फिर आतंकी हमलें, सैनिकों का बलिदान व्यर्थ न जाये

Then terrorist attacks and sacrifices of soldiers should not go in vain

ललित गर्ग

लगातार जम्मू-कश्मीर में बढ़ रही आतंकी घटनाएं चिन्ता का कारण बन रही है। डोडा जिले में एक आतंकी हमले में कैप्टन समेत सेना के चार जवानों और जम्मू कश्मीर के एक पुलिसकर्मी का बलिदान अब यही दर्शा रहा है कि शांति एवं अमन की ओर लौटा जम्मू-कश्मीर एक बार फिर आतंकवादी आघातकारी घटनाओं की भेंट चढ़ रहा है, इन घटनाओं का माकुल जबाव नहीं दिया गया तो यह घाटी एक बार फिर खूनी घाटी बन जायेगी। क्योंकि कुछ ही दिनों पहले कठुआ में एक सैन्य अफसर सहित पांच जवान आतंकियों का निशाना बन गए थे। इसके पहले भी जम्मू संभाग में ही सेना के कई जवान आतंकियों से लोहा लेते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दे चुके हैं। ये बहुत चिंतित करने वाले त्रासद एवं घिनौने घटनाक्रम हैं कि पिछले कुछ समय से कश्मीर घाटी के साथ-साथ जम्मू संभाग में भी आतंकियों की गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं। हाल की कुछ घटनाओं से तो यह भी लगता है कि आतंकियों ने जम्मू संभाग को अपनी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बना लिया है। एक ऐसे समय जब जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी हो रही है, तब आतंकियों का सक्रिय होना और सफलतापूर्वक अपने मनसूबों को कामयाब करना गंभीर चिंता का विषय है।

ज्यादा चिन्ताजनक यह है कि पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकी न केवल घुसपैठ कर रहे हैं, बल्कि अपनी गतिविधियों को अंजाम देने और इस क्रम में सेना को निशाना बनाने में भी सफल हो रहे हैं। सरकार को उन खूनी हाथों को खोजना होगा अन्यथा खूनी हाथों में फिर खुजली आने लगेगी। हमें इस काम में पूरी शक्ति और कौशल लगाना होगा। आदमखोरों की मांद तक जाना होगा। अन्यथा हमारी खोजी एजेंसियों एवं सेना की काबिलीयत पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा कि कोई दो-चार व्यक्ति कभी भी पूरे प्रांत की शांति और जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर सकते हैं, हमारी संवेदनाओं को झकझोर सकते हैं। संवेदनाओं एवं भावनाओं को झकझोर भी रहे हैं, जब आतंकवादी हमलों में शहीद जवानों के पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटे घर की ड्योढ़ी पर आते हैं तब कारुणिक माहौल को देखकर दिल दहल उठता है क्योंकि देश के लिए अपना सर्वोच्च लुटा देने वाला जवान किसी का बेटा, किसी का पति और किसी का पिता होता है। हर आंख में आंसू होते हैं। किसी की गोद, किसी की मांग सूनी हो जाती है। देशवासी सोचने को विवश हैं कि वे शोक संत्पत परिवार के साथ करुणा और पीड़ा को कैसे बांटें।

डोडा वारदात की जिम्मेदारी लेने वाले ‘कश्मीर टाइगर्स’ जैसे आतंकी संगठनों की ताजा बौखलाहट की एक बड़ी वजह जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया की बहाली को लेकर बढ़ी सरगर्मी है। राज्य में लोकप्रिय सरकार के गठन के लिए अगले चंद महीनों में ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में, आतंकियों की बेचैनी समझी जा सकती है कि जिस तरह लोकसभा चुनाव में घाटी में लोग मतदान केंद्रों पर उमड़ पड़े और दशकों पुराना रिकॉर्ड टूटा, अगर विधानसभा चुनाव में लोगों का उत्साह और बढ़ा, तो जिन ‘स्लीपर सेल्स’ की बदौलत वे दहशत का अपना पूरा कारोबार चलाते हैं, वे भी मुख्यधारा के प्रति आकर्षित होकर, उनके खिलाफ हो सकते हैं। इसलिए उन्होंने घाटी के बजाय जम्मू संभाग में अपनी सक्रियता बढ़ाई है, ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित किया जा सके और सीमा पार के आकाओं से मदद हासिल करने का सिलसिला जारी रहे।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड मतदान से पाकिस्तान बौखलाया है। इसी का परिणाम है लगातार हो रहे आतंकी हमलें। इन हमलों ने आंतरिक सुरक्षा के लिये नये सिरे से चुनौती पैदा की है। जम्मू में रियासी, कठुआ और डोडा के आतंकी हमले चिन्ता का बड़ा कारण बने है। जम्मू-कश्मीर का माहौल सुधरने के बाद वहां के बाजार, पर्यटक स्थल गुलजार हुए हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था सुधर रही है। इसलिए देशद्रोही नहीं चाहते कि कश्मीर में शांति आए और वहां पर निर्वाचित सरकार काम करे। केन्द्र में गठबंधन वाली मोदी सरकार के सामने यह एक बड़ी चुनौती है। क्या इन आतंकी घटनाओं को केन्द्र सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया है? जो सरकार पाकिस्तान में घूस कर बदला ले सकती है, वह सरकार अब तक शांत क्यों है? ऐसा क्यों हो रहा है, इसकी तह तक जाने की जरूरत है। आतंकी जिस तरह अपनी रणनीति बदलकर सुरक्षा बलों को कहीं अधिक क्षति पहुंचाने में समर्थ दिखने लगे हैं, वह किसी बड़ी साजिश का संकेत है। एक ओर सीमा पार से होने वाली आतंकियों की घुसपैठ पर प्रभावी नियंत्रण करना होगा, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान को नए सिरे से सबक भी सिखाना होगा। यह इसलिए अनिवार्य हो गया है, क्योंकि पिछले कुछ समय में आतंकी हमलों में बलिदान होने वाले सैनिकों की संख्या कहीं अधिक बढ़ी है।

