
अशोक भाटिया
नीट यूजी एग्जाम से पहले राजस्थान के कोटा से एक बार फिर दुखद खबर सामने आई है। कोटा में नीट की तैयारी कर रही एक 17 साल की छात्रा ने आत्महत्या कर ली। यह घटना शहर के कुन्हाड़ी थाना क्षेत्र के पार्श्वनाथपुरम इलाके में हुई। छात्रा को सोमवार 4 मई 2025 को नीट का एग्जाम देना था, लेकिन उसने शनिवार को अपने घर के कमरे में फंदा लगाकर जान दे दी।छात्रा अपने पूरे परिवार के साथ पार्श्वनाथपुरम में रह रही थी। उसका परिवार मूल रूप से मध्य प्रदेश के श्योपुर क्षेत्र का रहने वाला है। छात्रा की पढ़ाई के लिए परिवार ने 2017 में कोटा में मकान खरीद लिया था। मृतक छात्रा के पिता सुरेश राजपूत और मां दोनों सरकारी शिक्षक हैं। माँ श्योपुर में सरकारी कर्मचारी के तौर पर कार्यरत हैं।छात्रा पिछले दो साल से नीट की तैयारी कर रही थी। आज उसका नीट एग्जाम था, लेकिन उसने परीक्षा से एक दिन पहले ही आत्महत्या कर ली। मृतक छात्रा के पिता सुरेश राजपूत ने बताया कि उनकी बेटी ने अपने कमरे में फंदा लगाकर अपनी जान दी है।
गौरतलब है कि कोटा राजस्थान में बसी वह शिक्षा नगरी जहां बच्चे अपने सपनों को उड़ान देने के लिए जाते हैं। उनके ऊपर सिर्फ मंजिल हांसिल करने की धुन सवार होती है। समझ नहीं आ रहा कि इस नगरी में आखिर ऐसी कौन सी आबो हवा है जो वहां जाने के बाद कुछ छात्र सुसाइड करना चुन लेते हैं। वे आखिर अपनी जान क्यों दे देते हैं? जिस सपने को पूरा करने के लिए वे अपनों से दूर जाते हैं आखिर उन अपनों को हमेशा के लिए क्यों छोड़ जाते हैं? जवाब कौन देगा पता नहीं?
जनवरी से लेकर अब तक इस वर्ष 27 छात्र खुदकुशी कर चुके हैं। अगस्त और सितंबर के महीने से अभी तक 9 छात्रों के आत्महत्या के मामले सामने आए हैं। वहीं कोटा में बड़ी संख्या में यूपी के छात्र भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। विगत 18 सितंबर को कोटा में उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद निवासी 17 वर्षी छात्रा ने जहर खाकर खुदकुशी कर ली थी। छात्रा कोटा में डेढ़ साल से रहकर नीट परीक्षा की तैयारी कर रही थी।
छात्रा के पिता ने उसके खुदकुशी करने के बाद कोचिंग संस्थान पर कई गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने कोचिंग संस्थान की तरफ से पढ़ाई का काफी दबाव बताया था, जिसकी वजह से उनकी बेटी ने खुदकुशी की। हालांकि संस्थान की ओर इन आरोपों का खंडन किया गया था। कोचिंग प्रबंधन ने मामले को प्रेम प्रसंग से जुड़ा बताया। इसके बाद पिता ने इसे पूरी तरह गलत करार देते हुए थाने में मामला दर्ज कराया। उन्होंने कहा कि हर बच्चे का एक फ्रेंड सर्कल होता है। ऐसे में इसे प्रेम संबंधों से जोड़ना उचित नहीं है। उन्होंने कोचिंग संस्थान पर डराने और धमकाने का भी आरोप लगाया।
बताया जाता है कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे बच्चे हर रोज व्यस्त दिनचर्या, गलाकाट प्रतियोगिता और होमसिकनेस ये सभी फैक्टर अवसाद को बढ़ाते हैं और कमजोर क्षणों में छात्रों के लिए आत्मघाती बन सकते हैं। ये बातें नीट की तैयारी कर रही मध्यप्रदेश की प्रगति गुप्ता ने कही थी । तीन छात्रों के सुसाइड मामला सामने आने के बाद बहस छिड़ी है कि ऐसा क्या है कि छात्र आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। इसके जवाब में प्रगति ने कहा कि कोटा आने वाले कहीं न कहीं कठिन सफर के लिए मानसिक रूप से तैयार होते हैं लेकिन प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी का समय लंबा होता है। ऐसे में हम में से कई पहली बार परिवार को छोड़कर पढ़ने के लिए दूर आते हैं। इसलिए होमसिकनेस के साथ पढ़ाई का दवाब अक्सर हमारे लिए कमजोर पल का निर्माण करता है। जिसमें हम खुद को अकेला महसूस करते हैं।
