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गोपेन्द्र नाथ भट्ट
शुक्रवार 21 फरवरी को पूरी दुनियां में अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया गया । इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2025 का विषय ‘अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का रजत जयंती समारोह’ रखा है। वर्ष 2024 में इसकी थीम ‘बहुभाषी शिक्षा अंतर-पीढ़ीगत शिक्षा का एक स्तंभ है।’ और वर्ष 2023 की थीम ‘बहुभाषी शिक्षा – शिक्षा को बदलने की आवश्यकता’ रखी गई थी। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2019 को स्वदेशी भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया था। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2022 और वर्ष 2032 के मध्य की अवधि को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय दशक के रूप में नामित किया हैं। बावजूद इसके अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की रजत जयंती पर भी राजस्थानी भाषा देश के सबसे बड़े प्रदेश की दूसरी राजभाषा बनने के अधिकार से वंचित हैं। चुभने वाली बात यह है कि इस मामले ने राज्य सरकार की चुप लोगों की भावनाओं को सताने लगी हैं।
आज दुनिया भर में लगभग 7,000 भाषाएँ मौजूद हैं। यूनेस्को के अनुसार, दुनिया भर में 8,324 भाषाएं एवं बोली हैं । भारत में 1635 मातृभाषाएं और 234 पहचान योग्य मातृभाषाएं हैं, लेकिन आज भाषाई विविधता खतरे में है, क्योंकि हमारी तेजी से बदलती दुनिया में कई भाषाएं तेजी से लुप्त हो रही हैं।
दुर्भाग्य से राजस्थान के करीब आठ करोड़ और देश विदेश के करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाने वाली राजस्थानी भाषा का हश्र भी ऐसा ही होने की संभावना उत्पन्न हो गई है क्योंकि स्वतंत्रता के बाद 75 वर्षों से न तो भारत सरकार इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दे रही है और नहीं नई शिक्षा नीति और शिक्षा के अधिकार के अनुच्छेद 345 के अनुरूप राजस्थान सरकार इसे प्रदेश की राजभाषा का दर्जा दे रही हैं। भारत में शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के अनुसार शिक्षा का माध्यम, जहां तक संभव मातृभाषा होनी चाहिए। हम ज्यादा से ज्यादा भाषाएं सीखें लेकिन अपनी मातृभाषा को कभी भी नहीं भूलें। मातृभाषा को संरक्षित रखना बहुत ही महत्वपूर्ण और जरूरी है क्यों कि किसी भाषा के नष्ट होने से संचार और विरासत प्रभावित हो सकती है, क्योंकि भाषाओं में सांस्कृतिक पहचान, रीति-रिवाज और ज्ञान निहित होता है।संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के अनुसार, हर दो सप्ताह में एक भाषा विलुप्त हो जाती है और विश्व एक पूरी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत खो देता है। कहना चाहूंगा कि वैश्वीकरण के कारण, बेहतर रोजगार के अवसरों के लिए विदेशी भाषाओं को सीखने की होड़ मातृभाषाओं के लुप्त होने का एक प्रमुख कारण है। दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 6000 भाषाओं में से कम से कम 43 प्रतिशत लुप्त प्राय हैं। 85 संस्थाओं और विश्वविद्यालयों के तीन हजार विशेषज्ञों के पीपुल्स लिंग्युस्टिक सर्वे आफ इंडिया (पीएलएसआई) के अध्ययन के अनुसार पिछले 50 वर्षों के दौरान 780 विभिन्न बोलियों वाले देश की 250 भाषाएँ लुप्त हो चुकी हैं। इनमें से 22 अधिसूचित भाषाएं हैं।केवल कुछ सौ भाषाओं को ही वास्तव में शिक्षा प्रणालियों और सार्वजनिक डोमेन में जगह दी गई है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ‘मातृभाषा होठों पर मिठास है।’ दूसरी भाषा का होना दूसरी आत्मा का होना है और मातृभाषा हमारी असली आत्मा है।
मातृभाषा यानी कि हमारी अपनी मां की बोली।मातृभाषा मतलब वह भाषा, जिसे हम जन्म लेने के बाद सबसे पहले सीखते हैं। सरल शब्दों में कहें तो मातृभाषा ‘मां की गोद’ की भाषा होती है। मां-बोली, मां-बोली होती है, जिसका स्थान दुनिया की अन्य कोई भी भाषा कभी भी नहीं ले सकती है, क्यों कि यह हमारी मातृभाषा ही होती है, जो हमारी क्षमताओं को अच्छी तरह से उजागर करने की अभूतपूर्व क्षमताएं रखतीं हैं। शायद यही कारण है कि मातृभाषा शिक्षा हर बच्चे की क्षमताओं को उजागर करने की कुंजी कहा जाता है।हिन्दी हम सबकी आधिकारिक राज भाषा है। जन-जन की भाषा है।हमारी मातृभाषा है। यह सरल, सुबोध,सहज व वैज्ञानिक शब्दावली लिए विश्व की एक सिरमौर भाषा है। साथ ही राजस्थानी राजस्थान प्रदेश की मातृभाषा लेकिन उसे वह सम्मान नहीं मिल पा रहा है जिसकी वह हकदार है।
