बी.एल. गौड़
जी हाँ, मैं बात कर रहा हूं देश के दिवंगत प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह जी की जिन्होंने 26 दिसंबर 2024 को दुनिया को अलविदा कह दिया। वो छोड़ गए अपने पीछे बुद्धिजीवियों के मन में दुख और कुछ राजनेताओ के लिए राजनीति करने के लिए एक बड़ा प्लेटफॉर्म और एक बिना बात का मुद्दा भी। अभी उनके पार्थिव शरीर का दाह संस्कार भी नहीं हुआ था कि राजनीति चरम पर पहुंच गई थी। भारत सरकार ने उनके सम्मान में 7 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा कर दी। कुछ लोगों ने अपने आने वाले राजनीतिक कार्यक्रमों को आगे के लिए टाल दिया तो कुछ ने विदेश जाकर नया साल मनाने का निर्णय लिया। इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता, शायद आज के दौर की यही राजनीति है। जहां तक मनमोहन जी का सवाल है, उन्होंने कभी भी निम्न स्तर की राजनीति नहीं की और न ही अपनी पार्टी के अनुचित कार्यों का विरोध किया, जिसने उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में चुना था। पेश है उनके विषय में एक लेखा जोखा:-
वे भारतीय राजनीति के एक प्रेरक और बहुत कम बोलने वाले प्रधानमंत्री थे। लेकिन जब वे बोलते थे, बहुत दृढ़ता और स्पष्टता से बोलते थे। डॉ. मनमोहन सिंह (जन्म 26 सितंबर 1932-मृत्यु 26 दिसंबर 2024), जो भारत गणराज्य के 13वें प्रधानमंत्री, एक भारतीय राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, शिक्षाविद और ब्यूरोक्रेट थे। जिन्होंने 2004 से 2014 तक भारत के 13वें प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी के बाद चौथे सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले प्रधानमंत्री थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य मनमोहन सिंह भारत के पहले सिख प्रधानमंत्री थे। वे नेहरू के बाद पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद दोबारा चुने जाने वाले पहले प्रधानमंत्री भी थे। वित्त मंत्री के तौर पर दुनियाभर में ख्याति प्राप्त करने के बाद मनमोहन सिंह गांधी परिवार के और करीब आ गए। 2004 में यूपीए सरकार में दिवंगत प्रणब मुखर्जी के अलावा कई हस्तियां प्रधानमंत्री पद की दौड़ में थीं। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने डॉ. मनमोहन सिंह पर भरोसा जताया। डॉ. मनमोहन सिंह लाल बहादुर शास्त्री और पी.वी. नरसिम्हा राव के बाद गांधी परिवार से अलग कांग्रेस के तीसरे प्रधानमंत्री बने।
मेरे संपादकीय के शब्द उनके परिचय में छोटे पड़ जाएंगे, क्योंकि मनमोहन सिंह के व्यक्तित्व ने कई मुकाम हासिल किए हैं। पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान) के गाह में जन्मे मनमोहन सिंह का परिवार 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के समय भारत आ गया था। मनमोहन सिंह ने ब्रिटेन के आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने 1966 से 1969 तक संयुक्त राष्ट्र में काम किया। ब्यूरोक्रेट के रूप में उनका करियर 1971 में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में सलाहकार के रूप में नियुक्ति के साथ शुरू हुआ। 1970 और 80 के दशक में डॉ. मनमोहन सिंह ने मुख्य आर्थिक सलाहकार, आरबीआई गवर्नर और योजना आयोग के प्रमुख समेत कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। इसी दौरान वे पी.वी. नरसिम्हा राव की नजर में आए, जिन्होंने 1991 में पीएम बनते ही मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त किया।
आज जिन कानूनों को देश में क्रांतिकारी बदलाव का वाहक माना जाता है, उन सभी की शुरूआत मनमोहन सरकार ने की थी। 92 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह यूं तो बहुत सौम्य और कम बोलते थे, लेकिन उनके कुछ कामों की गूंज इस दुनिया में लंबे समय तक रहेगी। अगर भारत आज दुनिया की एक बड़ी और उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, तो इसकी नींव मनमोहन सिंह ने ही रखी थी। जिसे आज दुनिया की पाँचवीं अर्थव्यवस्था तक पहुँचाया वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने। जब उन्होंने 1990 के दशक में वित्त मंत्री के तौर पर आर्थिक सुधारों का रास्ता साफ किया था। भारत और अमेरिका के बीच परमाणु समझौते को उनके प्रधानमंत्री रहने के दौरान किया गया महत्वपूर्ण द्विपक्षीय अनुबंध माना जाता है। इसी से भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु सहयोग की शुरूआत हुई। ग्रामीण इलाकों में न्यूनतम रोजगार की गारंटी योजना मनरेगा की शुरूआत भी मनमोहन सिंह के नेतृत्व में ही हुई। सूचना का अधिकार देने वाला कानून भी उन्हीं की देन है। सर्व शिक्षा अभियान के जरिए स्कूलों में मिड-डे मील की शुरूआत भी की गई।
1990 में श्री चंद्रशेखर की सरकार के दौरान गिरवी रखा गया देश का सोना 1991-96 में उनके वित्त मंत्री रहते हुए वापस लाया गया। इससे दुनिया में भारत की साख बहाल हुई। 2005 में बिक्री कर की जगह मूल्य वर्धित कर (श्अळ) लागू किया गया। 2008 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू की गईं, जिससे कर्मचारियों को ज्यादा पैसे मिलने लगे। यह पैसा बाजार में गया। इससे देश को वैश्विक बाजार से निपटने में मदद मिली। 2011 में देश की जीडीपी विकास दर 8.5 प्रतिशत तक पहुँच गई। इससे पूरी दुनिया का ध्यान भारत की ओर गया और बड़े निवेशकों का भरोसा भारत में बढ़ा।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जो कहा उससे साफ पता चलता है कि डॉ. मनमोहन सिंह उन दुर्लभ राजनेताओं में से एक थे जिन्होंने शिक्षा और प्रशासन की दुनिया में समान रूप से काम किया। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। देश के प्रति उनकी सेवा, उनके बेदाग राजनीतिक करियर और अत्यंत विनम्रता के लिए हमेशा याद किया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश अपने सबसे सम्मानित नेताओं में से एक डॉ. मनमोहन सिंह के निधन पर शोक मना रहा है। एक साधारण पृष्ठभूमि से उठकर वे एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री बने। उन्होंने कई वर्षों तक हमारी आर्थिक नीति पर अपनी गहरी छाप छोड़ी। संसद में उनका हस्तक्षेप भी व्यावहारिक था।
भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय शरणार्थी के रूप में भारत आए मनमोहन सिंह एक-एक कर सीढ़ियां चढ़ते गए और सत्ता के शिखर पर पहुंचे। उनकी कहानी दुनिया के उन महान लोगों में दर्ज होगी जिन्होंने अपनी मेहनत से अपनी किस्मत खुद लिखी जो लोगों को प्रेरित करती रहेगी। अलविदा मनमोहन जी, आपका व्यक्तित्व आपकी चुप्पी से कहीं ज्यादा शक्तिशाली था।