उत्तर प्रदेश के इटावा के संदीप तिवारी ने के अनुसार 10 महीने की तैयारी का शेड्यूल इतना व्यस्त होता है कि ब्रेक के दौरान घर भी नहीं जा पाते हैं। हमेशा छुट्टियों में हमें पढ़ाई में पिछड़ जाने का डर सताता रहता है। यह ट्रेडमिल पर दौड़ने जैसा है और आप एक कदम भी नहीं चूक सकते। यदि आप दो दिनों की क्लास मिस करते हैं तो आपकी पढ़ाई दो सप्ताह पीछे जा सकती है। संदीप ने बताया था कि वो जब से कोटा आए हैं, वो एक बार भी घर नहीं जा पाए। संदीप अप्रैल में कोटा आए थे।
बिहार के मोतिहारी के 17 साल के अनिमेष कुमार भी व्यस्त क्लास शेड्यूल के बारे में बताते हैं। अनिमेष नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट की दूसरी बार तैयारी कर रहे हैं। अनिमेष का कहना है कि ये एक दुष्चक्र है। व्यस्त क्लास के बीच तालमेल बिठाने में छात्र फंस जाता है और खुद को दोष देता है और तनाव में चला जाता है।
अनिमेष ने आगे कहा कि ‘पढ़ाई का तनाव रियल है। जब एक छात्र चीजों के साथ तालमेल बिठाने में फेल हो जाता है और छूटे हुए लेक्चर का बैगलॉग बढ़ता जाता है। ऐसे में छात्र अपने पढ़ाई के तरीके को दोष देता है और डिप्रेशन में चला जाता है।
एक अन्य छात्र अफजल के अनुसार मां-बाप का पढ़ाई में लगाया पैसा बेकार न चला जाए, ऐसे में छात्र और तनाव में रहने लगते हैं। अफजल ने बताया कि ‘मैंने सोचा था कि यहां आने के बाद मैं अपनी तैयारी पर अधिक ध्यान दूंगा लेकिन यह पूरी तरह से एक अलग दुनिया है। अब न केवल मुझे खुद सब कुछ मैनेज करना पड़ता है बल्कि मैं यह भी सोचता रहता हूं कि मेरे माता-पिता ने पैसा लगाया है और अगर मैं देने में असमर्थ रहा तो क्या होगा।’
नाम नहीं बताने की शर्त पर एक छात्र ने बताते है कि दो छात्र दोस्त होने के बावजूद एक दूसरे से कॉम्पिटिशन करते हैं। सबमें यही भावना होती है कि कॉम्पिटिशन एक ही सीट के लिए है और यही भावना बच्चों में होमसिकनेस और अवसाद को जन्म देती है।
कोटा में लगभग दो लाख बच्चे कोचिंग संस्थानों में पढ़ रहे हैं। जिसमें से कम से कम 14 छात्रों ने इस साल सुसाइड कर लिया। पिछले सप्ताह आत्महत्या करने वाले तीन छात्रों में से दो छात्र बिहार के थे। अंकुश आनंद (18) नीट और उज्ज्वल कुमार (17) जेईई की तैयारी कर रहा था। दोनों एक पीजी के कमरे में रहते थे, जहां उन्होंने पंखे में फंदा लगाकर जान दे दी। तीसरा छात्र प्रणव वर्मा मध्यप्रदेश का रहने वाला था, जिसने जहर खाकर जान दे दी।
2021 में किसी भी छात्र की आत्महत्या की सूचना नहीं मिली थी। कोरोना के कारण कोचिंग सेंटर बंद थे। छात्रों ने अपने घरों से ऑनलाइन क्लास के जरिए पढ़ाई की थी। 2019 में 18 और 2020 में 20 छात्रों ने अपनी जान दे दी।
इकबाल के चाचा आसिफ ने बताया कि 27 अप्रैल की रात को उसकी अपने परिवार से बातचीत हुई थी। उस दौरान इकबाल ने बताया कि वह पढ़ाई कर रहा है और बाद में बात करेगा। परिवार को ज़रा भी अंदेशा नहीं था कि वह इतना बड़ा कदम उठा लेगा। उसी रात उसने कमरे में फांसी का फंदा बनाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इकबाल ने आत्महत्या क्यों की। पुलिस मामले की गहराई से जांच कर रही है और उसके परिजनों से भी पूछताछ जारी है। परिजन इस दुखद घटना से पूरी तरह स्तब्ध हैं।
प्रशासन और कोचिंग संस्थान छात्रों पर बढ़ते मानसिक दबाव को कम करने के लिए प्रयासरत हैं। हॉस्टल्स में एंटी हैंगिंग डिवाइस लगाए गए हैं और छात्रों के लिए हेल्पलाइन नंबर भी उपलब्ध कराया गया है। अगर आप या आपके जानने वाले किसी भी प्रकार के तनाव से गुजर रहे हैं तो आप समाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय के हेल्पलाइन नंबर 1800-599-0019 या आसरा NGO के हेल्पलाइन नंबर 91-22-27546669 पर संपर्क करें।बावजूद इसके, आत्महत्या की घटनाओं पर अंकुश नहीं लग पाया है। इस बढ़ते संकट ने अभिभावकों को कोटा भेजने से पहले कई बार सोचने पर मजबूर कर दिया है।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार