदेखा करते हैं। दरअसल, हमारे जीवन में कृत्रिमता के गहरे हस्तक्षेप ने हमें प्रकृति के सुखमय प्रभाव के अहसास से वंचित कर दिया है। वातानुकूलित कमरों में बैठकर हम अहसास ही नहीं करते कि प्रकृति कैसे रूप-रंग बदल रही है।

अब यदि हम वर्षा ऋतु को ही देखें तो यह हमारे परिवेश ही नहीं हमारे शरीर में भी बदलाव करती है। कभी आपने बारिश के इस मौसम में अपनी एड़ी, तलवे या त्वचा की चमक को महसूस किया है! गर्मी और सर्दी में बहुत हद तक फट चुकी एड़ियां तथा शुष्क हो गई त्वचा, इस मौसम में पुनः खिल जाती है। यह, वह समय होता है जब ‘जीवन’ तेजी से अभिव्यक्त हो रहा होता है। विडंबना यह है कि हम इस बदलाव की अनदेखी करके इस सुख से वंचित हो जाते हैं।

यह मौसम, जीवन को स्फूर्णा देता है। जंगल, जमीन और प्रकृति में नवजीवन का संचार होता दिखाई देता है। इन महीनों के वातावरण में जीवनदाई शक्ति अपने चरमोत्कर्ष में उपलब्ध होती है। हवा की नमी, धूप-छांव का समन्वय, ऊर्जाओं की व्यापकता आदि तमाम जीवनदाई घटक, सहजता से क्रियान्वित हो जाते हैं। इस कालखंड में, प्रकृति में बह रहा जीवन सक्रिय होकर प्रचुरता से अपनी ताकत का प्रदर्शन करता है।

यह मौसम हमारे भीतर बह रही जीवनीशक्ति को संजोने और उसे रिचार्ज करने का है। प्रकृति और इस वातावरण को जी भर कर पीने से यह कार्य आसानी से संभव हो जाता है। इस वक्त प्रचुरता में सुलभ जीवनदाई ऊर्जा का उपयोग करके, शरीर अपने भीतर के ह्रास की मरम्मत स्वतः कर लेता है।

सुबह-सुबह, बादलों से आच्छादित आकाश के नीचे मेैट बिछाकर लेट जाइए। आधे घंटे जी भर कर सांस लीजिए। लंबी सांस! लीजिए, कुछ रोकिए और छोड़िए। वातावरण की नमी को पीजिए। सांस के साथ उस नमी को भीतर महसूस कीजिए। रीढ़ की हड्डी में आती-जाती सांस का अनुभव कीजिए। उस गहरी सांस के साथ रीढ़ की हड्डी के फूलने और सिकुड़ने पर कुछ केंद्रित हो जाइए। शरीर को जितना हो सके स्ट्रेच कीजिए। आकाश को छूने के लिए स्वयं को फैलाइए। हड्डियों पर थोड़ा जोर डालिए। उन केंद्रों पर ध्यान लगाइए, जहां अक्सर दर्द रहता है। मसलन, घुटने, कमर आदि। इस मौसम में किया गया यह प्रयोग जीवन को निश्चित रूप से स्फूर्णा देगा। बस, विचारों के मध्य यांत्रिक रूप से नहीं करना है। करने में केंद्रित होना है।

निस्संदेह, इन महीनों में सहज उपलब्ध व्यापक ऊर्जा का, अपने भीतर की जीवन ऊर्जा से, मनुष्य यदि सही सही समन्वय बिठाना सीख ले, तो न सिर्फ शारीरिक स्तर के आयाम, अपितु मानसिक और आध्यात्मिक आयामों का भी संवर्धन संभव है। इस संवर्धन से प्राण शक्ति के घनत्व का ऐसा पुनर्भरण हो सकता है, जो न सिर्फ शरीर में व्याप्त गंभीर रोगों की संभावना को क्षीण करने की क्षमता प्रदान कर सकता है, बल्कि जीवन चलाने वाले मुख्य अंगों का लंबे समय तक ह्रास होने से रोक सकता है। इस विधा से व्यक्ति अपने भीतर की कार्यप्रणाली को इतना दुरुस्त रख सकता है कि वह लंबे समय तक रोगमुक्त, शक्ति संपन्न और दीर्घायु को प्राप्त हो सकता है। इन तकनीकों के जानकार, कई ऋषि-मुनियों के किस्से प्रचलित हैं, जो दो-पांच सौ वर्षों तक युवावान रहते थे।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब