क्या है पंजाब और हरियाणा के बीच विवाद का मामला ?

What is the matter of dispute between Punjab and Haryana?

अशोक भाटिया

पंजाब और हरियाणा के बीच पानी को लेकर ताजा टकराव चल रहा है यह विवाद तब पैदा हुआ जब हरियाणा ने 23 अप्रैल को एक बैठक के दौरान भाखड़ा बांध से 8500 क्यूसेक पानी मांगा। हरियाणा को फिलहाल रोजाना 4000 क्यूसेक पानी मिल रहा है, लेकिन अब उसने 8500 क्यूसेक पानी मांगा है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा कि उन्होंने बाद में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान को फोन करके हरियाणा की पेयजल जरूरतों का हवाला दिया। हालांकि, मान ने कहा कि पहले से ही जल संकट से जूझ रहे पंजाब के पास एक बूंद भी पानी नहीं है। यह तनाव भाखड़ा नांगल बांध से पानी की आपूर्ति में हालिया कटौती को लेकर बढ़ गया है। इस पानी विवाद के संघर्ष की जड़ें 1966 से हैं, जब हरियाणा को पंजाब से अलग करके बनाया गया था। पुनर्गठन के हिस्से के रूप में हरियाणा को रावी और ब्यास नदियों के पानी का हिस्सा देने का वादा किया गया था, जो मुख्य रूप से पंजाब से होकर बहती थीं। इसे लागू करने के लिए पंजाब के क्षेत्र से हरियाणा के हिस्से का पानी ले जाने के लिए SYL नहर की परिकल्पना की गई थी। यह विवाद अब दो राज्यों के बीच राजनीतिक दोषारोपण के खेल में बदल गया है, जहां प्रतिद्वंद्वी दलों का शासन है। हरियाणा की भाजपा सरकार ने आम आदमी पार्टी पर जल राष्ट्रवाद को बढ़ावा देकर पंजाब में शासन की विफलताओं को दूर करने का आरोप लगाया है।

स्थिति यह है कि हरियाणा के साथ बढ़ते जल बंटवारे के विवाद के बीच पंजाब सरकार ने नांगल बांध पर सुरक्षा बढ़ा दी है। 3 दिनों से चल रही इस लड़ाई के बीच दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्रालय की पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और राजस्थान के अधिकारियों से बैठक हुई है, जिसमें पानी को लेकर विवाद के बाद की स्थिति को लेकर चर्चा की गई। लेकिन, अब तक स्थिति साफ नहीं हो पाई है। जबकि, एक दिन पहले भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) ने हरियाणा के लिए 8500 क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया था, जिसका पंजाब सरकार ने कड़ा विरोध किया था।

बीबीएमबी के चेयरमैन मनोज त्रिपाठी की अध्यक्षता में बुधवार (30 अप्रैल) को हुई मैराथन बैठक में पांच सदस्य राज्यों में से भाजपा शासित हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली ने हरियाणा को पानी छोड़ने के पक्ष में मतदान किया। पंजाब अलग-थलग पड़ गया, क्योंकि कांग्रेस शासित हिमाचल प्रदेश ने किसी भी पक्ष में मतदान नहीं करने का फैसला किया। भाखड़ा-नांगल बांधों को अक्सर एक ही बांध माना जाता है, लेकिन वे दोनों अलग-अलग बांध हैं। भाखड़ा बांध हिमाचल प्रदेश में है, जबकि नांगल पंजाब में है। हालांकि, वे एक ही नदी परियोजना के पूरक भाग हैं।

पंजाब का दावा है कि हर लेखा वर्ष की शुरुआत में बीबीएमबी प्रत्येक भागीदार राज्य का जल हिस्सा निर्धारित करता है। चालू वर्ष के लिए इसने पंजाब को 5।512 मिलियन एकड़-फुट (एमएएफ), हरियाणा को 2.987 एमएएफ और राजस्थान को 3.318 एमएएफ आवंटित किया। इस आवंटन के विरुद्ध हरियाणा ने पहले ही 3.110 एमएएफ यानी अपने हिस्से का 104 प्रतिशत वापस ले लिया है।

हरियाणा का तर्क है कि उसे पीने के लिए पानी की जरूरत है, खासकर हिसार, सिरसा और फतेहाबाद जिलों में, जहां पानी की भारी कमी है। पंजाब ने कहा है कि बर्फबारी के मौसम में कम बर्फबारी के कारण पोंग और रंजीत सागर बांधों में जल स्तर औसत से कम है। भगवंत मान ने कहा कि पोंग बांध का जल स्तर पिछले साल की तुलना में 31.87 फीट कम है, जबकि रंजीत सागर बांध 16.90 फीट कम है। भाखड़ा बांध में यह पिछले साल की तुलना में 12 फीट कम है। उन्होंने कहा कि जब से आप ने सत्ता संभाली है, राज्य ने भूजल भंडारों पर दबाव कम करने के लिए सिंचाई के लिए नहर के पानी को प्राथमिकता दी है।

एक अंग्रेजी अख़बार के अनुसार, पंजाब के जाने-माने जल विशेषज्ञ एएस डुलेट ने कहा कि हरियाणा को पीने के लिए पानी की आपूर्ति करने में फिलहाल कोई समस्या नहीं है। उन्होंने कहा, ‘ऐसी समस्याएं आम हैं। समायोजन किया जा सकता है। अगर हरियाणा की आबादी को पीने के पानी की जरूरत है तो उसे मुहैया कराया जा सकता है, खासकर तब जब पंजाब को इस समय अतिरिक्त पानी की जरूरत नहीं है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘पंजाब को 24-25 मई के आसपास अधिक पानी की जरूरत होगी, जब किसान 1 जून से धान की रोपाई शुरू करेंगे। एकमात्र शर्त यह है कि प्रत्येक राज्य का कोटा अपरिवर्तित रहना चाहिए। अगर हरियाणा को अभी अतिरिक्त पानी दिया जाता है तो पंजाब को बाद में इसकी भरपाई की जानी चाहिए। प्रवाह को समायोजित किया जा सकता है। लेकिन, एक राज्य के हिस्से से दूसरे राज्य को अतिरिक्त पानी देना गलत होगा।’

पंजाब अब अतिरिक्त पानी छोड़े जाने के खिलाफ कानूनी विकल्प तलाश रहा है। एक अधिकारी ने कहा, ‘यह स्थिति ऐसी है, जब पानी जबरन दिया जा रहा है। हम इसका समाधान खोजने पर काम कर रहे हैं। राज्य सरकार दृढ़ है। वह एक बूंद भी पानी को नदी के पार नहीं जाने देगी।’ इस विवादास्पद कदम का बचाव करते हुए सीएम मान कहना है कि पंजाब खुद जल संकट का सामना कर रहा है। उन्होंने बताया कि पंजाब का वार्षिक जल लेखा-जोखा हर साल 21 मई से शुरू होता है और इस बात पर जोर दिया कि हरियाणा ने चालू चक्र के लिए अपना आवंटन पहले ही इस्तेमाल कर लिया है। मान ने क्षेत्र को पानी की आपूर्ति करने वाले प्रमुख जलाशयों की गंभीर स्थिति पर भी जोर डाला है। उनके अनुसार, रंजीत सागर बांध पिछले साल के स्तर से 39 फीट नीचे है, जबकि पोंग बांध 24 फीट नीचे है। पंजाब में पानी की कमी की गंभीरता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा, ‘हमारे पास एक भी अतिरिक्त बूंद नहीं है।’

हालांकि, हरियाणा सरकार इस स्पष्टीकरण को स्वीकार नहीं कर रही है क्योंकि मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने मान की टिप्पणियों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्हें भ्रामक बताया और पंजाब पर लंबे समय से चले आ रहे अंतर-राज्यीय जल-बंटवारे समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। दोनों मुख्यमंत्रियों के बीच छिड़े वाकयुद्ध ने एक बार फिर अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद के जटिल मुद्दे को सामने ला दिया है।विवाद मुख्य रूप से सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर के इर्द-गिर्द घूम रहा है, जो एक प्रस्तावित बुनियादी ढांचा है। इसका उद्देश्य दोनों राज्यों के बीच नदी के पानी के समान वितरण को सुविधाजनक बनाना है। हालांकि, नहर अपनी स्थापना के दशकों बाद भी अधूरी है और विवाद राजनीतिक तनाव और सार्वजनिक भावनाओं को भड़काए हुए है।हालांकि, पंजाब ने पानी की कमी का हवाला देते हुए इस कदम का लगातार विरोध किया है और दावा किया है कि वह अपनी खुद की कृषि को प्रभावित किए बिना अधिक पानी नहीं छोड़ सकता। पिछले कुछ सालों में पंजाब ने तर्क दिया कि उसके भूजल संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया गया है, और इसे और अधिक मोड़ना असंतुलित होगा।वैसे कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा तथा इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) नेता अभय सिंह चौटाला ने भी सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर जैसे संबंधित मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बावजूद हरियाणा का हिस्सा सुरक्षित करने में विफल रहने के लिए दोनों राज्यों की भाजपा सरकारों की आलोचना कर रहे है।

गौरतलब है कि 1960 में हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि के अनुसार, भारत को सतलुज, रावी और ब्यास नदियों के पानी पर विशेष अधिकार दिए गए थे। 1981 में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान को शामिल करते हुए एक त्रिपक्षीय समझौते ने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) द्वारा सुगम बनाया। उपलब्ध जल संसाधनों को और विभाजित कर दिया। इस समझौते के तहत रावी-ब्यास जल का अनुमानित शुद्ध अधिशेष 17.17 मिलियन एकड़ फीट (MAF) आंका गया था। इसमें राजस्थान को 8.60 MAF, पंजाब को 4.22 MAF और हरियाणा को 3.50 MAF आवंटित किया गया था।

हरियाणा का हिस्सा प्रभावी रूप से हरियाणा तक पहुंचे, यह सुनिश्चित करने के लिए, सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर के नाम से जानी जाने वाली एक बड़ी परियोजना 8 अप्रैल, 1982 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा पटियाला जिले के कपूरी गांव में शुरू की गई थी। 214 किलोमीटर तक फैली इस नहर की लंबाई 122 किलोमीटर पंजाब में और 92 किलोमीटर हरियाणा में होगी। यह नहर जल्द ही राजनीतिक विवाद का विषय बन गई। शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने निर्माण का विरोध किया, जिसके कारण ‘कपूरी मोर्चा’ विरोध आंदोलन शुरू हुआ।तनाव को कम करने के प्रयास में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तत्कालीन अकाली दल के अध्यक्ष हरचंद सिंह लोंगोवाल के साथ ऐतिहासिक 1985 समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें जल वितरण का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए एक न्यायाधिकरण के गठन का वादा किया गया था। इसके परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी बालकृष्ण एराडी की अध्यक्षता में एराडी न्यायाधिकरण का गठन हुआ। 1987 तक न्यायाधिकरण ने संशोधित शेयरों की सिफारिश की थी। इसमें पंजाब के लिए 5 एमएएफ और हरियाणा के लिए 3.83 एमएएफ का प्रस्ताव था।

अब तक के समाचारों के अनुसार हरियाणा को अतिरिक्त पानी देने के फैसले पर पंजाब अब भी तैयार होगा या नहीं यह स्पष्ट नहीं है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए सोमवार को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है। शुक्रवार को भी उन्होंने सर्वदलीय बैठक की है, जिसमें राज्य के सारे दल इस मुद्दे पर एकजुट दिखाई दिए हैं। विधानसभा के विशेष सत्र में माना जा रहा है कि हरियाणा को पानी देने के खिलाफ पंजाब सरकार प्रस्ताव पारित कर सकती है।

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार