हरे भरे पेड

lush green tree

हरीशचंद्र पाण्डे

पेड़ केवल हरियाली ही नहीं देते ये उससे भी अधिक योगदान देते है लोगो का जीवन बनाने और संवार कर निखारने में ।आज हर जगह पानी की कमी और बरसात की कमी की चिंता व्यक्त की जा रही है।इसका सरल उपाय है।हरियाली को बढाओ।
पेड़ो का महत्व हर किसी को समझना होगा। जब तक हम इसे नहीं समझेंगे तक पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बढ़ाया हुआ कदम सार्थक नहीं होगा।

ऑक्सीजन एक प्राकृतिक गैस है, जो जीवों के जीवन के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह वह गैस है जो जीवों के श्वसन के लिए बहुत ही आवश्यक है। ऑक्सीजन के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं होगा। पौधे ही हमारे जीवन के लिए एकमात्र ऑक्सीजन के प्रदाता के रूप में जाने जाते है। वो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपने खाद्य प्रक्रिया के उत्पादन में हमारे लिए ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं।

एक व्यक्ति चौबीस घंटे में औसतन पांच सौ लीटर आक्सीजन का उपयोग करता है। जबकि एक पेड़ इतने ही समय में पचास से साठ लीटर आक्सीजन उत्सर्जित करता है। इस तरह से प्रत्येक व्यक्ति को इस धरा पर जीवित रहने के लिए उसके हिस्से की आक्सीजन आपूर्ति के लिए दस पेड़ चाहिए। इसलिए तो आज सारे संसार मे पर्यावरण संरक्षण को समझ कर ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने की मुहिम चल पड़ी है ।वृक्ष हमारे पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने के साथ मित्र भी हैं, क्योंकि सच्चा मित्र की मित्रता निस्वार्थ होती है। ऐसी ही पेड़-पौधे होते हैं। वे निस्वार्थ रूप से हमको ऑक्सीजन, फल, लकड़ी देते हैं। इन्हें बचाए रखने का हम लोगों का परम कर्तव्य है। वृक्ष से ही समय पर वर्षा होती है जो कृषि कार्यों में सहायक होती है ।हरे भरे समृद्ध जंगल ही
समस्त जीवों के जीवन का मूल आधार है। प्रकृति का संरक्षण एवं संवर्धन जीव जगत के लिए बेहद ही अनिवार्य है। प्रकृति पर ही पर्यावरण निर्भर करता है। गर्मी, सर्दी, वर्षा आदि सब प्रकृति के सन्तुलन पर निर्भर करते हैं। यदि प्रकृति समृद्ध एवं सन्तुलित होगी तो पर्यावरण भी अच्छा होगा और सभी मौसम भी समयानुकूल सन्तुलित रहेंगे। यदि प्रकृति असन्तुलित होगी तो पर्यावरण भी असन्तुलित होगा और अकाल, बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प आदि अनेक प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं कहर ढाने लगेंगी। प्राकृतिक आपदाओं से बचने और पर्यावरण को शुद्ध बनाने के लिए पेड़ों का अधिक से अधिक संरक्षण और पौधारोपण जरूरी है ।

पृथ्वी पर कई तरह के पेड़-पौधे मौजूद हैं। ये पौधे पृथ्वी पर सबसे महत्वपूर्ण जैविक कारक के रूप में उपस्थित हैं। धरती के द्वारा प्रदान की गयी ये एक अनमोल उपहार के रूप में है। पेड़ के रूप में ये पृथ्वी पर कई जीवों के घर के रूप में हैं। प्रकृति के इस अनमोल इकाई का लगातार भारी विनाश वास्तव में बहुत दुःख और चिंता का विषय है। हमें अपने जीवन और इस पृथ्वी की रक्षा के लिए इन पेड़ों के विनाश के बारे में कुछ गहनीय चिंता करने की आवश्यकता हैं।पौधों को सुख, शांति, समृद्धि एवं संतति प्राप्ति का आधार स्तम्भ माना गया है। पेड़ लगाने से तमाम वास्तुदोष दूर हो जाते हैं और अनेक दिव्य पुण्यों और लाभों की प्राप्ति होती है। औषधीय पौधे धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक रूप में भी बेहद लाभदायक हैं। पुराणों में वृक्षों के पूजन और उनके महत्व का अपार वर्णन मिलता है। तुलसी, अनार, शमी, पीपल, केला, हरसिंगार, गुड़हल, श्वेत आक, कमल, मनीप्लांट, अशोक, आंवला, अश्वगंधा, नारियल, नीम, शतावर, बिल्व, बरगद, गुलर, बहेड़ा, नींबू आदि अनेक तरह के औषधीय पौधे जहां धार्मिक अनुष्ठानों में पुण्यदायी माने गए हैं, वहीं अनेक रोगों के निवारण में भी रामबाण सिद्ध होते हैं। ब्रह्माण्ड पुराण में धन की देवी लक्ष्मी को कदंबवनवासिनी के रूप में अलंकृत किया गया है। कदंब के पुष्पों से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

