सुनील कुमार महला
नक्सलवाद(माओवाद) आज हमारे देश व समाज के लिए एक बहुत ही बड़ी समस्या बन गया है। इस नासूर के कारण एक बार फिर छत्तीसगढ़ रक्तरंजित हो गया। हाल ही में नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सुरक्षाबलों(डीआरजी) के एक वाहन को निशाना बनाकर धमाका कर दिया, जिसमें डीआरजी के 10 जवान व एक ड्राइवर शहीद हो गए। वास्तव में, हाल ही में हुई दंतेवाड़ा की यह घटना दर्शाती है कि नक्सली आज हमारी आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बने हुए हैं। यह बहुत ही गंभीर व संवेदनशील है कि आज नक्सलियों के पास अत्याधुनिक हथियार तक उपलब्ध हैं।वास्तव में आज नक्सलियों व नक्सलवाद का दमन करने के लिए बहुत कुछ किया जाना शेष है। नक्सलियों व नक्सलवाद को नेस्तनाबूद करने के लिए आज केंद्र एवं राज्य सरकारों को हर स्तर पर सहयोग और समन्वय कायम करने की जरूरत है। आम जनता को भी इसके खात्मे के लिए आगे आना होगा, क्योंकि अकेले सरकार व प्रशासन कुछ भी नहीं कर सकते हैं। आम जनता को नक्सलियों व नक्सलवाद से सतर्क रहने की आवश्यकता है।
आम जनता यदि सरकार व प्रशासन को सहयोग करेंगे तो कोई दोराय नहीं कि नक्सलियों, नक्सलवाद को खत्म नहीं किया जा सके। यह गंभीर व संवेदनशील है कि वर्ष 2015 के बाद से नक्सलियों के 90% हमले लगभग चार राज्यों- छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार और ओडिशा में हुए हैं। यहाँ यह भी बता दूं कि यह पहली बार नहीं है जब नक्सलियों ने सुरक्षाबलों को निशाना बनाया हो। वे रह-रहकर हमारे सुरक्षाबलों को निशाना बनाते रहते हैं। सुरक्षा बल ही नहीं नक्सलियों ने इसी वर्ष फरवरी माह में सिलसिलेवार तरीके से पांच, दस व ग्यारह फरवरी को तीन भाजपा नेताओं की भी हत्या कर दी थी। नक्सली राजनीतिक दलों के नेताओं पर हमला करते रहे हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि 25 मई 2013 झीरम घाटी हत्याकांड में, जिसे देश का दूसरा सबसे बड़ा नक्सल हत्याकांड भी कहा जाता है, देश-दुनिया को झकझोर कर रख दिया था। छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में 25 मई 2013 के इस नक्सली हमले में 32 लोग अपनी जान गंवा बैठे थे। जानकारी देना चाहूंगा कि इस नक्सली हमले में जान गंवाने वाले ज्यादातर छत्तीसगढ़ कांग्रेस के शीर्ष नेता शामिल थे। यह देश का दूसरा सबसे बड़ा माओवादी हमला माना जाता है। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा नक्सली हमला वर्ष 2010 में हुआ था। वर्ष 2010 में ताड़मेटला, दंतेवाड़ा में में हुए सबसे बड़े नक्सली हमले में 76 जवान शहीद हो गए थे। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि सुकमा में जिले में नक्सलियों ने 24 अप्रैल, 2017 को बड़ा हमला किया था।
बुरकापाल हमले में हुए हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हो गए थे। इतना ही नहीं 21 मार्च, 2020 को नक्सलियों ने सुकमा जिले में हमला किया था। सुकमा भी छत्तीसगढ़ का एक नक्सल प्रभावित जिला है और सुकमा जिले के मिनपा इलाके में नक्सली हमले में 17 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे। इसके बाद तीन अप्रैल 2021 को भी सुकमा और बीजापुर जिलों की सीमा पर नक्सलियों ने घात लगाकर जवानों पर जानलेवा हमला किया था और इस हमले में 22 जवान शहीद हुए थे, जबकि कई जवान गंभीर रूप से घायल हो गए थे।जानकारी देता चलूं कि यह हमला बस्तर जिले के दरभा इलाके के झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हुआ था। झीरम घाटी में हुए इस खतरनाक हमले में कांग्रेस की पूरी पीढ़ी ही लगभग खत्म हो गई थी। हालांकि बीते कुछ सालों के दौरान नक्सली हमलों में खासी कमी आई है, लेकिन वर्तमान में हुआ हमला दर्शाता है कि क्षेत्र में नक्सलवाद की जड़ें अभी भी मौजूद हैं और इनका अभी पूरी तरह से सफाया नहीं हुआ है। जानकारी देना चाहूंगा कि सरकार ने वर्ष 2023 तक देश को नक्सलमुक्त करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन जिस तरह से नक्सली रह-रहकर हमलों को अंजाम दे रहे हैं, उससे तो नहीं लगता कि वर्ष 2023 तक सरकार अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेगी। बहरहाल, बताता चलूं कि भारत में नक्सली हिंसा की शुरुआत वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग ज़िले के नक्सलबाड़ी नामक गाँव से हुई और इसीलिये इस उग्रपंथी आंदोलन को ‘नक्सलवाद’ के नाम से जाना जाता है। ज़मींदारों द्वारा छोटे किसानों के उत्पीड़न पर अंकुश लगाने के लिये सत्ता के खिलाफ चारू मजूमदार, कानू सान्याल और कन्हाई चटर्जी द्वारा शुरू किये गए इस सशस्त्र आंदोलन को नक्सलवाद का नाम दिया गया। यह आंदोलन चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तुंग