
प्रभुनाथ शुक्ल
आप माननीय हैं। आप संविधान, विधान और व्यवस्था से ऊपर नहीं हैं। आपको न संसद की गरिमा का मान है न देश के गौरव का। शपथ ग्रहण में जिस तरह आपने अपने माननीय होने का परिचय दिया वह हमारी वह हमारी संसदीय व्यवस्था का कभी हिस्सा नहीं हो सकता। आप अपनी हरकतों से खुद को भले गौरवान्वित महसूश कर रहों, लेकिन देश और लोकतंत्र शर्मसार है। आप के हाथों में संविधान की किताबें भले हों, लेकिन आपका व्यवहार संविधान की चौखट लाँघता दिखा। 18 वीं लोकसभा में 535 माननीय सांसदों ने शपथ लिया, लेकिन किसी ने अपनी अमिट छाप नहीं छोड़ी। कुछ पुराने एवं बरिष्ठ माननीयों को छोड़ । शपथ ग्रहण समारोह में जिस तरह की छवि हमारे माननीयों की उभर कर आई है वह अपने आप में शर्मसार करती है। देश की आत्मा कहीं से भी झलकती हुई नहीं दिखी। अनेकता में एकता की कोई गंध और सुगंध नई आई। सत्ता और विपक्ष पूरी तरह से विभाजित दिखा।
माननीय सांसद देश, संविधान और संसद की व्यवस्था को ताक पर रखकर अपने-अपने राजनीतिक स्वार्थ, जातिवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद के गरूर में टूटते और बिखरते दिखे। इस समारोह में देश की खूसूरती हासिए पर रहीं जबकि क्षेत्रवाद, जाति और धर्म शीर्ष पर दिखा। यह अपने आप में विचारणीय बिंदु है। हम देश को किस तरफ ले जा रहे हैं। देश की जनता ने जिन लोगों को चुनकर भेजा है उसे आप क्या संदेश देना चाहते हैं यह अपने आप में विचरणीय बिंदु है। इस पर विस्तृत विमर्श की जरूरत है। हम वोटबैंक और सत्ता की लालच में वैचारिक विभाजन के जरिए सामाजिक अलगाववाद की तरह बढ़ रहे हैं। अब इससे बड़ी हमारी सोच क्या हो सकती है कि हमने देश के खिलाफ साजिश रचने वालों को चुनकर संसद भेज दिया है। जबकि चुनाव जीतने वाले जेल में बंद होने की वजह से शपथ भी नहीं ले पाए। यह क्षेत्रवाद का ही जहर है। फिर राष्ट्रीय एकता की बात कहां से कर सकते हैं।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) हैदराबाद का प्रतिनिधित्व कर रहे असदुद्दीन ओवैसी ने जिस तरह संसद की गरिमा और व्यवस्था को तार-तार किया वह अपने आप में काबिले गौर है। भारत माता और संविधान की जय बोलने के बजाय जय भीम, जय मीम, जय तेलंगाना और जय फिलिस्तीन का नारा बुलंद किया। ओवैसी को सिर्फ एक क्षेत्र विशेष से प्रतिनिधित्व की जिम्मेदारी मिली है। लेकिन वह खुद को सरकार मान बैठे। देश की नीति तय करने का अधिकार उन्हें किसने दिया। फिलिस्तीन-इजरायल, रूस-यूक्रेन के प्रति हमारी नीति क्या होगी यह सार्वभौमिक संसद और सरकार तय करेगी। निश्चित रूप ओवैसी की तरफ से दिया गया बयान बेहद घटिया और संसद की गरिमा के खिलाफ है। उनकी संसद सदस्यता खत्म करने के लिए राष्ट्रपति को जो पत्र दिए गए हैं उस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए।
संसद में प्रतिपक्ष के नेता निर्वाचित हुए राहुल गांधी हाथ में संविधान लेकर शपथ ग्रहण करने पहुंचे। उन्होंने अपनी शपथ अंग्रेजी में लिया और शपथ ग्रहण के बाद जय संविधान का नारा लगाया। यह उनकी बचकानी हरकतें हैं। वह पुराने सदस्य हैं उन्हें राजनीतिक स्टंट से दूर रहना चाहिए। अपने गंभीर व्यक्तित्व का परिचय देना चाहिए, उस स्थिति में जब वे विपक्ष के नेता चुने जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश की नगीना सीट से पहली बार विजई हुए चंद्रशेखर आजाद रावण ने एक साथ कई नारे बुलंद की जिसमें नमो बुद्धाय, जय भीम, जय भारत, जय संविधान, जय मंडल, जय जवान, जय किसान, भारतीय लोकतंत्र जिंदाबाद, भारत की महान जनता जिंदाबाद के नारे लगाए। इस भी सत्ता और विपक्ष के सांसदों के बीच निकझोंक हुईं। रावण बसपा यानी मायावती को कमजोर होता देख दलितों को खुद का मसीहा दिखाने के लिए तेवरदार राजनीति का नैरेटिव गढ़ रहे हैं। उनकी राजनीति वोटबैंक के लिए अच्छी हो सकती है, लेकिन समाज और ब्यवस्था के लिए बिल्कुल नहीं।
