
प्रमोद भार्गव
भारत ग्रामों का देश है। 70 प्रतिशत आबादी ग्रामों में रहती है। ये ग्राम ही संस्कृति, विरासत और वन्य जीवन को संरक्षित किए हुए हैं। ग्राम संस्कृति में ही समाहित वह लोक है, जिसमें खेती-किसानी, हस्तशिल्प, लोककला और लोकगायन आज भी किसी न किसी रूप में प्रचलन में हैं। यही वे ग्रामीण क्षेत्र हैं, जिनमें नदियों, मंदिरों, षैलचित्रों, वन्यजीवों और हस्तशिल्प की वैभव गाथा कहता पर्यटन बिखरा पड़ा है। इस नजरिए से मप्र के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अनूठी पहल की है। उन्होंने ग्वालियर में टूरिज्म कॉनक्लेव करके इस अंचल की विरासत को राश्ट्र और विश्व पटल पर पहचान बनाने के लिए 3500 करोड़ के निवेश प्रस्ताव जुटा लिए हैं। इस कॉनक्लेव का लक्ष्य ग्वालियर-चंबल अंचल को अंचल के पर्यटन स्थलों को वैश्विक मानचित्र पर सशक्त पहचान दिलाना है, जिससे देश और दुनिया से आने वाले सैलानी इस अंचल का रुख करें और पुरातन से लेकर आधुनिक विरासत का आनंद लें।
यह अंचल एक ऐसा विलक्षण पर्यटन का क्षेत्र है, जिसमें 10,000 साल से भी ज्यादा पुराने षैलचित्रों से लेकर बाघ एवं तेंद्रुओं के लिए माधव राश्ट्रीय उद्यान और चीतों के लिए कूनो-पालपुर के आदिम जंगल मौजूद है। ग्वालियर और नरवर के ऐतिहासिक दुर्ग हैं, वहीं मुरैना जिले के पड़ावली गांव में बटेश्वर के शिव मंदिरों का समूह है। यहीं मितावली ग्राम में वह प्रसिद्ध 64 योग्नि मंदिर है, जिसकी नकल के आधार पर अंग्रेजों ने दिल्ली का संसद भवन बनाया था। ओडिशा के कोणर्क मंदिर की भव्य प्रतिकृति को सूर्य मंदिर का रूप देकर इसे बिरला समूह ने ग्वालियर में निर्मित किया है। मुरैना के पहाड़गढ़ और शिवपुरी में ऐसे षैलचित्रों की श्रृंखलाएं हैं, जो आदिम मनुश्य की जीवन-शैली और सभ्यता के मानकों को अभिव्यक्त करते हैं। संगीत सम्राट तानसेन की समाधि ग्राम बेंहट में है, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और क्रांतिकारी तात्या टोपे के स्मारक ग्वालियर और शिवपुरी में हैं। जय विलास महल में स्थित संग्रहालय भी विविध सामग्रियों का अद्वितीय संग्रह है। साफ है, सभी प्रकार की रुचियों के पर्यटन स्थल इस अंचल में अपनी पुरातन और आधुनिक भव्यता लिए आज भी खड़े हैं।
षहरी भाग-दौड और आपाधापी से दूर प्रदूशण मुक्त इस संस्कृति से साक्षात्कार कराने का नया चलन ग्राम पर्यटन के रूप में देश में विकसित हो रहा है। हालांकि हमारे प्राचीन मंदिर, ज्योतिर्लिंग एक समय ग्रामों में ही थे, लेकिन धार्मिक श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या और इस कारण बढ़ते व्यवसाय ने इन ग्रामों को कस्बा और छोटे नगरों में बदल दिया। अतएव अब इन क्षेत्रों में पूंजी निवेश होता है तो पर्यटन से जुड़ी सुविधाओं के साथ-साथ पर्यटन भी बढेगा। इसी परिप्रेक्ष्य में ग्राम पर्यटन से जुड़ा बड़ा बदलाव राश्ट्रीय वन्य प्राणी उद्यानों और अभ्यारणयों में दिखाई दे रहा है। इनकी सीमा से बाहर बसे ग्रामों में लोगों ने ठहरने से लेकर उत्तम खान-पान की सुविधाएं उपलब्ध कराना षुरू कर दिया है। मिट्टी के गोबर से लिपे घर और चूल्हे पर बना जैविक भोजन षहरी लोगों को खूब लुभा रहा है। टूरिस्ट कंपनियां ग्रामीण इलाकों में टेंटों में शिविर लगाकर पर्यटकों को तीन और पांच तारा सुविधाएं भी उपलब्ध करा रही हैं। इस व्यवसाय से स्थानीय लोगों की आय के स्रोत भी बढ़ रहे हैं।
ग्राम या ग्रामीण पर्यटन से आशय है कि शहर से लाकर पर्यटकों को ग्रामों का भ्रमण कराना। ज्यादातर ग्रामीण पर्यटन क्षेत्र राष्ट्रीय वन्य प्राणी अभ्यारण्य के इर्द-गिर्द विकसित हो रहे हैं। देश के पहले नेशनल पार्क कॉर्बेट और मप्र के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में ये सुविधाएं बहुत पहले से ही षुरू हो गई थीं। परंतु अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जबसे ग्राम पर्यटन को बढ़ावा देने की बात षुरू की है, तब से मप्र में खूब विकास हो रहा है। मप्र के ष्योपुर जिले में चीता अभ्याराण्य जब से खुला है, तब से इस क्षेत्र में ग्रामीण