‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ इंदिरा गाँधी की एतिहासिक भूल

प्रो. नीलम महाजन सिंह

पंजाब में 1984 में आतंकवाद, अपनी चर्म सीमा पर था। मै उस समय नयी-नयी पत्रकारिता में आई थी और पंजाब व कश्मीर में आतंकवाद जैसे विषयों पर शोध कार्य कर रही थी। मेरे माता-पिता, लज्जया देवी व जसवंत राय जी, मेरी सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित रहते थे। परन्तुें मुझे पत्रकारिता में कुछ विशेष करने का जुनून था, अभी भी है! एक पत्रकार ब्रीफिंग में, राजीव गांधी, कॉंग्रेस महासचिव, से मेरा परिचय हुआ था। राजीव गांधी से मेरी अनेक मुलाकातें हुईं। वे मेरी राजनीतिक विश्लेषण के ज्ञान से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने कैप्टन सतीश शर्मा व मणिशंकर अय्यर से कहा, “नीलम, जो भी सुझाव लिखें, उसे मेरी मेज़ पर रख दीजिए”। कैप्टन सतीश शर्मा मुझे अक्सर मिल लिया करते थे। दिग्गज पत्रकारों को मेरी राजीव गांधी से नज़दीकियां खटकती थीं। खैर मैंने काफी अध्ययन-अध्यापन के उपरांत, स्वर्ण मंदिर में आतंकवादी गतिविधियों पर, प्रधानमंत्री कार्यालय में एक विस्तृत रिपोर्ट दी। पत्रकारों के एक जत्थे से संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले (बराड़) ने बातचीत की। वास्तव में भिंडरांवाले को प्रोत्साहन तो प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ने ही दिया था; सिखों की एकजुटता में दरार डालने हेतु!

बाद में वे ही बहुत महँगा पड़ गया। ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’, ‘राजीव गांधी के नेतृत्व वाली तिकड़ी’ ने, प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को स्वर्ण मंदिर पर बमबारी करने के लिए राजी किया था। यहां संत जरनैल सिंह भिंडरावाले ने शरण ली थी व गुरुद्वारे परिसर के अंदर से ‘खालिस्तान’ की मांग कर रहे थे। ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ के 40 साल पूरे होने को हैं, फिर भी ‘सीखी’ इस धार्मिक आघात को भूल नहीं पाई है। यह एक औपचारिक सत्य है कि सैन्य कार्रवाई ज़ाहिर तौर पर तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के विचाराधीन नहीं थी। बल्कि उनके बेटे राजीव गांधी, भतीजे अरुण नेहरू व राजीव के सलाहकार अरुण सिंह का विचार था। अरुण सिंह, राजीव के साथ, दून स्कूल, देहरादून में थे। वे डेटॉल कंपनी, रिक्ट कोलमैन में कार्यरत थे। 1971 में अरुण सिंह, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में राजीव गांधी के साथ थे। 80 वर्षीय, अरुण सिंह कपूरथला रॉयल्टी से हैं। उन्हें क्या मालूम, मिलिट्री कूटनीति क्या है, राजनीती क्या है? फिर क्या ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ 1984 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर नज़र रखते हुए की गई कार्यवाही थी? यह दावा पत्रिका ‘दी कारवां’ में छपी रिपोर्ट; ‘द शैटर्ड डोम’ में किया गया था। पत्रिका के राजनीतिक संपादक हरतोष सिंह बल द्वारा लिखी गई अनेक रिपोर्ट्स में पत्रकार कुलदीप नैयर व इंदिरा गांधी के पूर्व निजी सचिव आर.के. धवन का साक्षात्कार भी है। अरुण सिंह का मानना ​​था कि उग्रवादी नेता, जरनैल सिंह भिंडरावाले के खिलाफ एक सफल सैन्य अभियान उन्हें “चुनाव जीतने में सक्षम बना सकता है। यह उनके दिमाग पर भारी पड़ रहा था क्योंकि चुनाव होने वाले थे”। ऑपरेशन ब्लूस्टार की निराशाजनक कहानी, अब ऐसा प्रतीत होता है कि इसका विनाशकारी निष्कर्ष का नतीजा था। भारतीय इतिहास में सबसे बड़े जनादेश, ‘माँ इंदिरा गांधी की हत्या के उपरांत’, 1984 में राजीव गांधी को मिला, जब वे सत्ता में आए। ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ इंदिरा गांधी की आखिरी लड़ाई नहीं थी; यह राजीव की पहली और शायद पहली विनाशकारी भूल थी। इंदिरा गांधी ने स्पष्ट रूप से, सबसे अपनी अनिच्छा के साथ ‘ब्लूस्टार’ को मंजूरी दे दी थी। तुरंत ही ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ पर इंदिरा गांधी ने खेद व्यक्त किया था। जब इंदिरा गांधी ने अकाल तख्त के विनाश व धर्मस्थल को हुए नुकसान की तस्वीरें देखीं, तो उन्हें इस एतिहासिक भूल का दुख:द एहसास हो गया था। खबरों के मुताबिक, स्वर्ण मंदिर के फुटेज को देखकर वह बुरी तरह आहत हुईं थीं, परंतु तीर; बाण से निकल चुका था। वीडियो फुटेज व चित्र; राजीव के सलाहकार अरुण सिंह लेकर आए थे। “अरुण सिंह वहां थे, राजीव वहां थे, अरुण नेहरू भी वहीं मौजूद थे। इंदिरा गांधी अंतिम समय तक सेना की कार्रवाई का विरोध कर रही थीं,” आर.के. धवन, इंदिरा गांधी के सचिव के हवाले से कहा गया। “सेना प्रमुख, जनरल के. सुंदरजी और ‘इस तिकड़ी’ के समझाने पर आखिरकार उनका मन बदल गया”। पंजाब मामलों में राजीव की भागीदारी ‘ब्लूस्टार’ तक ले जाने वाले कई निर्णय राजीव, अरुण नेहरू और अरुण सिंह द्वारा निर्देशित थे। संजय गांधी की मृत्यु के बाद, राजीव ही पंजाब के मामलों को सीधे देखने लगे थे।

