
प्रो. श्याम सुंदर भाटिया
यूं तो श्री आन्जनेय कुमार सिंह यूपी में सीनियर आईएएस अफसर हैं, लेकिन देश के धरतीपुत्रों की दशा और दिशा उनके चिंतन में हमेशा रचती-बसती है। वह एकांत में हों या फिर काश्तकारों, कृषि वैज्ञानिकों, कृषि अफसरान, एग्रीकल्चर स्टुडेंट्स के संग संवाद में हों, एक बड़ा सवाल सदैव कौंधता रहता है- इंडियन फादर ऑफ फूड यानी अन्नदाताओं की माली हालत में करीब-करीब आठ दशकों बाद भी कोई आमूल-चूल परिवर्तन क्यों नहीं आया है। यूं तो 60 के दशक में भारत रत्न एवम् पदम विभूषण एमएस स्वामीनाथन की दूरदृष्टि हरित क्रांति के रूप में अवतरित हुई। बावजूद इसके इन साढ़े पांच दशकों से में यह बड़ा परिवर्तन अवश्य आया है, भारत खाद्यान्न उपज- विशेषकर गेहूं में एक्सपोर्टर से इंपोर्टर बन गया।
सिक्किम कैडर के श्री सिंह की फिलवक्त प्रतिनियुक्ति बतौर मंडलायुक्त मुरादाबाद में है। जोश, जुनून और जज़्बे से लबरेज 2005 के इस आईएएस को सौंपी गई जिम्मेदारी सदैव शानदार प्रतिफल के रूप में सामने है। आपका दो दशक का प्रशासनिक अनुभवों का ट्रैक रिकॉर्ड अविस्मरणीय है। जल, जंगल और जमीन से इस आला अफसर की बेपनाह मुहब्बत प्रारम्भ से ही जग-जाहिर है। 2015 में यूपी सरकार के सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग के विशेष सचिव एवम् सिंचाई विभाग की एकीकृत जल प्रबंधन परियोजना के सीईओ के रूप में वॉटरशेड प्रबंधन की जिम्मेदारी मिली तो जीपीएस आधारित वॉटरशेड के कार्य को एक मॉडल के रूप में स्वीकृति मिल गई।
सिक्किम से लेकर यूपी तक खेत-खलिहान और काश्तकार भी सोच में रहे। सिकुड़ता रकबा, अस्वस्थ मिट्टी, असंशोधित बीज, सिंचाई प्रबंधन, बेहतर उपज, फसलों की विविधता, बाजार, भंडारण, प्रसंस्करण सरीखे चिंता और चिंतन विषय रहे हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि से वाबस्ता इस आला अफसर का ख़्वाब है, अर्द्ध शताब्दी के बाद एक और हरित क्रांति का बीजारोपण हो। यह ग्रीन रिवॉल्यूशन कब जमीनी हकीकत लेगी, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन यूपी के आला अफसर श्री आन्जनेय कुमार सिंह ने इसका ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया है। भले ही इसे हम पायलट प्रोजेक्ट कहें, लेकिन यह अपार संभावनाओं से लबरेज है, क्योंकि इसमें ग्रासरूट की वर्किंग शामिल है। इस पायलट प्रोजेक्ट में कृषि अफसरों के अलावा कृषि वैज्ञानिक, एग्रीकल्चर फैकल्टीज़, उन्नत खेती करने वाले काश्तकारों आदि को शामिल किया गया है। प्रारम्भिक बैठक हो चुकी है। इस ब्लूप्रिंट में एग्रो क्लाइमेंट जोन, हिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर, प्रजेंट डे एग्रीकल्चर एंड एलाइड सेक्टर स्टेट्स, स्टेट्स ऑफ इंस्टिट्यूशनल सपोर्ट, कोर्डिनेशन विद् सेकेंडरी सेक्टर, एलाइड सेक्टर, बैलेंस सीट ऑफ एग्रीकल्चर, प्रॉब्लम्स इन एग्रीकल्चर, रोल ऑफ एग्रीकल्चर इन वन ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी सरीखे मुख्यतः नौ बिन्दु हैं। इनमें से प्रजेंट डे एग्रीकल्चर एंड एलाइड सेक्टर स्टेट्स और कोर्डिनेशन विद् सेकेंडरी सेक्टर की वर्किंग तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के कृषि वैज्ञानिकों को सौंपी गई है। श्री आन्जनेय कुमार के इस महायज्ञ में टीएमयू के कृषि वैज्ञानिक भी अपनी आहूति देंगे। टीएमयू के ये कृषि वैज्ञानिक मिट्टी की सेहत, बीज की गुणवत्ता, भंडारण की व्यवस्था, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, मार्केटिंग, सर्टिफिकेशन के संग-संग फूड प्रोसेसिंग और कृषि प्रोसेसिंग में एथेनॉल का उत्पादन, सीड प्रोसेसिंग यूनिट है या नहीं आदि का शोध अध्ययन करेंगे।
बकौल मंडलायुक्त हरित क्रांति से पूर्व और फ़िलवक़्त भी सर्वाधिक ग्रामीण कृषि पर निर्भर हैं। हरित क्रांति से उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन कृषि एक कारोबार के रूप में नहीं बदल पाई। सरकारों की ओर से खेती की सूरत-सीरत बदलाव को एक से बढ़कर एक योजनाएं बनाई गईं। काश्तकारों को आर्थिंक सहयोग के संग-संग तमाम तरह के कृषि सुधार भी किए गए। फिर भी कृषि को पेशे का दर्जा नहीं मिला। इस आला अफसर के चिंता का यह सबसे बड़ा सबब है। मौजूदा समय में देश की करीब 65 प्रतिशत जनसंख्या खेती में संलग्न है, फिर भी देश की जीडीपी में खेती की भागीदारी बेहद कम है। इस पायलट प्रोजेक्ट में इन कृषि वैज्ञानिकों का जिम्मा जमीनी हकीकत को तलाशना और फिर तराशना है। इन शोधपरक आंकड़ों के संग कृषि पुस्तिका तैयार होगी, ताकि सूबे की सरकार के जरिए केन्द्र के कृषि वैज्ञानिक और प्रखर सोच के एग्रीकल्चर विद्वान एक और हरित क्रांति के ग्रासरूट खाका तैयार कर सकें।