होली गीतों में अश्लीलता का प्रसार, जिम्मेदार कौन?

Spread of obscenity in Holi songs, who is responsible?

विनोद कुमार विक्की

ढोलक की थाप पर फगुआ राग और होली गीत गायकी का परंपरागत नाता रहा है। ‘जोगी जी धीरे-धीरे जोगी जी वाह जोगी जी’ और फगुआ जैसे कर्ण प्रिय गीत-संगीत से पूर्वोत्तर के यूपी, बिहार ही नहीं अपितु संपूर्ण भारत में फागुनी होली का बसंत मिश्रित उमंग छा जाता है।

होली का बॉलीवुड से भी गहरा रिश्ता रहा है। फिल्मों में होली पर्व का रंग हमेशा परवान चढ़ा है। लोक-संस्कृति के लोक गीत से लेकर परंपरागत होरी, फगुआ या जोगीरा का फिल्मों में जमकर प्रयोग होता रहा है। शोले की होली हो या सिलसिला की अथवा बागबान की। रंगोत्सव का दृश्य पवित्रता और सौहार्द को ही दर्शाता है। एक से बढ़कर एक म्यूजिकल हिट वाले होली गीत यथा ‘आज न छोडेंगे बस हम होली खेलेंगे हम होली’, ‘खाए गोरी का यार बलम तरसे रंग बरसे’, ‘बहादुर नहीं छोड़ेगा’, ‘अंग से अंग लगाना सजन, हमें ऐसे रंग लगाना’, ‘होली खेले रघुवीरा अवध में होली खेले रघुवीरा’, ‘आज ना छोड़ेंगे बस हम होली’ आदि गीतों में छेड़छाड़ एवं स्वस्थ भाव वाली ठिठोली अवश्य है लेकिन फूहड़ता और अश्लीलता कहीं नजर नहीं आती। फिर अचानक से होली में नशा, अश्लीलता का समावेश कब और कैसे हो गया?

आम तौर पर होली पर्व को कृष्ण और राधा के संग जोड़ा जाता है। लेकिन विभिन्न लोक गायकों ने अपने-अपने गायकी से अवध,काशी,ब्रज आदि की पावन होली का भरपूर चित्रण किया है।काशी में भोलेनाथ, ब्रज में कृष्ण होली गीतों के नायक होते हैं तो अवध में प्रभू श्रीराम। छन्नूलाल मिश्रा,आबिदा परवीन,बेगमअख्तर,नूसरत फतेह अली खान से लेकर भरत शर्मा व्यास तक के होली गीत में काशी अवध, ब्रज बरसाना, भागवत पुराण तक की होली परंपरा को सरस शब्दों और गीतों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। रंगो का यह त्यौहार दक्षिण एशिया में लगभग सभी धर्मों और संप्रदायों में खासा लोकप्रिय है। मुस्लिम सूफियों से लेकर शारदा सिन्हा,भरत शर्मा व्यास जैसे भोजपुरी गायकों ने होली गीत को अपनी उम्दा आवाज और संगीत से और भी ज्यादा समृद्ध किया है। गिरिजा देवी की उड़त अबीर गुलाल, छन्नूलाल मिश्रा की ‘खेलैं मसाने में होली दिगंबर, खेलैं मसाने में होली’, बेगम अख़्तर के शब्दों में ‘सखी, होली खेलन कैसे जाऊं’ जैसी होरी गीत,सूफी गीत गायिका आबिदा परवीन की ‘होली खेलन आया पिया, होली खेलन आया’, शोभा गुर्टु की ‘आज बिरज में होरी रे रसिया’, नुसरत फतेह अली खान की रंग है री मां, रंग है री, भरत शर्मा व्यास की भोजपुरी निर्गुण गीत ‘होरी खेलत रघुबीर’ के अलावा यदि भोजपुरी होली गीत की बात करें तो शारदा सिन्हा की ‘भीजल मोरी चुनरिया’ या फिर नदिया के पार का जसपाल सिंह का “जोगी जी धीरे-धीरे जोगी जी वाह जोगी जी”, जोगीरा सारा रा रा” जैसे कर्ण प्रिय भोजपुरी गीतों को सांस्कृतिक धरोहर ही माना जा सकता है। पुराने भोजपुरी गीत-संगीत जिसमें हंसी मजाक है विशुद्ध चुटकी है लेकिन फूहड़ता और अश्लीलता लेस मात्र भी नहीं। इन दिनों भोजपुरी गाना के गिरते स्तर ने होली जैसे पावन मनोरंजक पर्व को भी अश्लील गीत संगीत से शर्मसार करने की कसम खा रखी है। विगत कुछ वर्षो से अश्लील गाने गाना और सुनना होली खेलने व मनाने का आधार बनता जा रहा है | इस कार्य मे बिहार के भोजपुरी गायक एवं भोजपुरी होली गीतों ने सभी मर्यादा को ताक पर रख दिया है | भौजी, साली आदि के साथ अश्लील और द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग कर भोजपुरी होली गीतों का बाजार ऑन-लाइन सज-सा गया है।

