सीता राम शर्मा ” चेतन “
जापान के हिरोशिमा में संपन्न हुई जी 7 की बैठक में भी विश्व शांति के लिए बनाए गए वैश्विक संगठन संयुक्त राष्ट्र के वर्तमान निष्प्रभावी अस्तित्व और उसकी कार्यशैली, उपयोगिता तथा प्रासंगिकता पर सवाल उठाए गए । यह पहली बार नहीं हुआ है । पिछले कुछ वर्षों से संयुक्त राष्ट्र के वर्तमान अस्तित्व, उसके नियम, अधिकार और उसकी कार्यशैली तथा प्रासंगिकता पर निरंतर सवाल उठाए जाते रहे हैं । सबसे बड़ी बात यह है कि अब तो संयुक्त राष्ट्र के वर्तमान महासचिव एंटोनियो गुटेरस भी बार-बार यह स्वीकार कर रहे हैं कि वर्तमान वैश्विक माहौल, संकटों और चुनौतियों के हिसाब से संयुक्त राष्ट्र में बड़े बदलाव जरुरी हो गए हैं । आश्चर्य की बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव के साथ इसके लगभग सभी सदस्य देश जब इसमें बदलाव के पक्षधर हैं और बड़े तथा प्रभावी बदलाव चाहते हैं तो फिर विलंब क्यों ? क्यों नहीं इस पर त्वरित एक बैठक आयोजित की जा रही है ? क्या संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों या सदस्य देशों के पास इतना ज्ञान और सामर्थ्य नहीं कि निरंतर बद से बदतर होती वैश्विक परिस्थितियों और बढ़ते वर्तमान वैश्विक संकटों को ध्यान में रखते हुए तत्काल इस दिशा में हर जरुरी और सफल आयोजनों तथा सुधारों को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया जाए ?
गौरतलब है कि भारत बहुत पहले से संयुक्त राष्ट्र में व्यापक सुधारों की मांग करता रहा है । भारत की स्थाई सदस्यता की मांग का लगातार कई देश समर्थन भी करते रहे हैं । पर अब तक नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही रहा है । बावजूद इसके पिछले दिनों जापान के हिरोशिमा में संपन्न हुए जी 7 देशों के आयोजन में शामिल हुए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रुस युक्रेन युद्ध पर लगातार चिंता प्रकट करते वैश्विक समुदाय और कई राष्ट्राध्यक्षों को संबोधित करते हुए आश्चर्य के साथ बहुत स्पष्ट शब्दों में संयुक्त राष्ट्र के वर्तमान स्वरूप पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए पूछा था कि शांति बहाली के विचार के साथ शुरु हुआ संयुक्त राष्ट्र आज संघर्षों को रोकने में सफल क्यों नहीं हो रहा है ? संयुक्त राष्ट्र में अब तक आतंकवाद की परिभाषा तक क्यों स्वीकार नहीं की गई ? जब वैश्विक शांति और स्थिरता से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र अस्तित्व में है तो इन पर चर्चा के लिए अलग-अलग मंचों की जरूरत क्यों पड़ती है ? यह जरुरी है कि संयुक्त राष्ट्र में सुधारों को लागू किया जाए । संयुक्त राष्ट्र के मंच को कमजोर देशों की आवाज भी बनना होगा । मोदी के इस संबोधन के तुरंत बाद ही मोदी के वक्तव्य का समर्थन करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने भी पत्रकारों को कहा कि यह समय वर्तमान विश्व के अनुरूप सुरक्षा परिषद और व्यापार संगठन में बदलाव का समय है । दोनों ही संगठन 1945 के शक्ति संबंधों को प्रतिबिंबित करते हैं । वैश्विक वित्तीय संगठन पुराना, निष्क्रिय और अनुपयोगी हो चुका है । यह कोविड और रुस युक्रेन युद्ध के बीच वैश्विक सुरक्षा की अपनी मूल जिम्मेदारी को निभाने में विफल रहा है ।
अब सवाल यह है कि क्या जी 7 के मंच से उठाए गए मोदी के सवाल, जो कम से कम भारत की तरफ से तो लगातार पूछे और उठाए जाते रहे हैं, जो विश्व और संयुक्त राष्ट्र के कई सदस्य देशों के भी सवाल हैं और जिन्हें अब खुद संयुक्त राष्ट्र के महासचिव भी बार-बार सही और जरुरी बता रहे हैं, संयुक्त राष्ट्र अब उन पर सचमुच बहुत गंभीरता और सक्रियता से विचार कर सुधारात्मक बदलाव के प्रयास करेगा ? वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में संयुक्त राष्ट्र को बंधक बना इसकी आड़ में अपनी वैश्विक दादागिरी चलाते कुछ देशों के अनुभूत सच से वाकिफ आम वैश्विक जनमानस का जवाब तो ना ही होगा, इसलिए संयुक्त राष्ट्र में आवश्यक बदलाव के लिए चिंतित और प्रयासरत देशों के राष्ट्राध्यक्षों को सबसे बड़ी वैश्विक समस्या बनते संयुक्त राष्ट्र पर अब त्वरित एक बेहद जरुरी और आपातकालीन बैठक बुलाने की जरूरत है । जरूरत इस बात की भी है कि वैश्विक समुदाय वैश्विक शांति और सुरक्षा के इस जिम्मेवार संगठन में यदि आवश्यक सुधार की गुंजाइश ना देखे तो वह ऐसे किसी दूसरे वैश्विक संगठन के निर्माण और उसके क्रियान्वयन पर भी वैश्विक सामुहिक लोकतांत्रिक और समुचित प्रयास प्रारंभ कर दे । फिलहाल वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार का यह एक बेहद उपयुक्त और अंतिम अवसर है, जिस पर भारत और भारतीय नेतृत्व के साथ हर ईमानदार और जिम्मेवार वैश्विक नेता और नागरिक को अब ज्यादा गंभीर और मुखर होने की जरूरत है ! निकट भविष्य में देखना समझना यह है कि संयुक्त राष्ट्र को लेकर सिर्फ चिंतन और सवाल कब तक ? और क्या निकट भविष्य में इस सवाल का जवाब सचमुच एक नये सशक्त समावेशी प्रभावी वैश्विक संगठन का निर्माण ही होगा ।