आर.के. सिन्हा
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने भारत के साथ दोस्ती तथा सौहार्दपूर्ण संबंधों की इच्छा जताई है। यह सुखद है। वर्ना पाकिस्तानी सेना के साए में रहने वाली वहां की सरकारों के लिए भारत से संबंधों को मधुर तथा मजबूत बनाने के बारे में सोचने से पहले रावलपिंडी के आर्मी हाउस से हरी झंडी लेनी पड़ती है। अब दोनों देशों को बिना देर किए कम से कम आपसी व्यापार तथा सरहद के आरपार रहने वाली जनता को एक-दूसरे से मिलने जुलने की इजाजत देने में देरी नहीं करनी चाहिए। शाहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार में भारत से पाकिस्तान जाकर बस गए मुसलमानों के हितों के लिए लड़ने वाली राजनीतिक पार्टी मुत्ताहिदा कौमी मुवमेंट (एमक्यूएम) भी है। इसके नेता अल्ताफ हुसैन की यही मुख्य मांग रही कि मुहाजिर परिवारों को अपने बच्चों के निकाह उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली वगैरह के परिवारों में करने की इजाजत मिले। यह सच है कि दोनों मुल्कों के रिश्तों में तल्खी रहने के कारण बंटवारे के वक्त बंटे परिवार हमेशा के लिए एक-दूसरे से दूर होते जा रहे हैं। खैर, शरीफ तथा भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के बीच हाल के दिनों में हुए संदेशों के आदान-प्रदान से यह उम्मीद बंधी है कि सरहद के आर-पार रहने वाले परिवार फिर से करीब आएंगे। ये आपस में निकाह करके ऱिश्तों की डोर को बांधे हुए थे। कुछ दशक पहले तकहर साल सैकड़ों निकाह होते थे, जब दूल्हा पाकिस्तानी होता था और दुल्हन हिन्दुस्तानी। इसी तरह से सैकड़ों शादियों में दुल्हन पाकिस्तानी होती थी और दूल्हा हिन्दुस्तानी। नवाब मंसूर अली खान पटौदी के रिश्त के भाई तथा पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष शहरयार खान ने चंदेक साल पहले अपने पुत्र के लिए भोपाल की कन्या को अपनी बहू बनाया था। उनके फैसले पर पाकिस्तान में कट्टरपंथियों ने शहरयार पर हल्ला बोलते हुए कहा था “शर्म की बात है कि शहरयार खान को अपनी बहू भारत में ही मिली।” जवाब में शहरयार खान ने कहा, “भोपाल मेरा शहर है। मैं वहां से बहू नहीं लाऊंगा तो कहां से लाऊंगा।”
आप पाकिस्तान के चोटी के अखबारों में छपे वैवाहिक विज्ञापनों को देख लीजिए। आपको समझ आ जाएगा कि वहां पर मुहाजिर किस तरह से पुरखों की जड़ों से जुड़े हुए हैं। आपको तमाम विज्ञापनों में ये लिखा मिल जाएगा, वर (वधू) यूपी से हों या यूपी से संबंध रखते हैं। यूपी का मतलब ही मुहाजिर से है। उधर यूपी में वे सब लोग शामिल हो जाते हैं,जो भारत से जाकर बसे थे।
तिजारती रिश्ते शुरू हों
भारत की यह भी चाहत है कि कश्मीर मसला हल होने से पहले ही दोनों पड़ोसी मुल्क अपने व्यापारिक संबंधों को एक्टिव कर लें । चूंकि शाहबाज शरीफ और उनकी पार्टी के नेता तथा पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का संबंध एक बिजनेस करने वाले परिवार से है, इसलिए वे भारत की चाहत का सम्मान करेंगे। जानने वाले जानते हैं कि शरीफ परिवार की स्टील कंपनी ‘इत्तेफाक’ का भारत की चोटी की स्टील कंपनी जिंदल साउथ वेस्ट (जेएसडब्ल्यू) से कारोबारी संबंध है। जेएसडब्ल्यू के चेयरमेन सज्जन जिंदल के शरीफ परिवार से निजी संबंध हैं। इस बात को कभी शरीफ परिवार ने छिपाया नहीं है।
