
- वक्त ने कई बड़े नेताओं, दलों और विचारधाराओं को शिखर तक पहुँचाया और फिर उसी वक्त ने उन्हें ज़मीन पर ला दिया
- राजनीति में वक्त का महत्व बढ़ जाता है क्योंकि सत्ता,नेतृत्व और जनमत समय की धाराओं पर ही टिका रहता है
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं
वैश्विक स्तरपर मानव इतिहास गवाह है कि वक्त कभी किसी का स्थायी साथी नहीं रहा।वक्त हमेशा से मनुष्य की समझ और नियंत्रण से परे रहा है। यह किसी का सगा नहीं होता, यह न रुकता है और न ही किसी के लिए ठहरता है। राजनीति में वक्त का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि सत्ता,नेतृत्व और जनमत समय की धाराओं पर ही टिका रहता है।आज जब हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के हालात देखते हैं, तो साफ प्रतीत होता है कि वक्त ने कई बड़े नेताओं, दलों और विचारधाराओं को शिखर तक पहुँचाया और फिर उसी वक्त ने उन्हें ज़मीन पर ला दिया। यही कारण है कि वक्त का पहिया हमेशा करवट बदलता रहता है। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र ने अपने जीवन में देखा हूं कि जो साम्राज्य कभी अजेय माने जाते थे, वे धराशायी हो गए। जो नेता कभी अमर समझे जाते थे, वे इतिहास के पन्नों में फीके पड़ गए। राजनीति और सत्ता का हर खेल वक्त की ही मेहरबानी या बेरुख़ी पर आधारित है। वर्तमान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में यह कहावत और भी सटीक बैठती है कि “वक्त कभी किसी का सगा नहीं होता, यह करवट बदलते ही शिखर को जमीन और जमीन को शिखर बना देता है।”
साथियों बात अगर हम वक्त कभी किसी का सगा नहीं किस पर अनुभव का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति का विश्लेषण करें तो (1)भारतीय राजनीति का दृष्टिकोण -भारतीय राजनीति इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। आज़ादी के बाद कांग्रेस का वर्चस्व इतना मजबूत था कि उसे “नेचुरल पार्टी ऑफ गवर्नेंस” कहा जाने लगा। जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तक, कांग्रेस ने दशकों तक सत्ता पर एकछत्र शासन किया। परंतु वक्त ने करवट ली और 2014 के बाद कांग्रेस सत्ता से दूर होती चली गई।आज वही भारतीय जनता पार्टी,जो 1980-90 के दशक में सीमित सीटों तक सिमटी थी, राष्ट्रीय राजनीति की धुरी बन चुकी है। नरेंद्र मोदी का नेतृत्व आज भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी ताकत है। लेकिन यह भी सच है कि वक्त कभी किसी का सगा नहीं होता। जिस तरह कांग्रेस सत्ता से गिर गई,उसी तरह भविष्य में भाजपा को भी यही चुनौती झेलनी पड़ सकती है। (2) अंतरराष्ट्रीय राजनीति-अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का उदाहरण बेहद प्रासंगिक है। 2016 में उन्होंने सबको चौंकाते हुए राष्ट्रपति पद जीता और खुद को अमेरिका का ‘परम नेता’ मान बैठे। लेकिन 2020 में वे हार गए और उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी। यही नहीं,6 जनवरी 2021 को कैपिटल हिल पर उनके समर्थकों की हिंसा ने उनकी छवि को और धूमिल कर दिया।
लेकिन आज 2025 में ट्रंप फिर से वापसी कर रहे हैं। यही वक्त की असली तस्वीर है -यह न तो स्थायी हार देता है और न स्थायी जीत। (3) रूस-यूक्रेन युद्ध भी इस कथन को चरितार्थ करता है। व्लादिमीर पुतिन ने 2022 में युद्ध छेड़ा था, उम्मीद थी कि कुछ ही दिनों में यूक्रेन रूस के सामने घुटने टेक देगा। लेकिन वक्त ने करवट ली और वही युद्ध रूस के लिए दलदल बन गया। रूस की अर्थव्यवस्था को प्रतिबंधों ने कमजोर किया और पुतिन की छवि पर भी गहरा असर पड़ा।(4) मध्य-पूर्व का परिप्रेक्ष्य- इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष भी दिखाता है कि वक्त कभी किसी का नहीं होता। कभी इज़राइल को अजेय माना जाता था,लेकिन 2023-24 के गाज़ा संघर्ष ने उसकी छवि को धक्का पहुँचाया। वहीं फ़िलिस्तीनी मुद्दा जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दब चुका था,आज फिर से प्रमुख हो गया।
