
हर चौथा पद खाली: पशु चिकित्सकों की कमी से जूझता भारत, ग्रामीण पशुपालन पर संकट और किसानों की आय पर गहरा असर
भारत में पशु चिकित्सकों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। पूरे देश में 38,916 स्वीकृत पदों में से 10,839 पद खाली पड़े हैं। इसका अर्थ है कि लगभग हर चौथा पशु चिकित्सक पद रिक्त है। महाराष्ट्र में 4685 में से 3072, राजस्थान में 3691 में से 1367, कर्नाटक में 3317 में से 1156, बिहार में 2067 में से 860 और उत्तर प्रदेश में 1984 में से 506 पद खाली हैं। इतनी बड़ी कमी के कारण ग्रामीण पशुपालन और किसानों की आय पर गहरा असर पड़ रहा है।l
डॉ. प्रियंका सौरभ
भारत में पशुपालन केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ ही नहीं है बल्कि यह करोड़ों परिवारों की आजीविका का प्रमुख आधार भी है। दूध, मांस, अंडे, ऊन और अन्य पशु उत्पादों की आपूर्ति के साथ-साथ यह क्षेत्र किसानों की आय बढ़ाने और रोजगार सृजन का एक सशक्त साधन है। लेकिन विडंबना यह है कि इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को संवारने वाले पशु चिकित्सकों की भारी कमी से आज देश जूझ रहा है। हाल ही में संसद में पूछे गए प्रश्न और सरकार द्वारा दिए गए उत्तर से यह तथ्य सामने आया कि देशभर में पशु चिकित्सकों के कुल 38,916 स्वीकृत पदों में से 10,839 पद रिक्त पड़े हुए हैं। यह लगभग 28 प्रतिशत रिक्तता है, जो सीधे-सीधे पशु स्वास्थ्य सेवाओं पर नकारात्मक असर डालती है।
पशु चिकित्सक केवल पशुओं का इलाज ही नहीं करते, बल्कि वे पशुधन से जुड़ी बीमारियों की रोकथाम, टीकाकरण, कृत्रिम गर्भाधान, प्रजनन संबंधी परामर्श और वैज्ञानिक तकनीकों के प्रसार में भी अहम भूमिका निभाते हैं। उनके अभाव में न केवल पशुपालकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है बल्कि देश की दुग्ध और मांस उत्पादन क्षमता पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है।
केंद्र सरकार द्वारा दिए गए आँकड़े बताते हैं कि विभिन्न राज्यों में पशु चिकित्सकों की कमी कितनी गंभीर है। महाराष्ट्र में 4685 स्वीकृत पदों में से 3072 पद खाली हैं। कर्नाटक में 3317 स्वीकृत पदों में से 1156 रिक्त हैं। बिहार में 2067 पदों में से 860 खाली पड़े हैं। राजस्थान में 3691 में से 1367 पद रिक्त हैं। उत्तर प्रदेश में 1984 में से 506 पद खाली हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ राज्यों जैसे मेघालय और लक्षद्वीप में कोई भी रिक्ति नहीं है। लेकिन देश के बड़े और कृषि प्रधान राज्यों में स्थिति बेहद चिंताजनक है। कुल मिलाकर 38,916 स्वीकृत पदों के मुकाबले 10,839 रिक्तियाँ यह दर्शाती हैं कि लगभग हर तीसरा पद खाली है। यह आँकड़ा किसी भी देश के पशु स्वास्थ्य ढाँचे के लिए खतरे की घंटी है।
इतनी बड़ी संख्या में पदों के रिक्त रहने से ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चिकित्सा सेवाएँ बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं। खासकर छोटे और सीमांत किसानों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है, जिनकी आजीविका पूरी तरह से पशुपालन पर निर्भर है। आपात स्थिति में बीमार या घायल पशु के लिए समय पर डॉक्टर न मिल पाना पशुपालकों के लिए गंभीर संकट बन जाता है। मुंहपका-खुरपका, ब्रूसेलोसिस, बर्ड फ्लू जैसी संक्रामक बीमारियों से निपटना मुश्किल हो जाता है। पर्याप्त पशु चिकित्सक न होने से बड़े पैमाने पर टीकाकरण कार्यक्रमों की गति धीमी हो जाती है। पशुओं की समय पर देखभाल न होने से दूध और मांस उत्पादन घटता है, जिससे किसानों की आय पर सीधा असर पड़ता है। और ज़ूनोटिक बीमारियाँ जैसे रैबीज़ या एवियन फ्लू का खतरा भी बढ़ता है।
सरकार ने यह स्वीकार किया है कि पशु चिकित्सकों की नियुक्ति राज्यों का विषय है। केंद्र सरकार केवल दिशानिर्देश और वित्तीय सहयोग प्रदान करती है। इसी क्रम में लाइवस्टॉक हेल्थ एंड डिज़ीज कंट्रोल प्रोग्राम के तहत मोबाइल वेटरनरी यूनिट्स चलाए जाते हैं, जो गाँव-गाँव जाकर पशुपालकों को स्वास्थ्य सेवाएँ देते हैं। अभी तक 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 8191 मोबाइल इकाइयाँ कार्यरत हैं। किसानों के लिए 1962 नंबर की टोल-फ्री हेल्पलाइन भी शुरू की गई है। ये प्रयास निश्चित रूप से उपयोगी हैं, लेकिन इनसे स्थायी समाधान की उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि मोबाइल इकाइयाँ नियमित पशु चिकित्सक का विकल्प नहीं बन सकतीं।
इस समस्या की जड़ गहराई से समझने पर पता चलता है कि सबसे बड़ा कारण भर्ती प्रक्रिया में देरी है। अधिकांश राज्यों में चयन आयोगों और भर्ती एजेंसियों की धीमी गति के कारण वर्षों तक पद खाली रह जाते हैं। इसके अलावा पशुपालन की बढ़ती जरूरतों के बावजूद नए पदों का सृजन नहीं हो रहा। ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा के प्रति पशु चिकित्सकों की अनिच्छा और शैक्षणिक संस्थानों की सीमित संख्या भी समस्या को और जटिल बनाती है। कई बार वेतन और सुविधाओं का स्तर भी इस पेशे को युवाओं के लिए आकर्षक नहीं बनाता।
यदि भारत को पशुपालन क्षेत्र को मजबूत बनाना है और किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य पाना है, तो पशु चिकित्सकों की कमी को दूर करना अनिवार्य है। राज्यों को तत्काल रिक्त पदों को भरने के लिए विशेष भर्ती अभियान चलाना होगा और केंद्र सरकार को इसमें सहयोग करना होगा। नए पदों का सृजन आवश्यक है ताकि बढ़ती मांग और पशुधन की संख्या के अनुपात में सेवाएँ उपलब्ध हो सकें। पशु चिकित्सा शिक्षा का भी विस्तार जरूरी है। नए कॉलेज खोले जाएँ, मौजूदा कॉलेजों की सीटें बढ़ाई जाएँ और आधुनिक प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जाए। ग्रामीण सेवा के लिए पशु चिकित्सकों को प्रोत्साहन देना होगा। उन्हें अतिरिक्त भत्ता, आवास, परिवहन सुविधा और पदोन्नति में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल भी इस क्षेत्र को मजबूत बना सकता है। टेलीमेडिसिन, मोबाइल ऐप्स और वर्चुअल परामर्श के माध्यम से किसानों तक त्वरित सेवा पहुँचाई जा सकती है। केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर संयुक्त कोष बनाएं ताकि वित्तीय संसाधनों की कमी दूर हो सके और भर्ती प्रक्रिया बिना रुकावट आगे बढ़े।
भारत जैसे विशाल देश में जहाँ 20 करोड़ से अधिक गौवंश और करोड़ों अन्य पशु हैं, वहाँ पशु चिकित्सकों की कमी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह केवल किसानों की आय और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की समस्या नहीं है, बल्कि खाद्य सुरक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और निर्यात क्षमता से भी जुड़ा हुआ सवाल है। आज जब देश आत्मनिर्भर भारत की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तब पशुपालन क्षेत्र को मजबूत किए बिना यह लक्ष्य अधूरा है। पशु चिकित्सकों की भारी कमी इस विकास यात्रा में सबसे बड़ी रुकावट है। इसलिए यह आवश्यक है कि सरकारें तत्काल कदम उठाएँ और पशु चिकित्सकों की नियुक्ति, प्रशिक्षण और प्रोत्साहन के माध्यम से इस संकट का समाधान करें।