भारतीय महिला हॉकी टीम ओलंपिक क्वॉलिफायर्स में, एक समय केवल एक मैच को लें फाइनल में पहुंचे: एलिजा

  • हमारे पास जीत के अलावा और कोई विकल्प नहीं

सत्येन्द्र पाल सिंह

नई दिल्ली : नई दिल्ली में 1982 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने तथा 1980 के मास्को ओलंपिक में चौथे स्थान रहने वाली भारतीय महिला हॉकी की स्टार स्ट्राइकर रही पदमश्री एलिजा नेल्सन ने हॉकी ते चर्चा कार्यक्रम में अपने हॉकी सफर और तब के भारतीय महिला हॉकी के माहौल पर चर्चा की। एलिजा नेल्सन की जड़े गोवा से जुड़ी हैं लेकिन उन्होंने हॉकी का ककहरा और भारतीय महिला हॉकी टीम का सफर तब खासतौर पर भारत में महिला हॉकी का गढ़ कहे जाने वाले पुणे के लिए खेल कर शुरू किया। जब वह भारत के लिए महिला हॉकी खेली उस दौर में पुणे की सात खिलाडिय़ों ने भारत की कप्तानी की और दो दर्जन से ज्यादा खिलाडिय़ों ने भारत की नुमाइंदगी की।

एलिजा नेल्सन ने गोलरक्षक सविता की अगुआई में 13 से 19 जनवरी तक रांची में एफआईएच महिला ओलंपिक हॉकी क्वॉलिफायर, 2024 में शिरकत करने जा रही भारतीय महिला हॉकी टीम को यही सलाह दी कि एक समय केवल एक मैच को ही लें। रांची में होने वाले ओलंपिक क्वॉलिफायर्स 2024 में भारतीय महिला हॉकी टीम पूल बी में न्यूजीलैंड, इटली और अमेरिका के साथ हैं जबकि पूल ए में जर्मनी, जापान , चिली और चेक रिपब्लिक की टीमों को रखा गया है। रांची में ओलंपिक महिला हॉकी क्वॉलिफायर्स से शीर्ष तीन टीमें 2024 के पेरिस ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई करेंगी। एलिजा नेल्सन ने कहा, ‘मेरी सविता की अगुआई वाली रांची में ओलंपिक महिला हॉकी क्वॉलिफायर में शिरकत करने वाली भारतीय टीम के लिए बस एक यही सलाह है कि एक समय में केवल एक मैच को लें फाइनल में पहुंचे। इसमें हमे जीतना ही होगा क्योंकि हमारे पास इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है।’

भारतीय टीम रांची में ओलंपिक महिला हॉकी क्वॉलिफायर्स में अपने अभियान का आगाज 13 जनवरी को अमेरिका के खिलाफ मैच से करने के बाद 14 जनवरी को न्यूजीलैंड से करेगी और फिर 16जनवरी को पूल बी में अपना अंतिम मैच इटली से खेलेगी। एलिसा ने कहा, ‘पुणे में बहत लोग हाकी खेलते थे । मैं पुणे रहती थी और बहुत लोग हॉकी खेलना करते थे। मैं जहां रहती तब के मेरे तब के कोच मीनू गोलकरी मुझे खेलता देखा करते देखा करते थे और एक दिन वह मेरे पास आए और मुझे अपने क्लब कल्याणी से कहा। वह जानते थे कि मैं स्कूल में एक अच्छी एथलीट थी और उन्होंने मुझे लेफ्ट आउ , राइट आउट और सेंटर फॉरवर्ड के रूप में खिलाया। फिर क्लब के बाद मैं पहले महाराष्टï्र की जूनियर और फिर सीनियर टीम के लिए खेली। हम पटियाला थे और तभी मुझे यह खुशखबरी मिली कि मुझे जब म चेन्नै में बेगम रसूल अंंतर्राष्टï्रीय टूर्नामेंट में खेलने के लिए भारतीय टीम में चुन लिया गया है। तब हम सभी साथी लड़कियों ने अपने परिवार को यह खबर देने के लिए टेलीग्राम किया। तब हमें अपने कोट के लिए जो 500 रूपये देने थे वह मेरे क्लब ने दिए।’

जब एलिजा नेल्सन ने 70 के दशक के भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए खेलना शुरू किया तब पुरुष हॉकी के ही चर्चे ज्यादा थे। इस बाबत एलिजा ने कहा, ‘मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि पुरुष हॉकी टीम ने हमें पृष्ठïभूमि में डाल दिया था लेकिन यह जरूर कहूंगा िक 1975 के बाद अगले दो बरस के लिए हमारी महिला टीम को खेलने को कोई टूर्नामेंट नहीं मिला, 1978में हमारी टीम स्पन में महिला हॉकी विश्व कप में खेलने गई और शिविर और बहुत ज्यादा हाकी खेलने के मौके नहीं मिल। स्पेन में हमारी महिला टीम विश्व कप में पहली बार एस्ट्रो टर्फ पर खेली और इसके लिए हमारी पास ठीक से किट ही नहीं थी। ईस्टर्न कंपनी ने हमें जो जूते दिए वह एस्ट्रो टर्फ पर खेलने के लिए उपयुक्त नही थे और 1982 में ही हॉकी खेलने के लिए सही किट मिली। हमारी टीम ने 1982 में कोच बालकिशन सिंह के मार्गदर्शन में एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। तब हमें बताया गया कि पुरुष हॉकी टीम एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक नहीं जीतने वाली है और इसीलिए वह हमारी महिला हॉकी टीम से जुड गए। हालांकि मुझे नहीं मालूम कि यह बात कितनी सच थी लेकिन हमें खुशी है कि बालकिशन सर हमारी महिला टीम से जुड़े और उन्होंने हमे हमेशा बढिय़ा चलने को प्रेरित किया।’