समग्र नीति अपनाने से ही समस्या का समाधान

The solution to the problem is only by adopting a holistic policy

विजय गर्ग

मौसम के बदलाव के साथ देश की राजधानी में वायु प्रदूषण की स्थिति गंभीर हो जाती है, जिससे घुटन और संत्रास का माहौल बन जाता है। इसका एक कारण खेतों में गेहूं की कटाई के बाद बची पराली को जलाना है। इस प्रक्रिया में निकलने वाला धुआं और घुटन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

पंजाब और हरियाणा के विशेषज्ञों का कहना है कि फसलों के अवशेष जलाना केवल प्रदूषण का एकमात्र कारण नहीं है, बल्कि बढ़ती हुई अराजक यांत्रिकता ने भी महानगरों का जीवन विषाक्त और घुटन भरा बना दिया है। इस यांत्रिकता से निपटने के लिए विस्तृत रणनीतियों की आवश्यकता है। असल में, पंजाब और हरियाणा के सीमांत किसान के पास फसल चक्र के चलते कृषि अवशेषों को नष्ट करने का समय नहीं होता। वे न तो निस्तारण के लिए मशीनें खरीदने के लिए तैयार होते हैं, न ही मशीनों को किराए पर लेने की उत्सुकता दिखाते हैं। किसान के लिए सबसे आसान तरीका यह होता है कि फसल के अवशेष जलाकर समय बचाया जाए। इन दिनों पंजाब-हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में अ‍वशेष जलाने के दृश्य आम हैं। किसान इसे सुविधाजनक पाता है और अतिरिक्त खर्च से बचता है। अब सवाल यह है कि इस समस्या का स्थायी समाधान क्या होगा।

बैसाखी के बाद, जब गेहूं की फसल काटी जाती है, तो खेतों में बची नाड़ को निपटाने की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इस बार पंजाब सरकार ने फसलों के अवशेष जलाने पर पूरी तरह से अंकुश लगाने का संकल्प लिया है। इस उद्देश्य के लिए 500 करोड़ रुपये की कार्ययोजना तैयार की गई है, और पिछले साल से अधिक प्रभावी नाड़ जलाने पर नियंत्रण के अभियान चलाए जाएंगे। अब किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीनें अधिक सब्सिडी पर उपलब्ध करवाई जाएंगी और फसल अवशेष प्रबंधन के उचित उपाय किए जाएंगे। इसके तहत सीमांत किसानों के लिए नाड़ प्रबंधन मशीनों को किराए पर उपलब्ध कराया जाएगा। जो किसान इन मशीनों को खरीदना चाहें, उन्हें भारी सब्सिडी दी जाएगी। व्यक्तिगत रूप से किसानों को इन मशीनों की खरीद पर 50 प्रतिशत सब्सिडी मिलेगी, जबकि सहकारी समितियों और ग्राम पंचायतों को 80 प्रतिशत सब्सिडी दी जाएगी।

यह पहल पंजाब सरकार द्वारा प्रदूषण नियंत्रण और कृषि क्षेत्र में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, जिससे किसान भी अपनी समस्याओं का समाधान कर सकेंगे और पर्यावरण पर होने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम किया जा सकेगा।

पंजाब के कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले साल फसल अवशेष प्रबंधन अभियान काफी सफल रहा, जिसमें 70 प्रतिशत सफलता हासिल की गई। हालांकि, यह सफलता पिछले वर्षों की तुलना में काफी बेहतर थी, लेकिन अवशेष जलाने को गंभीर अपराध न मानने के कारण इसे पूरी तरह से रोकने में सफलता नहीं मिली। कृषि विभाग का कहना है कि  खेतों में अवशेष जलाने के मामलों में कड़ी कार्रवाई की जरूरत है, और हर मामले में दोषियों को दंड मिलना चाहिए, ताकि यह समस्या स्थायी रूप से सुलझ सके।

पिछले साल सरकार ने 17,600 मशीनों की उपलब्धता और 1331 कस्टम हायरिंग सेंटर्स की स्थापना की थी, जिससे किसानों को फसलों के अवशेष निपटाने के लिए आसानी से उपकरण मिल सकें। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह उपलब्धि पर्याप्त है? पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्यों में मशीनों की सुलभता और कम किराए पर उपलब्धता अत्यंत आवश्यक है, ताकि फसलों के अवशेष जलाने की समस्या को सुलझाया जा सके।

इन दिनों वायु प्रदूषण बहुत हद तक पुराने वाहनों, कोयले के गलत उपयोग और यांत्रिकता के कारण उत्पन्न हो रहा है। ऐसे में यह जरूरी है कि इस स्थिति को एक व्यापक दृष्टिकोण से समझा जाए। किसानों को जागरूक करने की जरूरत है कि वे नाड़ को खेतों में दबाकर अपनी उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं।

लेकिन वायु प्रदूषण और पर्यावरणीय संकट का समाधान केवल फसलों के अवशेष जलाने तक सीमित नहीं है। इसके लिए एक व्यापक और सशक्त तंत्र की आवश्यकता है। जो एक तरफ खेतों में फसलों के अवशेष जलाने से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करे, वहीं दूसरी तरफ शहरी क्षेत्रों में बढ़ते यांत्रिक प्रदूषण और धुएं की कालिमा को भी नष्ट करे।

कभी-कभी समस्या को आंशिक रूप से हल करने से उसका असर आधा-अधूरा होता है। इसलिए, जब फसलों के अवशेष जलते हैं तो सारा दोष किसान को ही दिया जाता है और शहरी प्रदूषण की उपेक्षा कर दी जाती है। इस बार यदि हम संतुलित नीति के साथ इस प्रदूषण और घुटन का मुकाबला करने में सफल होते हैं, तो हम इस प्रदूषण नियंत्रण अभियान को सार्थक मान सकते हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब