डॉ. वेदप्रताप वैदिक
इस बार भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की जो बैठक हुई है, उसकी भूमिका एतिहासिक हो सकती है, बशर्ते कि उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो कहा है, उस पर अमल किया जाए। मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत के मंत्र को अमली जामा पहनाने की बात कही है। मोहनजी बार-बार कह चुके हैं कि हिंदू-मुसलमानों का डीएनए एक ही है। मोदी ने इसी मंत्र को व्यावहारिक रूप देते हुए कहा है कि पसमांदा वर्ग के अल्पसंख्यकों याने मुसलमानों, केरल के ईसाइयों और देश के पिछड़े लोगों को साथ लेकर चलने का संकल्प किया जाना चाहिए। भाजपा के प्रधानमंत्री और संघ के तपस्वी स्वयंसेवक के मुंह से ऐसी बात सुनकर कौन गदगद नहीं हो जाएगा? मैं पिछले तीन-चार दिन से दुबई और अबू धाबी में कई अरब शेखों से मिला और हमारी सभी पार्टियों व विचारधाराओं के लोगों से मेरा खुला संवाद हुआ। मुझे ऐसा लगा कि जिन लोगों के पास दूरदृष्ष्टि है, वे यह महसूस करते हैं कि यदि भारत में सांप्रदायिक दुर्भाव चलता रहा तो अगले 50-60 साल में भारत के इस बार फिर दो नहीं, सौ टुकड़े भी हो सकते हैं। इस आशंका को निरस्त करने का शंखनाद भाजपा ने अब कर दिया है। यदि भाजपा सरकार सांप्रदायिक सदभाव पैदा करने और देश के पिछड़ों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ बुनियादी उपायों पर ध्यान दे तो भारत सिर्फ एक दशक में ही दुनिया का महासंपन्न और महाशक्तिशाली राष्ट्र बन सकता है। भारत का दुर्भाग्य यह रहा कि हमारी अब तक की सरकारों के नेताओं को वह चाबी हाथ ही नहीं लगी, जो सदियों से बंद पड़े भारत के ताले को खोल सकती है। वह चाबी है, शिक्षा और चिकित्सा में मूल सुधार ताकि देश का मन और तन बलवान बन जाए। ये मूल सुधार करने की बजाय हमारी सभी सरकारें रेवड़ियां बांटने की चुनावी रणनीतियां अपनाती रही हैं। मोदी सरकार ने इस मामले में भी जबर्दस्त उस्तादी दिखाई है। मोदी ने कहा है कि हमें वोटों के लिए नहीं, लेकिन राष्ट्रीय सुद्दढ़ता के लिए मुसलमानों, ईसाइयों और पिछड़ों की सेवा करनी है। यह बात तो अति उत्तम है लेकिन इसे ठोस रूप कैसे देंगे? इसे समझने के लिए हमारे नेताओं में इतनी विनम्रता होनी चाहिए कि वे चिंतकों और बुद्धिजीवियों के साथ बैठकर खुला संवाद करें। सिर्फ नौकरशाहों के इशारों पर नाचने से आप सत्ता तो प्राप्त कर सकते हैं लेकिन देश की दशा नहीं बदल सकते। भाजपा के अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा को लगातार दूसरी बार भी अध्यक्ष पद से सम्मानित किया गया है, यह सर्वथा उचित है, क्योंकि वे ऐसे पार्टी-अध्यक्ष हैं, प्रायः जिनके बयान और आचरण आपत्तिजनक और कटु विवादास्पद नहीं होते हैं और जो सभी को साथ लेकर चलने की इच्छा रखते हैं। अब प्रधानमंत्री से भी ज्यादा उनकी जिम्मेदारी है कि वे भाजपा को एक ऐसा रूप प्रदान करें, जो आजादी के तुरंत बाद कांग्रेस का रहा है। यदि भाजपा सर्वसमावेशी बन जाए और बुनियादी परिवर्तनों पर ध्यान दे तो दुनिया की वर्तमान सदी भारत की सदी बन सकती है।