दिल्ली यूनिवर्सिटी: कैसे होगा पूरी दुनिया में यशोगान ?

Delhi University: How will it be praised across the world?

प्रो. महेश चंद गुप्ता

सदियों पहले नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों ने भारत को शिक्षा के वैश्विक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित किया था। ये विवि न केवल ज्ञान और अनुसंधान के केंद्र थे, बल्कि दुनिया भर से छात्र और विद्वान इन संस्थानों में शिक्षा ग्रहण करने आते थे। आज स्थिति बिलकुल विपरीत है। भारतीय विश्वविद्यालय विश्व रैंकिंग में पीछे हैं । आज विदेशी छात्रों में यहां आकर पढऩे की लालसा नहीं है, बल्कि हमारे बच्चे दूसरे देशों में पढऩे के लिए जा रहे हैं। भारत फिर से शिक्षा के क्षेत्र मेंं सिरमौर बने, हमारे विश्वविद्यालयों का पुन: समूचे संसार मेंं यशोगान हो, इसके लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) मेंं चल रहे प्रयासों के बारे मेंं देशवासियों को जानना चाहिए। डीयू को विश्व रैंकिंग में टॉप पर प्रतिष्ठित करने के उच्च लक्ष्य के साथ दो साल पहले अन्य सुधारों के साथ दिल्ली विश्वविद्यालय फाउंडेशन का गठन किया गया, उसका अब दुनिया के विभिन्न देशों में फैले हुए लाखों एलुमनाई को जोडऩे करके नेटवर्क बनाने का प्रयास आगे बढऩे लगा है।

एक शताब्दी पुराना डीयू देश का लब्ध प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है जिसमें 80 से अधिक एकेडमिक डिपार्टमेंट, अस्सी से अधिक कॉलेज और पांच सौ से ज्यादा पाठ्यक्रम संचालित हैं। यहां सात लाख से अधिक स्टूडेंट्स प्रतिवर्ष पढ़ते हैं। इसके अस्सी लाख से अधिक पूर्व छात्र दुनिया भर में फैले हुए हैं। मगर अफसोस है कि तमाम उपलब्धियों के बावजूद डीयू की रैकिंग वल्र्ड क्लास से नीचे है। वर्तमान में दुनिया के टॉप 500 विश्वविद्यालयों में डीयू की गिनती लगभग तीन सौ नंबर पर होती है। वल्र्ड क्लास रैंकिंग में डीयू के पिछडऩे से चिंतित सरकार, यूनिवर्सिटी प्रशासन और इसके स्टाफ के मौजूदा एवं पूर्व सदस्यों की इच्छा है कि डीयू का नाम विश्व स्तर पर चमके। इसके लिए डीयू मेें सभी जरूरी सुविधाएं एवं संसाधन एकत्रित करने, इसका बुनियादी ढांचा मजबूत करने, विश्व स्तरीय स्मार्ट क्लास रूम, लाइब्रेरी, ऑडिटोरियम, एकेडमिक ब्लॉक्स, बेहतरीन लेबोरेट्री समेत तमाम संसाधनों की व्यवस्था करने हेतु आर्थिक संसाधन जुटाने के लिए यूनिवर्सिटी के तत्वावधान में स्थापित डीयू फाउंडेशन एंडोमेंट फंड में सहायता के लिए न केवल डीयू के दुनिया भर मेंं बसे पूर्व छात्र आगे आए हैं बल्कि समाज के विभिन्न वर्ग भी इस पावन यज्ञ में आहूति दे रहे हैं। अभी ये प्रयास शैशव काल में हैं मगर जिस काम में जिस तरह का समर्पण भाव है, उससे सकारात्मक परिणामों की उम्मीदें परवान चढऩे लगी हैं।

