जेब में डले हाथ का स्‍वेग और खुजली कथा

The story of the sweat and itching of the hand in the pocket

सुनील सक्‍सेना

गोलू भैया को चुनाव में टिकिट मिलने की घोषणा होते ही रातों-रात उनके आदमकद पोस्‍टर नई बनी फोरलेन सड़क के बीचों बीच लगे बिजली के पोलों पर लग गए । फोटो में कनपटी तक फैली मुस्‍कान, तलवार सी तनी मूछें और हमेशा की तरह गोलू भैया अपना दायां हाथ जेब में डाल हुए थे । ये उनका चिरपरिचित मोहित करने वाला पोज है, जिसके लोग दीवाने हैं ।

क्‍या आम और क्‍या खास हरेक ये जानने के लिए बेताब रहता है कि आखिर ऐसा क्‍या है गोलू की जेब में कि वे सदा जेब में हाथ डाले रहते हैं । किसी की मैयत में हों, शादी-ब्‍याह में हों, कोई रैली हो, पब्लिक मीटिंग हो, पार्टी मीटिंग हो गोलू भैया का राइट हेंड जेब में ही रहता है । यदाकदा वे रिलेक्‍स होने के लिए जेब से हाथ बाहर निकालते हैं, लेकिन चंद पलों में हाथ वापस जेब में चला जाता है । उनके इस अंदाज की दीवानगी का आलम ये है कि जनसभा में भाषण देते वक्‍त जब कभी आवेश में गोलू भैया का हाथ जेब से बाहर आजाता है तो पब्लिक गला फाड़-फाड़ कर चिल्‍लाने लगती है गोलू भैया हाथ जेब में … हाथ जेब में । जेब के प्रति उनका ये अगाध प्रेम जनता जर्नादन में अबूझ पहेली बना हुआ है । गोलू भैया की इस आदत के पीछे के कई किस्‍से, अफसाने मशहूर हैं । जितने मुंह उतनी बातें । लेकिन हकीकत क्‍या है कोई नहीं जान पाया । सब अटकले हैं । कयास हैं ।

वे लोग जिन्‍होंने गोलू के गुर्बत के दिन देखे हैं, बताते हैं कि अड़ोसी-पड़ोसी अपने बच्‍चों के उतरे हुए कपड़े गोलू को पहनने के लिए दे देते थे । लूज कमीज, टीशर्ट तो गोलू कैसे भी अटा लेते, लेकिन ढीली-ढाली नेकर कमर पर टिकती नहीं थी । नेकर निबकती रहती । गोलू को जब भी लगता नेकर गिर रही है, तुरंत हाथ जेब में डालकर उसे ऊपर खिसका लेते । यहीं से उनके हाथ और जेब में ऐसी घनिष्‍टता हुई कि नेकर न भी खिसक रही हो, गोलू जेब में ही हाथ डाले रहते ।

कुछ बताते हैं कि गोलू जब किशोर और युवा वय के संधी काल से गुजर रहे थे तो उन्‍हें लेमन की रंगबिरंगी मीठी गोलियां चूसने का बड़ा शौक था । पढ़ाई में तेज गोलू को वजीफा मिलने लगा । गोलियां जेब में भरी रहतीं । खुद खाते । मोहल्‍ले के बाल-गोपालों को भी खिलाते । कहीं कोई बच्‍चा-बच्‍ची नजर आता जेब से फटाक गोली निकाल कर दे देते । गोलू बच्‍चों में गोलू चाचा के नाम से फेमस हो गए । छोटे तो छोटे बड़े भी गोलू चाचा कहकर पुकारने लगे । गोलू जगत चाचा हो गए ।

