ललित गर्ग
भारत की आजादी का यह अमृतकाल है, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आबादी वाला देश होने का गौरव तभी प्राप्त होगा जब हम कुछ कर दिखायेेंगे। हमारे देश की आजादी के 75 सालों के दौरान, भारत भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी, कुपोषण, उचित स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और पुरुषों और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसी कुछ बीमारियों से संक्रमित रहा है। विश्व खुशी सूचकांक में भारतीय 144वें, लिंग विकास सूचकांक में 141वें और वैश्विक बोझ सूचकांक में 145वें स्थान पर हैं। विभिन्न विकास सूचकांकों में भारत की रैंक इन कुछ वर्षों में सुधरी है तो इसका कारण सबका विकास-सबका साथ है। भारत इन सभी सूचकांकों में रैंक में सुधार करने का एकमात्र तरीका है कि देश का हर नागरिक कमर कसे और अपने-अपने क्षेत्र में अनूठा एवं विलक्षण करते हुए देश को सशक्त बनाएं। हर व्यक्ति को देश-निर्माण के कार्यभार को संभालने और बेहतर कल के लिए लड़ने के लिए आगे आने की जरूरत है।
एक चित्रकार रंगों से, लेखक शब्दों से, संगीतकार धुनों से, अभिनेता भावों से, व्यवसायी व्यापार से, राजनेता नेतृत्व से, धर्मगुरु धर्म से, शिक्षक शिक्षा से एवं कर्मी कर्म से देश के लिये कुछ कर दिखाये, यह अपेक्षित है। आजादी की बात भी हमेशा आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक िदायरों में कैद ही रहती है जब यह कहते हैं, मैं आजाद हूं तो इसका क्या अर्थ होता है गुलामी से आजादी। देश को दूसरों की कैद से मिली आजादी। आर्थिक कर्जों से छुटकारा मिलने की आजादी। पुराने घिसे-पिटे रीति-रिवाजों को तोड़कर आगे आने की आजादी या फिर एक इंसान होने के नाते स्वतंत्रता से सोचने, विचार कर अपने फैसले स्वयं लेने की आजादी। गलतियां करने की आजादी, ठोकरें खाने की आजादी, ठोकरों से कुछ सीखने की आजादी। जैसा कि रिल्के कहता है, बने बनाए रास्तों पर चलने के बजाय अपने लिए नई पगडंडियां बनाओ।’ क्या ऐसा करने की आजादी हम हासिल कर पाए हैं? देश आज दुनिया की ‘नई उम्मीद’ के रूप में उभरा है। ऐसा प्रतीत होता है नया भारत, जो नई सोच और सदियों पुरानी संस्कृति, दोनों को एक साथ लेकर आगे बढ़ने के लिये कमर कस चुका है। पूरी मानवजाति को दिशा देने, शांति, अहिंसा, समतामूलक दुनिया को निर्मित करने के लिये उसने स्वयं को संकल्पों में ढ़ालने की तैयारी कर दी है। दुनिया में जहां चुनौतियां बड़ी हैं, भारत वहां उम्मीद बन रहा है, जहां समस्या है, भारत वहां समाधान पेश कर रहा है। निश्चित ही यह कुछ कर गुजरने की दृढ़ता का द्योतक है।
कुछ बड़ा करना है तो सोच भी बड़ी रखनी होगी। कुछ भी हो पर अब तक हमारे भीतर की एक ऐसी शक्ति रही है जो हमेशा आसान रास्तों की तलाश में रहती रही है लेकिन अब कुछ नये साहस की अनुभूति जटिल-से-जटिल कार्यों को करने को प्रेरित करती है। चुनौतियों भरे रास्तों पर अग्रसर होने के लिये हमारे देश की आबादी में 65 प्रतिशत युवा शामिल हैं, और यह युवाओं के महत्व को दिखाने के लिए पर्याप्त है और वे देश के लिए कितनी बड़ी संपत्ति हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के बावजूद भारत अभी भी आर्थिक सफलता हासिल करने में पिछड़ रहा है जो दुनिया की बड़ी शक्ति बनने की बड़ी बाधा है।
युवाओं में किसी भी समस्या का सामना करने और उसे हल करने की क्षमता होती है। दुनिया भर में नक्सलवाद और इस्लामोफोबिया के मामलों में वृद्धि हुई है। बेरोजगारी, गरीबी और भ्रष्टाचार जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, हमारे देश में युवाओं को कुछ गैर-महत्वपूर्ण विषयों में विभाजित किया गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिकांश युवा लालची राजनीतिक नेताओं से प्रभावित हैं जो अपने बारे में सब कुछ सोचते हैं। इसलिए जरूरी है कि युवा राजनीति का हिस्सा बनें। एक ऐसे युवा नेता की कल्पना करें जो भविष्य के लिए मायने रखने वाली चीजों पर ध्यान केंद्रित करने और लड़ने के लिए हर युवा साथी को एकजुट करे तो हमारा देश महान होगा। हमें अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को किसी दायरे में बांधने से बचना होगा। ऐसा तब होगा, जब हम अपनी कमजोरियों पर ही नहीं, बल्कि उनसे उबरने के रास्तों पर भी विचार करेंगे। यहीं से हमारी तरक्की का रास्ता खुलता है। इसलिये युवाओं को अब कमर कसना होगा कुछ अनूठा एवं विलक्षण करने के लिये, तभी देश दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बन सकेगा।
