स्कूलों को उड़ाने की धमकियांः सुरक्षा पर मंडराता खतरा

Threats to blow up schools: Security threat looms

ललित गर्ग

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के करीब 45 स्कूलों में बम विस्फोट की धमकी बेहद गंभीर और चिंताजनक है। चूंकि ऐसी धमकियां लगातार आ रही हैं, इसलिए हमारे सुरक्षा तंत्र को बहुत सजग हो जाना चाहिए। यह पुलिस एवं प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती एवं गंभीर प्रश्न है, क्योंकि बीते कुछ ही दिनों में करीब चार बार ऐसी धमकियांे के ई-मेल अथवा फोन से डराने एवं धमकाने वाले सन्देश मिले हैं। इसी बुधवार को ही सात स्कूलों को विस्फोट की धमकी मिली थी। अगर यह किसी की सोचा-समझी साजिश है तो बहुत गंभीर है। किसी की शरारत भी है, तब भी अक्षम्य अपराध है। दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में स्कूलों को उड़ाने की मिल रही ऐसी धमकियां न केवल सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करती हैं, बल्कि यह हमारे भविष्य, यानी बच्चों की मानसिक शांति और शिक्षा के अधिकार पर भी गहरा आघात है। कई बार ये धमकियां फर्जी साबित हुईं, लेकिन हर बार छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों में भारी दहशत का माहौल बना, जिससे न केवल शिक्षण प्रभावित हुआ बल्कि प्रशासन की सजगता और तत्परता भी सवालों के घेरे में आ गई।

मई 2024 में एक ही दिन में दिल्ली के 100 से अधिक स्कूलों को एक साथ बम से उड़ाने की धमकियां मिलीं थी। राजधानी के प्रतिष्ठित स्कूलों जैसे पश्चिम विहार इलाके में रिचमंड ग्लोबल स्कूल और रोहिणी सेक्टर-3 स्थित अभिनव पब्लिक स्कूल को बम से उड़ाने की धमकी मिली। इनमें तीन कॉलेज शामिल हैं। डीपीएस, मदर्स इन्टरनेशनल, संस्कृति स्कूल आदि प्रतिष्ठित स्कूलों को इस भयावह चक्रव्यूह में शामिल किया गया है। ताजा धमकियों में हो सकता है, जांच में कुछ भी चिंताजनक न मिले, पर ऐसी धमकी से तात्कालिक रूप से जो तनाव पैदा होता है, उसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ई-मेल से दी गई धमकी की जो भाषा है, उस पर अवश्य गौर करना चाहिए। पुलिस और प्रशासन की तत्काल प्रतिक्रिया एवं सतर्कता के चलते सुरक्षा के कदम उठाते हुए स्कूलों को खाली कराया गया, बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाला गया और बम निरोधक दस्ता, डॉग स्क्वॉड और फोरेंसिक टीमें तुरंत मौके पर पहुंचीं। हालांकि बाद में अधिकतर धमकियां फर्जी ही पाई गईं, लेकिन जिस प्रकार बार-बार ये घटनाएं हो रही हैं, वह एक सुनियोजित मानसिक आतंकवाद की ओर इशारा करती हैं। इसमें मुख्यतः साइबर सुरक्षा में चूक भी दिख रही है।

इन डराने एवं खौफ पैदा करने वाली घटनाओं की अभी तक की जांच में पुलिस ने पाया है कि ये सभी धमकी भरे संदेश फर्जी हैं। फर्जी होने के बावजूद जांच को एक पुख्ता एवं सटीक समाधान तक पहुंचाना चाहिए। कौन अपराधी है, जो ऐसी धमकियां दे रहा है? अगर वह कोई बिगड़ैल बच्चा भी है, तो उसे इलाज की जरूरत है। वैसे इतने सुनियोजित तरीके की भेजी जा रही धमकियां किसी बिगडैल एवं शरारती बच्चे की नहीं हो सकती, जरूर इसके पीछे किसी बड़े षडयंत्रधारी का हाथ है। धमकाने की यह परिपाटी या किसी को डराने का यह तरीका अनियंत्रित नहीं होना चाहिए। अधिकांश ईमेल और धमकियां विदेशी सर्वरों से भेजी गई थीं-रूस, यूक्रेन जैसे देशों से। यह भारत की साइबर सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरी और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्किंग के माध्यम से की जा रही साजिशों की ओर संकेत करती है। यह संकट केवल सुरक्षा का नहीं, मानसिक आघात का है। हर धमकी के बाद छात्रों की परीक्षा, पढ़ाई, उपस्थिति और मनोवैज्ञानिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ा है। बच्चों के भीतर असुरक्षा, भय और अविश्वास की भावना उत्पन्न हो रही है, जो उनके समग्र विकास के लिए बेहद खतरनाक है। अभिभावक-समाज में भी गहरा असंतोष और चिंता व्याप्त है, जो सरकार और पुलिस प्रशासन पर भरोसे को कम कर रही है।

