अपराधों की एफआईआर दर्ज होना जरूरी

It is necessary to register FIR of crimes

इंद्र वशिष्ठ

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि कानून व्यवस्था मजबूत बनाने के लिए अपराधों का दर्ज होना ज़रूरी है, इसलिए एफआईआर दर्ज करने में किसी तरह की देरी नहीं होनी चाहिए। देशवासियों को त्वरित व पारदर्शी न्याय प्रणाली देने के लिए सरकार संकल्पित है।

एफआईआर दर्ज न करना अपराध हो- गृह मंत्री अगर अपराधों को दर्ज कराने को लेकर वाकई गंभीर हैं, तो एफआईआर दर्ज न करने को दंडनीय अपराध घोषित किया जाना चाहिए। अपराधों को दर्ज न करने वाले पुलिस अफसर के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज किए जाने का कानून बनाया जाना चाहिए।

मिसाल बनाएं- गृहमंत्री को सबसे पहले दिल्ली में ही यह सुनिश्चित करना चाहिए, कि सभी अपराधों की सही और बिना देरी के एफआईआर दर्ज हो। दिल्ली में ऐसा कमाल करके वह देश भर की पुलिस के सामने मिसाल पेश कर सकते हैं।

कथनी और करनी में अंतर- नए आपराधिक कानूनों से लोगों को क्या वाकई न्याय जल्द मिलेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन इस नए कानून का एक प्रावधान सरकार के दावों की पोल खोलने के लिए काफी है। इससे सरकार की कथनी और करनी में अंतर साफ़ नज़र आता है।

एसएचओ के रहमोकरम पर- नए कानून के अनुसार अब अपराध के कुछ मामलों में तो एफआईआर दर्ज करना या ना करना सब एसएचओ के विवेक/मर्जी पर निर्भर होगा। अपराध के कुछ मामलों में अब एसएचओ प्रारंभिक जांच करके यह तय करेगा, कि एफआईआर दर्ज की जाए या नहीं। पुराने कानून में अपराध के हर मामले में एफआईआर दर्ज करना कानूनन अनिवार्य था। लेकिन अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के नए कानून 173(3) के अनुसार जिस संज्ञेय अपराध में सज़ा तीन साल या उससे ज्यादा लेकिन सात साल से कम है। ऐसे मामले में डीएसपी स्तर के अफसर की पूर्व अनुमति से प्रारंभिक जांच करके ही एसएचओ यह तय करेगा, कि एफआईआर दर्ज की जाए या नहीं। यानी उसकी समझ से जो मामला सही होगा है, तभी वह‌ एफआईआर दर्ज करेगा। यानी अब ऐसे हर मामले में एफआईआर दर्ज करना कानूनन अनिवार्य नहीं होगा।

भ्रष्टाचार बढ़ेगा- इस नए प्रावधान से तो पुलिस में भ्रष्टाचार पहले से भी ज्यादा बढ़ेगा। पुलिस को पीड़ित और आरोपी दोनों से पैसा वसूलने का पहले से ज्यादा मौका मिल जाएगा। पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने में मनमानी भी पहले से ज्यादा बढ़ेगी।
अब ऐसे में पीड़ित/शिकायतकर्ता के लिए एफआईआर दर्ज कराना ही पहले से भी ज्यादा मुश्किल हो जाएगा। जब उसकी एफआईआर ही दर्ज नही होगी ,तो भला उसे न्याय कहां से मिलेगा।

संवेदनहीन पुलिस- गृहमंत्री के अन्तर्गत आने वाली दिल्ली पुलिस द्वारा महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने और एफआईआर आसानी से दर्ज किए जाने का दावा किया जाता है। लेकिन महिला पहलवानों को कुश्ती संघ के अध्यक्ष भाजपा के तत्कालीन सांसद बृज भूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ यौन शोषण/ उत्पीड़न की एफआईआर दर्ज कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगानी पड़ी थी।

जबकि आईपीसी की धारा 166 ए (सी)में साफ कहा गया था कि महिला के खिलाफ अपराध के मामले में एफआईआर दर्ज न करना दंडनीय अपराध है। महिला की एफआईआर दर्ज न करने पर पुलिसकर्मी के खिलाफ आईपीसी की धारा 166 ए(सी) के तहत एफआईआर दर्ज करने का कानून था। यह कानून निर्भया गैंगरेप कांड के बाद साल 2013 में बनाया गया था।
पुलिस राज का खतरा – ऐसे में अब इस नए कानून की आड़ में अपराध के कुछ मामलों में शुरुआती जांच के आधार/नाम पर एफआईआर दर्ज न करने के लिए पुलिस को एक तरह से कानूनी रूप से छूट मिल गई। शिकायतकर्ता से सीधे मुंह बात तक न करने के लिए बदनाम पुलिस अब और ज्यादा निरंकुश हो जाएगी। लोकतंत्र और सभ्य समाज के लिए पुलिस राज खतरनाक होता है।

आंकड़ों की बाजीगरी- सच्चाई यह है कि अपराध को आंकड़ों की बाजीगरी के माध्यम से कम दिखाने के लिए पुलिस में पहले से ही अपराध के सभी मामलों को सही दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज करने की परंपरा है। लोगों को एफआईआर दर्ज कराने के लिए अदालत तक में गुहार लगानी पड़ती है। अपराध को दर्ज ना करके तो पुलिस एक तरह से अपराधियों की ही मदद करने का गुनाह ही करती है।

पुलिस के हथकंडे- सच्चाई यह है कि पुलिस अपराध कम दिखाने के लिए डकैती/लूट, स्नैचिंग/झपटमारी, चोरी/जेबकटने/ठगी आदि अपराधों के ज्यादातर मामलों को भी या तो दर्ज ही नहीं करती या हल्की धारा में दर्ज करती है। हत्या तक के मामले में भी एफआईआर दर्ज नहीं करने के मामले भी इस पत्रकार ने उजागर किए हैं। दिल्ली में पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से क्राइम रिपोर्टिंग के दौरान इस पत्रकार ने ऐसा ही होते हुए देखा है और ऐसे अनगिनत मामले खबरों के माध्यम से उजागर किए है। जब देश की राजधानी में गृह मंत्री के अन्तर्गत आने वाली पुलिस का यह हाल है तो देश भर का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है।

एक ही रास्ता- अपराध और अपराधियों पर नियंत्रण करने का सिर्फ और सिर्फ एकमात्र रास्ता अपराध के सभी मामलों की सही एफआईआर दर्ज करना ही है। अभी तो हालत यह है कि मान लो अगर कोई लुटेरा पकड़ा गया, जिसने लूट/छीना झपटी की 100 वारदात करना कबूल किया है। लेकिन एफआईआर सिर्फ दस-बीस वारदात की ही दर्ज पाई गई। अगर पुलिस सभी मामलों में एफआईआर दर्ज करे, तो अपराधी ज्यादा समय तक जेल में रहेगा। अपराधी को हरेक मामले में जमानत कराने और मुकदमेबाजी के लिए वकील को पैसा देना पड़ेगा, जिससे वह आर्थिक रूप से भी कमज़ोर हो जाएगा। ज्यादा मामलों में शामिल होने के कारण उसे जमानत भी आसानी से नहीं मिलेगी। अपराधी के अंदर सज़ा मिलने का डर बैठेगा।

पुलिस अगर अपराधों की सही एफआईआर दर्ज करें, तभी अपराध और अपराधियों की सही तस्वीर भी सामने आ पाएगी। तभी अपराध और अपराधियों से निपटा जा सकता है।

न्याय की बुनियाद एफआईआर-
आपराधिक न्याय प्रणाली की बुनियाद ही एफआईआर पर टिकी हुई है। लेकिन जब एफआईआर आसानी से दर्ज ही नहीं होगी या पुलिस की मनमर्जी से दर्ज होगी, तो भला न्याय कैसे मिलेगा।

कड़ी निगरानी- नए कानूनों से सभी को खासकर गरीब को न्याय मिले, पीडितों/शिकायतकर्ता के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार को कोई ठोस व्यवस्था भी बनानी चाहिए। नए कानूनों की आड़ में पुलिस निरंकुश न हो जाए। कानूनों को लागू करने में पुलिस पूरी ईमानदारी/ जिम्मेदारी और सावधानी बरतें। यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार को गंभीरता से कड़ी निगरानी की व्यवस्था भी करनी चाहिए।

(इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1989 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)