अपराध और सत्ता का गठजोड़, लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी

The nexus between crime and power is a danger signal for democracy

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की साख पर उठते ज्वलंत सवाल,राजनीति पंडितों के लिए चिंता का विषय बन गया है।

विनोद कुमार सिंह

विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र,भारत अपनी राजनीति की विविधता और जनता की भागीदारी के लिए प्रसिद्ध है।यहाँ हर पाँच साल में चुनाव होते हैं,करोड़ों लोग मतदान करते हैं और हजारों जनप्रतिनिधि जनता जनार्दन का जनादेश लेकर संसद और विधान सभाओं में पहुँचते हैं।यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया न केवल हमारी ताकत है,बल्कि हमारी पहचान भी,लेकिन सवाल यह है कि क्या आज भारतीय राजनीति वाकई उस आदर्श स्थिति में है,जिसकी कल्पना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान निर्माताओं ने की थी?आज विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की साख पर उठते ज्वलंत सवाल राजनीति पंडितों के लिए गंभीर चिंता का विषय बने हुए हैं।चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाले संगठनों की रिपोर्टें समय-समय पर भारतीय राजनीति की चुनौतियों को उजागर करती रहती हैं।हाल ही में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर)की रिपोर्ट ने इस प्रश्न को और गंभीर बना दिया है। रिपोर्ट के अनुसार देश के मंत्रियों में लगभग आधे ऐसे हैं,जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं-जिनमें से कई पर तो हत्या,अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर आरोप भी शामिल हैं।यह आँकड़े केवल चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामों से लिए गए हैं, यानी ये स्वयं नेताओं द्वारा घोषित हैं।

1.राजनीति और अपराध -एक पुराना गठबन्धन -भारतीय राजनीति में अपराधीकरण नया नहीं है।1960–70 के दशक से अपराधियों का राजनीति में प्रवेश बढ़ना शुरू हुआ।शुरू में राजनीतिक दल जीतने के लिए अपराधियों का इस्तेमाल वोट बैंक साधने और विरोधियों को डराने के लिए करते थे,लेकिन धीरे- धीरे हालात ऐसे बने कि अपराधी सीधे राजनीति में उतरकर विधायक और सांसद बनने लगे।आज स्थिति यह है कि अपराधियों को राजनीति में घुसने से रोकने के बजाय राजनीतिक दल स्वयं उन्हें टिकट देते हैं,क्योंकि राजनीतिक दल जानते हैं कि धनबल और बाहुबल के सहारे चुनाव जीतने की संभावना अधिक होती है।

एडीआर की रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य-एडीआर ने 27 राज्य विधानसभाओं,3 केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्रीय मंत्रिपरिषद के 643 मंत्रियों के हलफनामों का अध्ययन किया।जिसके नतीजे चौंकाने वाले हैं -जो निम्न हैं:302 मंत्री (47%) पर आपराधिक मामले दर्ज।इनमें से 174 मंत्री (27%) पर गंभीर अपराधों के मामले हैं।केंद्रीय मंत्रिपरिषद: 72 मंत्रियों में से 29 मंत्रियों (40%) पर आपराधिक केस।राज्य स्तर पर: 11 राज्यों(आंध्र प्रदेश, ‘ तमिलनाडु, बिहार,ओडिशा,महाराष्ट्र, कर्नाटक,पंजाब, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश,दिल्ली और पुडुचेरी) में 60% से अधिक मंत्रियों पर केस हैं।इसके विपरीत हरियाणा,जम्मू- कश्मीर,नागालैंड और उत्तराखंड में किसी मंत्री ने आपराधिक मामला घोषित नहीं किया।

दलवार स्थिति –ए डीआर की रिपोर्ट के अनुसार: -भाजपा: 336 मंत्रियों में से 136 (40%) पर आपराधिक मामले,88 (26%) पर गंभीर अपराध।कांग्रेस: -45 मंत्रियों में से 33 (74%) पर आपराधिक मामले, 18 (30%) पर गंभीर अपराध।द्रमुक (DMK): – 31 में से 27 (87%) पर आपराधिक आरोप,14 (45%) पर गंभीर मामले।

तृणमूल कांग्रेस (TMC): -40 में से 13 (33%) पर आपराधिक मामले, 8 (20%) पर गंभीर अपराध।

तेलुगु देशम पार्टी (TDP): – 23 में से 22 (96%) पर आपराधिक मामले,13 (57%) पर गंभीर अपराध।आप (AAP): – 16 में से 11 (69%) पर आपराधिक मामले, 5 (31%) पर गंभीर अपराध।

उपरोक्त आँकड़े इस बात का जीता-जागता उदाहरण पेश करते हैं कि भारतीय राजनीति में अपराध प्रवृत्ति वाले नेता किसी एक पार्टी तक सीमित नहीं हैं,बल्कि लगभग सभी राजनीतिक दलों में अपराधी पृष्ठभूमि वाले नेताओं को जगह मिल रही है। 4.अपराध का चरित्र-छोटे-मोटे नहीं,गंभीर मामले नेताओं पर दर्ज मामले अक्सर राजनीतिक प्रतिशोध का नतीजा बताए जाते हैं।लेकिन एडीआर की रिपोर्ट इस धारणा को नाकारती है। आँकड़ों के अनुसार कई नेताओं पर गंभीर अपराधों के केस हैं – जैसे हत्या,अपहरण,बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ हिंसा।जब कानून बनाने वाले ही गंभीर आपराधिक मामलों में आरोपी हों,तो लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल उठता है।जनता किससे न्याय की उम्मीद करे?

धनबल और बाहुबल -चुनावी राजनीति की मजबूरी –
एडीआर की रिपोर्ट केवल अपराध तक सीमित नहीं है;उसने मंत्रियों की घोषित संपत्तियों का भी विश्लेषण किया।मंत्रियों की औसत संपत्ति ₹37.21 करोड़ है।सभी मंत्रियों की कुल घोषित संपत्ति ₹23,929 करोड़ है।30 विधान सभाओं में से 11 में अरबपति मंत्री मौजूद हैं।कर्नाटक में 8,आंध्र प्रदेश में 6 और महाराष्ट्र में 4 अरबपति मंत्री हैं।सबसे अमीर मंत्री टीडीपी के डॉ. चंद्रशेखर पेम्मासानी हैं,जिन्होंने ₹5,705 करोड़ की संपत्ति घोषित की है। कर्नाटक के डी.के. शिव कुमार ₹1,413 करोड़ और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ₹931 करोड़ की संपत्ति के साथ क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। वर्तमान दौर में चुनाव लड़ना इतना महंगा हो गया है कि सामान्य या ईमानदार उम्मीदवार मुकाबले में टिक ही नहीं पाता।पार्टियां उन्हीं को टिकट देती हैं जिनके पास पैसे और ताकत की कमी न हो।यही कारण है कि राजनीति में अपराध और धन का गठजोड़ लगातार मजबूत होता गया।

लोकतंत्र पर असर -जनता में निराशा –लोकतंत्र की बुनियाद जनता का विश्वास है,लेकिन जब जनता देखती है कि उसके चुने हुए प्रतिनिधि स्वयं आपराधिक मामलों में आरोपी हैं,तो जनता का भरोसा कमजोर होता है।परिणाम स्वरूप भारतीय युवा राजनीति से दूर होते जा रहे हैं और आम नागरिक कानून-व्यवस्था से निराश हो रहा है। “साफ़-सुथरी राजनीति” केवल नारा बनकर रह जाती है।

न्यायपालिका और चुनाव आयोग की भूमिका –सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इस मुद्दे पर टिप्पणी की है।2002 में न्यायालय ने उम्मीदवारों के लिए संपत्ति और आपराधिक मामलों का खुलासा करना अनिवार्य किया।2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि राजनीतिक दलों को यह सार्वजनिक करना होगा कि उन्होंने आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवार को टिकट क्यों दिया।चुनाव आयोग भी लगातार चुनावी सुधारों की वकालत करता रहा है। लेकिन राजनीतिक दलों ने इन आदेशों को महज़ औपचारिकता बना लिया है।ज़्यादातर दल अपराधियों को टिकट देने का कारण “जीतने की संभावना” बताते हैं।इन समस्याओं के समाधान के लिए निम्न कदम उठाए जाएँ:

A) कानूनी सुधार – संसद में ऐसा कानून बने कि गंभीर अपराधों में आरोपी व्यक्ति चुनाव न लड़ सके।

B) राजनीतिक दलों की जवाबदेही –दलों को बाध्य किया जाए कि वे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट न दें।

C) चुनावी खर्च पर नियंत्रण – चुनाव आयोग को अधिक सशक्त बनाया जाए,ताकि “काले धन” और “धनबल” की राजनीति पर अंकुश लगे।

D) जनता की जागरूकता – मतदाता यदि संगठित होकर अपराधी पृष्ठभूमि वाले नेताओं को नकार दें,तो पार्टियाँ स्वतः सुधारने पर मजबूर होंगी।

E) मीडिया और सिविल सोसायटी की भूमिका-रिपोर्ट,विश्लेषण और अभियान के जरिए जनता तक सच्चाई पहुँचाना।
भारतीय लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा की घड़ी

एडीआर की रिपोर्ट केवल आँकड़ों का संग्रह नहीं है,बल्कि यह लोकतंत्र के लिए चेतावनी है।यदि राजनीति अपराधियों के शिकंजे से मुक्त नहीं हुई,तो भारत का लोकतंत्र खोखला हो सकता है। भारत के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती है कि जनता,राजनीतिक दल,चुनाव आयोग और न्यायपालिका मिलकर राजनीति को अपराधमुक्त बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाएँ।यह केवल राजनीति का नहीं,बल्कि पूरे समाज और भविष्य की पीढ़ियों का प्रश्न है।आज जनता संदेह और शंका की दृष्टि से राजनीतिक दलों व नेताओं को देख रही है।उनके मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या यही वह भारत है जो दुनिया को शांति और भाईचारे का संदेश देगा? यदि यह प्रवृत्ति नहीं रुकी तो भविष्य की पीढ़ियाँ हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी। इसलिए आज ज़रूरत है कि जनता, राजनीतिक दल,न्यायपालिका और चुनाव आयोग मिलकर राजनीति को अपराधमुक्त बनाने का संकल्प लें। अपराध और सत्ता का गठजोड़ जितना लंबा खिंचेगा,उतनी ही लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होंगी। हमारी लोकतंत्र की असली रक्षा तभी होगी जब राजनीति अपराध मुक्त,पारदर्शी और जवाबदेह बने।आज भारतीय लोकतंत्र की असली अग्निपरीक्षा की घड़ी है।