देश में हास्य के नाम पर फूहड़ता क्यों?

Why vulgarity in the name of humor in the country?

सुनील कुमार महला

इन दिनों देश में कामेडी(हास्य) के नाम पर फूहड़ता और अश्लील सामग्री पेश करने की लगातार बढ़ रही प्रवृत्ति को लेकर बहस छिड़ी हुई है। वास्तव में डिजिटल प्लेटफॉर्मों के नियमन हेतु सख्ती बहुत ही जरूरी और आवश्यक हो गई है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज डिजिटल प्लेटफॉर्मों के नियमन पर सख्ती नहीं होने के कारण आज कोई भी डिजिटल प्लेटफॉर्मों का ग़लत इस्तेमाल कर बैठते हैं।अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में सार्वजनिक मंच या ओटीटी प्लेटफार्म्स के जरिए आज बहुतायत में ऐसी फ़ूहड़, अश्लील,अमानक व उल्टी-सीधी कोई भी सामग्री परोसी जा रही है, जो हमारे समाज के नैतिक मूल्यों, आदर्शों, हमारी पारिवारिक मान्यताओं पर सीधे प्रहार करती है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि पिछले दिनों एक विवादास्पद मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद हमारे देश के केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने संबंधित कानूनों के अनुपालन की जरूरत महसूस करते हुए ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के लिये एक एडवाइजरी जारी की है, जो कि बहुत अच्छी बात है, क्यों कि आज के इस आधुनिक युग में हम लगातार हमारे पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्यों को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ते नजर आते हैं। हमारे संस्कृति, संस्कारों, नैतिक मूल्यों का आज पतन होता चला जा रहा है और कहना ग़लत नहीं होगा कि आज हम पाश्चात्य संस्कृति में रच-बस गए से प्रतीत होते हैं।आज सोशल नेटवर्किंग साइट्स, यू-ट्यूब पर आजादी का अतिक्रमण देखने को मिल रहा है, जो हमारे देश की संस्कृति तो कतई नहीं है। यह काबिले-तारीफ है कि भारत के सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने ओटीटी प्लेटफॉर्म हेतु एडवाइजरी जारी करते हुए संबंधित कानून के सभी प्रावधानों के अनुपालन सुनिश्चित किए जाने की बात कही है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस दौर में अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाओं के निर्धारण की नितांत आवश्यकता है। भारत विश्व का एक ऐसा देश रहा है जहां हमेशा-हमेशा से अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान किया गया है। कहना ग़लत नहीं होगा कि समय-समय पर माननीय सुप्रीम कोर्ट समेत देश के कई उच्च न्यायालयों ने अभिव्यक्ति की आजादी को अक्षुण्ण बनाये रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। हाल ही में इंडिया गॉट टेलेंट कार्यक्रम में यूट्यूबर-पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया की ओर से जो अमर्यादित टिप्पणी की गई उसको लेकर देशभर में बवाल मचा। पाठक जानते होंगे कि यह मामला इतना गरमाया कि यह सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा। कहना ग़लत नहीं होगा कि रणवीर को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत देते हुए शीर्ष अदालत ने जो टिप्पणियां की हैं, उसके गहरे मायने हैं। अदालत ने उनसे पूछा कि ‘आपने अपने कार्यक्रम में जो कुछ बोला, वह यदि अश्लीलता नहीं है, तो फिर उसके मापदंड क्या हैं ?’ न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि ‘रणवीर और उनके साथियों ने जैसी विकृत मानसिकता का प्रदर्शन किया और जो शब्द उन्होंने चुने, उनसे माता-पिता, बहनें-बेटियां व भाई शर्मिंदा होंगे। उनके दिमाग में जो गंदगी है, वही इस शो के जरिए बाहर आई है।’ बहरहाल, हालांकि, यह बात अलग है कि अदालत ने इस मामले में अतिरिक्त एफआईआर दर्ज करने पर रोक लगा दी। इस मामले में राज्य प्रशासन को उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के आदेश भी दिए, लेकिन रणवीर को इस कार्यक्रम के प्रसारण के चंद घंटों के भीतर देश में भारी विरोध का सामना करना पड़ा। इसके लिए उन्हें न केवल सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी, बल्कि यूट्यूब से अपने कार्यक्रम के तमाम भागों को भी हटाना पड़ा। इतना ही नहीं, पाठकों को बताता चलूं कि अदालत की अनुमति के बिना वे विदेश नहीं जा सकेंगे। उन्हें अपना पासपोर्ट पुलिस स्टेशन में जमा करना होगा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इसी क्रम में शीर्ष अदालत ने उनके सह-आरोपी आशीष चंचलानी के खिलाफ गुवाहाटी में दर्ज एफआईआर को निरस्त करने/मुंबई ट्रांसफर करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए असम और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया है। गौरतलब है कि अदालत ने चंचलानी की याचिका को रणवीर की याचिका के साथ टैग कर दिया है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज सामाजिक मूल्यों का संरक्षण बहुत ही जरूरी है। यह ठीक है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 भाषण की स्वतंत्रता प्रदान करता है, जो मौखिक/लिखित/इलेक्ट्रॉनिक/प्रसारण/प्रेस के माध्यम से बिना किसी डर के स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है।संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) के पीछे का दर्शन संविधान की प्रस्तावना में निहित है, जहाँ सभी नागरिकों को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का संकल्प दिया गया है। वास्तव में यह अधिकार हमारे सामाजिक कल्याण, आत्मविकास, लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा तथा बहुलवाद को प्रतिबिंबित एवं सुदृढ़ करने के लिए दिया गया है, लेकिन यह विडंबना ही है कि आज इसका दुरूपयोग किया जा रहा है और सभी सामाजिक, सांस्कृतिक सीमाओं को लांघकर अच्छी व सकारात्मक मानसिकता का परिचय नहीं दिया जा रहा है। वास्तव में,यूट्यूबर-पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया की अमर्यादित, अशालीन टिप्पणी से समाज शर्मशार हुआ है, लेकिन इस प्रकरण ने अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाओं के नियमन की बहस को नये सिरे से शुरू कर दिया।बहरहाल, सहिष्णुता, समन्वय की भावना, गौरवशाली इतिहास, संस्कार, रीति-रिवाज और उच्च आदर्शों, उच्च मूल्यों, प्रतिमानों, के कारण भारतीय संस्कृति विश्व में सर्वश्रेष्ठ रही है। विवेक और ज्ञान भारतीय संस्कृति की आत्म भावना है। हमारी सनातन संस्कृति में सदाचार रूपी पवित्र संस्कारों की शिक्षा-दीक्षा दी जाती रही है, हमें यह चाहिए कि हम अपनी संस्कृति, संस्कारों, नैतिक मूल्यों, आदर्शों और परंपराओं की रक्षा करें, पारिवारिक जीवन मूल्यों का अतिक्रमण करने वाली टिप्पणियों पर रोक जरूरी है।देश की शीर्ष अदालत का मानना रहा है कि यूट्यूब जैसे मंचों पर सामग्री साझा करने पर नियंत्रण हेतु कानून निष्प्रभावी नजर आते हैं। इसलिए निश्चित रूप से संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने की जरूरत है। कहना ग़लत नहीं होगा कि संस्कारों के द्वारा मानवीय मन को निर्मल, सन्तुलित एवं सुसंस्कृत बनाया जाता है। सच तो यह है कि जीवन में काम आने वाले सत्यवृत्तियों का बीजारोपण भी संस्कारों से ही होता है। संस्कृति और संस्कार हमारी भारतीय संस्कृति का मूल हैं और हमें यह चाहिए कि हम अपने मूल से न हटें और मर्यादाओं का पालन करें। पाश्चात्य संस्कृति की आड़ में हास्य के नाम पर कुछ भी परोसना किसी भी हाल और परिस्थितियों में जायज नहीं है।