पर्यटन को पंख लग गए हैं। कूनो नदी के किनारे एक विश्राम ग्रह कूनो रिवर कैंप के नाम से खोला गया है। यहां दो दर्जन टेंटों में ठहरने की सुविधा के साथ साजिश और निरामिष भोजन की सुविधा है। इसमें स्थानीय लोग भोजन बनाते हैं और सैलानियों को खिलाते हैं। कूनो नदी के इस किनारे पर कतई शहरी प्रभाव नहीं है। इसके निकट सहरिया आदिवासियों का बड़ा गांव सेसईपुरा है। यहीं से चीता अभ्यारणय का प्रमुख प्रवेश द्वार है। पर्यटकों की आमद बढ़ने से इस गांव के आदिवासियों ने मुख्य सड़क के दोनों ओर खाने-पीने के होटल खोल लिए हैं। यहां षुद्ध षाकाहारी भोजन के साथ नमकीन और मिठाई आसानी से मिल जाते हैं। यहीं के बगल के गांव गोरस में बड़ी संख्या में गाएं हैं, इन्हीं गायों के दूध से मिठाईयां बनाई जाती हैं। जिन्हें देशभर से आए पर्यटक चाव से खाते हैं।
शिवपुरी जिले के बैराड़ कस्बे में एक बड़ा तालाब है। इस तालाब में यात्रियों के लिए तैरते हुए आवास बनाए गए हैं। इस फ्लोटिंग रेस्ट हाउस में ठहरने के साथ नाश्ता व जल-पान की व्यवस्था है। भोजन या तो तालाब से ही लगे कस्बे में जाकर खाना होता है या फिर कस्बे से मंगाना होता है। इस तैरते रेस्ट हाउस में केज कल्चर की सुविधा है। यानी यहां पानी से भरे पिंजरे में पली मछलियां रखी गई हैं। मछली पालने का यह एक आधुनिक तरीका है। इस पिंजरे में मछलियां तेजी से बढ़ती है, क्योंकि उनका बाहरी पर्यावरण और जीवों से संपर्क नहीं होता है। ऊंगली के आकार की इन मछलियों को छुआ भी जा सकता है। यह अनूठा अनुभव यात्रियों को नए ढंग से आनंदित करता है। पिंजरे की इन मछलियों को पालने का काम स्थानीय ग्रामीण करने लगे हैं। क्योंकि पिंजरे में जब मछलियों की स्वाभाविक मृत्यु हो जाती है तो इन पिंजरों में नई मछलियां डालनी होती हैं। इससे लोगों को पर्यटन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन जाने की सुविधा मिल रही है। इस तालाब में नाव पर बिठाकर पानी में घुमाने की सुविधा भी है। इस रेस्ट हाउस के निदेशक अरविंद तोमर का कहना है कि यहां लोग कश्मीर की डल झील का अनुभव करते हैं। शिवपुरी के माधव राष्ट्रीय उद्यान और श्योपुर के कूनो अभयारण्य के मध्य यह स्थल मौजूद है, इसलिए यहां चीता और बाघ देखने के बाद यात्रियों को मछलियों का स्पर्श खूब आकर्षित कर रहा है।
ग्रामीण पर्यटन में कार की यात्रा से ऊबे लोगों को बैलगाड़ी एवं ऊंट और घोड़ो की सवारी भी कराई जाती है। जो टूरिस्ट पैकेज में जो यात्री गांव आते हैं, उन्हें सांध्य वेला में लोक नृत्य और लोकगीतों का आनंद स्थानीय वाद्य यंत्रों के साथ कराया जाता है। भांति-भांति के स्थानीय व्यजनों का स्वाद भी मिलता है। गांव की झोप्रिड़यों में रहकर लोग खेती-किसनी और सिंचाई सुविधाएं कैसी हैं, इन्हें भी निकट से देख लेते हैं। महानगरीय पर्यटन से उदासीन लोग ईको टूरिज्म और होम स्टे करके नए अनुभव से आनंदित होते है। यहां के प्रदूशण मुक्त वातावरण में कुछ दिन-रातें व्यतीत करके सैलानी राहत का अनुभव करते हैं। क्योंकि यहां स्वच्छ वायु और शांत परिवेश के बीच जैविक खाद से उत्पादित अनाज और सब्जी का आहार ग्रहण करके यात्री स्वास्थ्य लाभ मिल जाने का अनुभव भी करते हैं।
ग्रामीण पर्यटन केवल ग्राम विकास का सशक्त माध्यम नहीं है। बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने का जरिया भी है। स्थानीय बोलियों और कहावतों से भी हम सीधे-सीधे रुबरू होते हैं। स्थानीय मंदिर और झील व झरनों के साथ जंगलों में वन्य प्राणियों के दर्शन हमें प्रकृति से साक्षात्कार कराते हैं। भारतीय दर्शन में मनुश्य, वन और वन्य प्राणियों को सह-अस्तित्व में रहते दिखाया गया है। अतएव ग्राम से जुड़ी ये यात्राएं मनुश्य और वन्य जीवों को सह-अस्तित्व के लिए भी प्रेरित करती हैं। यदि अब मुख्यमंत्री मोहन यादव की पूंजी निवेश की उपलब्धता के बाद इस पर्यटन को सुरक्षा के साथ प्रायोजित तरीके से बढ़ावा दिया जाए तो भारत की जो आत्मा गांवों में बसती है, वह संवेदित हो उठेगी और देसी ही नहीं विदेशी पर्यटक भी भारतीय गांव की ओर दौड़ पड़ेंगे।