सुनील कुमार महला
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 100 वीं जयंती पर हाल ही में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा मध्यप्रदेश में खजुराहो में केन-बेतवा नदी जोड़ो राष्ट्रीय परियोजना की आधारशिला रखी गई, इसके साथ ही वाजपेयी जी के ड्रीम प्रोजेक्ट की देश में शुरूआत हो गई। गौरतलब है कि केन-बेतवा नदी जोड़ो राष्ट्रीय परियोजना 44,600 करोड़ रुपए की लागत वाली देश की पहली बड़ी परियोजना है। कहना ग़लत नहीं होगा कि इस परियोजना से मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र की तस्वीर और तकदीर बदलेगी। इससे न केवल किसानों को व्यापक लाभ होगा बल्कि पेयजल और उद्योगों के लिए भी इससे पर्याप्त पानी उपलब्ध होगा। भू-जल की स्थितियों में भी इससे निश्चित ही सुधार आयेगा। उल्लेखनीय है कि केन-बेतवा नदी जोड़ो राष्ट्रीय परियोजना से मध्यप्रदेश के 10 जिले छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, निवाड़ी, दमोह, शिवपुरी, दतिया, रायसेन, विदिशा और सागर के 8.11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र एवं उत्तरप्रदेश के 2.51 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई सुविधा मिल सकेगी। इतना ही नहीं इस परियोजना से कुल 65 लाख परिवारों को पेयजल की सुविधा भी मिल सकेगी। कितनी अच्छी बात है कि जल विद्युत परियोजनाओं से हरित ऊर्जा में 130 मेगावॉट का योगदान एवं औद्योगिक इकाइयों को पर्याप्त जल आपूर्ति से औद्योगिक विकास और रोज़गार को भी इससे बढ़ावा मिलेगा। परियोजना से एक लाभ यह भी होगा कि इससे चंदेल कालीन लगभग 42 पुरातन तालाबों का विकास एवं पुनर्निर्माण होगा तथा दौधन बांध के निर्माण से बाढ़ का बेहतर प्रबंधन भी इससे संभव हो सकेगा। केन-बेतवा नदी जोड़ो राष्ट्रीय परियोजना के शिलान्यास के अवसर पर ही ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सौर परियोजना का लोकार्पण भी किया गया। पाठकों को जानकारी के लिए बताता चलूं कि ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सौर परियोजना 518 मेगावाट क्षमता की परियोजना है जो विश्व की सबसे बड़ी फ्लोटिंग परियोजनाओं में से एक है। दूसरे शब्दों में कहें तो केन-बेतवा लिंक राष्ट्रीय परियोजना देश में भूमिगत दाबयुक्त पाइप सिंचाई प्रणाली अपनाने वाली सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना है। इससे फसलों के उत्पादन और किसानों की आय में वृद्धि से ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी, रोजगार को बढ़ावा मिलेगा। इस परियोजना से जहां एक ओर कृषि और उधोग हेतु उपयोगी भूमि की बचत होगी वहीं दूसरी ओर इससे जल संरक्षण और हरित उत्पादन से ग्लोबल वार्मिंग में लगातार हो रही वृद्धि को रोकने में भी सहयोग मिल सकेगा। गौरतलब है कि केन-बेतवा नदी जोड़ो राष्ट्रीय परियोजना के शिलान्यास के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 1153 अटल ग्राम सुशासन भवनों का भूमिपूजन भी किया गया, जो ग्राम पंचायतों को स्थाई भवनों की सुविधा प्रदान करेगा। इतना ही नहीं, इससे ग्राम पंचायतों को विभिन्न प्रशासनिक कार्य करने, समय-समय पर बैठकों का आयोजन करने तथा रिकार्ड प्रबंधन में भी सहायता मिल सकेगी। गौरतलब है कि प्रदेश की 23 हजार ग्राम पंचायतों में से भवन विहीन, जीर्ण-शीर्ण भवन और अनुपयोगी 2500 ग्राम पंचायतों को नवीन भवन की स्वीकृति के लिये चिन्हित किया गया है। प्रारंभिक चरण में 1153 नवीन पंचायत भवनों के लिये 437.62 करोड़ रुपये के कार्य स्वीकृत किये गये हैं। इस अवसर पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृति में स्टाम्प और सिक्का भी जारी किया गया। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि नदी जोड़ो संकल्पना देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का सपना था। केन बेतवा नदी जोड़ने की आधारशिला प्रधानमंत्री द्वारा रखना जल-प्रबंधन की दिशा में एक महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी पहल है। निश्चित ही इस नदी जोड़ो परियोजना का लाभ आने वाली पीढ़ियों को मिल सकेगा। सच तो यह है देश की नदियों को जोड़ने की परिकल्पना देने वाले वाजपेयी की जयंती पर यह परियोजना मध्यप्रदेश के लिए बड़ी सौगात है। नदी जोड़ो परियोजना से देश से जल असंतुलन दूर करने में सहायता मिल सकेगी, क्यों कि देश में वर्षा का वितरण असमान है और कहीं अतिवृष्टि तो कहीं सूखा पड़ता है। दरअसल, देश से अतिवृष्टि और सूखे की समस्या को कम करने के लिए ही नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान बनाया गया था। इसके तहत पूरे देश में कुल तीस रिवर इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट बनाने की योजना है। सरल शब्दों में कहें तो देश की सभी नदियों को एक-दूसरे से कनेक्ट किया जाना है, जिससे किसी हिस्से का ज्यादा पानी उन स्थानों पर पहुंच सके, जहां कि पानी की बेहद कमी है। केन-बेतवा रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट इस प्लान की पहली कड़ी है।नदी जोड़ो परियोजना से निश्चित ही जल संकट(पेयजल , सिंचाई, उधोग हेतु) दूर हो सकेगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि नदी जोड़ो परियोजना से आर्थिक, सामाजिक और पर्यटन विकास को नई गति मिल सकेगी। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा देश की नदियों को जोड़ना आसान कार्य नहीं है। कहना ग़लत नहीं होगा कि जिन 30 रिवर इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट का प्लान तैयार किया गया है, उसे पूरा करने में दशकों लग जाएंगे। सच तो यह है कि नदियों को जोड़ने की यह योजना काफी व्यापक और दीर्घकालीन है, इसलिए इस राह में चुनौतियां भी कम नहीं है। दरअसल, देश के कुछ पर्यावरणविद् नदियों को आपस में जोड़ने से सहमत नहीं है, क्यों कि उनका यह मानना है कि नदियों का अपना इकोसिस्टम(पारिस्थितिकी तंत्र) होता है। इन्हें आपस में जोड़ने से यह बिगड़ेगा और एक बड़ा पर्यावरणीय संकट पैदा हो सकता है। पर्यावरणविद् यह मानते हैं कि वास्तव में यह एक पारिस्थितिकी आपदा को बुलाने जैसा होगा। पर्यावरणविदों का यह भी कहना है कि नदी जोड़ो परियोजना के लिए कई बांधों और जलाशयों का निर्माण करना पड़ता है और जिस भूमि पर इनका निर्माण किया जाएगा, वह दलदली हो सकती है और कृषि के लिए उपयुक्त नहीं रहेगी।उनका यह मानना है कि बांधों और जलाशयों के निर्माण स्थलों पर खाद्यान्न और कृषि उत्पादों की कमी हो जाएगी, क्योंकि वह क्षेत्र कृषि के लिए उपयुक्त नहीं रह जाएगा। विदेशों में भी नदियों को जोड़ने के प्रयास हुए हैं और इस संबंध में ऑस्ट्रेलिया की स्नोई नदी परियोजना की यदि बात करें तो उसे जोड़ने के बाद उसका प्रवाह 99 फीसदी कम हो गया था और उसकी पुनर्बहाली के लिए लाखों रुपए खर्च करने पड़े थे। अंत में यही कहूंगा कि यह ठीक है कि नदियों को आपस में जोड़ने से बेहतर सिंचाई सुविधाओं को बढ़ावा देने में मदद मिलती है, तथा भूजल का पुनर्भरण और पुनःपूर्ति होती है।बाढ़ की संभावनाओं को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है।जिन क्षेत्रों में नदी का पानी उपलब्ध नहीं है और पानी की कमी है, उन्हें इस नेटवर्क का उपयोग करके पानी उपलब्ध कराया जा सकता है, लेकिन हमें नदियों को आपस में जोड़ते वक्त उनके इको-सिस्टम और पर्यावरण का भी पर्याप्त ध्यान रखना होगा, तभी हम नदी जोड़ो परियोजनाओं को साकार रूप दे सकेंगे और देश में विकास की गंगा बहा सकेंगे और देश को ऊंचाइयों और उन्नयन के पथ पर ले जा सकेंगे।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।