चिंताजनक है हीटवेव का बढ़ता स्तर

The increasing level of heat wave is worrying

शिशिर शुक्ला

यह सर्वविदित है कि दिन प्रतिदिन हम और हमारी पृथ्वी वैश्विक तापन की गिरफ्त में कहीं अधिक मजबूती से जकड़ते जा रहे हैं। जलवायु एवं पर्यावरण को लेकर रोज नई-नई रिपोर्टें एवं नई-नई चेतावनियां जारी होती हैं लेकिन समस्या समाधान की ओर एक कदम भी बढ़ाती नजर नहीं आ रही है। हाल ही में यूटा स्टेट यूनिवर्सिटी और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिकों के द्वारा एक शोध किया गया। यह शोध पिछले 40 वर्षों से भी अधिक समय के डाटा को एकत्र करके उसके विश्लेषण पर आधारित है। शोध का निष्कर्ष यह है कि पृथ्वी दिन-ब-दिन गर्म हो रही है और गर्मी के दिनों में चलने वाली हीट वेव अपेक्षाकृत कहीं अधिक धीमी गति से एवं लंबे समय तक मौजूद रहने लगी है। यह जलवायु परिवर्तन का ही दुष्परिणाम है कि गर्मी की जो तीव्रता मई व जून के महीने में हुआ करती थी, आज मार्च में ही आरंभ हो जाती है। रिपोर्ट बताती है कि 1979 से लेकर 2020 तक प्रत्येक दशक में गर्मी की लहरों की गति में लगभग 5 मील प्रतिदिन का ह्रास हुआ है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के द्वारा जारी की गई वैश्विक जलवायु स्थिति रिपोर्ट में वर्ष 2023 को पिछले दस वर्षों के दौरान सर्वाधिक गर्म वर्ष के रूप में बताया गया है। यह कोई नयी बात नहीं है क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग जिस गति से पांव पसार रही है, प्रत्येक अगला वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में कहीं अधिक गर्म दर्ज किया जाएगा। यह जलवायु परिवर्तन का ही असर है कि आज मानसून समय से नहीं आ पाता और इस कारण हमें एक लंबे समय तक हीट वेव से झुलसना पड़ता है।

जब किसी क्षेत्र का तापमान बढ़कर वहां के औसत तापमान से ऊपर चला जाता है तो गर्म हवाएं चलने लगती हैं। इन्हें ताप लहर, हीट वेव अथवा आम बोलचाल की भाषा में लू कहा जाता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के द्वारा दिए गए मानकों के अनुसार तापमान की अधिकतम सीमा मैदानी क्षेत्रों में 40 डिग्री सेल्सियस, पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस एवं तटीय क्षेत्रों में 37 डिग्री सेल्सियस है। तापमान के द्वारा इन सीमाओं को पार करते ही संबंधित क्षेत्र में हीट वेव सक्रिय हो जाती है। 47 डिग्री सेल्सियस के ऊपर तापमान हो जाने पर खतरनाक हीट वेव चलने लगती है। प्राय: हीट वेव अथवा लू की अवधि मार्च से जून तक रहती है। प्रतिवर्ष एक अच्छी खासी संख्या में लोग हीट वेव के कारण जान से हाथ धो बैठते हैं। हीट वेव के कारण हम में से किसी से छिपे नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग हीट वेव का एक प्रमुखतम कारण है। समुद्र के तटीय क्षेत्रों पर हीट वेव्स का गंभीर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। आठ दिनों की अवधि वाली ऊष्मा लहर आज बीस दिन की अवधि वाली गंभीर लू में तब्दील हो चुकी है।

एक अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2025 से 2049 के मध्य लू एवं उससे जनित घटनाओं में पांच गुना की वृद्धि होने की आशंका है। वैश्विक तापन एवं हीट वेव के कारण समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है जो तटीय इलाकों के लिए एक बड़ा खतरा है। ग्लोबल वार्मिंग थमने का नाम नहीं ले रही है और न ही लेगी क्योंकि प्रतिदिन असीमित मात्रा में जीवाश्म ईंधन जल रहा है, असीमित रूप से औद्योगिक गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है और एक सीमा से अधिक वनों का कटान भी जारी है। स्पष्ट है कि ये तीनों गतिविधियां वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को बढ़ाती हैं। कार्बन डाइऑक्साइड धरती के ताप को बढ़ाती है और नतीजा यह होता है कि गर्म हवाएं हर साल न जाने कितनी जिंदगियां को लील लेती हैं। विकास के नाम पर आज द्रुत गति से शहरीकरण हो रहा है। इतनी बड़ी संख्या में आबादी शहरों की ओर पलायन कर रही है कि अब शहरों में भी रहने के लिए जगह नहीं बची है, नतीजतन शहरों से बाहर खेती योग्य भूमि एवं वनों को आवासीय कॉलोनी में परिवर्तित किया जा रहा है। भारी मात्रा में वृक्षों के कटान से पारिस्थितिकीय असंतुलन उत्पन्न हो गया है। वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से पृथ्वी द्वारा उत्सर्जित होने वाले विकिरण पृथ्वी से बाहर नहीं जा पाते बल्कि कार्बन डाइऑक्साइड की परत से परावर्तित होकर पुनः पृथ्वी की ओर लौट आते हैं, लिहाजा पृथ्वी का औसत तापमान लगातार बढ़ता ही जा रहा है। तापमान में होने वाली यह निरंतर वृद्धि हीट वेव को जन्म देती है। हीट वेव शरीर के लिए बेहद घातक होती हैं।