एक दिन अखबार में कहीं की खबर छपी “टॉफी का लालच देकर बच्‍ची से किया दुष्‍कर्म, कुकर्मी जेल में”। मुन्‍ना दर्जी जो गोलू के पक्‍के सखा हैं, खैरख्‍वाह, हमराज, हम निवाला –हम प्‍याला हैं, ने गोलू को समझाया कि देखो गुरू तुम्‍हें राजनीति में लंबी रेस का घोड़ा बनना है । ये बच्‍चों को लेमन की गोलियां बांटना छोड़ो । जमाना खराब है । किसी भी दिन मुसीबत में पड़ जाओगे । गांव के तेजस्‍वी बच्‍चे स्‍कूल में “गुड टच- बेड टच” क्‍या होता है जानकर कर, सयाने हो गए हैं । कहीं कोई लांछन-वांछन लग गया न तो नेतागिरी तो एक तरफ जिंदगी भर किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगे । गोलू अपने बगलगीर मुन्‍ना की बात को टाल नहीं सकते थे । लिहाजा उनका लेमन की गोलियां चूसने का चस्‍का तो छूट गया, लेकिन जेब में हाथ डाले रखना जस का तस बना रहा ।

कॉलेज के दिनों के साथी बताते हैं कि छ: फुटिया गोलू अमिताभ बच्‍चन के बड़े वाले फैन थे । बच्‍चन साहब की तरह एक हाथ जेब में डाले थोड़ा दांए कंधे को झुकाए जब गोलू कॉलेज में हांय… हांय कहते हुए चलते तो कयामत ढाते थे । कॉलेज की लड़कियां जो गोलू को कभी चाचा कहतीं थीं, सात जन्‍मों तक गोलू के साथ पति के रिश्‍ते में बंधने के लिए मरी जा रहीं थीं । फेसबुक, इंस्‍टाग्राम पर गोलू अपनी जेब में हाथ डाले फोटो, रील डालते तो लाइक्‍स का अम्‍बार लग जाता । हजारों फॉलोअर्स हो गए । देखते-देखते गोलू सोशल मीडिया के टॉप इन्‍फुलेंसर्स में शुमार हो गए ।

इस विस्‍फोटक और चकित कर देने वाली गोलू की लो‍कप्रियता पर घाघ नेताओं की गिद्ध दृष्टि पड़ी । गोलू भैया को प्राप्‍त जनसमर्थन को जनादेश में बदलने की प्रबल संभावनाएं राजनीतिक पार्टियों को दिख रहीं थी । चुनांचे आने वाले चुनाव में गोलू को टिकिट मिल गया ।

गोलू भैया की रहस्‍यमयी जेब पर से परदा उठाने के लिए समूचा विपक्ष एकजुट हो गया । इस अमृत काल में ऐसी कौनसी जादू की पुडि़या जेब में धरे गोलू भैया घूमते हैं कि जहां पांव रखते हैं हजारों राहें फूट जाती हैं । पता करो, ढूंढो कहीं तो कोई विभीषण होगा, कहीं तो कोई शोले फिल्‍म का हरिराम नाई टाइप का मुखबिर होगा जिसे गोलू भैया की जेब की सच्‍चाई मालूम होगी । इधर जब घर-घर में गोलू भैया को वोट दो की अपील वाले पर्चे बंटे तो विपक्षी दलों ने जनता के बीच जाकर खूब हल्‍ला माचाया । वोट तो हाथ जोड़कर मांगे जाते हैं पॉकेट में हाथ डालकर नहीं । वोटर भाइयो सोचिए ये आदमी अभी इतना एटीट्यूड दिखा रहा है तो जीतने के बाद तो ये आपको अपनी जेब में रखकर घूमेगा । जेब चुनावी मुद्दा बन गया ।

विपक्ष की मेहनत, एकता रंग लाई । कमजोर कड़ी हाथ लग गई । मुन्‍ना दर्जी । संगत से रंगत बदल जाती है । गोलू के साथ रहते-रहते मुन्‍ना दर्जी को भी नेतागिरी का कीड़ा लग गया । गोलू को विपक्ष का साझा उम्‍मीदवार बनाने का प्रलोभन काम कर गया । मुन्‍ना दर्जी ने रामलील मैदान में अपार जनसमूह के सामने गोलू भैया की जेब का पर्दाफाश कर दिया । गरजते हुए बोले मित्रो गोलू भैया कि जेब सिर्फ दिखाने भर की है । वो जेब है ही नहीं । पोली है । हाथ डालो तो आरपार हो जाता है । अब आप पूछेंगे कि फिर ऐसी जेब किस काम की ? तो मैं बताता हूं । सुनना चाहेंगे कि नहीं । जोर से बोलिए… सुनना चाहेंगे । पब्लिक चीखने लगी । सुनना चाहेंगे… बताइये… बताइये…।

तो बहनो भाइयो असली राज ये है कि गोलू भैया को खाज है । वो भी ऐसी जगह पर है कि सार्वजनिक जीवन में रहने वाला व्‍यक्ति सार्वजनिक स्‍थल पर सबके सामने खुजा नहीं सकता । अशोभनीय लगता है । ये पीड़ा जब गोलू भैया ने हमें यानी आपके इस मुन्‍ना दर्जी को बताई तो इस नाचीज़ ने ही उनको ये पोली जेब का आइडिया बताया । गोलू भैया खुजली की असहनीय पीड़ा से त्रस्‍त हस्‍बेमामूल जेब में हाथ डाले रहते । जब मची तो खुजा लिया । आप भोले-भाले बहनों-भाइयों को लगा कि ये उनकी शोख़ अदा है, स्‍टाइल, स्‍वेग है । बरसों से आप बेवकूफ बनते रहे और वे “आइकॉन” बन गए । साथियो, ये आपकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ है । धोखा है । विश्‍वासघात है । जनता गोलू भैया हाय…हाय करने लगी ।

विपक्ष की बांछे खिल गईं । तिल मिल गया, बस ताड़ बनाना था । अगले वक्‍ता ने मंच संभालते ही मुन्‍ना दर्जी की खोदी सुरंग को और गहरा कर दिया । बात गोलू भैया के चर्मरोग से गुप्‍त रोग पर पहुंच गई । गोलू भैया की छैला बाबू वाली इमेज की धज्जियां उड़ने लगीं । रसिया, रंगबाज, चरित्रहीन, औरतखोर, जैसे विशेषण गोलू भैया के बायोडाटा में विपक्ष ने जोड़ दिए । मामला गरमा गया । फिजां बदल गई । गोलू भैया की सीट खतरे में पड़ती दिखने लगी ।

लेकिन गोलू भैया सत्‍ताधारी पार्टी के उम्‍मीदवार थे । सत्‍ताधारी को इच्‍छाधारी नाग की तरह प्रिवलेज है कि वो जब चाहे जैसा चाहे रूप धर सकता है । ईंट का जवाब पत्‍थर से तो आना ही था । रूलिंग पार्टी ने यत्र-तत्र सर्वत्र जितने भी यंत्र-तंत्र, अस्‍त्र-शस्‍त्र संसाधन उपलब्‍ध थे, झोंक दिए गोलू भैया की इमेज बिल्डिंग में ।

एक दिन भिनसारे मुन्‍ना दर्जी के रेसीडेंस कम शॉप के सामने बुलडोजर खड़ा था और सरकारी अमले के सामने मुन्‍ना दर्जी हाथ जोड़े खड़े थे ।

“मकान न तोड़ो मालिक… सड़क पर आजाएंगे बाल बच्‍चे ”

“अबे ये तो करने से पहले सोचना था । एक उभरते हुए नेता की इज्‍जत की मट्टी पलीद कर दी तू ने ।

“ हुजूर हम ने डेमेज किया है हम ही ठीक कर देंगे”

“कैसे…?”

“हम गोलू भैया के समर्थन में अपना नाम वापस ले लेंगे । पब्लिक मीटिंग में कह देंगे कि गोलू भैया की जेब में कोई पोल नहीं है । उनकी जेब में कंठीमाला धरी रहती है, रामनाम की । वे राम भक्‍त हैं । जेब में हाथ डाले गोलू भैया राम नाम जपते रहते हैं ।”

तमाशबीनों के बीच में से किसी ने “जय श्रीराम” का उदघोष किया । हमारा नेता कैसा हो…गोलू भैया जैसा हो, के नारे लगने लगे । वातावरण गोलूमय हो गया । हवा बदल गई । लहर चल गई । बुलडोजर ड्राइवर ने रिवर्स गेअर डाला और भीड़ के साथ चल दिया ।