
अशोक भाटिया
पिछले कुछ समय से अरविंद केजरीवाल दिल्ली में भले नजर न आते हों, लेकिन सत्ता के गलियारों में उनको शिद्दत से महसूस किया जाता है। विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार के बाद से अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के मुकाबले पंजाब व गुजरात में कहीं ज्यादा देखा जा रहा था – और वो अकेले नहीं बल्कि मनीष सिसोदिया सहित उनकी भरोसेमंद पूरी टीम भी वहीं डटी हुई थी । दिल्ली से अरविंद केजरीवाल निकले तो थे विपश्यना के लिए, लेकिन उसके बाद भी पंजाब व गुजरात में ही जमे हुए हैं। पंजाब में रुकने की बड़ी वजह तो वहां आम आदमी पार्टी की सरकार होना है, जिसे जैसे भी संभव हो बचाकर रखना अरविंद केजरीवाल के लिए सबसे जरूरी है। किसी भी राजनीतिक दल के लिए सत्ता की राजनीति कितना मायने रखती है, पंजाब व गुजरात अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम की मौजूदगी सबसे बड़ी मिसाल रही ।
यही कारण है कि गुजरात में दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आम आदमी पार्टी के लिए उत्साही संकेत लेकर आए हैं। विसावदर सीट पर आम आदमी पार्टी के गोपाल इटालिया ने भाजपा के किरिट पटेल को करीब 17,554 वोटों से हराया है। भाजपा को यह हार बहुत चुभेगी, क्योंकि पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के होमग्राउंड में आप के हाथों करारी शिकस्त मिली है। इसके अलावा, यह राष्ट्रवाद और ऑपरेशन सिंदूर जैसे मुद्दों के ऊपर क्षेत्रीय समस्याओं और आकांक्षाओं की जीत का भी संकेत है।दरअसल इस सीट पर पहले भी आम आदमी पार्टी ने जीत दर्ज की थी, लेकिन विधायक भुपेन्द्रभाई गांडुभाई भायाणी पार्टी बदलकर भाजपा में शामिल हो गए थे। इस वजह से उपचुनाव कराए गए थे। भाजपा को जीत की पूरी उम्मीद थी, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने इस सीट को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था।विसावदर विधानसभा उपचुनाव में आम आदमी पार्टी आप के गोपाल इटालिया ने भाजपा के किरिट पटेल को 17,554 वोटों से हराकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। भाजपा को इस सीट पर आखिरी बार 2007 में जीत मिली थी और तब से इस सीट पर जीत के लिए पार्टी तरस रही है। इस बार यहां जीतना भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न था। आम आदमी पार्टी की सटीक रणनीति और सही उम्मीदवार के चुनाव की वजह से भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है।विसावदर सीट पर लगातार दूसरी बार आप की झाड़ू चली है। आम आदमी पार्टी की दोबारा इस सीट पर जीत पीएम मोदी और भाजपा के गुजरात मॉडल को चुनौती है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी ने यहां बेहतरीन उपस्थिति दर्ज कराई है। इस जीत ने साबित कर दिया है कि सही उम्मीदवार और जनता के मुद्दे उठाने का असर चुनावी नतीजों पर नजर आता है। इतना ही नहीं यह इस बात का भी संकेत है कि जनता विकल्प को अपनाने में नहीं हिचक रही है।
गुजरात का रिजल्ट भाजपा के लिए भी एक करारा झटका है। जो दशकों से गुजरात में अजेय मानी जाती रही है। इस जीत ने न सिर्फ आप की साख को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया बल्कि यह भी साबित किया कि गुजरात की जनता अब बदलाव की ओर कदम बढ़ा रही है। दरअसल विसावदर जूनागढ़ जिले की एक महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है। जो लंबे समय तक भाजपा का गढ़ रही थी । पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल जैसे दिग्गज नेताओं ने इस सीट पर भाजपा का परचम लहराया था। हालांकि 2007 के बाद से भाजपा इस सीट पर जीत का स्वाद नहीं चख पाई थी। गोपाल इटालिया ने न केवल इस सीट को वापस हासिल किया……। बल्कि भाजपा को उसकी ही ज़मीन पर चारों खाने चित कर दिया…।
