चुनाव प्रचार में केवल ‘मानव हित’ की बात हो ! न हिन्दू हित की बात, न मुस्लिम तुष्टिकरण…

There should only be talk of 'human interest' in the election campaign! Neither a matter of Hindu interest, nor of Muslim appeasement...

गिरीश पंकज

आम चुनाव के समय प्रचार करते हुए विभिन्न दलों के नेता कई बार वैचारिक संतुलन को देते हैं । इसी का दुष्परिणाम यह होता है कि कुछ नेता सांप्रदायिकता में उतर आते हैं। इस बार यही दिख रहा है। कोई हिंदू हित की बात करता है, कोई मुस्लिम हित की बात करता है। जबकि किसी भी नेता को अपनी जुबान पर किसी भी धर्म का नाम न लेते हुए केवल ‘मानव हित’ की बात करनी चाहिए। लेकिन ऐसा बहुत कम हो पाता है । चुनाव जीतने के लिए क्षेत्र विशेष के लोगों को प्रभावित करने की नीति का ही दुष्परिणाम होता है कि नेता वहां के मतदाताओं को खुश करने के लिए ऐसे भाषण करने लगते हैं ,जिसे कदापि उचित नहीं कहा जा सकता।

अभी हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया भाषण भी खासा चर्चा में है। उन्हें ऐसी बात बिल्कुल नहीं कहनी चाहिए, जिससे जनमानस में उनकी निष्पक्ष छवि के प्रति विपरीत धारणा बने। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जिक्र किया। मनमोहन जी ने एक बार भाषण देते हुए कहा था कि “इस देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है।” और उन्होंने विशेष रूप से मुसलमानों का भी जिक्र किया था। यह बहुत बड़ी गलती थी। इस देश में किसी एक धर्म के उन्नयन की बात नहीं की जा सकती। समग्र मानवता के उन्नयन की बात होनी चाहिए। इस देश के संसाधनों पर हर नागरिक का बराबर हक है। ऐसी छोटी बात नहीं कहीं जानी चाहिए। लेकिन यह बात अब बहुत पुरानी हो चुकी है। उसे वर्तमान समय में उठाना उचित नहीं। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने एक चुनावी सभा में पूर्व प्रधानमंत्री के उस भाषण का उल्लेख करते हुए कुछ इस तरह की बातें की, जिसने देश में वैचारिक द्वंद्व का वातावरण बना दिया है । उन्होंने पहली बार अपनी भाषण में यह कहा कि कांग्रेस मुसलमानों के हित की बात अधिक करती है । प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में मुसलमान शब्द का जिक्र किया, जो सीधे-सीधे उनके खिलाफ जा रहा था। इसे सुनकर एक बड़ी मुस्लिम आबादी उनके बारे में गलत धारणा बना सकती है। कह सकते हैं कि यह प्रधानमंत्री की बहुत बड़ी भूल है। वह अपने भाषणों में अल्पसंख्यक शब्द का प्रयोग करते रहे हैं। इस बार भी उन्हें ऐसा करना चाहिए था। तब शायद उतना बवाल नहीं मचता । इसलिए चुनाव के समय बहुत संतुलित होकर भाषण देने की जरूरत होती है। भाषण की एक-एक पंक्ति जनता का मानस बनाने का काम करती है। कोई भी ऐसी बात नहीं होनी चाहिए, जिससे मतदाताओं के बड़े वर्ग को विपरीत दिशा में सोचने का मौका मिले । भारतीय जनता पार्टी के नारे ‘सबका साथ, सबका विकास और सब का विश्वास’ के कारण हजारों मुसलमान भाजपा के पक्ष में दिखाई देते रहे हैं । लेकिन प्रधानमंत्री के इस अप्रत्याशित भाषण के कारण हो सकता है कि मुस्लिम मतदाताओं के मन में कोई दूसरी धारण बन जाए, और वे उनसे दूर होते चले जाएं। इसलिए प्रधानमंत्री को सावधान होकर भाषण करना चाहिए और भूल कर भी कोई ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए, जिससे मुस्लिम मतदाताओं को यह लगे कि प्रधानमंत्री हमारे नहीं हैं। प्रधानमंत्री जाति-धर्म से ऊपर उठकर सभी के हिट रक्षक होते हैं ,इसलिए उन्होंने सबका साथ, सबका विश्वास जैसा उदारवादी नारा दिया । उन्हें इस नारे पर कायम रहना चाहिए और मानव मात्र के हित की बात करनी चाहिए। कांग्रेस के विरुद्ध बोलते हुए यह कह देना भी उचित नहीं है कि अगर कांग्रेस सरकार आई तो हिंदुओं की संपत्ति पर कब्जा करके वह सबको बाँट देगी । आपका मंगलसूत्र भी खतरे में है । आदि आदि।

हैदराबाद के ओवैसी जैसे कुछ मुस्लिम नेता जहर उगलने वाली भाषा में अकसर भाषण करते हैं । उनके भाषणों को शायद अधिसंख्य मुसलमान भी उतना पसंद न करें। इस देश में धीरे-धीरे उदारवाद बढ़ता जा रहा है । सर्व धर्म सद्भाव की बातें हो रही हैं। और यह होनी भी चाहिए। ऐसे समय में अगर कोई नेता मुसलमान के हित की बात करे, कोई हिंदू हित की बात करे,तो समाज का एक बहुत बड़ा बौद्धिक वर्ग इसे बिल्कुल पसंद नहीं करेगा ।इसलिए अगर इस देश की जनता का दिल जीतना है, तो बहुत संतुलित विचार व्यक्त करने की जरूरत है।