दलित उत्थान आंदोलन के लिये घातक है सुप्रीम के फैसले के खिलाफ गुस्सा

Anger against Supreme's decision is fatal for Dalit upliftment movement

अजय कुमार

लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति-जनजाति के आरक्षण से क्रिमी लेयर को बाहर करने का जो फैसला सुनाया था,उस पर आज पूरे देश सहित लखनऊ के हजरतगंज में भी बाबा साहब अम्बेडर की मूर्ति के निकट विरोध प्रदर्शन किया गया,जिसमें थोड़ी भीड़ भी दिखी,लेकिन यह भीड़ उत्साहित अधिक और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को समझने में थोड़ा कमजोर नजर आ रही थी। वह यह नहीं समझ पा रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू हो जाता तो अभी तक आरक्षण से वंचित रह गये इस समाज के उत्थान में मिल कर पत्थर साबित होता।यह कहने में कोई अतिशियोक्ति नहीं है कि यदि आरक्षण की आग में हाथ सेंकने वालों का नजरिया तंग नहीं होता तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हाथों हाथ लिया जाता।

बसपा सहित सभी दलों के नेता और मोदी सरकार तक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़े होने का साहस इस लिये नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि जो दल या नेता सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़ा होगा उसका राजनैतिक कैरियर खत्म हो जायेगा। यह सब इस लिये हो रहा है

क्यांेकि दलित वोटों के सौदागरों को इस समाज के उद्धार से अधिक चिंता इस बात की है कि उनकी सियासत कैसे फलती-फूलती रहे।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इसमें कोई संदेह नहीं था कि यदि यह लागू हो जाता तो आरक्षण का फायदा दलित समाज के उन सम्पन्न लोगों को नहीं मिलता जिनकी लगभग आमदनी 8-10 लाख वार्षिक से अधिक होती (हालांकि आमदनी को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं हो पाई थी),लेकिन इससे पहले ही सियासत शुरू हो गई। क्रीमी लेयर को बाहर करने से निश्चित ही उन दबे-कुचले दलित समाज को अधिक फायदा मिलता जो अभी तक समाज में आगे आने की उम्मीद में बैठे हैं और जिनका हक उन्हीं के समाज के ताकतवर और सम्पन्न लोग मार देते हैं।

कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध उचित नहीं कहा जा सकता है, भले ही इसके लिये कोई भी तर्क दिया जाये। ऐसे आंदोलनों से दलित समाज के वंचितों का कोई भला नहीं होने वाला है क्योंकि इस तरह के आंदोलनों को वह ही हवा दे रहे हैं जो अपने को दलित समाज का रहनुमा तो मानते हैं लेकिन कभी इस समाज की भलाई नहीं करते हैं। इसी श्रेणी में दलित की बड़ी नेत्री बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी आती हैं,जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आज कहा है कि एससी-एसटी के साथ ओबीसी समाज को भी मिला आरक्षण का संवैधानिक हक डॉ. अंबेडकर के अनवरत प्रयासों का नतीजा है, जिसकी अनिवार्यता और संवेदनशीलता को भाजपा, कांग्रेस व अन्य पार्टियां समझकर कोई खिलवाड़ न करें। मायावती ने सोशल मीडिया पर जारी अपने बयान में आरोप लगाया कि भाजपा, कांग्रेस आदि दल आरक्षण के खिलाफ साजिश रच रहे हैं और इसे निष्प्रभावी बनाते हुए खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एससी-एसटी आरक्षण में उप-वर्गीकरण के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर इन वर्गों में आक्रोश है। इन वर्गों के द्वारा आज भारत बंद के तहत सरकार को ज्ञापन देकर संविधान संशोधन के जरिए आरक्षण में हुए बदलाव को खत्म करने मांग की जा रही है।

इसका बसपा ने भी समर्थन किया है और बंद में बिना किसी हिंसा के अनुशासित व शांतिपूर्ण तरीके से शामिल होने की अपील की है।

बहरहाल,जिस तरह से एससी/एसटी आरक्षण के दायरे से क्रिमी लेयर को बाहर करने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है वह एक एतिहासिक फैसला होता यदि इसका ईमानदारी से आकलन किया जाता और इसका फायदा भी अभी तक आरक्षण से वंचित समाज को और मजबूती के साथ मिलता,लेकिन यह सियासत है यहां जो कहा जाता है वह होता नहीं है और जो होता है वह बताया नहीं जाता है। अच्छा होता कि दलित समाज के उत्थान के लिये प्रयासरत वह संस्थान और संगठन आगे आकर अपने समाज के बड़े हिस्से को समझाते कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कैसे फायदा होगा,लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हुआ नही।