वास्तव में भाषा किसी भी देश व समाज की संस्कृति का केंद्रीय बिंदू होती है। कहना ग़लत नहीं होगा कि मातृभाषा मात्र अभिव्यक्ति या संचार का ही माध्यम नहीं होती है,अपितु यह हमारी संस्कृति और संस्कारों की सच्ची संवाहिका भी होती है। मातृभाषा हमारी असली पहचान होती है। भारत को अगर एकता के सूत्र में बांधना है तो हमें अपनी मातृभाषा को उचित सम्मान तो देना ही होगा साथ ही साथ हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व की अनुभूति भी करनी होगी। सच तो यह है कि मातृभाषा से ही हमारे राष्ट्र और समाज के उत्थान का मार्ग प्रशस्त होगा। सच तो यह है कि मातृभाषा मनुष्य के विकास की आधारशिला होती है। यह मातृभाषा ही होती है जिसके माध्यम से ही वह भावाभिव्यक्ति, विचार और विचार-विनिमय करता है। सरल शब्दों में कहें तो मातृभाषा ही किसी भी व्यक्ति के शब्द और संप्रेषण कौशल की उद्गम होती है। यह हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है और देश प्रेम की भावना उत्प्रेरित और संचारित करती है। मातृभाषा सामाजिक व्यवहार एवं सामाजिक अन्तःक्रिया की भी आधार होती है। यही कारण भी है कि प्रायः सभी समाज अपनी शिक्षा का माध्यम भी मातृभाषा को ही बनाते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि मातृभाषा का नष्ट होना राष्ट्र की प्रासंगिकता का नष्ट होना होता है। कोई भी भाषा सीखना ग़लत नहीं होता है लेकिन अपनी मां-बोली को तिरस्कृत और दरकिनार कर अन्य भाषाओं को अपनाना ठीक नहीं है। अंग्रेजी हो या कोई भी अन्य भाषाएं उनका ज्ञान प्राप्त करना एक अच्छा कदम है, लेकिन मातृभाषा का स्थान कोई अन्य भाषा नहीं ले सकती। सच तो यह है कि अपनी मातृभाषा से अलग होकर किसी देश, अस्तित्व, पहचान ही खत्म हो जाती है।
600 मिलियन से अधिक भाषाओं के साथ हिंदी विश्व में तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। साथ ही भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। गौरतलब है कि संविधान के अनुच्छेद 343 के अंतर्गत हिंदी को आधिकारिक उद्देश्यों के लिये अंग्रेज़ी के साथ भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है।इसे 8वीं अनुसूची में भी सूचीबद्ध किया गया है, जिसमें आधिकारिक प्रयोग के लिये मान्यता प्राप्त 22 भाषाएँ शामिल हैं। इसीलिए संविधान में 22 भाषाओं को राष्ट्रीय भाषाओं का दर्जा प्रदान किया गया। देश के विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में बोली जाने वाली ये 22 राष्ट्रीय भाषाएं भारत की विविध और समृद्ध संस्कृति का आधार हैं।इन 22 भाषाओं में क्रमशः बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी शामिल है।जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार 10 हजार से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली 122 भाषाएं हैं। बाकी 10 हजार से कम लोगों द्वारा बोली जाती है। आयरिश भाषाई विद्वान जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन के बाद पहली बार 1898-1928 के बीच भाषाई सर्वे किया गया है। आजाद भारत में पहली बार किए गए इस पहले सर्वें में चार वर्ष लगे। इस रिपोर्ट के अनुसार भाषाई विविधता की दृष्टि से भारत में अरुणाचल प्रदेश सबसे समृद्ध राज्य है, वहाँ 90 से अधिक भाषाएँ बोली जाती है। इसके बाद महाराष्ट्र और गुजरात का स्थान है, जहाँ 50 से अधिक भाषाएँ बोली जाती है। 47 भाषाओं के साथ ओडिशा चौथे स्थान पर है। इसके विपरीत गोवा में सिर्फ तीन भाषाएं बोली जाती हैं तो दादर और नगर हवेली में एक भाषा ’गोरपा’ है, जिसका अब तक कोई रिकार्ड नहीं है। करीब 400 से अधिक भाषाएं आदिवासी और घुमंतू व गैर-अधिसूचित जनजातियाँ बोलती हैं।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा था, “विदेशी माध्यम ने बच्चों की तंत्रिकाओं पर भार डाला है, उन्हें रट्टू बनाया है, वह सृजन के लायक नहीं रहे। विदेशी भाषा ने देशी भाषाओं के विकास को बाधित किया है।“ इसी संदर्भ में भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल कलाम के शब्दों का यहां उल्लेख आवश्यक हो जाता है कि “मैं अच्छा वैज्ञानिक इसलिए बना, क्योंकि मैंने गणित और विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त की।’’ निश्चित ही सशक्त भारत-विकसित भारत निर्माण एवं प्रभावी शिक्षा के लिए मातृभाषा में शिक्षा की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका है।
राजस्थानी भोजपुरी और भोती भाषा की संवैधानिक मान्यता देने के लिए भारत सरकारों ने कई बार इस संबंध में आश्वासन दिए, बहसें हुईं, लेकिन नतीजा शून्य ही रहा। हालांकि बिहार सरकार ने मार्च 2017 में भोजपुरी को द्वितीय भाषा का दर्जा दिया लेकिन राजस्थान सरकार ने आज दिनांक तक राजस्थानी भाषा को प्रदेश की राजभाषा देने दिशा में कभी कोई ठोस प्रयास नहीं किया। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मांग की है कि राजस्थान सरकार को भी उत्तर प्रदेश सरकार की तर्ज़ पर संविधान के अनुच्छेद 345 के तहत स्थानीय भाषा को अधिकारिक भाषा की मान्यता देने पर विचार करे। उन्होंने कहा कि हम आज अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर राजस्थान के विभिन्न जिलों में बोली बोलियों सहित राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को दोहराते हैं। अगस्त, 2003 में हमारी सरकार ने राजस्थान विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा था।
देखना है राजस्थान सरकार कितना शीघ्र राजस्थानी भाषा को अपना असली अधिकार और सम्मान देती है?