शपथ ग्रहण समारोह के दौरान भाजपा सांसदों ने जमकर धार्मिक नारों का उपयोग किया। बरेली सीट से भाजपा सांसद छत्रपाल गंगवार ने जहां जय हिंदू राष्ट्र का नारा दिया। वहीं मेरठ से टीवी सीरियल रामायण में राम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल जय श्रीराम का जयघोष किया। विपक्ष ने दोनों सांसदों के नारे का प्रचुर विरोध किया। अरुण गोविल के जय श्री राम नारे के विरोध में समाजवादी पार्टी के सांसदों ने जय अवधेश नारा बुलंद किया। क्योंकि अयोध्या की फैजाबाद सीट से अवधेश कुमार निर्वाचित हुए हैं। इस सीट पर बीजेपी की हार को लेकर गंभीर चर्चा हो रही है और अयोध्या के लोगों पर सोशलमीडिया पर टिप्पणियां की जा रही है। जबकि मथुरा से भाजपा सांसद हेमा मालिनी ने शपथ ग्रहण के बाद राधे-राधे कर लोगों का अभिवादन किया। क्योंकि वह मथुरा से चुनकर आती हैं और मथुरा भगवान कृष्ण से जड़ा है।
शपथ ग्रहण समारोह में सांसदों के व्यवहार और नारेबाजी को लेकर ऐसा लग रहा था जैसे नव निर्वाचित माननीयों में नारे लगाने की होड़ चल रही हो। इस नारेबाजी की होड़ में कोई पिछड़ना नहीं चाह रहा था। डीएमके सांसदों ने उदय नीति स्टालिन जिन्दाबाद के नारे लगाए। जबकि गाजियाबाद से निर्वाचित भाजपा सांसद अतुल गर्ग ने अटल बिहारी और नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारे लगाए। इसके बाद उन्होंने डॉ हेडगेवार जिंदाबाद के भी नारे लगाए। पूर्वांचल की भदोही लोकसभा सीट से निर्वाचित सांसद डॉ विनोद बिंद ने जय बिंद, समाज, जय निषाद जैसे जातिवादी नारों का प्रयोग किया। देवरिया से संसद पहुंचें शशांक मणि ने अपने अंतिम उद्बोधन में जय देवरिया का नारा लगाया। सांसदों ने जय श्रीराम, राधे-राधे, जय भीम, जय मीम, जय तेलंगाना जय महाराष्ट्र, जय शिवाजी जैसे अनगिनत नारे भी बुलंद किए।
देश के विभिन्न हिस्सों से चुनकर आए माननीय सांसदों का व्यवहार संसद के प्रति कितना उत्तरदायि था यह कहना बड़ा मुश्किल है। पुराने और कई बरिष्ठ सांसदों को छोड़ दिया जाय तो अधिकांश माननीयों ने शपथ के दौरान संसद और लोकतंत्र की के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं दिखाई। देश की मीडिया में शपथ ग्रहण समारोह की खूब चर्चा है। अब वक्त आ गया है जब शपथ ग्रहण के लिए भी एक विशेष गाइडलाइन बननी चाहिए। जिसमें कोई भी निर्वाचित सांसद क्षेत्रवाद, धर्म-जाति, भाषा का नारा बुलंद नहीं कर सकता।
शपथ ग्रहण समारोह चाहे जिस भाषा में हो लेकिन देश, संविधान और संसद की गरिमा का सम्मान आवश्यक है। अगर जिंदाबाद करना है तो सिर्फ भारत माता और संविधान की करिए। सत्ता हो या विपक्ष सभी को इस मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए। सरकार को आगे आकर मानसून सत्र में इस पर गंभीर चर्चा करानी चाहिए। विपक्ष को इस पर सहयोग करना चाहिए। क्योंकि यह सवाल सिर्फ सत्ता -विपक्ष का नहीं बल्कि देश, संसद और लोकतंत्र का है। शपथ ग्रहण समारोह के लिए एक विशेष नियम और कानून की व्यवस्था होनी चाहिए। जिस तरह हमारे माननीयों ने जिंदाबाद की संस्कृति का इजाद किया वह पूरी तरह संसद की संस्कृति, संस्कार, विधान, व्यवस्था, गरिमा और मर्यादा के खिलाफ है।