ललित गर्ग
रामनवमी पर निकाली गई शोभा यात्राओं के दौरान देश के विभिन्न राज्यों में हिंसा की जो वीभत्स, त्रासद एवं उन्मादी घटनाएं सामने आई हैं वे एक सवाल खड़ा करती हैं कि हिन्दुओं के त्यौहारों को ही अशांत एवं हिंसक क्यों किया जाता है? आखिर हिन्दू उत्सवों के मौके पर सांप्रदायिक सौहार्द का माहौल खराब करने के लिए क्या जानबूझकर कोई षड्यंत्र किया जाता है? क्यों हिन्दू देवी-देवताओं से जुड़ी आस्था पर ही हमला क्यों किया जाता है। गैर भाजपा सरकारों के राज्यों में ही हिन्दूओं पर हमले क्यों हो रहे हैं? सवाल यह भी है कि संबंधित राज्य की सरकार और स्थानीय पुलिस-प्रशासन ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए पहले से ही सतर्क क्यों नहीं रहता और दो समुदायों के बीच हिंसा भड़कने का इंतजार क्यों करता है? हर साल की तरह इस बार भी रामनवमी के दिन पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र में हिंसा हुई और इसके बाद बिहार सुलग उठा। बिहार के नालंदा एवं सासाराम सहित अन्य जगहों पर दो दिन से भीषण हिंसा हो रही है जिसे रोकने के लिए केन्द्रीय अर्धसैनिक बल तैनात करना पड़ा है। ऐसे में सवाल यह है कि इस प्रकार की घटनाओं के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए? ंिहंसा की ऐसी घटनाओं पर राजनीति करते हुए एक-दूसरे पर दोषारोपण करना तो हमारे देश में जैसे रिवाज बन चुका है लेकिन कोई भी राज्य सरकार इसके लिए अपनी चूक मानने को तैयार नहीं होती कि यह उसकी प्रशासनिक विफलता है। समाज एवं राष्ट्र में जो संकीर्ण साम्प्रदायिक व्यवस्था है और जो पनप रही है, वह न्याय के घेरे से बाहर है। सब चाहते हैं, उपदेश देते हैं कि धर्म विशेष के साथ अन्याय न हो, शोषण न हो। लेकिन वह धर्म-विशेष अन्याय करें, हिंसा करें, उत्पादी एवं उन्मादी माहौल निर्मित करें तो उसका प्रतिकार जरूरी है, तभी राष्ट्रीय एकता बन सकती है।
यह कैसा साम्प्रदायिक सौहार्द है जिसमें हिंदू आस्था का अपमान हो लेकिन चुप रहो। मां काली को सिगरेट पीते हुए दिखाया जाए, लेकिन कुछ मत बोलो। महादेव और मां पार्वती का मखौल उड़ाया जाए लेकिन खामोश रहो। हिन्दू त्यौहारों पर होने वाले हमले पर मौन रहो, आखिर साम्प्रदायिक सौहार्द के नाम पर इस देश में कौन सा खेल खेला गया और खेला जा रहा है। आखिर कब तक हिन्दू धर्म के लोग ही सहिष्णुता एवं धार्मिक सौहार्द के लिये स्वयं का बलिदान करते रहेंगे?रामनवमी और उसके दूसरे दिन भी नमाज के बाद हिंसा की सबसे क्रूर तस्वीरें पश्चिम बंगाल से सामने आई। अपनी कमजोरी छिपाने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यह तर्क दिया कि मना करने के बाद भी मुस्लिम इलाकों से शोभायात्रा निकाली गई इसलिए हिंसा भड़की लेकिन सवाल यह है कि मुस्लिम इलाकों से शोभा यात्रा निकालना कोई अपराध है? ममता बनर्जी का यह कैसा बेतुका तर्क है। 1947 में धर्म के आधार पर भारत के बंटवारे के बाद अब ममता बनर्जी धर्म के आधार पर भारत का आंतरिक बंटवारा करना चाहती है? ममता बनर्जी का यह बयान देश की एकता-अखंडता की दृष्टि से बेहद खतरनाक है। वास्तविक रूप से देखा जाए तो पश्चिम बंगाल में हुई भीषण हिंसा के लिए ममता बनर्जी के एक बयान को जिम्मेदार माना जा रहा है। ममता बनर्जी ने रामनवमी के एक दिन पहले कहा था कि मैं रामनवमी की शोभायात्रा को नहीं रोकूंगी लेकिन शोभायात्रा के दौरान अगर किसी मुस्लिम के घर हमला किया गया तो मैं छोड़ूंगी नहीं। जबकि उन्हें यह भी कहना चाहिए कि यदि किसी शोभायात्रा पर हमला किया तो उस पर भी कड़ी र्कारवाई की जाएगी।
बात केवल पश्चिम बंगाल की नहीं है, बिहार, राजस्थान आदि में भी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति की जा रही है, कट्टरवादी समुदाय की हिंसक एवं उन्मादी घटनाओं को दबाया जाता है। इस कारण हिन्दू त्यौहारों पर लगातार हमले हो रहे हैं। हिन्दू नववर्ष, श्रीरामनवमी, श्री हनुमान जयंती आदि हिंदुओं के त्योहारों के समय देशभर में निकाली गई शोभायात्राओं पर जिहादी, उत्पादी एवं हिंसक प्रवृत्तियों द्वारा भीषण आक्रमण किए गए। ये हिन्दू-मुसलमान दंगे नहीं थे, अपितु आतंकवादी प्रवृत्ति के जिहादियों द्वारा योजनाबद्ध पद्धति से किए गए एक