हीट स्ट्रोक से शरीर के तापमान में वृद्धि, शरीर में ऐंठन होना, बुखार, उल्टी, थकान, चक्कर आना आदि दिक्कतें होने लगती हैं। यदि स्ट्रोक अधिक जोरदार है तो व्यक्ति की मृत्यु तक हो जाती है। एक अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन से सदी के अंत तक 1.15 करोड लोग गर्मी के कारण मौत के मुंह में समा जाएंगे।

ऐसा कहा गया है कि अमेरिका व यूरोप में स्थापित तेल कंपनियों से अत्यधिक मात्रा में कार्बन उत्सर्जन हो रहा है। इनके द्वारा उत्पादित जीवाश्म ईंधन वर्ष 2050 तक वायुमंडल में 51 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का कारण बनेगा। आंकड़े इंगित करते हैं कि प्रत्येक मिलियन टन कार्बन में बढ़ोतरी से पूरे विश्व में 226 अतिरिक्त हीट वेव की घटनाएं बढ़ेगी। जर्नल अर्थ सिस्टम साइंस डेटा में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में 36.8 अरब मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ है। एक खास बात यह है कि वैश्विक तापन के लिए तेल, गैस, कोयला एवं सीमेंट से जुड़ी 57 कंपनियों का 80 प्रतिशत योगदान है। इन कंपनियों में जो शीर्ष पर हैं, उनमें तीसरा नाम भारत की कंपनी कोल इंडिया का है। 2016 से 2022 तक के आंकड़े कहते हैं कि एशिया के देशों में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन हेतु सर्वाधिक योगदान कंपनियों का है। इस अवधि में चीन के कोयले की कुल कार्बन उत्सर्जन में हिस्सेदारी एक चौथाई से अधिक हो गई है। इतना निश्चित है कि यदि स्थितियां इसी तरह से बिगड़ती रहीं तो भविष्य में हीट वेव एक बेहद गंभीर मसले के रूप में सामने खड़ा होगा। इस समस्या की ओर व्यक्ति से लेकर विश्व स्तर पर प्रत्येक दशा में गंभीरतापूर्वक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु समिति के अनुसार यदि पृथ्वी के ताप को 1.5 डिग्री सेल्सियस से आगे नहीं बढ़ने देना है तो हर हालत में 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 43 प्रतिशत तक घटाना होगा। कार्बन उत्सर्जन इतनी आसानी से घटने वाला नहीं है क्योंकि आज वैश्विक परिदृश्य इस स्थिति में जा पहुंचा है कि न तो औद्योगीकरण को धीमा किया जा सकता है और न ही यातायात को। किंतु फिर भी हम जहां भी संभव हो और जिस प्रकार से संभव हो कार्बन उत्सर्जन को घटाने की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। उदाहरण के लिए हम पेट्रोल व डीजल से चलने वाले वाहनों के स्थान पर शून्य उत्सर्जन वाले इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग करें और उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट के उचित प्रबंधन पर विचार किया जाए।इसके अतिरिक्त सबसे महत्वपूर्ण कदम यह है कि हम अनावश्यक रूप से वृक्षों एवं वनों को काटना तुरंत बंद करें। एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में प्रति मिनट औसतन दस फुटबॉल मैदान के आकार के बराबर उष्णकटिबंधीय जंगल समाप्त हो रहे हैं। वर्ष 2023 के दौरान पूरे विश्व में 37 लाख हेक्टेयर में फैले हुए जंगल नष्ट हो गए, वहीं भारत में वर्ष 2023 में 21672 हेक्टेयर जंगलों का विनाश हुआ। जंगलों के विनाश के कारणों में कटान के अतिरिक्त जंगल में लगने वाली आग भी सम्मिलित है। किंतु यह आग भी वैश्विक तापन का ही दुष्परिणाम है। रिपोर्ट बताती है कि 2001 से 2023 के दौरान भारत ने 23.3 लाख हेक्टेयर में फैले हुए जंगल खो दिए हैं। वर्ष 2023 में वन क्षेत्र को जितनी हानि हुई है वह 240 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के समतुल्य है। वनों का नाश करके हम कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को अप्रत्यक्ष रूप से अत्यधिक मात्रा में बढ़ा देते हैं। भविष्य में अगर हमें अपने जीवन को संकट के घेरे से बाहर निकालना है तो आज ही इस समस्या के कारण व निवारण के प्रति सचेत होना पड़ेगा।