प्रमोद भार्गव
किसी भी देश की सबसे बड़ी पूंजी उसकी युवा आबादी होती है। यह सुखद है कि विश्व की सबसे बड़ी युवा जनसंख्या भारत में है। आधे नागरिक 25 वर्श से कम आयु के हैं। इसीलिए नरेंद्र मोदी जब से प्रधानमंत्री बने हैं, तभी से वे इस युवा ऊर्जा को नावाचार से जोड़ने के प्रयास में लगे हुए हैं। इसमें सफलता भी मिली है। इसी का नतीजा है कि देश दुनिया की चौथी सबसे ब्रड़ी अर्थव्यवस्था बनकर एक उभरती हुई वैश्विक आर्थिक षक्ति बन चुका है। अब युवा जनसांख्यिकीय ताकत को पंचायतीराज में शिक्षित युवाओं के समावेशीकरण की दृश्टि से एक अनूठी नवाचारी पहल पंचायती राज मंत्रालय ने की है। इसमें जनजातीय कार्य मंत्रालय और शिक्षा विभाग का भी सहयोग लिया जा रहा है। इसके अंतर्गत ‘आदर्श युवा ग्रामसभा‘ यानी मॉडल यूथ ग्रामसभा (एमवायजीएस) एक ऐसी पहल है, जो युवाओं में लोकतांत्रिक भागीदारी और नेतृत्व को प्रेरित करती है। ये युवा ग्रामों में जमीनी लोकतंत्र की भावना को न केवल मजबूती देंगे, अपितु त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में शामिल होकर नवीन डिजिटल माध्यमों से ग्राम पंचायत प्रशासन को पारदर्शी बनाने के साथ, उन्हें आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने का काम भी करेंगे। इस व्यवस्था को तीनों विभागों ने तालमेल बिठाकर 30 अक्टूबर 2025 को शुभारंभ भी कर दिया है।
त्रिस्तरीय पंचायती राज में सरपंच, जनपद अध्यक्ष और जिला पंचायत अध्यक्ष से कहीं ज्यादा संवैधानिक महत्व ग्राम सभाओं का है। हालांकि कमोबेश पूरे देश में ग्राम सभाओं को नजरअंदाज किया जाता है। कलेक्टर और जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी भी ग्राम सभाओं के कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रस्तावों को टाल देते हैं। ग्राम सभाओं की इस कानूनी बाध्यता को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए वेदांता जैसी खनिज उत्खनन की बहुराश्टीय कंपनी और ओड़ीसा राज्य सरकार के मामले में 2013 में दिए गए एक फैसले से जानते हैं। षायद देश में ऐसा पहली बार हुआ था कि पंचायतराज और ग्रामसभा के अधिकारों की कितनी अहम् भूमिका ग्राम विकास में अतंनिर्हित है। पंचायत और वनाधिकार कानून की यह न्यायिक व्याख्या ऐसी राज्य सरकारों के लिए एक सबक है, जो इन कानूनों को ताक पर रखकर मनमानी करती हैं। इस दृश्टि से ओड़ीसा की नियमगिरी की पहाड़ियों पर सर्वोच्च न्यायालय ने बॉक्साइट के उत्खनन की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। यहां गौरतलब है कि न्यायालय ने खुद व्यापार की कोई नई कानूनी संहिता नहीं रची थी, बल्कि अदालत ने पहले से ही प्रचलन में आए ‘पंचायती राज अनुसूचित क्षेत्र विस्तार अधिनियम’ (पेसा) और आदिवासी एवं अन्य वनवासी भूमि अधिकार अधिनियम ;वनाधिकार कानून में तय मानदण्डों के आधार पर ही अपना फैसला दिया था। अदालत ने केवल यह रेखांकित किया था कि इन कानूनों के तहत आदिवासी क्षेत्रों में स्थानीय खनिज संपदाओं के उपयोग के संबंध में ग्रामसभाएं पूरी तरह अधिकार संपन्न हैं और उनकी अनुमति के बिना कोई कंपनी या राज्य सरकार बेज़ा दखल नहीं दे सकती है। साथ ही, कार्यपालिका ग्रामसभा के निर्णय को मौके पर पालन कराने के लिए बाध्यकारी है। इस फैसले के बाद वेदांता समूह को मिले खनन के अधिकार पर ग्रहण लग गया था। इससे गांव में जमीन पर सामुदायिक हक किसका है, यह निर्धारित करने का निर्णय ग्राम सभाओं को मिल गया था। इससे पहले इसी आधार पर 2009 में अरावली पर्वत श्रृंखलाओं में खनन पर रोक लगा चुकी थी। ग्राम सभाओं के इसी महत्व को अंगीकार करते हुए कर्नाटक के बेल्लारी, तुमकुर और चित्रांगदा जिलों में लौह अयस्क उत्खनन के 50 पट्टे भी शीर्ष न्यायालय ने रद्द कर दिए थे। अदालत के इस लोकतांत्रिक एवं जनहितैषी कानून सम्मत फैसले से इस अवधारणा को शक्ति मिली थी कि जिन मूल निवासियों के संसाधनों पर परियोजनाएं स्थापित होनी हैं, उन्हें लगाने या न लगाने का अधिकार पंचायत अधिनियम में दर्ज ग्राम सभाओं को है। ग्राम सभाएं निर्णय लेने को पूरी तरह स्वतंत्र हैं। चूंकि आदर्श युवा ग्राम सभाओं में ऐसे विद्यार्थियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के अंतर्गत गतिविधि आधारित और अनुभवजन्य शिक्षा पर बल देती है। इस प्रशिक्षण का लक्ष्य छात्रों में संवैघानिक मूल्यों, दायित्वों के प्रति सम्मान के साथ देश के प्रति भावनात्मक जुड़ाव विकसित करना है। इसीलिए इन आदर्श युवा ग्राम सभाओं में जवाहर नवोदय विद्यालय, एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय और अन्य सरकारी विद्यालयों के नवीं एवं दसवीं के छात्रों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। क्योंकि यही संस्थान समाज के विविध वर्गों का प्रतिनिधित्प करते है। अतएव इस पहल का दायरा सभी ग्रामीणों से लेकर जनजातीय समुदाओं तक फैला हुआ है। चूंकि संविधान के 73वें संशोधन ने पंचायती राज व्यवस्था में अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग के आरक्षण के साथ इन समुदायों की महिलाओं को भी आरक्षण की सुविधा प्राप्त है। इसीलिए ग्राम पंचायतों को भारत की विविधता का वास्तविक प्रतिबिंब माना जाता है।
निश्चित ही यह लोक-कल्याणकारी निर्णय ग्रामीण जनसमूहों में चेतना का आधार बनेगा और ग्राम विकास में ग्राम सभा की भूमिका मजबूत होगी। साथ ही इस ऐतिहासिक फैसले के परिप्रेक्ष्य में राज्य सरकारों और उद्योगपतियों को यह संदेश लेने की जरूरत है कि वे अब अपेक्षाकृत ज्यादा मानवीय और समावेशी विकास की पक्षधर दिखें ? तभी विकेंद्रीकृत पंचायती राज प्रणाली में कानून की सार्थकता सिद्ध होगी।
युवाओं द्वारा स्वप्न देखना स्वाभाविक लक्षण है। लेकिन प्रचार के जरिए देश में माहौल कुछ ऐसा बना दिया गया है कि सरकारी अथवा निजी क्षेत्र में नौकरी करना ही जीवन की सफलता है। परंतु यह प्रयोग प्रशिक्षित युवा वर्ग में निर्वाचन के जरिए पंचायती राज व्यवस्था में प्रशासनिक अधिकार प्राप्त कर लेने की उम्मीद जगाता है। यदि इन युवाओं को पर्याप्त अवसर मिलते हैं, तो उनमें पंचायती राज की कमियों को दूर करने की क्षमता तो दिखाई देगी ही, वे आलोचनात्मक सोच के माध्यम से चुनौतियों की पहचान कर उनके उचित समाधान के प्रति भी प्रतिबद्ध दिखाई देंगे। चूंकि ये शिक्षित होंगे, इसलिए समकालीन मुद्दों पर नई दृश्टि से विचार करेंगे और समाज को संवाद से प्रेरित करेंगे। अतएव कह सकते हैं कि युवा सरकारी नौकरी पाने की बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में नवाचार एवं स्वालंबन का बड़ा आधार बनेंगे। पंचायती राज में इन युवाओं की भूमिका इसलिए भी अहम् रूप में रेखांकित होगी, क्योंकि अब वर्तमान नीतिगत तकनीकी उपायों और कृत्रिम बुद्धि कंप्यूटर से चलने वाले प्रशासन के जरूरी हिस्सा हो गए हैं। इनका सही इस्तेमाल निरीक्षण और अशिक्षित पंचायत प्रतिनिधि की बजाय सुशिक्षित एवं तकनीक का जानकार निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधि कहीं ज्यादा कारगर एवं परिणाम मूलक उपयोग कर पाएंगे। अतएव आदर्श युवा ग्राम सभा एक रूपांतरणकारी दौर से गुजरेगी और इस स्थानीय शासन-प्रशासन व्यवस्था में लोकतांत्रिक मूल्य मजबूत होंगे। भारत जब दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में चल पड़ा है, तब पंचायती राज की लोकतांत्रिक नींव को मजबूत करना जरूरी हो जाता है।





