अजय कुमार
कांग्रेस उत्तर प्रदेश में पिछले साढ़े तीन दशकों से सत्ता से बाहर है, लेकिन हाल के लोकसभा चुनाव में 99 सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद पार्टी के आत्मविश्वास में जबरदस्त इजाफा हुआ है। इस नई ऊर्जा को देखते हुए कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के संगठन में बड़े पैमाने पर बदलाव करने का निर्णय लिया है। पार्टी अब उन जिला और शहर अध्यक्षों को हटाने की योजना बना रही है, जो सक्रियता से काम नहीं कर रहे हैं। इन निष्क्रिय नेताओं की जगह नई पीढ़ी के, तेज-तर्रार नेताओं को आगे लाया जाएगा, ताकि 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारी अभी से शुरू की जा सके और कांग्रेस फिर से उत्तर प्रदेश की राजनीतिक जमीन पर मजबूती से खड़ी हो सके।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के करीबी माने जाने वाले छह राष्ट्रीय सचिवों को एक बार फिर उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इन सचिवों की नियुक्ति के बाद, कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडेय, प्रदेश अध्यक्ष अजय राय और इन छह सचिवों की दिल्ली में एक अहम बैठक हुई। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य पार्टी संगठन को नए सिरे से तैयार करना और उसे अधिक प्रभावी बनाना था। इस प्रक्रिया में संगठन के भीतर व्यापक बदलाव किए जाएंगे, जिससे पार्टी न केवल आगामी चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर सके, बल्कि एक बार फिर से राज्य में अपनी पुरानी प्रतिष्ठा हासिल कर सके। कांग्रेस ने संगठन को अधिक गतिशील और सक्रिय बनाने के लिए ठोस योजना बनाई है, जिसमें निष्क्रिय नेताओं की जगह पर ऊर्जावान और प्रतिबद्ध नेताओं को लाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में 1989 के बाद से कांग्रेस को सत्ता से दूर रहना पड़ा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ दो सीटें मिली थीं, जबकि 2019 में यह संख्या घटकर केवल एक रह गई। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा और इनमें से छह सीटों पर जीत दर्ज की। ये सीटें अमेठी, रायबरेली, इलाहाबाद, सीतापुर, और सहारनपुर जैसी महत्वपूर्ण थीं, जहां कांग्रेस ने चार दशक बाद जीत हासिल की। इस सफलता के पीछे समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन और मुस्लिम एवं दलित वोटरों का समर्थन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कांग्रेस ने इसे 2027 के विधानसभा चुनावों में एक बड़े अवसर के रूप में देखा है। राहुल गांधी ने इस अवसर को भांपते हुए उत्तर प्रदेश में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है और पार्टी को फिर से जीवंत करने के मिशन में जुटे हैं।
कांग्रेस ने हाल ही में धीरज गुर्जर, राजेश तिवारी, तौकीर आलम, प्रदीप नरवाल, नीलांशु चतुर्वेदी और सत्यनारायण पटेल को राष्ट्रीय सचिव नियुक्त कर उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी हैं। ये सभी नेता प्रियंका गांधी के नेतृत्व में संगठन में अपनी भूमिका निभा रहे थे। तीन दिन पहले दिल्ली में इन सभी सचिवों की शीर्ष नेतृत्व के साथ बैठक हुई, जिसमें जिलों के संगठनों की समीक्षा करने का निर्णय लिया गया। बैठक में तय किया गया कि जो भी जिला और शहर अध्यक्ष अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तत्परता से नहीं निभा रहे हैं, उन्हें बदला जाएगा और उनकी जगह नए, ऊर्जावान चेहरों को जिम्मेदारी दी जाएगी।
यूपी कांग्रेस के नेताओं को एक बार फिर दिल्ली बुलाया गया है। अविनाश पांडेय, अजय राय और अनिल यादव सहित संगठन के अन्य प्रमुख नेताओं की एक महत्वपूर्ण बैठक शनिवार को दिल्ली में आयोजित की जाएगी। इस बैठक में उपचुनाव की रणनीति पर विचार-विमर्श किया जाएगा, साथ ही संगठन में जरूरी बदलावों पर चर्चा होगी। कांग्रेस के एक वरिष्ठ सूत्र ने बताया कि यूपी संगठन में बदलाव की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है। जिन जिला और शहर अध्यक्षों को हटाना है, उनकी सूची तैयार कर ली गई है और नए नाम भी तय किए जा चुके हैं।
दिल्ली में होने वाली इस महत्वपूर्ण बैठक में कांग्रेस नेतृत्व यूपी संगठन में बदलाव पर अंतिम मुहर लगाएगा। इसके बाद अगले 10 से 15 दिनों के भीतर जिला और शहर अध्यक्षों की नई सूची जारी की जा सकती है। नए अध्यक्षों के चयन के बाद, प्रदेश कमेटी में भी कुछ नए चेहरों को शामिल करने की योजना बनाई जा रही है। इसके साथ ही, संगठन में पहले से कार्यरत लोगों की जिम्मेदारियों में भी बदलाव किया जा सकता है। इस बदलाव के तहत कांग्रेस का उद्देश्य संगठन को अधिक सक्रिय और प्रभावी बनाना है, ताकि आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी एक मजबूत दावेदार बनकर उभर सके।
कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में नए अल्पसंख्यक प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की भी रणनीति तैयार की है। मौजूदा अल्पसंख्यक प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम को राष्ट्रीय सचिव बनाकर बिहार का प्रभार सौंपा गया है, जिससे यूपी में इस पद पर नया चेहरा लाना आवश्यक हो गया है। इस बार कांग्रेस एक ही व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने की बजाय, तीन से चार लोगों को इस जिम्मेदारी के लिए चुनने पर विचार कर रही है। पार्टी ने उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में बांटकर संगठन का गठन किया है और इसी आधार पर अल्पसंख्यक नेताओं को भी नियुक्त करने की योजना है। इसका मुख्य उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों में कांग्रेस की पकड़ को मजबूत करना और उन्हें पार्टी के साथ जोड़ना है।
कांग्रेस की प्राथमिकता यह है कि विधानसभा उपचुनाव से पहले संगठन में यह बदलाव प्रक्रिया पूरी कर ली जाए। हालांकि, पार्टी नेतृत्व ने साफ कर दिया है कि यह बदलाव उपचुनाव की तैयारियों को प्रभावित नहीं करेगा। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में संगठन को जितनी जल्दी हो सके नए स्वरूप में ढालना चाहती है। इस बदलाव की प्रक्रिया के माध्यम से कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की कोशिश कर रही है। आगामी चुनावों में पार्टी की सफलता का दारोमदार इन बदलावों पर ही टिका होगा, और कांग्रेस को उम्मीद है कि ये बदलाव उसे राज्य में एक बार फिर से प्रमुख राजनीतिक शक्ति बनाने में मदद करेंगे।