आशा विश्वास और आस्था सेवा का मंदिर बने नई संसद !

सीता राम शर्मा ” चेतन “

अहा ! स्वर्णिम सुप्रभात ! शुभ दिवस ! सुनहरा राष्ट्रीय अवसर ! संपूर्ण राष्ट्र को हार्दिक बधाई और अशेष शुभकामनाएं ! हार्दिक शुभकामनाएं संपूर्ण विश्व को भी ! सबको बधाई और शुभकामनाएं नई भारतीय संसद के लिए ! भारतीय संसद के लिए अर्थात उस राष्ट्र मंदिर के लिए, जिससे हर भारतीय यह अपेक्षा करता है कि उस राष्ट्र मंदिर में बैठकर हमारे जन प्रतिनिधि ना सिर्फ अपने देश भारत और हर भारतीय के साथ संपूर्ण विश्व और वैश्विक मानवीय व्यवस्था की शांति, सुरक्षा और उसके समग्र विकास पर गंभीर और ईमानदार चिंतन करेंगे बल्कि वे अपने उस चिंतन से उपजी योजनाओं के क्रियान्वयन और उसकी सफलता के लिए भी हर संभव और सफल प्रयास करेंगे ! हमारा देश भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ था पर सच्चाई यही है कि एक राष्ट्र के रुप में भूमिगत स्वतंत्रता के साथ हर भारतीय की मानसिक स्वतंत्रता और उसके स्वाभिमान के विकास और सुरक्षा के लिए जो और जितने अत्यंत महत्वपूर्ण काम इस देश के सत्ताधीशों को बहुत पहले कर लेना चाहिए था, वह कई दशकों तक नहीं हो सके । क्यों ? उसके उन कारणों और कारकों पर जिक्र करने का अभी उचित समय नहीं है क्योंकि आज अवसर है राष्ट्रीय हर्ष, गौरव और उल्लास का ! अतः आज हम बात करेंगे नई संसद को लेकर फिलहाल हर सच्चे भारतीय के मन-मस्तिष्क और हृदय में अटखेलिंया भरते उमंग, उल्लास के साथ उसके उन सपनों की, जो आज हर भारतीय की जागती चमकती आंखों में हैं ! गौरतलब है कि स्वतंत्रता प्राप्ती के पचहत्तर वर्ष बाद आज देश को अपनी आशाओं, अपेक्षाओं, सपनों और जरूरतों के लिए स्वैच्छिक और स्वनिर्मित वह नई संसद मिली है, जिसे देख और सोच कर या फिर जिसमें बैठकर किसी भी तरह की पराधीनता का दूर-दूर तक ना तो कोई बोध होगा और ना ही कोई आत्मग्लानि ही ! जहां बैठकर हर सांसद और संसद कर्मी पूर्ण स्वाधीनता, स्वतंत्रता और गौरव की आत्मानुभूति करेगा ! आज जिक्र इस बात का भी कतई नहीं होना चाहिए कि नई संसद के उद्घाटन के शुभ और गौरवशाली राष्ट्रीय अवसर पर कौन और कितने दीनहीन संकुचित और गैर जिम्मेवार सांसद इस उत्सव में क्यों शामिल नहीं हैं ! आज जिक्र सिर्फ और सिर्फ इस बात पर होना चाहिए कि देश की अपनी नई संसद में आज या फिर भविष्य में इसमें प्रवेश और काम करने वाले हमारे जन प्रतिनिधि किस तरह एक नये नैतिक और कर्तव्यनिष्ठ आचरण के साथ काम करें ? जिक्र इस बात का होना चाहिए कि कैसे गुलामी के कालखंड और वर्षों तक हमारे देश को गुलाम बनाने वाले क्रुर, षड्यंत्रकारी और शोषक शासकों की याद दिलाने वाली उस पुरानी संसदीय इमारत का त्याग करने के साथ हम उस पुरानी संसद का निर्माण कराने वाले और उनकी ही मानसिकता रखने वाले लोगों की स्वार्थी और दमनकारी नीति, नीयत और कार्यशैली का भी पूर्णतया त्याग कर दें ? यदि हम आज अपने नए संसद भवन में प्रवेश करते और कराते हुए लोगों को देश की संसद के महत्व, कार्य और उसकी गरिमा को बताने बनाने बढ़ाने और बनाए रखने का संकल्प दिलाएं और लें तो बेहतर होगा । यह हर भारतीय का संकल्प और प्रयास हो कि नई संसद भारतीय जनमानस की अटूट आशा का केंद्र बने । नई संसद में भारतीय जनमानस का अटूट विश्वास हो । भारतीय सांसदों में प्राथमिकता के साथ इस राष्ट्र मंदिर के प्रति अटूट आस्था हो और वे जन प्रतिनिधि होने के नाते इस संसद के माध्यम से अपनी जनता और राष्ट्र की सेवा करें तो बेहतर होगा । नई संसद को लेकर अंत और संक्षिप्त में हम यही कह सकते हैं –

नई संसद !
नये भारत की पहचान है
हर भारतीय की आन-बान और शान है !
नई संसद
संसदीय व्यवस्था की बड़ी लकीर होगी
स्वर्णिम विकसित विश्वगुरु भारत की तकदीर होगी !
नई संसद
नहीं होगी महज इंट पत्थरों से बना भवन आलीशान
अरबों जिन्दगियों की खुशहाली होगी इसकी पहचान !
नई संसद
नव आदर्श, नव विकास का नव इतिहास रचेगी
मां भारती हर भारतीयों की इस मंदिर में रहेगी !
नई संसद
अब राष्ट्र को अनाचार, भ्रष्टाचार से मुक्ति देगी
हर सांसद को चरित्र, कर्तव्यनिष्ठा और राष्ट्रभक्ति देगी !
नई संसद
करोड़ों भारतीयों के आशा विश्वास का केंद्र होगी
हर शख्सियत यहां आकर आपरूपी नरेंद्र होगी !
नई संसद
वसुधैव कुटुम्बकम का महास्वप्न साकार करेगी
हो गई स्वीकार प्रार्थना यह मानव सेवा का संसार बनेगी !