“अकालीयों के साथ अधिकांश संवाद राजीव की देखरेख में, अरुण नेहरू व अरुण सिंह के साथ मिलकर किए गए थे”। एक साक्षात्कार में, कुलदीप नय्यर ने इंदिरा (ब्लूस्टार पर) को उकसाने वालों के बारे में, धवन के दावों की पुष्टि की व अरुण नेहरू के साथ एक बैठक की, जब वे उनके साथ लंदन में रहने आए थे। तब कुलदीप नय्यर 1990 में लंदन में भारतीय उच्चायुक्त थे। कुलदीप नय्यर, इन्द्र मल्होत्रा, अरुण शौरी, एन. राम, सभी वरिष्ट पत्रकारों ने पूछा कि ‘ब्लूस्टार को कार्यान्वित करने का फैसला किसने लिया है’? अरुण नेहरू ने कहा; “आंटी इंदिरा गांधी इसके बहुत खिलाफ थीं। राजीव व अरुण सिंह इसके पक्ष में थे”। अरुण सिंह स्वयं भी सरदार परिवार से हैं। जेनरल के. सुंदरजी, जेनरल वैद्य व जेनरल बराड़ ने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक आक्रमण कर एतिहासिक भूल की। इसके बारे में कोई सवाल ही नहीं था कि अरुण सिंह, राजीव को आगे कर, उन्हीं के माध्यम से स्वर्ण मंदिर पर सेना की कार्यवाही के समर्थक रहे। यह स्मरणीय है कि अरुण सिंह व जेनरल के. सुंदरजी ने ही राजीव गांधी व इंदिरा गांधी को ‘आप्रेशन ब्लूस्टार’ की तकनीक को बढ़ा-चढ़ाकर, अरुण सिंह के जरिए पेश किया। यह महसूस किया गया कि भिंडरावाले के खिलाफ एक सफल सैन्य अभियान के परिणामस्वरूप, वे 1984 के चुनाव जीतने में सक्षम होंगें। उन्होंने इंदिरा गाँधी को आश्वस्त किया था। उस समय, मेरी जानकारी के अनुसार, तीनों एक साथ काम कर रहे थे। ‘ब्लूस्टार’ से दो-तीन महीने पहले अरुण सिंह, शुरू से ही सैनिक कार्यवाई के समर्थक रहे थे। अरुण नेहरू, अरुण सिंह व राजीव गांधी; एक ही टोली में थे, जो सभी चीज़ों को सांझा किया करते थे। आज तक स्वर्ण मंदिर में सैनिक कार्यवाही को, सिखों की तीन पीढयां भूला नहीं पाईं हैं। जेनरल कृष्णा स्वामी सुंदर जी की मृत्यु हो गई, जेनरल वैद्या की हत्या हो गई, जेनरल बराड को लंदन में सिख समुदाय के युवाओं ने वध करने का प्रयास किया, परंतु वे बच गए। अरुण नेहरू मर गए और इंदिरा गांधी की सतवंत सिंह और बेअंत सिंह, उन्हीं के सुरक्षाकर्मियों ने, उनके निवास पर 31 अक्टूबर 1984 को 36 गोलियों से भुन दिया। राजीव गांधी की ‘लिट्टे’ ने श्रीपेरंबदूर, तमिल नाडू में; ‘भानू: मानव बम्ब द्वारा उनके शरीर के चिथड़े कर दिए’! पंजाब की राजनीति भिन्न है। किसी भी राजनैतिक दल को पंजाब से संबंधित निर्णयों को सम्वेदनशीलता व सोच-वचार से ही कार्यान्वित करना होगा। पंजाब में शांति व खुशहाली, केंद्र सरकारी का मंत्र होना चाहिए। वैसे तो सभी राज्यों की उन्नती, शांति, स्थिरता और विकास, भारतीयता का प्रतीक होना चाहिये।

(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, सामरिक अन्तरराष्ट्रीय कूटनीतिक, दूरदर्शन व्यक्तित्व, मानवाधिकार संरक्षण सॉलिसिटर व परोपकारक)