तीन क्रांतिकारी कानून आ गए, कुछ और बेहद जरुरी

Three revolutionary laws have arrived, some more are very important

सीता राम शर्मा ” चेतन “

किसी भी देश समाज के लिए सबसे बेहतर स्थिति यही हो सकती है कि वहां कानून का राज हो और कानून का राज स्थापित करने के लिए या करने का प्रयास करते हुए यह बहुत जरुरी है कि सबसे पहले उन अति महत्वपूर्ण पदों और व्यवस्थागत संस्थानों के लिए हर संभव आवश्यक जरुरी और कठोर कानून हों या बनाए जाएं, जो कानून बनाने, कानून को लागू और क्रियान्वयन करने-कराने के लिए जिम्मेवार हैं । गौरतलब है कि कानून बनाने और उसका क्रियान्वयन करने-कराने का काम विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का है । यदि इन महत्वपूर्ण संस्थानों के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे कुछ लोग योग्य, कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार नहीं होंगे तो देश की करोड़ों आम जनता के लिए बनाए गए कोई भी कानून शाब्दिक, सैद्धांतिक और न्यायिक दृष्टिकोण से कितने भी अच्छे या सर्वश्रेष्ठ कानून क्यों ना हो, त्रुटिपूर्ण, महत्वहीन और व्यर्थ ही सिद्ध होंगे क्योंकि तब इन कानूनों का क्रियान्वयन ना तो निष्पक्ष, न्यायोचित और सबके समानता के नागरिक अधिकार के अनुसार होगा और ना ही पूर्णतः कानून सम्मत । अतः वर्तमान समय में मोदी सरकार ने देश में कानून का राज स्थापित करने की दिशा में जो क्रांतिकारी और प्रशंसनीय प्रयास किया है उसकी मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए आम भारतीय जनमानस को उससे यह आग्रह करना चाहिए कि सरकार इनको लागू करने के पश्चात अब तत्काल एक और महत्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाते हुए कानून बनाने और उसको क्रियान्वित करने-कराने के जिम्मेवार महत्वपूर्ण स्थान और पदों पर आसीन संस्थानों और लोगों के लिए भी कुछ ठोस और कठोर कानून बनाए, ताकि देश और आम जनमानस के लिए बनाए गए कानून शत-प्रतिशत प्रासंगिक और परिणामदायी सिद्ध हो सकें ।

एक जुलाई से देश में लागू किए गए तीन अत्यंत महत्वपूर्ण कानूनों के बाद जो बेहद जरुरी कुछ और कानून बनाने की जरूरत है वह देश के महत्वपूर्ण तीन स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के शीर्षस्थ और सर्वाधिक जिम्मेवार लोगों के लिए होने चाहिए । ऐसे कुछ जरुरी कानून ये हो सकते हैं – एक – देश का सांसद, विधायक और जन प्रतिनिधि बनने के लिए आवश्यक शैक्षणिक और चारित्रिक योग्यता का निर्धारण होने के साथ उनकी कर्तव्यहीनता, भ्रष्टाचार और आपराधिक गतिविधि की स्थिति में उन्हें त्वरित पद और सेवा से मुक्त करते हुए, उन्हें उस क्षेत्र के लिए आजीवन अयोग्य घोषित करते हुए, उनके द्वारा किए गए अपराध के लिए कठोर आर्थिक और शारीरिक दंड का कानूनी प्रावधान हो । दो – किसी भी प्रशासनिक अथवा सरकारी कर्मचारी की कर्तव्यहीनता, अनियमितता, भ्रष्टाचार और अपराध की स्थिति में उसके लिए त्वरित पद और सेवा से मुक्ति के साथ कठोर आर्थिक और शारीरिक दंड का कानूनी प्रावधान हो । तीन – न्यायपालिका में भी कर्तव्यहीनता, अनियमितता, भ्रष्टाचार और अपराध की स्थिति में त्वरित सेवामुक्ति और आवश्यक आर्थिक, शारीरिक दंड का प्रावधान हो । चार- प्रशासनिक तथा न्यायिक व्यवस्था में प्रमोशन का आधार उनके कार्यकाल की अवधि, वरिष्ठता भर ना होकर उनकी कर्तव्यनिष्ठा, श्रेष्ठता, निष्पक्ष कार्यकुशलता और आवश्यक प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा निर्धारित करने का प्रावधान हो । पांच – देश के न्यायालयों में आने वाले सर्वाधिक मुकदमें भूमि विवाद के क्षेत्र से संबंधित होते हैं । अतः भूमि संबंधित कानूनों में व्यापक सुधार करते हुए देश और काल की परिस्थितियों के अनुरुप अत्यंत सरल और त्वरित निपटान वाले भूमि कानून बनाने की जरूरत है । सरकारी क्षेत्र में आने वाली भूमि पर किसी भी तरह का व्यक्तिगत, व्यवसायिक, सामुदायिक, धार्मिक अतिक्रमण और अधिकार घोर दंडनीय अपराध हो तो सार्वजनिक क्षेत्र की भूमि पर व्यक्तिगत और संस्थागत एकाधिकार की स्थिति अवैध, असंवैधानिक और दंडनीय अपराध घोषित किया जाए । सार्वजनिक महत्व के स्थानों, जैसे धार्मिक स्थल हो, अंत्येष्टि स्थल हो, बाजार हो, खेलकूद के मैदान हो, पार्क हो या फिर पहाड़, नदी, तालाब, झरने और समुद्र, सब पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण हो और उनका पूर्ण प्रबंधन पूरी पारदर्शिता के साथ सरकार करे और करवाए । धार्मिक स्थलों के लिए उनके संपूर्ण आर्थिक आय और व्यय का अधिकार सिर्फ और सिर्फ उनकी संरक्षक और संचालक समितियों के पास ही हो । अधिक आय या बचत वाले धर्म स्थलों पर सरकार को सिर्फ निगरानी का अधिकार हो । उसके खर्च का अधिकार सिर्फ और सिर्फ उनकी संरक्षक और प्रबंधन समितियों के पास ही हो ।

