सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण पुस्तक “ऊर्जस्वी”

ममता कुशवाहा

समसामयिक मुद्दों के साथ – साथ नैतिक विषयों पर लगातार पत्र – पत्रिकाओं में लिखते रहने वाले युवा लेखक नृपेन्द्र अभिषेक नृप की दूसरी पुस्तक “ऊर्जस्वी” सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण प्रेरक आलेखों का संग्रह है। इसके लेखक नृपेन्द्र अभिषेक ‘नृप’ है । उन्होंने अपनी पुस्तक में परोपकार:एक नैसर्गिक गुण, संतोष परम् सुखम्, मजबूत राष्ट्र के लिए एकता है जरूरी ,जीवन में सत्य की महत्ता , नैतिक मूल्यों का महत्व जैसे अनेक विषय को समाहित किया है । प्रत्येक लेख हमें जिंदगी को संवारने के लिए प्रेरणा देती है ।

लेखक ने पुस्तक में भाषा का प्रयोग आमजन में बोल चाल वाली सहज रूप से किया है जो हर कोई आसानी से पढ़कर समझ सकता हैं। नृप जी अपने आलेख में असफलता को सफलता का निकटतम बिंदु कहते हैं अर्थात हमें अपनी जिंदगी में सफलता पाने के लिए असफलता से बिल्कुल डरना नहीं चाहिए बल्कि सफलता से सीख कर अपनी गलतियों को सुधार कर दोबारा कोशिश करनी चाहिए और जब तक सफलता ना मिले, तबतक हमें कोशिश करते रहना चाहिए , क्योंकि एक आखिरी कोशिश भी हमें सफलता दिला सकती हैं।

एक दूसरे आलेख “संतोष परम् सुखम्” में बताते हैं मनुष्य की इच्छा अनंत है, इसलिए हमें जितना मिले उसमें संतुष्ट होकर जीवन व्यतीत करना चाहिए क्योंकि इच्छा पूर्ण करने की लालच में हम अपने सुख की अनुभूति को खो देते हैं और एक नयी इच्छा पूरा करने के लिए चिंतित हो कर हम वर्तमान सुख को दुख में बदल लेते हैं , इसलिए हमें जितना प्राप्त हो उसे पर्याप्त समझ कर खुश रहना चाहिए।

हम मनुष्य जब प्रगति के मार्ग पर होते हैं तो स्वार्थ भी हम पर हावी होने लगता है। हमारा स्वार्थ हमें अंहकारी बना दूसरो का बुरा करना शुरू कर देता है और दूसरे के साथ गलत करने के चक्कर में हमारा ही बुरा हो जाता है। इसलिए लेखक ‘ऊर्जस्वी ’में अपने अंहकारी भाव को त्यागने की सीख देते हुए कहते हैं। हमें अपने अंदर विद्यमान अंहकार के भ्रम को खत्म कर देनी चाहिए ताकि हम वास्तविकता को देख सके और भविष्य की हर कठिनाई से लड़ने और जोखिम उठाने में परिपक्व हो जाएं ।

हम सभी मनुष्य का जीवन अनेक प्रकार का उतार-चढाव से भरा है सुख दुःख ,आश-निराशा, हर्ष उल्लास, हताशा, दया- भाव इत्यादि भावनाओं का मिश्रण है। हम कभी भी जीवन यापन अकेले नहीं कर सकते हैं, इसलिए आस -परोस, परिवार, समाज बनाया गया है। अनेक लोग हमसे जुड़े हुए अनेक रिश्तों में, इन सब के साथ हर सुख दुःख, हर प्रकार के सामंजस्य मिला कर एक जुट होकर बिना किसी को तकलीफ दिये एक-दूसरे के सहयोग से अपना और दूसरों का जिन्दगी खूबसूरत बनाया जा सकता है। लेखक अपने ‘मानवता से ही श्रेष्ठ बनता है मनुष्य’ में यही सीख देते हैं।

किसी भी रिश्ते का बुनियाद विश्वास होता है जिसे हमें शक की चिंगारी से खत्म कर देती तब हमें अपनों के ऊपर विश्वास सदा बनाए रखना चाहिए। अपने परिवार हो, मित्र हो या चाहे कोई भी रिश्ता छोटी – छोटी शक की चिंगारी जलने से पहले उसे आपस में बैठकर बुझा देनी चाहिए क्योंकि हमारे लिए अपनो की एहमियत होनी चाहिए ना कि गलतफहमी की, इसलिए हर राह पर सच्चाई के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

अंत: नृप जी की पुस्तक ‘ऊर्जस्वी‘ प्रेरक आलेखों का संग्रह’ सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण है , जिसे पढ़कर जीवन में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरणा मिलता है। उन्होंने अपने अनुभव को जीवन का सबसे बड़ा गुरु बताया है तथा हर व्यक्ति इस पुस्तक को पढ़कर अपने जिन्दगी में आलस्य को त्याग कर अनुशासन को ईमानदारी से सच्चाई और निस्वार्थ मन से,परोपकारी, क्षमाशील भाव, प्रेम की डोर आपस में बांधकर निडर होकर अपना लक्ष्य तय कर उसे पा करके खूबसूरत और सहज बना सकता है । यह पुस्तक मन में चल रहे नकारात्मक सोच को दूर कर एक नयी उम्मीद का रोशनी प्रवाह करने में सहायक है ।

पुस्तक: ऊर्जस्वी
लेखक: नृपेन्द्र अभिषेक नृप
प्रकाशन: स्वेतवर्णा प्रकाशन, नयी दिल्ली
मूल्य: 199 रुपये
पृष्ठ- 115 पेज