
मुनीष भाटिया
भगवान श्री कृष्ण केवल एक देवता नहीं हैं, वे एक संपूर्ण जीवन दर्शन हैं। श्री कृष्ण को त्याग, संतुलन और न्याय का प्रतीक माना जाता है। वे उन आदर्शों को प्रस्तुत करते हैं, जो किसी भी समाज, अर्थव्यवस्था और शासन प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। उनका जीवन संदेश देता है कि शक्ति का सही उपयोग समाज कल्याण के लिए होना चाहिए, न कि व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए। वे त्याग, तपस्या, न्याय और संतुलन के प्रतीक हैं। उनका व्यक्तित्व जितना सरल है, उतना ही गूढ़ भी। वे संहार करते हैं, लेकिन केवल तभी जब समाज में अन्याय, अधर्म और अराजकता अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाती है।
श्रीकृष्ण का सन्देश हमें सिखाता है कि समाज में बदलाव लाने के लिए, बुराइयों को समाप्त करने के लिए, सही नेतृत्व आवश्यक है। एक ऐसा नेतृत्व जो बलिदान देने को तैयार हो, जो समाज के कल्याण के लिए स्वयं कष्ट उठाने से न हिचके। आज के समय में जब समाज अनेक संकटों से जूझ रहा है, तब श्री कृष्ण की यह शिक्षा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।अगर सामाजिक दृष्टि से देखा जाए, तो श्री कृष्ण का संदेश स्पष्ट है—समानता और समावेशिता। वे सभी वर्गों को समान दृष्टि से देखते हैं, चाहे वे किसी भी पृष्ठभूमि से आते हों। हम आधुनिक समाज में जाति, धर्म, वर्ग और संप्रदाय के नाम पर बंटे हुए हैं। हमारा सामाजिक ढांचा इतनी गहराई तक विभाजित हो चुका है कि हम मनुष्य की वास्तविक पहचान को भूल चुके हैं। श्री कृष्ण हमें यह सिखाते हैं कि किसी व्यक्ति की पहचान उसकी कर्मशीलता, उसकी सोच और उसके आचरण से होती है, न कि उसके जन्म से। अगर हम उनके इस सिद्धांत को आत्मसात करें, तो समाज में व्याप्त असमानता, भेदभाव और वैमनस्य को खत्म किया जा सकता है।
इसके अलावा, मानसिक तनाव और अवसाद आज एक वैश्विक समस्या बन चुके हैं। लोग भौतिक सुख-सुविधाओं की दौड़ में इतने व्यस्त हो गए हैं कि मानसिक शांति खोते जा रहे हैं। श्री कृष्ण का योग और ध्यान से जुड़ा दर्शन यह दर्शाता है कि मानसिक शांति के लिए आंतरिक संतुलन आवश्यक है। वे विलासिता से दूर रहते हैं और सरलता को अपनाने का संदेश देते हैं। श्री कृष्ण के जीवन में एक और महत्वपूर्ण पक्ष है—उनकी सादगी। वे एक महान योगी हैं, जो भौतिक सुख-सुविधाओं से दूर रहते हैं। वे यह संदेश देते हैं कि जीवन का असली आनंद भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि संतोष में है। आधुनिक समय में हम एक उपभोक्तावादी संस्कृति में जी रहे हैं, जहां हर कोई अधिक से अधिक भौतिक सुख-साधनों की लालसा रखता है। इस लालसा का कोई अंत नहीं है, और अंततः यह मानसिक अशांति और सामाजिक असंतुलन को जन्म देती है। श्री कृष्ण का दृष्टिकोण हमें यह सिखाता है कि जीवन में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है, न तो पूरी तरह भौतिकता में डूबना सही है और न ही पूरी तरह से विमुख होना। श्री कृष्ण का जीवन मितव्ययिता और श्रम की महत्ता को दर्शाता है। उनकी विचारधारा हमें यह सिखाती है कि संसाधनों का न्यायसंगत वितरण होना चाहिए और श्रम को उचित सम्मान मिलना चाहिए। यदि हम इस दर्शन को अपनाएं, तो धन और संसाधनों का अधिक समान वितरण सुनिश्चित कर सकते हैं।
राजनीति का मूल उद्देश्य समाज का नेतृत्व करना और न्याय को सुनिश्चित करना होता है। राजनीतिक दृष्टि से श्री कृष्ण नेतृत्व का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। वे न्यायप्रिय हैं, लेकिन जब अन्याय अपनी सीमा पार कर लेता है, तो वे कठोर निर्णय लेने में संकोच नहीं करते। यह दृष्टिकोण प्रशासन के लिए एक आदर्श हो सकता है, जहां निर्णय न्याय और नीति के आधार पर लिए जाएं। वे सत्ता और शक्ति का उपयोग व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि संतुलन बनाए रखने के लिए करते हैं। वे दंड और प्रेम का संतुलन बनाए रखते हैं। वे कण-कण में व्याप्त हैं, लेकिन दिखावा नहीं करते। वे शक्ति के स्वामी हैं, लेकिन अहंकार से रहित हैं। आधुनिक राजनीति में इसी संतुलन की आवश्यकता है, जहां सत्ता का दुरुपयोग न हो और नीति-निर्माण समाज के समग्र विकास को ध्यान में रखकर किया जाए।
श्री कृष्ण का क्रोध भी हमें एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संदेश देता है। वे तब तक शांत रहते हैं जब तक स्थिति नियंत्रण में होती है, लेकिन जब अन्याय अपनी सीमा पार कर लेता है, तो वे कठोर निर्णय लेने से पीछे नहीं हटते। यह हमें सिखाता है कि सहनशीलता अच्छी है, लेकिन जब अन्याय और भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाए, तो उसके विरुद्ध खड़ा होना आवश्यक है। आज जब आम नागरिक भी भ्रष्टाचार और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं, तो यह विचार हमें बताता है कि परिवर्तन तभी संभव है जब लोग अपने अधिकारों के लिए जागरूक हों और नेतृत्व को जवाबदेह बनाएँ। इसके अलावा, पर्यावरण संकट एक वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव डाल रहा है। औद्योगिक विकास और अत्यधिक उपभोग ने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया है, जिससे जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण जैसी समस्या उत्पन्न हो रही हैं। श्री कृष्ण प्रकृति से गहरे जुड़े हुए हैं और उनका संदेश यह है कि हमें प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर रहना चाहिए।
यदि हम श्री कृष्ण के विचारों को आत्मसात करें, तो एक अधिक न्यायसंगत, संतुलित और समावेशी समाज का निर्माण संभव है। उनके दर्शन में केवल अतीत की शिक्षाएं नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की समस्याओं के समाधान भी छिपे हैं। आज जब विश्व परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, तब हमें श्री कृष्ण के संतुलन, न्याय और कर्मशीलता के सिद्धांत को अपनाने की आवश्यकता है, ताकि समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति में सकारात्मक बदलाव लाया जा सके।