संदीप ठाकुर
संसद के दाेनाें सदनाे में अलग अलग दिन राष्ट्रपति के भाषण पर बोलने के
दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कमजोर पड़ते दिखे। कांग्रेस नेता राहुल
गांधी ने संसद में गौतम अदानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबंधों
को लेकर कई गंभीर आरोप लगाए। उनमें से एक भी आरोप का जवाब प्रधानमंत्री
ने नहीं दिया। राहुल ने अपने 50 मिनट के भाषण में कोई 58-60 बार अदानी का
नाम लिया। उन्होंने सरकारी मदद से अदानी को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया और
कई घटनाओं का साफ जिक्र किया। लेकिन भाजपा की तरफ से अभी तक इस पर किसी
ने मुंह नहीं खोला है। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, किरेन
रिजिजू,स्मृति ईरानी ,निशिकांत दुबे सबने राहुल पर हमला किया लेकिन
अदानी-मोदी के संबंधों पर किसी ने कुछ नहीं कहा है। अलबत्ता राहुल के
खिलाफ विशेषाधिकार का नोटिस दे दिया।
राहुल ने पहली बार संसद में भाजपाइयों को बगलें झांकने पर मजबूर कर दिया।
पूरी सरकार और भाजपा राहुल के पीछे पड़ी लेकिन किसी ने उनके उठाए मुद्दों
का जवाब नहीं दिया। राहुल ने अपने भाषण में कहा कि मुंबई हवाई अड्डा
जीवीके कंपनी के पास था, जिसके ऊपर दबाव डाल कर वह हवाई अड्डा अदानी समूह
को दिलाया गया। आरोप सरकार पर है और जवाब देने के लिए जीवीके समूह काे
आगे कर दिया गया। जीवीके ने कहा कि उसके ऊपर कोई दबाव नहीं था। कंपनी ने
कहा कि हवाई अड्डा बेचने का मन वे पहले से बना चुके थे। लेकिन हकीकत में
मामला कुछ और ही कहानी कहते हैं। जीवीके समूह ने अदानी से अपना हवाई
अड्डा बचाने के लिए अक्टूबर 2019 में निवेशकों के साथ एक समझौता किया था।
लेकिन 27 जून 2020 को जीवीके समूह के मालिक जीवीके रेड्डी और उनके बेटे
संजय रेड्डी के खिलाफ सीबीआई ने एक एफआईआर दर्ज की और उसके 10 दिन बात
सात जुलाई को प्रवर्तन निदेशालय ने छापे मारे और पिता-पुत्र के खिलाफ धन
शोधन की जांच शुरू कर दी। इसके कोई दो महीने बाद 31 अगस्त 2020 को जीवीके
समूह ने मुंबई हवाई अड्डा और नवी मुंबई ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा अदानी समूह
को सौंप दिया। इस क्रोनोलॉजी से क्या समझ में आता है।
राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि नियमों को ताक पर रख कर देश के छह
मुनाफा कमाने वाले हवाई अड्डे अदानी समूह को दे दिए गए। सांसद राहुल के
इस आरोप में भी दम है क्योंकि भारत सरकार के कम से कम दो विभागों ने सभी
छह हवाईअड्डे एक ही कंपनी को देने से मना किया था।वित्त मंत्रालय के तहत
आने वाले आर्थिक मामलों के विभाग डीईए और नीति आयोग दोनों ने इस पर
आपत्ति की थी। दिसंबर 2018 में जब छह हवाई अड्डों- जयपुर, लखनऊ,
अहमदाबाद, गुवाहाटी, मेंगलुरू और तिरुवनंतपुरम को निजी हाथ में देने की
प्रक्रिया शुरू हुई तो पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप अप्रेजल कमेटी की पहली
बैठक में ही डीईए के एक नोट की चर्चा है, जिसमें डीईए ने लिखा था कि ये
सभी छह हवाईअड्डे बहुत कमाई करने वाले हैं और इसलिए किसी एक निजी कंपनी
को दो से ज्यादा हवाई अड्डा नहीं दिया जाना चाहिए। अपनी बात के समर्थन
में डीईए ने दिल्ली और मुंबई हवाईअड्डे की मिसाल दी थी। यूपीए सरकार के
समय टेंडर के बाद दोनों हवाईअड्डे जीएमआर को मिले थे लेकिन एक ही कंपनी
को दोनों बड़े हवाईअड्डे नहीं देने की योजना के मुताबिक मुंबई हवाई अड्डा
दूसरे को दिया गया था। नीति आयोग ने दूसरी चिंता जताई थी। उसने कहा था कि
टेंडर डालने वालों के लिए हवाई अड्डे के संचालन का पूर्व अनुभव होना
चाहिए। लेकिन डीईए और नीति आयोग दोनों की आपत्तियों को खारिज कर दिया गया
और अंत में सभी छह हवाईअड्डे अदानी समूह को सौंप दिए गए।