भगवान विष्णु को बालरूप में वटपत्रशायी के रूप में उद्बोधित किया जाता है। बृहदारण्यक उपनिषद में पुरूष को वृक्षस्वरूप माना गया है।नीम ,पीपल,सेमल, इमली, अमरूद, गुलमोहर, पलाश, अमलतास आदि को खुले मैदानो और जंगलो मे रोपकर बस एक दो साल की देखभाल चाहिए, फिर तो ये अपना ख्याल खुद रख लेते है इतना ही नही पंछियो को मुफ्त का घर भी देते है ।इंसान हो या पशु-पक्षी हर किसी को आक्सीजन की जरूरत होती है। बिना आक्सीजन के व्यक्ति एक क्षण भी नहीं जीवित रह सकता है इसलिए आक्सीजन बनाने के लिए पौधों का होना अत्यंत आवश्यक है। इसकी महत्ता को हर किसी को समझना होगा। जब तक हर व्यक्ति के अंदर पेड़-पौधों का आदर नहीं होगा तब तक पर्यावरण प्रदूषित होता जाएगा और इंसान के लिए खतरे की घंटी तेज होती जाएगी।जिंदगी के हर मोड़ पर पौधों की जरूरत पड़ती है। चाहे वह हवा की हो, पानी की हो, छाया की हो या फिर उसके फल व लकड़ी की बात हो। उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो अगर आप एक आम का पौधा लगाते हैं तो उसका फल आप के साथ आपके परिवार के लोग खाते हैं लेकिन उससे छाया कई इंसान और पशु लेते हैं। कई पक्षियों का आशियाना भी उसी पेड़ पर होता है। आज जो प्रदूषण बढ़ रहा है अगर पर्याप्त संख्या में पौधे लगें तो इसके दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है।अगर गौर से महसूस करे तोआज की बिगड़ते हालत के लिए मुख्य रूप से हम सभी जिम्मेदार है।

धरती की हरियाली और खुशहाली लौटाने का मुद्दा, आम इंसान की नैतिक जिम्मेदारी से जुड़ा है। जीव-जन्तु, पेड़-पौधे, जल-जंगल-जमीन-मिट्टी-नदिया यानी पूरी कुदरत से मनुष्यों का आत्मिक संबध है। मनुष्य को अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझनी चाहिए और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करना चाहिए। इंसान अपनी जीवनशैली को आरामदायक बनाने जो अनुसंधान किया उससे प्रकृति और धरती पर चौतरफा हमला हुआ।हमको अपने तरीके से सामाजिक जागृति लाने की वकालत करनी चाहिए। और प्लास्टिक के उपयोग को त्याग देना चाहिए । पृथ्वी का अधिकांश भाग प्लास्टिक कूड़े के रूप में तब्दील होता जा रहा है जो भूमि को बंजर बना रहा है।

हमने हर राष्ट्रीय पर्व पर धरती की खूबियों के गाने सुने। लेकिन उनसे कुछ सीखा क्या? क्या धरती के प्रति हमारे नजरिए में कोई सद्भावना, कृतज्ञता या विन्रमता का भाव उपजा? शायद उसी वजह से एक कहावत चल निकली- सीख उसे ही दीजिए, जिसे सीख सुहाय। कहने का मतलब कि हमने अब धरती से सीखना बंद कर दिया है।हमारे ज्ञान-ग्रंथों में जो कुछ सीखने के लिए है, अगर उसे अमल में लाया जाए तो जिंदगी धरती की तरह विनम्र, धैर्यवान, ममता से युक्त, परहितकारी और हमेशा जीती-जागती बन जाएगी। लेकिन, हम धरती से सीखना ही नहीं चाहते। न तो हवा, पानी, पेड़, वक्त या चिड़ियों से। शायद सीखने की हमारी अच्छी आदत सोशल मीडिया के चकाचैध में कहीं गुम हो गई है। हम धरती से पाना तो बहुत चाहते हैं, लेकिन लौटाना बिल्कुल नहीं। बिडंबना यह कि हमारे अंदर शिकायतों की इतनी लंबी सूची तैयार हो गई है कि उनका समाधान शायद कोई कर पाए।

याद हैं कालिदास की शकुंतला के वे उद्गार, जो उन्होंने अपने बगीचे के पौधों में पानी देते हुए कहा था- मेरा फूलों से, हवा मेरा फलों से, झरने से, जल से और यहां की मिट्टी से मेरे बचपन का संबंध है। मैंने इनसे बहुत कुछ सीखा है। क्योंकि इनके साथ ही वे खेल-कूद कर इतनी बड़ी हुई हैं। हम सबकी जिंदगी भी धरती मां के आंचल में ही पली-पढ़ी। लेकिन मां की ममता, उसकी हिफाजत का ढंग और उसका आह्लादित कर देने वाला वात्सल्य हम विकास के हिचकोलों में भूल गए। धरती मां आज भी पुकार रही है, कभी कान लगा कर सुनो। धरती कह रही है कि बदले वक्त में हम धरती को कितना खास तवज्जो देते हैं। जिस धरती को भारतीय ऋषि-मुनि ‘मां’ कह कर इज्जत देते थे और उसके संरक्षण के लिए अपना फर्ज पूरा करने की बात करते थे, उस धरती के प्रति हमारा नजरिया ऐसा बदल गया कि यह एक मामूली चीज जैसी भी नहीं रही? शायद यही वजह है कि धरती पर सब कुछ धीरे-धीरे बदल रहा है।साफ हवा को तवज्जो देना बंद किया, जिससे पर्यावरण का सत्यानाश हो गया। साफ पानी को तवज्जो देना छोड़ दिया, साफ पानी पीने के लाले पड़ गए। धरती की उर्वराशक्ति का संरक्षण करना छोड़ दिया, धरती बंजर हो गई।

आज अंधाधुंध हरे भरे पेड़ की कटाई से यह हाल हुआ है कि पर्यावरण पूरी तरह से दूषित हो गया है। जिसका दुष्परिणाम देखने को भी मिल रहा है। वेदो मे कहा गया है कि एक वृक्ष लगाना कई संतानों के बराबर होता है। इसके अलावा समाज के नागरिक चौकस रहे और अपने स्तर पर वृक्षों की कटाई को रोकने के लिए प्रभावी कार्रवाई करें। लोग यह शपथ लें कि हम अपने जीवन में पांच पौधे लगाएं और उनकी पांच साल तक देखभाल करें।इससे हरितिमा फैलने लगेगी।