पक्षीय आक्रमण थे। राजस्थान के करौली के आक्रमण में सम्मिलित राजस्थान के सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधि और अन्य जिहादियों पर कार्यवाही करना तो दूर उनकी जानकारी प्रसार माध्यमों द्वारा देने एवं लोगों द्वारा शिकायत करने पर भी उन पर कार्यवाही नहीं की गई। इसके विपरीत सरकार उनका बचाव कर रही है। जो तीव्र प्रतिकार और विरोध करता है, उसकी बात सरकार और न्यायालय सुनते हैं। इसलिए बहुसंख्यक हिन्दू समाज जब तक ऐसे आक्रमणों का उचित प्रतिकार और विरोध नहीं करते, तब तक ये घटनाएं नहीं रुकेंगी। लेकिन ऐसा करने को प्रोत्साहन देना देश की एकता एवं अखण्डता को खण्डित ही करेगा। हिन्दू एवं अन्य समुदायों के लोग इंसान से इंसान को जोड़ने में विश्वास करते हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय ऐसा नहीं कर पा रहा है। ऐसा नहीं है मुसलमानों में अधिकांश लोग भी तोड़ने में नहीं, बल्कि जोड़ने में ही विश्वास करते हैं, कुछ उन्मादी एवं हिंसक ताकतें समूची कौम पर दाग लगाती है, जिनको राजनीतिक स्वार्थ की भेंट चढ़ाया जाता है।
हिन्दू त्यौहारों की अहिंसक एवं सौहार्द संस्कृति को धुंधलाने के लिये राजनेता, फिल्मकार, पत्रकार बड़े पैमाने पर सक्रिय हैं। फिल्म ‘अतरंगी रे’ के कई दृश्यों में हिन्दू देवी-देवताओं और धर्मग्रंथों का अपमान किया गया है। भगवान शिव और हनुमानजी को लेकर अपशब्दों का प्रयोग किया गया है, तो रामायण की भी आपत्तिजनक व्याख्या की गई है। यहाँ तक की फिल्म में हिन्दू लड़की और मुस्लिम लड़के के प्यार को दिखा कर ‘लव जिहाद’ को भी बढ़ावा दिया गया है। हालही में ब्रह्मास्त्र का ट्रेलर रिलीज हुआ जिसमें अभिनेता रणबीर कपूर जूते पहनकर मंदिर में एंट्री ले रहे हैं और जूता पहनकर मंदिर की घंटियां बजा रहे हैं। इस तरह जान-बूझकर हिन्दू त्यौहारों से जुड़ी आस्था को कुचलने, मंदिर, देवी-देवताओं का अपमान सरेआम होता है और महत्वपूर्ण बात ये है कि ये सब अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किया जा रहा है। सोचिए विचारों को प्रकट करने की आजादी जिसे अभिव्यक्ति का अधिकार कहा जाता है, वो कैसे सीमाओं को पार कर जाता है और हिंदू देवी-देवताओं के अपमान को सही ठहराने लगता है।
रामनवमी के दिन सुनियोजित तरीके से भीषण हिंसा को अंजाम दिया गया जिसमें पुलिस अधिकारी व कर्मचारियों सहित कई निर्दोष लोग घायल हो गए और कई करोड़ की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। खास बात यह है कि इस हिंसा को लेकर सभी राजनीतिक दलों की ओर से सधी हुई भाषा में प्रतिकिक्रयाएं आ रही हैं जबकि छोटी-छोटी घटनाओं पर गला फाड़ आवाज उठाने वाले तथाकथित मानवाधिकारवादी, लिवरल गैंग, अवार्ड वापसी गैंग, टुकड़े-टुकड़े गैंग से जुड़े लोग तो ऐसे शांत है जैसे देश में सब कुछ ठीक चल रहा है। यदि ऐसी ही हिंसा ईद जैसी किसी मुस्लिम त्योहार पर हो जाती तो आज कथित धर्मनिरपेक्षता का कंबल ओढ़कर तमाम संगठन छाती पीट रहे होते और भारत से लेकर विदेशों तक एक ही वाक्य गूंज रहा होता कि भारत का लोकतंत्र खतरे में है। सवाल यह है कि इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों के लिए हिन्दू और हिन्दुओं का खून इतना सस्ता क्यों है?
आज समाज का सारा नक्शा बदल रहा है। परस्पर समभाव या सद्भाव केवल अब उपदेश देने तक रह गया है। हो सकता है भीतर ही भीतर कुछ घटित हो रहा है। ये हालात जो सामने आ रहे हैं, वे आजादी के पहले से ही अन्दर ही अन्दर पनप रहे हैं। राष्ट्र जिन डाटों के सहारे सुरक्षित था, लगता है उनको हमारे नेताओं की वोट नीति व अवांछनीय तत्वों ने खोल दिया है। आने वाले चुनावों में धर्मान्धता को उभारा जाएगा, उस सीमा तक लोगों की भावना को गर्माया जाएगा- जहां इसे सत्ता में ढाला जा सके। लेकिन जब-जब ऐसी आसूरी शक्तियां सक्रिय होती है कोई-न-कोई श्रीकृष्ण प्रकट होता है। धर्म तो पवित्र चीज है। इसके प्रति श्रद्धा हो। अवश्य होनी चाहिए। पूर्ण रूप से होनी चाहिए। परन्तु धर्म की जब तक अन्धविश्वास से मुक्ति नहीं होगी तब तक वास्तविक धर्म का जन्म नहीं होगा। धर्म विश्वास में नहीं, विवेक में है। अन्यथा अन्धविश्वास का फायदा राजनीतिज्ञ व आतंकवादी उठाते रहेंगे।