वर्तमान में अश्लीलता की हद पार कर चुके भोजपुरी होली गीत में यौनिक इशारेबाजियां और फूहड़पन से रंगीन होली को रूग्ण होली बनाने की ओर अग्रसर प्रतीत होता है। चौक चौराहा,बस-टेम्पू ,सैलून,पान दुकान,डीजे आदि द्वारा जब इन होली गीतों को तेज ध्वनि में बजाया जाता है सुनने वाला सभ्य समाज शर्मसार हो जाता है।

छैला बिहारी का गीत ‘एगो जोबना हरिहर लौके एगो लौके लाल हो’,अक्षरा सिंह का साइज भूल गइला होली मेंं,रसदार होली एलबम से गुड्डू रंगीला का गीत होली में खिसियाइल जोबन,छोटू छलिया का लंहगा करत लसालस,खेसारी का लाल रंग डालब गुलगुलवा में,गुड्डू रंगीला का ही बैगनवा रे तोर बिन काम ना चली,रंगेम तोहार दूनो उ उ,आगे पाछा जीजा दुनो टेस्ट करा त, आदि निम्न स्तरीय एवं अश्लीलता की हद पार कर चुके होली गीत भोजपुरी लोक गायन के नाम पर कलंक ही है। ऐसे लोक गायक सस्ती लोकप्रियता की आड़ में देवर-भाभी, जीजा-साली जैसे हंसी-मजाक वाले स्वस्थ रिश्तों को कलंकित करने के साथ ही लोक संस्कृति को तार-तार कर रहे हैं। इनके द्वारा होली की आड़ में सस्ती लोकप्रियता को भुनाने की बाजारवादी घृणित मानसिकता स्पष्ट ही दृष्टिगोचर होती है।

होली गीत के अलबम का सेंसर की कैंची से परे होने के कारण अश्लीलता एवं द्विअर्थी से लबरेज़ इन होली गीतों से सभ्य समाज प्रदूषित होने के साथ-साथ होली पर्व की पावनता भी धूमिल हो रही है। जहाँ तक अश्लील गायन से संस्कृति प्रदूषण की बात है, तो इसके लिए सुनील छैला बिहारी,गुड्डू रंगीला,खेसारी,निरहुआ,छोटू छलिया,कलुआ जैसे चर्चित लोक गायक जितने जिम्मेदार हैं, उतने ही इन भद्दे द्विअर्थी गीतों को सुनने और इन गीतों पर झूमने और थिरकने वाले श्रोता भी हैं।

बहरहाल लोक संस्कृति की आड़ में फूहड़ गीत-संगीत से होली जैसे पौराणिक पावन उत्सव पर सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाने वाले इन घटिया एलबम पर रोक लगाने के लिए सेंसर बोर्ड जैसी प्रमाणिक संस्थान की जरूरत समय की माँग बन चुकी हैं।