शरीफ सीखें चीन से
पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री तथा सरकार को भारत-चीन संबंधों से सीखना होगा। भारत-चीन के बीच जवाहर लाल नेहरु के ज़माने से ही जटिल सीमा विवाद है, पर इसके साथ दोनों देशों के बीच तिजारती रिश्ते भी लगातार मजबूत हो रहे हैं। फिलहाल दोनों देशों का दिवपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर के करीब पहुंच रहा है। साफ है कि भारत-चीन आपसी व्यापार बढ़ता ही रहेगा। तो चीनी उत्पादों का बहिष्कार करने के नारों को कोई बहुत ज्यादा असर नहीं हुआ। हकीकत यह है कि भारत चीन से इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों तथा मोबाइल फोन कंपोनेंट्स का बहुत बड़े स्तर पर आयात करता है। हमारी फार्मा कंपनियों की भी चीन पर निर्भरता तो खासी अधिक है। इस निर्भरता को हम कुछ महीनों में या नारेबाजी मात्र से तो खत्म नहीं कर सकते। जब तक हम खुद आत्म निर्भर नहीं हो जाते तब तक तो हमें चीन से विभिन्न उत्पादों का आयात करना होगा।
बहरहाल, अब भारत-पाकिस्तान के आपसी व्यापार की हालत को जान लेते हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) मानता है कि अगर दोनों देशों की सरकारों की तरफ से आपसी व्यापार को गति देने की पहल हो तो 2.7 अरब ड़ॉलर का आंकड़ा 10 अरब ड़ॉलर तक पहुंच सकता है। पाकिस्तान की धूल में जाती अर्थव्यवस्था को पंख लगाने की शाहबाज शरीफ को कसकर कोशिशें करनी होगी। फिलहाल उनका देश अर्थव्यवस्था भारी संकट में है। पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुकाबले बेहद कमजोर हो चुका है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो रहा है। इमरान खान प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ने से पहले पाकिस्तान की मुश्किलें और बढ़ा गए हैं। वे कहते रहे कि अमेरिका उन्हें हटाना चाहता है। इस कारण अमेरिका पाकिस्तान से नाराज है। हालांकि अमेरिका ने पाकिस्तान को बार-बार संकट से निकाला है। पाकिस्तान की धूर्त और भ्रष्ट सेना को भी यह समझना होगा कि भारत के साथ शांति के रास्ते पर चलकर ही उनका मुल्क विकास कर सकेगा। उसका एक पक्ष व्यापारिक संबंध मजबूत करना भी है। पाकिस्तानी सेना ने देश की प्राथमिकताएं बदली हैं। पाकिस्तान में शिक्षा बजट से सात गुना अधिक है रक्षा बजट। इस सोच के कारण पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर चुकी है।
शरीफ को लेकर की जा रही इन तमाम उम्मीद भरी बातों के बीच अभी उन्हें साबित करना होगा कि वे सच में अपने मुल्क का भला चाहते हुए अपनी एक असल में शरीफ प्रधानमंत्री की इमेज को दुनिया के सामने लाना चाहते हैं। शाहबाज शरीफ के साथ एक बड़ी चुनौती यह भी रहेगी कि पाकिस्तान का सबसे बड़ा सूबा पंजाब घनघोर रूप से भारत विरोधी रहा है। क्या वह अब बदलेगा यह भी देखना होगा। इसके लिए शाहबाज शरीफ को पंजाब में भारतीय विरोधी मनाहौल को खत्म करना होगा। यह संभव है क्योंकि उनका और उनकी पार्टी का पंजाब में गजब का असर है।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)