रविवार दिल्ली नेटवर्क
नई दिल्ली : विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आईडब्ल्यूपीसी में एक पैनल चर्चा आयोजित की गई। पैनलिस्टों में अनुभवी पत्रकार, अर्थशास्त्री और लेखक प्रेम शंकर झा, वरिष्ठ पत्रकार पामेला फिलिपोस, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेरा और स्तंभकार और लेखक आशुतोष शामिल थे। बैठक की अध्यक्षता आईडब्ल्यूपीसी अध्यक्ष शोभना जैन ने की।
चर्चा के दौरान सभी पैनलिस्टों ने मीडिया और पत्रकारों की स्वतंत्रता के सिकुड़ते दायरों पर चिंता व्यक्त की। जाने-माने पत्रकार प्रेम शंकर झा ने इस बात पर जोर दिया कि पत्रकारों के लिए संसद भवन और मंत्रालयों तक आसान पहुंच कितनी महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे संपादकों की स्थिति धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है। साथ ही उन्होंने तेज़ तर्रार संपादकों और वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट द्वारा प्रदान की गई दोहरी सुरक्षा के कमजोर होने पर अफसोस जताया। उनके अनुसार वर्तमान समय के संपादक “प्रबंधक” बनकर रह गए हैं।
आशुतोष ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे “हमारी समृद्ध विविधता और सभ्यतागत विरासत” आज छीनी जा रही है। उन्होंने कहा कि आज जो देखा जा रहा है वह “न केवल एक लोकतांत्रिक बल्कि एक सांस्कृतिक संकट” है जहां सवाल करने की कोई आज़ादी नहीं है।
पामेला फिलिपोस के अनुसार, वर्तमान समय “पत्रकारों के लिए महान संकट का समय” है। उन्होंने कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का पर्याय है। हालांकि उन्होंने कॉर्पोरेट मीडिया के एकत्रीकरण पर चिंता व्यक्त की।
उमाकांत लखेरा ने कहा कि “सरकार को स्वतंत्र प्रेस से सबसे बड़ी फ़ायदा हो सकता है क्योंकि स्वतंत्र प्रेस सरकारों को उनकी कमियों के बारे में सूचित कर सकती है और सुधार करने में उनकी मदद कर सकती है।” उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से, आज काम करने का तरीका केवल सूचना प्रदान करने में कटौती करना है”।
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की चेयरपर्सन जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई ने आईडब्ल्यूपीसी को एक संदेश के ज़रिए प्रेस स्वतंत्रता पर चर्चा आयोजित करने के लिए आईडब्ल्यूपीसी को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह मीडिया ही था जिसने जनमत को आकार दिया। एक विश्वसनीय लोकतांत्रिक समाज सुनिश्चित करने के लिए मीडिया को अपने कर्तव्यों को सच्चाई और जिम्मेदारी से निभाना चाहिए और राह में आने वाली प्रत्येक चुनौती का समाधान करना चाहिए।