साठ करोड़ लोगों ने महाकुंभ में क्यों लगाई डुबकी?

Why did sixty crore people take a dip in Mahakumbh?

प्रो. महेश चंद गुप्ता

प्रयागराज में महाकुंभ में स्नान करके घर लौटा हूं। मैंने माघ पूर्णिमा के दिन महासंगम में डुबकी लगाई। जब मैं डुबकी लगा रहा था तो मेरे इर्द-गिर्द हजारों, लाखों नहीं, बल्कि करोड़ों लोग स्नान कर अपने को पुण्यभागी मान रहे थे। अब तक कुल मिलाकर करीब साठ करोड़ लोग महाकुंभ स्नान कर चुके हैं। प्रयागराज में उमड़े जन समुद्र को देख चुकने के बाद राजधानी दिल्ली की भागमभाग महसूस ही नहीं हो रही है। प्रयागराज की भीड़ से दिल्ली की तुलना कर रहा हूं तो ऐसा लग रहा है जैसे मैं दिल्ली में नहीं, किसी छोटे शहर मेंं पहुंच गया हूं। दो दिन तक प्रयागराज प्रवास और फिर लौटते हुए यही प्रश्न मन-मस्तिष्क में कौंध रहा है कि देश की आधी आबादी महाकुंभ मेंं क्यों पहुंच गई है। आखिर साठ करोड़ लोगों ने कुंभ में डुबकी क्यों लगाई है?

अपने आपसे यह प्रश्न पूछ रहा हूं और इसका जवाब हासिल करने की कोशिश कर रहा हूं। जीवन के सत्तर बरसों में आज तक बहुत कम ऐसे प्रश्न खड़े हुए हैं, जिनका समुचित उत्तर पाने के लिए इतना सोचना पड़ रहा हो। कई बार अद्र्ध कुंभ एवं कुंभ दर्शन किए हैं पर 144 साल बाद आया महाकुंभ तो हैरत में डाल रहा है। सोच रहा हूं क्या महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन है? अपने ही अन्तर्मन से जवाब मिलता है-नहीं…नहीं… यह तो सनातन संस्कृति की अक्षुण्ण धारा, आस्था की शक्ति और मोक्ष की ओर बढऩे का अद्भुत साधन है। यह हमारी उन परंपराओं का प्रतीक और प्रमाण है, जो सदियों की गुलामी और समय के थपेड़ों के बावजूद आज भी जीवित हैं। संसार में कई सभ्यताएं मिट गईं लेकिन भारतीय संस्कृति का अस्तित्व अपनी मूल आत्मा के साथ आज भी बरकरार है। यह महाकुंभ न केवल धार्मिक जागरूकता का प्रतीक है बल्कि भारतीय समाज की एकता, समरसता और आध्यात्मिक शक्ति का जीवंत उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।

मैंने प्रयागराज में विभिन्न साधु-संन्यासियों के दर्शन किए, उनके प्रवचन सुने। सहयात्रियों से बात की। संगम पर विभिन्न प्रांतों से पधारे देशवासियों से चर्चा की। निष्कर्ष यह निकला कि उनके लिए महाकुंभ में स्नान केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि आत्मशुद्धि और मोक्ष की यात्रा का एक महत्वपूर्ण चरण भी है। मेरे आसपास जैसे ही श्रद्धालुओं ने गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के महासंगम में डुबकी लगाई, उनके चेहरे के भावों से ऐसा लगा-जैसे उन्हें जीवन का सर्वोच्च आनंद प्राप्त हो गया हो। मैंने केरल, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पंजाब, तेलंगाना, गुजरात और तमाम राज्यों से आए श्रद्धालओं को अपनी तकलीफें और जीवन की परेशानियां भूलकर एक नई ऊर्जा से भरते हुए देखा। मैंने उन्हें देख यह महसूस किया कि यही सनातन धर्म की शक्ति है जहां आस्था और विश्वास से हर कठिनाई छोटी लगने लगती है।

क्या महाकुंभ केवल एक उत्सव है, एलआईसी के स्वागत केन्द्र मेंं मौजूद कुछ श्रद्धालुओं से पूछा तो वह बोले-महाकुंभ हमें आत्मचिंतन और आत्मबोध की प्रेरणा भी देता है। हम इसे मात्र तीर्थयात्रा नहीं मानते बल्कि इसे जीवन को बदलने वाली आध्यात्मिक यात्रा के रूप में अनुभव करते हैं। मुझे प्रयागराज में ऐसे संतों के दर्शन हुए जिन्हें कुछ भी नहीं चाहिए था और ऐसे सांसारिक लोग भी मिले जिन्हें बहुत कुछ पाने की चाह थी। कई लोग जीवन की आपाधापी से परेशान होकर मानसिक शांति की तलाश में आए थे तो कुछ लोग यात्रा के तमाम कष्ट उठा कर केवल इस दिव्य तीर्थ अनुभव का हिस्सा बनने के लिए पहुंचे हैं।
हर तरफ अपार जन ज्वार देखकर एक बात समझ में आई कि महाकुंभ भारतीय संस्कृति की जीवंतता, इसकी गहराई और व्यापकता का सबसे बड़ा प्रमाण है। महाकुंभ प्रेम, अपनत्व और ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना को साकार करता है। प्रयागराज में हर कोई जाति, धर्म, वर्ग और सामाजिक स्थिति से ऊपर उठकर केवल श्रद्धालु बनकर ही आया है। महाकुंभ पर्व ने बता दिया है कि भारतीय संस्कृति की जड़ें कितनी गहरी और मजबूत हैं जो हर परीक्षा में सफलता पूर्वक खड़ी रहती हैं।

महाकुंभ राष्ट्र की मजबूती का प्रतीक भी बनकर उभरा है। इसमें समाज के हर वर्ग के लोग शामिल हुए हैं। एक आम श्रद्धालु से लेकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक। महाकुंभ में न जाति का भेद दिखता है, न ऊंच-नीच का अंतर। हर व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म, समाज या वर्ग से हो, समान भाव से महासंगम में स्नान कर रहा है। इस प्रकार महाकुंभ ने हमारे समाज की एकता और भाईचारे का सबसे बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसमें देश के व्यावसायियों, उद्योगपतियों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने केन्द्र व राज्य सरकार, संतों और अखाड़ों के साथ कदम से कदम मिलाकर सुविधाओं का विस्तार करके नए आयाम स्थापित किए हैं। यूपी सरकार के अनुसार इस महा आयोजन से रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं और लगभग तीन लाख करोड़ का राजस्व उत्पन्न होने का अनुमान है। बड़े-बड़े उद्योगपतियों ने अपनी श्रद्धा से करोड़ों रुपये खर्च कर भंडारे और सेवा शिविर लगाएं हैं, जिससे लाखों लोगों को भोजन और आवश्यक सुविधाएं मिली हैं। इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय समाज में दान और सेवा की परंपरा कितनी गहरी है?

महाकुंभ की शुरुआत के बाद से प्रयागराज में निरंतर आवागमन चल रहा है लेकिन लाखों श्रद्धालु केवल स्नान करके वापस नहीं लौटे बल्कि उन्होंने कल्पवास को अपनाया। यानी उन्होंने एक निश्चित अवधि तक प्रयागराज में रहकर आत्मचिंतन, साधना और ज्ञान मंथन किया। धन्य हैं वह कल्पवासी, जिन्होंने सत्य संकल्प लेकर समाज में वापस जाने से पहले अपने भीतर के परिवर्तन को आत्मसात किया है। मुझे ऐसे भी श्रद्धालु मिले, जिन्होंने यज्ञ, दान, जप और कीर्तन में मग्न होकर अपनी सांसारिक पहचान को भुला देने की इच्छा से स्वयं को महाकुंभ का हिस्सा बनाया।

एक संत ने महाकुंभ की व्याख्या करते हुए सत्य ही कहा कि यह योग यज्ञ, ज्ञान यज्ञ, जप यज्ञ और भक्ति यज्ञ का अनुपम समागम है। यह पर्व न केवल व्यक्तिगत आत्मशुद्धि का अवसर है बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए शांति, प्रेम और सेवा का संदेश भी देने आया है।

करोड़ों लोगों के आगमन के बावजूद महाकुंभ एक व्यवस्थित आयोजन रहा है, जहां न गंदगी दिखी और न कूड़े-करकट के ढेर। महाकुंभ में पर्यावरणीय दृष्टि से जागरूक माहौल बनाने की पहल निश्चय ही सराहनीय है। विभिन्न अभियानों के माध्यम से लोगों को स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रेरित करना अनूठा प्रयास है। प्लास्टिक का कम उपयोग, जैविक अपशिष्ट प्रबंधन और गंगा की सफाई के प्रयासों ने महाकुंभ को और अधिक सकारात्मक बनाया है। इस महान आयोजन मेंं आधुनिक तकनीक, डिजिटल और एआई के प्रथम बार उपयोग से समूची व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से करना संभव हो सका है। इससे पूरे विश्व में हमारी देश की क्षमताओं का लोहा लोग मानने लगे हैं।

वहां पर हो रहे सामूहिक जप, तप, अनुष्ठान, यज्ञ, सत्संग से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा संपूर्ण ब्राह्मांड में फैलेगी और जीव चराचर के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगी। युगों-युगों से चली आ रही हमारी ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ की भावना को भी फलीभूत करेगी। माघी पूर्णिमा के दिन महाकुंभ का एक अद्भुत दृश्य मैंने साक्षात देखा, जब लोग न जाने कितनी कठिनाइयां सहकर, लंबी यात्राएं तय करके, भीड़ की परेशानियों को झेलते हुए भी संगम तक पहुंचे। आस्था की यह शक्ति देखकर दुनिया अचंभित हो गई है।

महाकुंभ भारतीय संस्कृति की अमरता, इसकी आध्यात्मिकता और सामाजिक एकता का प्रतीक बनकर उभरा है। यह केवल एक धार्मिक मेला नहीं बल्कि भारतीय समाज के मूल्यों, संस्कारों और आध्यात्मिक जागरण का एक प्रेरणादायक उदाहरण है। महाकुंभ ने हमें न केवल धर्म और अध्यात्म से और गहराई से जोड़ा है बल्कि सेवा, त्याग, प्रेम और समर्पण का भी संदेश दिया है। एक डुबकी लगाने के बाद श्रद्धालुओं के चेहरे पर जो संतोष और आनंद का भाव दिखाई दिया है, वह दर्शाता है कि यह केवल एक स्नान नहीं, बल्कि आत्मिक तृप्ति की अनुभूति है। महाकुंभ में अब तक जितने भी लोग पहुंचे हैं, उन्होंने सिर्फ जल में डुबकी नहीं लगाई बल्कि अपने भीतर की चेतना में भी गोता लगाया है।
(लेखक प्रख्यात चिंतक, शिक्षा विद् और वक्ता हैं। वह 44 सालों तक दिल्ली यूनिवर्सिटी मेंं प्रोफेसर रहे हैं। )