की नीतियों का अनुगामी था और यही कारण है कि इसे माओवाद भी कहा जाता है। आखिर हमारे देश में माओवाद(नक्सलवाद) के पीछे कारण क्या हैं ? इस पर विचार करने की आवश्यकता है। दरअसल, नक्सलियों का यह मानना है कि वे हिंसा का रास्ता अपनाकर समाज में बदलाव ला सकते हैं। नक्सलवादी लोकतंत्र एवं लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ होते हैं और ये लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को खत्म करने के लिये अक्सर हिंसा का सहारा लेते हैं। वास्तव में नक्सली(माओवादी) देश के अल्प विकसित क्षेत्रों में विकासात्मक कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं और लोगों को सरकार के प्रति भड़काने की कोशिश करते हैं। वास्तव में नक्सलवाद की उत्पत्ति के कारणों में सामाजिक-आर्थिक कारण शामिल हैं। वे मानते हैं कि सरकार उनकी लगातार अनदेखी कर रही है। माओवाद प्रभावित अधिकतर इलाके आदिवासी व गरीब बहुल हैं और यहाँ जीवनयापन की बुनियादी सुविधाएँ तक उपलब्ध नहीं हैं, मसलन यहाँ न तो सड़कें ही हैं, न ही पीने के लिये पानी की व्यवस्थाएं, न शिक्षा ही है और न ही स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ और न ही रोज़गार के अवसर। नक्सली लोगों से वसूली करते हैं और अपने आप को गरीबों, आदिवासियों का मसीहा मानते हैं। आज नक्सली नक्सलवाद की घटनाओं को अंजाम देने में इसलिए सफल हो जाते हैं क्योंकि उन्हें स्थानीय स्तर पर आदिवासियों, गरीबों से समर्थन मिल जाता है, हालांकि समय के साथ अब इसमें धीरे-धीरे कमी आ रही है। अब जनता सबकुछ समझ पा रही है। आज सरकार भी नक्सलियों पर लगाम कसने में हालांकि कुछ हद तक कामयाब रही है और यह सरकार, हमारे सुरक्षा बलों एवं स्थानीय लोगों की संयुक्त कोशिशों का ही परिणाम है कि पिछले काफी समय से में वामपंथी अतिवाद संबंधी घटनाओं, मौतों और उनके भौगोलिक प्रसार में काफी कमी आई है। आज सरकारें वामपंथी चरमपंथ से प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे, कौशल विकास, शिक्षा, ऊर्जा और डिजिटल कनेक्टिविटी के विस्तार पर लगातार काम कर रही है।
आज आर्थिक असमानता, भ्रष्टाचार, गरीबी अशिक्षा,बेरोजगारी को दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं, क्यों कि ये भी कहीं न कहीं नक्सलवाद के कारणों में से एक रहे हैं। आज बुनियादी चीजों/ ढ़ांचों बिजली, पानी, भोजन चिकित्सा, संचार, आवास आदि के संदर्भ में विकास/काम किया जा रहा है। असंतोष को दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं।हिंसा का रास्ता छोड़कर समर्पण करने वाले नक्सलियों के लिये सरकार पुनर्वास की भी व्यवस्थाएं कर रही हैं। आज आदिवासी, गरीब इलाकों में योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता है, गंभीरता व निष्ठा है। सामाजिक विषमता को दूर करने के यथेष्ठ प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन इन सबके बावजूद भी नक्सलवाद और नक्सली यदि पनप रहे हैं और हिंसक कृत्यों को लगातार अंजाम दे रहे हैं तो सरकार को इस संदर्भ में और अधिक चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है कि आखिरकार ऐसा क्यों हो रहा है अथवा क्यों किया जा रहा है ? नक्सलियों व नक्सलवाद के उभरने के आखिर कारण क्या हैं ? बहरहाल, यहाँ जानकारी देना चाहूंगा कि जो नक्सलवाद देश के 11 राज्यों छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के 90 जिलों के ‘रेड कॉरिडोर’ तक फैला हुआ था, अब वो सिमटकर महज 12 से 13 जिलों तक रह गया है। नक्सलवाद कम जरूर हुआ है लेकिन समूल नष्ट नहीं हुआ है।
अतः आज हमें नक्सलियों व नक्सलवाद का खात्मा करने के लिए हमें कड़े व त्वरित निर्णय लेने होंगे, ईंट का जबाब भी पत्थर से देना होगा। हमें हमारी राष्ट्रीयता, अस्मिता, संप्रभुता और शक्ति प्रदर्शन की भावना को किसी भी हाल व परिस्थितियों में और अधिक मजबूत किए जाने की जरूरत है। किसी भी हालात में यह कमजोर नहीं पड़नी चाहिए। नक्सलियों व नक्सलवाद के खात्मे के लिए हमेशा शांति, संयम की भावना से ही काम नहीं चलने वाला है, नक्सलवाद के खिलाफ हमारे देश को ऑपरेशन चलाने होंगे, कड़ी कार्रवाई भी करनी होगी। दूसरे शब्दों में कहें तो,घरेलू सुरक्षा पर अभी भी हमारे देश को बहुत सारे कड़े फैसले लेने की सख्त आवश्यकता है। इस संबंध में किसी ने गलत नहीं कहा है कि-‘हाँ, अब हमने उठा ली हैं तुम्हारे खिलाफ बंदूक। तुम जो समझते हो तमंचों की भाषा।’ बहरहाल, कहना चाहूंगा कि नक्सलवाद हो या आतंकवाद, हमारे सुरक्षा बलों की सुरक्षा हमेशा सर्वोपरि होनी चाहिए। सुरक्षा बल हैं तो हम हैं।अच्छा होगा कि केंद्र और राज्य सरकारें नक्सलियों के संपूर्ण सफाए हेतु कोई ठोस रणनीति बनाएं।