इन डराने एवं असुरक्षा का वातावरण पैदा करने वाली धमकियों के बावजूद स्कूल प्रशासन की यह सराहनीय बात है कि ज्यादातर स्कूल खुले रहे और सबने सावधानी से काम लिया। कहीं भी अफरा-तफरी नहीं होने दी गयी। फिर भी ऐसी धमकियों के मनोवैज्ञानिक एवं संवेदनशील असर को गहराई से समझने की जरूरत है। क्या ऐसी बार-बार मिल रही धमकियांे से हम एक डरा हुआ समाज ही नहीं, बल्कि एक लापरवाह समाज भी बना रहे हैं? आज ऐसी धमकियों से हमें डर लग रहा है, लेकिन कल हो सकता है, ये धमकियां हमें लापरवाह बना दें। तब शरारती तत्व किसी बड़ी घातक एवं अनहोनी घटना को अंजाम दे देने में सफलता पा ले। जरूरत है स्कूलों की सुरक्षा व्यवस्था सिर्फ अस्थायी जांच और अलार्म तक सीमित न रहे। एक स्थायी और आधुनिक सुरक्षा फ्रेमवर्क लागू किया जाना चाहिए, जिसमें सीसीटीवी, बायोमैट्रिक एंट्री, इमरजेंसी रिस्पांस सिस्टम आदि अनिवार्य हों। साथ ही, स्कूलों को अपने स्तर पर भी पुख्ता सुरक्षा के प्रबंध रखने चाहिए। बच्चों के आने और स्कूल तक पहुंचने के मार्ग खुले, चौड़े व स्पष्ट होने चाहिए। यह परखना चाहिए कि स्कूलों में अग्निशमन की व्यवस्था है या नहीं? इलेक्ट्रॉनिक रूप से स्कूल सुरक्षित है या नहीं? अलार्म और निगरानी व्यवस्था चौकस है या नहीं? जो स्कूल टूटे-फूटे हुए हैं, जिन स्कूलों में जल भराव या फिसलन की समस्या है, वहां विशेष रूप से उपाय करने की जरूरत है।

इस तरह की धमकी देने वालों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई हो। आईटी एक्ट और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत त्वरित कार्यवाही से ही ऐसे अपराधियों को रोका जा सकता है। धमकियां झूठी भी हों, तो भी दोषियों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि सभी को सबक मिले। यह अच्छी बात है कि दिल्ली के अनेक स्कूलों ने अपने विद्यार्थियों को ऐसी स्थिति से निपटने के लिए प्रशिक्षित कर रखा है। शुक्रवार को जब धमकी की बात सामने आई, तब भी अनेक स्कूलों में कक्षाओं को बहुत आसानी से खाली करा लिया गया। सारे विद्यार्थी अपेक्षाकृत ज्यादा सुरक्षित जगहों पर पहुंच गए। वास्तव में, यह एक अनिवार्यता है कि सभी स्कूल अपने विद्यार्थियों को समय-समय पर प्रशिक्षित करें और मानसिक रूप से मजबूत रखें एवं ऐसी आपातकालीन स्थितियों से निपटने का प्रशिक्षण दें। स्कूलों में मनोवैज्ञानिक परामर्श की व्यवस्था हो ताकि ऐसे हादसों से बच्चों और शिक्षकों पर पड़ने वाले मानसिक दुष्प्रभावों को कम किया जा सके।

बार-बार मिल रही इन धमकियों ने परिवारों में अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंता में डाल दिया है और लोग सरकार से यह उम्मीद कर रहे हैं कि वह इन धमकियों की तह में जाकर ठोस समाधान करें। सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह बड़ा मौका है कि वे अपनी योग्यता प्रमाणित करें। दोषियों तक जल्द पहुंचने की क्षमता विकसित होनी चाहिए। धमकियां अगर साइबर माध्यम से आ रही हैं, तो क्या हम उनके स्रोतों तक पहुंचने की क्षमता नहीं रखते हैं? कोई दोराय नहीं कि अगर ऐसी धमकियों को रोका न गया, तो इससे विशेष रूप से खुफिया एजेंसियों की साख पर बट्टा लगेगा। अतः ऐसी धमकियों के प्रति अत्यधिक गंभीरता बरतने की जरूरत है। इस तरह की ईमेल धमकियों का सूत्रधार अक्सर विदेशी या वर्चुअल नेटवर्क होते हैं। भारत को अपनी साइबर सेल को और अधिक प्रशिक्षित, तकनीकी और संसाधन-सम्पन्न बनाना होगा ताकि ऐसी साजिशों की जड़ तक पहुँचा जा सके।

ध्यान रखना होगा कि स्कूल केवल इमारतें नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण के कारखाने हैं। वहां डर और आतंक का माहौल नहीं, बल्कि ज्ञान और विश्वास की नींव मजबूत होनी चाहिए। आज की आवश्यकता है कि सरकार, प्रशासन, स्कूल प्रबंधन, अभिभावक और समाज मिलकर ऐसी धमकियों को केवल सुरक्षा का मुद्दा न मानें, बल्कि इसे राष्ट्रहित और बच्चों के भविष्य के संकट के रूप में देखें। जब तक स्कूलों में सुरक्षा की पूरी गारंटी नहीं होगी, तब तक शिक्षा व्यवस्था में विश्वास बहाल नहीं हो सकेगा। सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को इन घटनाओं पर सख्त होना होगा, अन्यथा जो देश अपने बच्चों की सुरक्षा नहीं कर सकता, वह अपने भविष्य को खो देता है।