बिहार में योगी-अखिलेश के बाद कब मायावती दिखेंगी मैदान में

After Yogi and Akhilesh, when will Mayawati be seen in the fray in Bihar?

अजय कुमार

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव इन दिनों बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचार के केंद्र में हैं। योगी आदित्यनाथ बीजेपी और एनडीए प्रत्याशियों के लिए धुआंधार जनसभाएं कर रहे हैं, वहीं अखिलेश यादव महागठबंधन को जीत दिलाने के लिए सक्रिय हैं। मायावती की बात करें तो उन्होंने अब तक बिहार में कोई जनसभा नहीं की है, जबकि पार्टी ने 6 नवंबर से उनके प्रचार अभियान की योजना बनाई है। योगी आदित्यनाथ चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में सिवान, वैशाली और भोजपुर जैसे प्रमुख जिलों में जनसभाएं कर रहे हैं। बीजेपी ने योगी को बिहार भेजकर एनडीए के हिंदुत्ववादी एजेंडे को धार दी है। रघुनाथपुर (सीवान), शाहपुर और बक्सर में उनकी रैलियों के दौरान यूपी के विकास मॉडल, अपराध पर जीरो टॉलरेंस और बुलडोजर राजनीति को बिहार की जनता के सामने रखा गया। स्थानीय लोगों के बीच योगी की लोकप्रियता, यूपी के सीमावर्ती इलाकों में उनकी पकड़ को भुनाने की कोशिश साफ दिखती है। सिवान में उन्होंने आरजेडी पर सीधा हमला किया और एनडीए को कानून-व्यवस्था, रोजगार और बिजली-पानी के मुद्दों पर बेहतर विकल्प बताया। बारिश के कारण उनकी कुछ रैलियां प्रभावित भी हुई हैं, लेकिन बीजेपी कार्यकर्ताओं का उत्साह कम नहीं हुआ। योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति बिहार चुनाव में एनडीए के वोटरों को गठित और प्रेरित करने का संदेश देती है।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव एक नवंबर से बिहार चुनाव प्रचार अभियान में उतर रहे हैं। उनका कार्यक्रम आधा दर्जन से ज्यादा रैलियों का है, जिनमें वे महागठबंधन के प्रत्याशियों के लिए वोट मांगेंगे। सपा प्रमुख अखिलेश यादव, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के साथ संयुक्त रैली करने वाले हैं, जिससे महागठबंधन के प्रचार को ऊर्जा और एकजुटता मिलती है। पहले चरण में पूर्वी चंपारण, सिवान और कैमूर में अखिलेश महागठबंधन को वोट दिलाने के लिए अपने यूपी के अनुभवों और विकास के वादों को बिहार में गिनाएंगे। अखिलेश यादव ने नीतीश कुमार को ‘बीजेपी का चुनावी दूल्हा’ कहकर चुनावी बहस को धार दी है। सपा का संदेश है कि महागठबंधन ही बिहार को स्थिर, प्रगतिशील और संवेदनशील सरकार दे सकता है। बिहार के युवाओं और पिछड़े वर्गों के बीच अखिलेश की यूपी मॉडल और साझा सत्ता की नीति डाली जा रही है।

उधर, बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने अब तक बिहार में कोई जनसभा नहीं की है, जबकि 6 नवंबर से उनका प्रचार अभियान शुरू होने की घोषणा की गई है। पार्टी ने दो दर्जन रैलियों का कार्यक्रम तैयार किया है और कैमूर, रोहतास, आरा, बक्सर जैसे पश्चिमी जिलों में अपना नेटवर्क बना रही है। मायावती की पार्टी ‘साइलेंट वोटर’ और सीमावर्ती वोट बैंक के सहारे चुनाव में असर दिखाना चाहती है। 2005 और 2010 के चुनाव के बाद अब फिर अपना जनाधार मजबूत करने के लिए स्थानीय उम्मीदवारों पर दांव लगा रही है, लेकिन मायावती की चुप्पी ने राजनीतिक विश्लेषकों को भी हैरान किया है। अभी तक उन्होंने खुलकर बिहार में सक्रियता नहीं दिखाई, जिससे दलित और अति पिछड़ा वर्ग के वोटों पर संशय बना हुआ है।

समाजवादी पार्टी इस बार इंडिया गठबंधन का हिस्सा है और उसने बिहार की सीटों पर गठबंधन के तहत उम्मीदवार उतारे हैं। सपा के उम्मीदवार मुख्य रूप से महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। 2025 बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद सपा ने अपने स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है, जिसमें अखिलेश यादव, डिंपल यादव और आजम खान समेत 20 बड़े नेता शामिल हैं। बिहार की 243 सीटों पर चुनाव हो रहा है, लेकिन सपा ने केवल 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इनमें पूर्वी चंपारण (कल्याणपुर), सिवान (रघुनाथपुर), कैमूर (भभुवा) आदि विधानसभा क्षेत्रों के सपा प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। इनके अलावा गठबंधन की स्ट्रैटेजी के तहत महागठबंधन के अन्य दलों को अधिक सीटें दी गई हैं। सपा उम्मीदवारों की सूची में जातीय संतुलन के साथ स्थानीय समाजवादी नेताओं को टिकट दिया गया है। अधिकतर सीटें उच्च पिछड़ा व अल्पसंख्यक बहुल इलाके की हैं। सपा का उद्देश्य बिहार में महागठबंधन के प्रत्याशी को सहयोग देना है।