अंत में एक अत्यंत जरुरी कानून की बात राजनीतिक दलों के संदर्भ में । देश के राजनीतिक दलों के लिए एक कठोर नियमावली वाले ऐसे कानून की जरूरत है, जिससे उनके पास आने वाले असीमित धन और उनके द्वारा खर्च किए जाने वाले बेतहाशा धन पर प्रभावशाली अंकुश लगाया जा सके । इसके लिए सबसे पहले यह जरुरी है कि राजनीतिक दलों के सभी लेन-देन और आमद-खर्च का ब्यौरा पूरी तरह पारदर्शी और सार्वजनिक रखने का कानून बने । राजनीतिक दलों के लिए बनने वाले कानून में यह स्पष्ट नियम बनाया जाए कि उनके द्वारा किसी भी छोटे-बड़े व्यवसायिक अथवा चैरिटेबल संस्थान से चंदा लेना अवैध और दंडनीय अपराध होगा क्योंकि उनके द्वारा लिया जाने वाला वह चंदा स्पष्ट रूप से नीतिगत अनियमितता, अनुचित अनाधिकृत लाभ पाने और देने के प्रयास के साथ अनाचार और भ्रष्टाचार को ही प्रमाणित करता है । राजनीतिक दल को मिलने वाला चंदा सिर्फ व्यक्तिगत रूप से ही मान्य हो और वह भी कुछ हजार की अधिकतम वार्षिक धनराशि तक । साथ ही कानूनी तौर पर यह निश्चित किया जाए कि राजनीतिक दलों के आमद-खर्च अर्थात लेन-देन का माध्यम पूर्ण रुपेण अर्थात शत-प्रतिशत डिजिटल ही हो । साथ ही राजनीतिक दलों की परिसंपत्तियों और गतिविधियों सें संबंधित हर संभव ऐसे आवश्यक कानून बनें, जिससे उसकी पारदर्शिता, ईमानदारी और जन विश्वसनीयता सिद्ध हो तथा बनी रहे ।

सरकार को यह सच बहुत गंभीरतापूर्वक समझने की जरुरत है कि यदि ऐसे कुछ जरुरी कानून बनाए जाएं तभी उसके द्वारा बनाए गए नये कानूनों का सफल क्रियान्वयन और समुचित परिणाम संभव है । मोदी सरकार विषयगत यथार्थ, गंभीरता और महत्व को बखूबी जानते समझते हुए भी त्वरित ऐसा करेगी, प्रथम दृष्टया यह भले ही संदिग्ध लगे, पर समझेगी और अभी से ही भविष्य में ऐसा करने की तैयारी भी करेगी यह शत-प्रतिशत अपेक्षित है । फिलहाल कानून का राज स्थापित करने की दिशा में उठाए गए इस प्रथम सफल प्रयास के लिए तो वह अकाट्य रुप से प्रशंसा की पात्र है ! वह सबको करनी भी चाहिए ।