गौरतलब है कि गुजरात में भाजपा की सरकार पिछले दो दशकों से सत्ता में है। इस दौरान विकास के बड़े-बड़े दावे किए गए। लेकिन ग्रामीण इलाकों में बुनियादी सुविधाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के अवसरों की कमी आज भी देखी जा सकती है। विसावदर जैसे कृषि-प्रधान क्षेत्र में किसानों की समस्याएं सिंचाई की कमी, फसलों का उचित मूल्य न मिलना। और कर्ज का बोझ भाजपा के लिए मुसीबत बन गईं। गोपाल इटालिया ने इन मुद्दों को जोर-शोर से उठाया । और जनता के बीच यह संदेश देने में कामयाब रहे कि आप उनकी आवाज़ बन सकती है। गोपाल इटालिया पहले आप के गुजरात अध्यक्ष रह चुके हैं । एक ज़मीनी नेता के तौर पर जाने जाते हैं। उनकी सादगी, बेबाकी और जनता से सीधा संवाद उनकी जीत का सबसे बड़ा हथियार बना। और उन्होंने भाजपा पर भ्रष्टाचार, तानाशाही और जनविरोधी नीतियों का आरोप लगाते हुए तीखा हमला बोला। इसके अलावा आप ने दिल्ली और पंजाब में अपनी सरकारों के काम मुफ्त बिजली, बेहतर स्कूल और मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं को गुजरात की जनता के सामने मॉडल के तौर पर पेश किया। यह रणनीति विसावदर के मतदाताओं, खासकर युवाओं और किसानों के बीच खूब जमी।
वहीं भाजपा के लिए यह हार सिर्फ़ बाहरी कारणों की वजह से नहीं । बल्कि पार्टी के भीतर की गुटबाज़ी और नेतृत्व की कमज़ोरियों ने भी इस हार को और गहरा किया । किरीट पटेल को टिकट देने के फैसले पर स्थानीय कार्यकर्ताओं में नाराज़गी थी । इसके अलावा भूपेंद्र भायानी के आप छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी ने जिस तरह से उन्हें बढ़ावा दिया । उससे विसावदर की जनता में गुस्सा था । लोगों ने इसे ‘दलबदल की राजनीति’ के तौर पर देखा और भाजपा को सबक सिखाने का मन बना लिया था
कांग्रेस कभी गुजरात में भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी थी । अब पूरी तरह से हाशिए पर चली गई है । विसावदर में नितिन रणपरिया की हार और महज 5,501 वोट मिलना कांग्रेस की दयनीय स्थिति को दर्शाता है । कांग्रेस की कमज़ोरी का फायदा सीधे तौर पर आप को मिला क्योंकि जो वोटर भाजपा के खिलाफ़ थे और उन्होंने आप को एक मज़बूत विकल्प के तौर पर चुना ।
गोपाल इटालिया की यह जीत उनकी मेहनत और आप की रणनीति का नतीजा है। एक साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले गोपाल ने अपनी बेबाकी और ज़मीनी मुद्दों पर पकड़ के दम पर विसावदर की जनता का दिल जीता। और उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा पर कई गंभीर आरोप लगाए जैसे कि भाजपा उम्मीदवार द्वारा शराब बांटने की कोशिश। आप ने इस मामले को सोशल मीडिया पर खूब उछाला जिससे भाजपा की छवि को नुकसान पहुंचा।
विसावदर की इस जीत ने गुजरात की सियासत में कई सवाल खड़े कर दिए हैं । क्या भाजपा का अजेय किला अब कमज़ोर पड़ रहा है ? क्या आप गुजरात में कांग्रेस की जगह लेने जा रही है ? क्या 2027 के विधानसभा चुनाव में आप भाजपा के लिए एक मज़बूत चुनौती पेश कर पाएगी ? इन सवालों के जवाब तो वक्त देगा। लेकिन यह जीत निश्चित तौर पर आप के लिए एक बड़ा मनोबल बढ़ाने वाला कदम है।