देश के युवा नशे में नहीं बल्कि खेल में आगे बढने चाहिएं। उन्हें नशों से दूर रहकर रचनात्मक कार्यों में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। आज युवा जहां खेलों से दूर है, वहीं संस्कृति व नैतिकता से भी विमुख होता जा रहा है। जब युवा अपनी जड़ों से ही नहीं जुड़ेगा तो राष्ट्र को विश्व पटल पर कैसे आदर्श स्थान पर सुशोभित कर पाएगा। स्वामी विवेकानंदजी, महात्मा गांधी, आचार्य तुलसी का भी यही सपना था कि देश का युवा जागे, बड़े लक्ष्य चुने और उनके पीछे चलता रहे, जब तक उसे उसकी प्राप्ति न हो जाए। भारत द्वारा हाल में ही अपनाई गई नई शिक्षा नीति का उद्देश्य भी युवाओं का सार्वभौमिक विकास है। दुनिया जीत लेने की चाहत हर इंसान की होती है। यह तो हुई सकारात्मक मन की उड़ान, लेकिन उस मन की उड़ान को कैसे संभाला जाए जो सिर्फ अपने बारे में सोचता है? हम तो सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया एवं वसुधैव कुटुम्बकम के मंत्रों से दुनिया को एक परिवार मानते आये हैं, इस बड़ी सोच के कारण ही दुनिया हम पर भरोसा करने लगी है। तभी हम जी-20 की अध्यक्षता के पात्र भी बन पाये हैं, तभी हमारी अहिंसा एवं योग को विश्व मान्यता दे रहा है और विश्व अहिंसा दिवस एवं विश्व योग दिवस समूची दुनिया मनाने लगी है।
युवाओं को ‘महात्मा गांधी’ के कहे इस कथन के मर्म को समझने और उसे जीवन में उतारने की आवश्यकता है कि ‘खुद वो बदलाव बनिए, जो दुनिया में आप देखना चाहते हैं।’ युवाओं को राष्ट्र व समाज के प्रत्येक कार्य-क्षेत्र में अपने कदम रखने होंगे क्योंकि उनके पास नई सोच, नए विचार, तार्किक चिंतन, ऊर्जा व ज्ञान का अथाह भंडार है और यह ‘शक्ति भंडार’ जब किसी क्षेत्र में लगेगा तो उसका सर्वांगीण विकास अवश्य होगा। युवा केवल तन से ही युवा नहीं होना चाहिए, बल्कि मन से भी उसका युवा होना आवश्यक है। तभी तन व मन की संयुक्त क्रिया से एक स्वस्थ विचार की रचना होती है, जो एक स्वस्थ समाज का आधार बनता है। यहीं से समाज की विकास प्रक्रिया का आरम्भ होता है।
आचार्य तुलसी ने युवाओं का विश्वास लिया ही नहीं, बल्कि मुक्तमन से विश्वास किया भी है। यही कारण है कि उनके हर मिशन से युवक जुड़े और उसे सफल बनाने का प्रयत्न किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी युवाओं पर भरोसा करते हुए उन्हें नये भारत, सशक्त भारत का आधार बनाना चाहते हैं। यही कारण है कि हमारी सरकारें भी युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयासरत हैं। युवा वही है जिसकी आंखों में सपने, मन में इरादे, हाथों में शक्ति, मुख पर सकारात्मकता का तेज हो अन्यथा तन से युवा तो कोई भी हो सकता है। मन से युवा होना अत्यावश्यक है, क्योंकि देश को फौज की जरूरत तो है, परंतु वह फौज वैचारिक चिंतन में निपुण होनी चाहिए। भारत को विश्व पटल पर ज्ञान की कीर्ति से जगमग करने वाले महान भारतीयों के विचारों पर चल कर आज भारत का युवा वैश्विक पटल पर भारत को एक बार पुनः ‘विश्व गुरु भारत’ बनाने की ओर अग्रसर है।
देश का प्रत्येक नागरिक अपने दायित्व और कर्तव्य की सीमाएं समझें। विकास की ऊंचाइयों के साथ विवेक की गहराइयां भी सुरक्षित रहें। हमारा अतीत गौरवशाली था तो भविष्य भी रचनात्मक समृद्धि का सूचक बने। बस, वर्तमान को सही शैली में, सही सोच के साथ सब मिलजुल कर जी लें तो विभक्तियां विराम पा जाएंगी। पर एक बात सदैव सत्य बनी हुई है कि कोई पाप, कोई जुर्म व कोई गलती छुपती नहीं। वह रूस जैसे लोहे के पर्दे को काटकर भी बाहर निकल आती है। वह चीन की दीवार को भी फाँद लेती है। हमारे साउथ ब्लाकों एवं नॉर्थ ब्लाकों में तो बहुत दरवाजे और खिड़कियाँ हैं। कुछ चीजों का नष्ट होना जरूरी था, अनेक चीजों को नष्ट होने से बचाने के लिए। जो नष्ट हो चुका वह कुछ कम नहीं, मगर जो नष्ट होने से बच गया वह उस बहुत से बहुत है।