डीयू में सकारात्मक वातावरण निर्मित करने का श्रेय यकीनन मोदी सरकार को है क्योंकि सरकार ने जब वर्ष 2019 में डीयू को इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस-आईओई का दर्जा प्रदान किया, उसके बाद ही भविष्य की योजनाओं का ताना-बाना बुना गया है। यह दर्जा मिलने के बाद डीयू के कुलपति प्रो. योगेश सिंह और उनकी टीम ने तय किया कि डीयू जिन क्षेत्रों में भी पीछे है, उन्हें बेहतर स्तर पर लाया जाएगा क्योंकि इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस का दर्जा मिलने से टीचिंग और रिसर्च में कई नई एकेडमिक एक्टिविटी शुरू करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। अब डीयू प्रबंधन डीयू से बाहर से भी टेलेंट लाकर उन्हें डीयू का स्टेक होल्डर बनाने की कवायद में भी जुट गया है। अब डीयू में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, आवश्यक संसाधनों व सुविधाओं के विस्तार की ओर खास ध्यान दिया जा रहा है। इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस का दर्जा देने के बाद केन्द्र सरकार ने आगामी पांच साल में डीयू को एक हजार करोड़ रुपये देना तय किया तो इतनी ही राशि डीयू ने जुटाने की नई शुरुआत की। इसी उद्देश्य से करीब डेढ़ साल पहले डीयू एंडोमेंट फंड बनाया गया। इस फंड के लिए पैसा जुटाने के लिए डीयू के पूर्व छात्रों को लक्ष्यबद्ध किया गया। साथ ही, समाज के विभिन्न वर्गों को डीयू से भावात्मक रूप से जोडऩे की कवायद चल रही है। उसमें अब तक 15 करोड़ रुपये का योगदान आ चुका है।

हम मंदिरों, गोशालाओं, धर्मशालाओं से तो चिरकाल से जुड़े हैं लेकिन हमारे उच्च शिक्षा के केन्द्रों को हमने उपेक्षित छोड़ा हुआ है। उच्च शिक्षा केन्द्रों से हमारा समाज नहीं जुड़ा है। अगर हमारा समाज उच्च शिक्षा केन्द्रों के साथ कनेक्ट होता, तो शिक्षा के ये मंदिर बहुत अच्छे और बेहतरीन हालात में होते। दुनिया के बड़े-बड़े विश्वविद्यालय पूर्व छात्रों के फंड से संचालित होते हैं पर हमारे देश में ये चलन नहीं रहा। और न कभी सरकारों एवं शिक्षा के मंदिरों के कत्र्ताधर्ताओं ने ही इस पर सोचा। डीयू के करीब अस्सी लाख पूर्व छात्र दुनिया भर में हैं। अगर इनमें से पांच लाख भी जुडक़र फंड में मदद देने के लिए आगे आ जाते हैं तो डीयू की कायाकल्प का मार्ग प्रशस्त होगा। खुशी की बात है कि जहां डीयू फाउंडेशन की टीम के प्रयास से डीयू के पूर्व छात्र योगदान देने के लिए आगे आए हंै, इसके साथ-साथ उनके परिजन, परिवार के सदस्य तथा बड़ी संस्थाएं, इंडस्ट्री, ट्रेड और व्यापार के लोग भी रुचि दिखा रहे हंै। एलआइसी गोल्डन जुबली फाउंडेशन और रिलायंस पॉवर जैसे बड़़ी संस्थाएं भी योगदान देने के लिए आगे आई हैं।

हाल में फाउंडेशन के प्रथम समर्पण एवं सम्मान समारोह में केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान द्वारा शुरू की गई ‘सशक्त बेटी’ और ‘ई-दृष्टि’ परियोजनाएं भविष्य में महिला सशक्तीकरण एवं दिव्यांग जनों को सबल बनाने में योगदान देंगी। सशक्त बेटी के तहत डीयू में अध्यनरत्त 400 छात्राओं को लैपटॉप प्रदान किए गए। प्रोजेक्ट ई-दृष्टि के तहत दृष्टिबाधित छात्रों की सीखने और अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ाने के लिए 400 टैबलेट प्रदान किए गए। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री ने एलआईसी फाउंडेशन द्वारा दी गई पूर्णत: सुसज्जित एम्बुलेंस का भी लोकार्पण किया है। यह एम्बुलेंस सेवा दिल्ली विश्वविद्यालय के संकाय, कर्मचारियों और विद्यार्थियों के लिए बेहतर स्वास्थ्य देखभाल पहुंच और आपातकालीन सेवा सुनिश्चित करेगी। फाउंडेशन के सम्मान समारोह के तहत पिछले एक साल में बने दानदाताओं का अभिनंदन किया गया। दिल्ली यूनिवर्सिटी ये कुछ अनुकरणीय काम हैं लेकिन फाउंडेशन का असल लक्ष्य डीयू को अकादमिक और शोध संबंधी उत्कृष्टता, नवाचार और अंतरराष्ट्रीयकरण में विशिष्ट प्रदर्शन करने वाले शीर्ष संस्थानों की गिनती मेंं पहुंचाना और टॉप वल्र्ड रैंकिंग में शामिल करवाना है।