साथियों बात कर हम वक्त का पहिया हमेशा एक जैसा नहीं रहता राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नेताओं से विश्लेषण अनुभव के आधार पर करें तो(1)भारत के नेताओं का उत्थान-पतन-भारत में लाल बहादुर शास्त्री का अचानक प्रधानमंत्री बनना और ‘जय जवान जय किसान’ के नारे से अमर हो जाना दर्शाता है कि वक्त का पहिया कब किसे उठाए, कहा नहीं जा सकता। वहीं इंदिरा गांधी का ‘आयरन लेडी’ बनना और फिर आपातकाल में गिरती लोकप्रियता दिखाती है कि सत्ता का समय सदा समान नहीं रहता।नरेंद्र मोदी का वर्तमान वक्त सुनहरा है। वे न केवल भारत बल्कि दुनियाँ के सबसे लोकप्रिय नेताओं में शुमार हैं।अभी उनका हाल ही में 17 सितंबर 2025 को 75वें जन्मदिवस पर दुनिया भर से शुभकामनाएं आईं. आम जनता से लेकर अंतरराष्ट्रीय नेताओं और आध्यात्मिक गुरुओं तक, सभी ने प्रधानमंत्री को दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए उनके नेतृत्व की सराहना की है।लेकिन राजनीति में यह स्थायी नहीं। विपक्ष का उभार, जनमत का बदलाव और वैश्विकपरिस्थितियाँ भविष्य में उनकी चुनौती बन सकती हैं।(2)अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उदाहरण-बराक ओबामा का दौर ‘येस वी कैन’ और उम्मीद का प्रतीक था। परंतु उसी अमेरिका ने 2016 में ट्रंप को चुना, जिन्होंने बिल्कुल उलटी नीतियाँ अपनाईं। यह वक्त के पहिए का सटीक उदाहरण है।ब्रिटेन में बोरिस जॉनसन कभी ब्रेक्ज़िट के नायक माने गए, लेकिन कोविड-19 कीअव्यवस्था और पार्टीगेट स्कैंडल ने उनका राजनीतिक करियर खत्म कर दिया।जर्मनी में एंजेला मर्केल का 16 साल का लंबा शासन खत्म हुआ और एक नए युग की शुरुआत हुई। यह दर्शाता है कि सत्ता कितनी भी मज़बूत क्यों न लगे, वक्त का पहिया उसे बदल ही देता है।
साथियों बात अगर हम वक्त का पहिया कैसे करवट बदल लेता है,अतीत और वर्तमान का तुलनात्मक विश्लेषण करें तो(1)भारत का बदलाव-1950 -70 के दशक का भारत गरीबी, विदेशी तकनीक और आयात पर निर्भर था। लेकिन 1991 की आर्थिक उदारीकरण की करवट ने भारत को बदल दिया। आज वही भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर है।
नेहरू के भारत और मोदी के भारत में फर्क यही वक्त का खेल है। पहले पंचवर्षीय योजनाएँ राजनीति की धुरी थीं, आज डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया नए भारत की पहचान हैं।(2)विश्व राजनीति का बदलाव-(अ ) सोवियत संघ कभी महाशक्ति था, लेकिन 1991 में उसका विघटन हो गया। अमेरिका, जो वियतनाम युद्ध में हार चुका था, वही शीत युद्ध का विजेता बन गया। चीन, जो 1970 में पिछड़ा हुआ था, आज अमेरिका को चुनौती दे रहा है।(ब)अरब देशों का तेल साम्राज्य भी वक्त के पहिए का शिकार हो रहा है। कभी पेट्रोलियम उनकी शक्ति था, आज नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहन उनके प्रभुत्व को चुनौती दे रहे हैं।(स)आधुनिक युग में वक्त की गति-21वीं सदी में वक्त का बदलाव और तेज़ हो गया है।
सोशल मीडिया, 24×7 न्यूज़ और कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने राजनीति को पल-पल बदलने वाला खेल बना दिया है।आज एक ट्वीट या वायरल वीडियो किसी नेता का राजनीतिक करियर बना सकता है या बिगाड़ सकता है। 2024-25 के चुनावों में हमने देखा कि डिजिटल कैंपेन और सोशल मीडिया ट्रेंड्स ने नीतियों से बहुत ज्यादा असर डाला।
साथियों बात अगर हम वक्त के पहिए का हम खुद अपने पुराने और आज के वक्त का ही विश्लेषण कर ले कि कुछ साल या दशक पूर्व हम क्या थे और अब क्या हैं, तो हमें पता चल ही जाएगा कि वक्त कभी एक सा नहीं रहता, इतना ही नहीं अगर हम अपने ही समाज या पीढ़ियों का विश्लेषण करें तो हमें अंदाज लग जाएगा कि वक्त का पहिया कैसे घूमकर बदलते रहता है इसलिए ही बड़े बुजुर्गों का कहना हैं, समय-समय की बात है आज तुम्हारा समय है कल हमारा समय भी आएगा। हम हमारे शहर जिले राज्य या राष्ट्र की स्थिति देखें, तो हमें ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे,अपने को बड़े शहंशाह, तीरंदाज कहने मानने वाले लोगों को भी हमने लाचार, तारतार होते देखा होगा, जिनके पास बेशुमार,दौलत पावर था और सबकुछ खरीद सकते थे परंतु वक्त का पहिया ऐसा फिसला कि उनका पैसा, पावर सब कुछ जमींदरोज़ हो गया और पैसे पैसे को मोहताज हो गए,हमने सुना ही नहीं अपनी आंखों से देखा भी जरूर होगा या फिर हमें यह अपने उम्र के बढ़ते चढ़ाव पर देखने को जरूर मिल जाएगा।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे किराजनीति में वक्त ही असली निर्णायक है। वक्त कभी किसी का सगा नहीं होता। यह शिखर को ज़मीन और ज़मीन को शिखर बना देता है। भारत, अमेरिका, रूस, चीन, यूरोप, मध्य-पूर्व—हर जगह यह सिद्धांत समान रूप से लागू होता है।नेताओं और राष्ट्रों को यह समझना चाहिए कि सत्ता और लोकप्रियता क्षणिक हैं। स्थायी केवल परिवर्तन है। इसीलिए यह याद रखना ज़रूरी है कि वक्त का पहिया हमेशा घूमता है और राजनीति का हर समीकरण उसी के हिसाब से बदलता है।