प्रो. नीलम महाजन सिंह
पिछले कुछ महीनों से कुछ मुस्लिम संस्थाओं में रोष व बेचैनी का भाव पैदा हुआ है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में ‘वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक: 2024’ पेश किया है। किरण रिजिजू ने इस विधेयक को संसद की संयुक्त समिति को भेज दिया है। जेपीसी के अध्यक्ष जगदंबिका पाल हैं, जिन्होंने कॉंग्रेस को छोड़कर भाजपा का हाथ थामा है। इस विधेयक का उद्देश्य मौजूदा ‘वक्फ अधिनियम:1995, का नाम बदलकर ‘एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम’ करना है। विधेयक पेश किए जाने पर सरकार की कई मुस्लिम संस्थाओं ने आलोचना की है। विधेयक को सही ठहराते हुए रिजिजू ने कहा, “यह विधेयक किसी भी धार्मिक संस्था की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं करता है। किसी के अधिकार छीनने की बजाय, इस विधेयक का उद्देश्य उन लोगों को अधिकार प्रदान करना है, जिनके पास कोई भी अधिकार नहीं थे”। इस्लामिक कानून के अनुसार, ‘वक्फ’ का मतलब, ‘ऐसी संपत्ति से है, जिसका इस्तेमाल धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाता है’। विधेयक की पांच प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं: राज्य वक्फ बोर्डों की स्थापना के साथ-साथ, विधेयक में केंद्रीय वक्फ परिषद का प्रस्ताव है। परिषद में कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्य होने चाहिए, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा व बोर्ड में दो मुस्लिम महिलाएं होनी चाहिए। यह निर्धारित करने के लिए कि कोई भूमि वक्फ बोर्ड के अधीन होगी या वह सरकारी भूमि है, ज़िला कलेक्टर का निर्णय ही अंतिम होगा। विधेयक में कहा गया है, “यदि कोई प्रश्न उठता है कि क्या ऐसी कोई संपत्ति सरकारी संपत्ति है, तो उसे अधिकार क्षेत्र वाले कलेक्टर को भेजा जाएगा। वह जो निर्धारित करेगा कि ऐसी संपत्ति सरकारी संपत्ति है या नहीं व अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपेंगा।” बिल की एक प्रमुख विशेषता बोहरा व आगाखानी समुदायों के लिए अलग बोर्ड बनाना है। इसके अलावा, शियाओं सहित मुसलमानों के अन्य वर्गों को भी इसमें प्रतिनिधित्व मिलेगा। बिल में कहा गया है कि यह “मुस्लिम समुदायों में शिया, सुन्नी, बोहरा, आगाखानी व अन्य पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करेगा।” एक विस्तृत प्रक्रिया प्रदान करने के लिए, मसौदा विधेयक में एक केंद्रीय पोर्टल की स्थापना का प्रस्ताव है। नए अधिनियम के लागू होने के छह महीने के भीतर, वक्फ का विवरण दाखिल किया जाना चाहिए। इस बिल में ₹5,000 रुपये या उससे अधिक की शुद्ध वार्षिक आय वाले वक्फ के लिए वार्षिक अंशदान को सात प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत करने का प्रस्ताव है। यह भुगतान बोर्ड को ‘मुतवल्ली’ (ट्रस्टी या प्रबंधक) द्वारा किया जाना है। पसमांदा या पिछड़े मुसलमानों के एक समूह ने वक्फ संशोधन विधेयक को व्यापक समर्थन दिया है। वक्फ बोर्ड और वक्फ परिषद में अपने प्रतिनिधियों व महिलाओं को शामिल करने की मांग है, जबकि समुदाय के एक प्रमुख निकाय, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विधेयक को “अजीब अभ्यास” (a strange exercise) कहा है। अनेक संगठन विवादास्पद कानून की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के समक्ष गवाही दे रहे हैं। यह भी सच है कि कइ उद्योगपतियों ने वक्फ की ज़मीन को हड़प कर अपने महल बनाए हैं, जिनमें मुकेश अम्बानी की Antalia ‘अंटालिया’ व दिल्ली का ओबेरॉय होटल और (LANCO) लेंको कंपनियओं पर भी आरोप है। मामले न्यायसंगत हैं। (AIMPLB) एआईएमपीएलबी ने कहा है कि प्रस्तावित वक्फ संशोधन विधेयक, 2024 से पहले, “वक्फ के निर्माता की क्षमता व वक्फ के निर्माण की विधि को चित्रित करने का कभी कोई प्रयास नहीं किया गया।” संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष अपनी गवाही में, ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम समज ने कई मौकों पर सदस्यों के साथ तीखी बहस की, इसकी “भारतीयता पर ज़ोर दिया व समुदाय के एक संपन्न वर्ग पर पसमांदा मुसलमानों की आवाज़ को कमज़ोर करने का आरोप लगाया गया है। वक्फ के लिए उपयोगकर्ता द्वारा उपयोग किए जाने के प्रावधान को बदला जाना चाहिए, ना कि हटाना चाहिए। उन्होंने कहा, “इस प्रावधान को बदलते समय, समितियों (वक्फ बोर्ड या वक्फ परिषद द्वारा गठित) में महिलाओं और पसमांदा मुसलमानों को सदस्य व अन्य मुस्लिम वर्गों को शामिल किया जाना चाहिए। इन निकायों को ठीक से काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए। वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का भी विरोध किया गया है। केवल वक्फ न्यायाधिकरण के पास ही कानूनी अधिकार होने चाहिए। वक्फ बोर्ड वर्तमान में भारत भर में 9.4 लाख एकड़ में फैली लगभग 900,000 संपत्तियों को नियंत्रित करता है, जिसका अनुमानित मूल्य ₹1.2 लाख करोड़ से अधिक है। प्रस्तावित बदलावों की आलोचना की गई है व विपक्ष ने सरकार पर व्यक्तिगत कानूनों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया है। वरिष्ठ संस्थाओं ने कहा है, “हम एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं। हमें दूसरे समुदायों से कोई लड़ाई नहीं है। हमारी लड़ाई हमारे समुदाय के भीतर है, जहाँ हमें हमारे बुनियादी अधिकारों से वंचित किया जाता है।” एआईएमपीएलबी ने आरोप लगाया कि विधेयक ने दो प्रकार के मुसलमानों, प्रैक्टिस करने वाले व गैर-प्रैक्टिस करने वालों के बीच मतभेद लाने की कोशिश की है, क्योंकि इसमें प्रस्ताव है कि केवल पाँच साल तक प्रैक्टिस करने वाला मुस्लिम ही वक्फ के लिए ज़मीन दान कर सकता है। इस प्रावधान के साथ, संसद मुस्लिम समुदाय के लिए क्या करें और क्या न करें, यह तय करेगी। एआईएमपीएलबी ने तर्क दिया कि यह स्पष्ट है कि संसद या न्यायपालिका भी धर्म के मूल सिद्धांतों पर फैसला नहीं दे सकती। चूंकि विधेयक में उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ के प्रावधान को हटाने का प्रस्ताव है, इसलिए पर्सनल लॉ बोर्ड ने दावा किया कि नए प्रावधान उन सभी वक्फों से वक्फ का चरित्र छीन लेते हैं, जो किसी साधन के माध्यम से नहीं बनाए गए हैं। कलेक्टर के पास अपने प्रशासनिक अभ्यास में जांच करने और उसे गैर-वक्फ संपत्ति घोषित करने की सभी शक्तियां होंगी, जिसे “मनमाना और अनुचित व इन कानूनों के तहत कलेक्टर की शक्ति इतनी व्यापक है कि इसे यहां संक्षेप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। इन परिस्थितियों में, वक्फ भूमि के संबंध में कलेक्टर की भूमिका शुरू करने से वक्फ की अवधारणा के खिलाफ गंभीर पूर्वाग्रह पैदा होगा। एक ही प्राधिकरण को गैर-वक्फ उद्देश्य के लिए वक्फ की प्रकृति को बदलने के लिए विभिन्न क्षमता के तहत शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार होगा। जगदंबिका पाल ने कहा कि समिति व्यापक विचार-विमर्श के लिए हितधारकों से मिलने के लिए मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद और अहमदाबाद की यात्रा कर चुकी है। उन्होंने बताया कि अगले सत्र में वक्फ संशोधन विधेयक पर रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी। सारांशार्थ यह कहना उचित है कि वक्फ बोर्ड के पास सबसे अधिक ज़मीन-जायदाद होने वाले तीसरे स्थान पर है। सच्चर कमेटी ने यह कहा था कि वक्फ बोर्ड के पास की ज़मीन से ₹12000/- करोड़ की वार्षिक आमदनी होनी चाहिए जबकि अभी मात्र 120 करोड़ ही है। अनेक व्यक्तियों ने वक्फ बोर्ड का नाजायज़ फ़ायदा उठाया है। यदि इस धनराशि को मुस्लिम वर्ग की शिक्षित करने में लगाया जाएगा तो समाज में 140 करोड़ मुस्लिम इस से लाभान्वित हो सकते हैं। सरकार ने ज़मीनों के पंजीकरण डॉक्यूमेंट भी मांगे हैं। मुस्लमान, भाजपा सरकारों पर पूरा भरोसा नहीं करते, परंतु उन्हीं के नेताओं ने भी उनकी सामाजिक, अर्थिक व राजनीतिक सशक्तिकरण की ओर ध्यान नहीं दिया।
प्रो. नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, शिक्षाविद, सालिसिटर फार ह्यूमन राइट्स व परोपकारक)