एक शिक्षक के रूप में लंबे अनुभव की बदौलत मेरी मान्यता है कि शिक्षा और विकास एक-दूसरे के पूरक हैं। शिक्षा की सीढ़ी पर चढक़र ही विकास की प्रत्येक मंजिल पर पहुंचा जा सकता है। यदि हम वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित देश के रूप में देखना चाहते हैं तो यह सपना शिक्षा की बदौलत ही साकार रूप ले सकता है लेकिन यह इतना सरल और सहज नहीं है। इसके लिए देश के विश्वविद्यालयों के लिए जमकर काम करना होगा।

आम लोगों के बच्चे प्राइवेट विश्वविद्यालयों मेंं शोषण झेल रहे हैं। यूजीसी फंडिंग वाले विश्वविद्यालयों की स्थिति सुधारी जाए तो हालात बदले जा सकते हैं। ऐसा तभी संभव है, जब हम हमारे विश्वविद्यालयों को वल्र्ड रैंकिंग मेंं लाएंगे। उन्हें एक बड़ा ब्रांड बनाने की दिशा मेंं काम करेंगे। एक अनुमान के अनुसार पिछले पांच साल मेंं 30 लाख से अधिक भारतीय बच्चे उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले गए और वहीं के हो कर रह गए। हमारे बच्चों के पढ़ाई के लिए विदेश जाने की प्रमुख वजह हमारा वल्र्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में पिछडऩा है। दुनिया के पचास बड़े कॉर्पोरेट मेंं भारतीय मूल के विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़े भारतीय उनके सीईओ हैं। उनकी मार्केट वेल्यू करीब 5 ट्रिलियन डॉलर है, जिसके समकक्ष भारत की इकोनॉमी अभी नहीं पहुंच पाई है। इसके लिए मोदी सरकार प्रयासरत्त है और जब हम उसे प्राप्त कर लेंगे तो हम दुनिया की तीसरी बड़ी इकोनॉमी बन जाएंगे।

केन्द्र सरकार, डीयू प्रबंधन और फाउंडेशन भविष्य में डीयू की साख वैश्विक स्तर पर बनते देखना चाहते हैं। पीएम मोदी ने हाल मेंं डीयू के ईस्ट व वेस्ट कैम्पस तथा वीर सावरकर कॉलेज की आधारशिला रख दी है। अनुमान है कि सभी के लिए शिक्षा के उद्देश्य के तहत इस विस्तार से दस हजार नए रोजगार मिलेंगे और पन्द्रह से बीस हजार नए छात्रों को अच्छी शिक्षा प्राप्त होगी। ये प्रयास एक दूरदर्शी कदम है, इससे शिक्षा के साधनों एवं मापदंडों से सुसज्जित दिल्ली यूनिवर्सिटी विश्व स्तरीय बनेगी। इससे जहां मोदी के विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने में डीयू और डीयू फाउंडेशन का योगदान मिलेगा, वहीं डीयू देश के तमाम विश्वविद्यालयों के लिए भी ‘रोल मॉडल’ बनकर उभरेगा।

(44 सालों तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे लेखक प्रख्यात शिक्षा विद्, चिंतक और वक्ता हैं। वह दिल्ली यूनिवर्सिटी फाउंडेशन के कोऑर्डिनेटर (फंड रेजिंग) भी हैं)