पाकिस्तान सत्ता प्रतिष्ठानों की मदद से यह आतंक का खेल फिर शुरू कर रहा है। कहीं न कहीं दिल्ली में बनी गठबंधन सरकार को यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि पाक पोषित आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में शांति एवं अमन को कायम नहीं रहने देंगे। एक आंकड़े के अनुसार पिछले तीन वर्ष में करीब 50 जवानों को अपना बलिदान देना पड़ा है। यह बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं। आतंक को करारा जवाब केवल तभी नहीं दिया जाना चाहिए, जब एक साथ बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों के जवानों को बलिदान देना पड़े। वास्तव में हमारे एक भी सैनिक का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। डोडा की घटना के बाद यह जो कहा जा रहा है कि सैनिकों के बलिदान का बदला लिया जाएगा, उसे न केवल पूरा करके दिखाया जाना चाहिए, बल्कि आतंकियों, उनके आकाओं और उन्हें सहयोग-समर्थन देने वालों पर ऐसा करारा प्रहार किया जाना चाहिए, जिससे वे अपनी हरकतों से हमेशा के लिए बाज आएं। पाकिस्तान भले ही आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा हो, लेकिन वह जम्मू कश्मीर में पहले की तरह ही आतंकवाद को बढ़ावा देने में लगा हुआ है। उसकी घरेलू व विदेश नीति ‘कश्मीर’ पर ही आधारित है। चूंकि इसकी भरी-पूरी आशंका है कि चीन उसे उकसाने में लगा हुआ होगा, इसलिए भारत को कहीं अधिक सतर्क रहना होगा।

केन्द्र सरकार ने कश्मीर में विकास कार्यों को तीव्रता से साकार किया है, न केवल विकास की बहुआयामी योजनाएं वहां चल रही है, बल्कि पिछले 10 सालों में कश्मीर में आतंकमुक्त करने में भी बड़ी सफलता मिली है। बीते साढ़े तीन दशक के दौरान कश्मीर का लोकतंत्र कुछ तथाकथित नेताओं का बंधुआ बनकर गया था, जिन्होंने अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिये जो कश्मीर देश के माथे का ऐसा मुकुट था, जिसे सभी प्यार करते थे, उसे डर, हिंसा, आतंक एवं दहशत का मैदान बना दिया। लेकिन वहां विकास एवं शांति स्थापना का ही परिणाम रहा कि चुनाव में लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेकर लोकतंत्र में अपना विश्वास व्यक्त किया। बढ़ती आतंकी घटनाओं पर गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह नजर बनाए हुए हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि सुरक्षा बल आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब देगा लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सुरक्षा बलों को आतंकियों के प्रति अपनी रणनीति बदलनी होगी और आतंकी जिन बिलों में छिपे होंगे उन्हें वहां से निकालकर ढेर करना होगा। आतंकवाद पर अंतिम प्रहार करने की तैयारी करनी होगी और साथ ही आतंकियों के मददगारों की भी पहचान करनी होगी, तभी आतंकवाद को नेस्तनाबूद किया जा सकता है।

पुलिस के आला अधिकारी यदि यह कह रहे हैं कि घाटी के नागरिक समाज में पाकिस्तानी ‘घुसपैठ’ को बढ़ावा देने में कतिपय राजनीतिक दलों का रुख भी जिम्मेदार रहा है, तो क्या यह आधारहीन है? इसका मुकाबला हर स्तर पर हम एक होकर और सजग रहकर ही कर सकते हैं। यह भी तय है कि बिना किसी की गद्दारी के ऐसा संभव नहीं होता है। ताजा आतंकी हमलों के विकराल रूप कई संकेत दे रहे हैं, उसको समझना है। कई सवाल ख्रड़े कर रहा है, जिसका उत्तर देना है। यह पाकिस्तान का बड़ा षड़यंत्र है इसलिए इसका फैलाव भी बड़ा हो सकता है। ये घटनाएं चिल्ला-चिल्ला कर कह रही हैं हमारी खोजी एजेन्सियों से, हमारी सुरक्षा व्यवस्था से कि वक्त आ गया है अब जिम्मेदारी से, सख्ती से और ईमानदारी से जम्मू-कश्मीर को संभालें।