आपको बता दें कि विसावदर में आप की जीत का एक बड़ा कारण युवा और ग्रामीण मतदाताओं का समर्थन रहा। आप ने रोजगार, शिक्षा और भ्रष्टाचार विरोधी मुद्दों को केंद्र में रखा। जो इन मतदाताओं के बीच खूब जमा। दिल्ली और पंजाब में आप की सरकारों के काम को प्रचार का हिस्सा बनाकर पार्टी ने गुजरात के मतदाताओं को यह भरोसा दिलाया कि वह भी उनके लिए ऐसा ही कर सकती है ।
वहीं 182 सदस्यों वाली गुजरात विधानसभा में भाजपा के पास 161 सीटें थीं……। जो अब 162 हो गई हैं। क्योंकि उन्होंने कड़ी सीट पर जीत हासिल की। लेकिन विसावदर की हार भाजपा के लिए एक चेतावनी है। अगर आप इसी तरह ज़मीनी स्तर पर काम करती रही तो 2027 में भाजपा के लिए चुनौती बढ़ सकती है। भाजपा को अब अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। विसावदर की हार के बाद भाजपा के लिए कई सवाल खड़े हो गए हैं । क्या पार्टी ने सही उम्मीदवार चुना। क्या स्थानीय मुद्दों को समझने में चूक हुई। क्या दलबदल की राजनीति अब उल्टा पड़ रही है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने हार के बाद कहा कि वे इस पर आत्ममंथन करेंगे लेकिन यह साफ़ है कि पार्टी को अब नए सिरे से रणनीति बनानी होगी । आपको बता दें कि भूपेंद्र भायानी का आप से भाजपा में जाना और फिर किरीट पटेल को टिकट देना भाजपा के लिए भारी पड़ गया। जनता ने इसे दलबदल की राजनीति के तौर पर देखा। और इसका जवाब वोट के ज़रिए दिया। यह भाजपा के लिए एक सबक है कि दलबदल कराने की रणनीति हमेशा कामयाब नहीं होती ।
भाजपा का प्रचार इस बार उतना प्रभावी नहीं रहा जितना पहले देखा गया था । गोपाल इटालिया ने ज़मीनी स्तर पर घर-घर जाकर प्रचार किया जबकि भाजपा का प्रचार मुख्य रूप से अपनी सरकार के दावों तक सीमित रहा इसके अलावा आप ने सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल किया खासकर शराब बांटने के आरोप को वायरल करके। विसावदर की जीत आप के लिए सिर्फ़ गुजरात तक सीमित नहीं है । दिल्ली में 2024 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद आप को एक मज़बूत वापसी की ज़रूरत थी……। विसावदर और पंजाब की लुधियाना पश्चिम सीट पर मिली जीत ने पार्टी का मनोबल बढ़ाया है । आप के दिल्ली अध्यक्ष सौरव भारद्वाज ने कहा कि कुछ लोग कह रहे थे कि आप खत्म हो गई है लेकिन यह जीत दिखाती है कि जनता हमारे साथ है । यह केजरीवाल की राष्ट्रीय राजनीति में शानदार वापसी है। वहीं यह जीत आप के लिए 2027 के गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए एक मज़बूत आधार तैयार कर सकती है अगर आप इसी तरह ज़मीनी स्तर पर काम करती रही तो वह गुजरात में भाजपा के लिए एक मज़बूत चुनौती बन सकती है ।
बता दें कि गोपाल इटालिया की विसावदर में जीत न केवल आप की ताकत को दर्शाती है……। बल्कि यह भी बताती है कि गुजरात की जनता अब बदलाव के मूड में है। भाजपा के लिए यह हार एक चेतावनी है कि उनकी ज़मीन अब खिसक रही है। अगर पार्टी ने समय रहते अपनी रणनीति में सुधार नहीं किया तो 2027 के चुनाव में उसे और बड़े झटके लग सकते हैं दूसरी ओर आप और गोपाल इटालिया के लिए यह जीत एक नई शुरुआत है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या आप इस जीत को गुजरात में एक बड़े सियासी बदलाव में बदल पाएगी।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार