प्रयागराज भगदड़: प्रशासनिक लापरवाही या भक्तों का उन्माद

Prayagraj stampede: administrative negligence or frenzy of devotees

एक पौराणिक शहर की सीमाओं पर विचार करना चाहिए, जिसे अपनी धार्मिक विरासत को बनाए रखते हुए आठ करोड़ लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है। दस लोगों के लिए डिज़ाइन की गई जगह में सौ लोग कैसे रह सकते हैं? यह विचार करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। इसके अलावा, वीवीआईपी संस्कृति और सरकार के मुनाफे की खोज, जिसमें राजस्व के लिए हर उपलब्ध भूमि को पट्टे पर देना और बिचौलियों को शामिल करना शामिल है, के बीच का सम्बंध मामले को और जटिल बनाता है। यह धार्मिक भक्ति का मामला है, प्रतिस्पर्धा या उन्माद का नहीं।

प्रियंका सौरभ

प्रयागराज में हुई भगदड़ के बारे में सुनना दुर्भाग्यपूर्ण है, जिसके परिणामस्वरूप कई लोगों की जान चली गई। यह घटना निस्संदेह विभिन्न मीडिया प्लेटफार्मों पर व्यापक चर्चाओं को जन्म देगी। विपक्ष आलोचना करेगा, जबकि सरकार अपने कार्यों को सही ठहराने का प्रयास करेगी, लेकिन जो लोग मर चुके हैं उन्हें वापस नहीं लाया जा सकता। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। प्रयागराज में संगम तट पर वर्ष 2013 के कुंभ मेले के दौरान 10 फरवरी दिन रविवार को मौनी अमावस्या का स्नान था। कुचलने और गिरने से 35 लोगों की मौत हो गई थी। जबकि दर्जनों लोग घायल हुए थे। जिनका अस्पताल में कई दिनों तक इलाज़ चला था। 1954 में मौनी अमावस्या के दिन नेहरू जी ने संगम में स्नान किया, जो इस मेले का मुख्य आकर्षण था। इस कुंभ मेले के दौरान एक दर्दनाक हादसा भी हुआ। मौनी अमावस्या के स्नान के समय, एक हाथी नियंत्रण से बाहर हो गया और भगदड़ मच गई। इस दुर्घटना में करीब 500 लोग मारे गए।

भगदड़ के बाद भीड़ को नियंत्रित करने और सूचना देने के लिए लाउडस्पीकर्स का इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा, रात के समय मेले में रोशनी के लिए 1000 से अधिक स्ट्रीट लाइट्स लगाई गई थीं। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इसके बाद, कुंभ मेले में हाथियों के उपयोग पर हमेशा के लिए रोक लगा दी गई। अपने घर में छोटा-सा कार्यक्रम करिए उसको सकुशल संपन्न कराने में हवा निकल जाती है यहाँ तो पूरा विश्व आया हुआ है करोड़ों की संख्या में। एक पौराणिक शहर की सीमाओं पर विचार करना चाहिए, जिसे अपनी धार्मिक विरासत को बनाए रखते हुए आठ करोड़ लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है। दस लोगों के लिए डिज़ाइन की गई जगह में सौ लोग कैसे रह सकते हैं? यह विचार करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। इसके अलावा, वीवीआईपी संस्कृति और सरकार के मुनाफे की खोज, जिसमें राजस्व के लिए हर उपलब्ध भूमि को पट्टे पर देना और बिचौलियों को शामिल करना शामिल है, के बीच का सम्बंध मामले को और जटिल बनाता है। यह धार्मिक भक्ति का मामला है, प्रतिस्पर्धा या उन्माद का नहीं।

कुछ लोग इसे प्रशासन की नाकामी बता रहे हैं। लिखना और आलोचना करना बहुत आसान है लेकिन जहाँ पर लाखों, करोड़ों लोगों की भीड़ हो ओर उसमें भी बहुत बड़ी संख्या में बुज़ुर्ग हो। घाटों पर जहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्नान कर रहे हो, बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्नान करके बाहर निकल रहे हो और बड़ी संख्या में श्रद्धालु संगम स्नान करने जा रहे हों। हादसे की संभावना बनी रहती है और अफ़सोस हादसा हो ही गया। हमेशा याद रखें। प्रशासन एक-एक का हाथ पड़कर स्नान नहीं करवा सकता। हादसा कहीं भी हो सकता है। ना इसमें पूरा प्रशासन का दोष है और ना ही इसे विपक्ष की साज़िश कहा जा सकता है। यह महज़ एक हादसा है। हादसे के बाद पूरे संगम क्षेत्र में स्थिति बिलकुल सामान्य है लेकिन मीडिया अपने टीआरपी के लिए सनसनी पैदा कर रहा है। जबकि मीडिया की जिम्मेवारी है कि वह घटना (भगदड़) की वज़ह की रिपोर्टिंग पर करें।

इसके अतिरिक्त लोग महाकुम्भ में जिस श्रद्धा आस्था के साथ आएँ हैं, उसी श्रद्धा पूर्वक उन्हें कर्तव्यबोध भी रहे। सरकार के नियम, अनुशासन, चेतावनी का उसी आस्था से पालन करे। जब अयोध्या और काशी में आशातीत भीड़ हो गई है तो प्रयागराज में महाकुंभ में सम्मिलित श्रद्धालुओं की संख्या का अनुमान भी नहीं किया जा सकता। सभी लोग त्रिवेणी संगम में ही स्नान के लिए हठ न करें, चालीस किलोमीटर इधर और उधर, यानी अस्सी किलोमीटर तक फैला हुआ स्नान घाट बनाया गया है। वहीं स्नान कर कृपया व्यवस्था में सहयोग बनाएँ।

ऐसा लगता है कि सरकार ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ आयोजक के रूप में दिखाने पर केंद्रित है, जबकि कुछ लोग सोशल मीडिया के माध्यम से सनातन को बढ़ावा देने में अधिक रुचि रखते हैं, आम भक्तों की भावनाओं की उपेक्षा करते हैं। ब्रह्म कल्प के दौरान लगभग 45 दिनों तक, शाही स्नान (शाही स्नान) प्रतिदिन होता है, फिर भी हमारे धार्मिक नेताओं ने इसे श्रद्धालुओं तक प्रभावी ढंग से नहीं पहुँचाया है। इन नेताओं द्वारा कुंभ स्नान का वास्तविक महत्त्व जनता को पर्याप्त रूप से नहीं बताया गया है। यदि सनातन धर्म पर चर्चा करने के लिए अक्सर टेलीविजन पर आने वाले धार्मिक व्यक्ति कल्पवास के इन 45 दिनों के दौरान प्रत्येक प्रहर के दौरान स्नान के महत्त्व पर ज़ोर देते, तो भारी भीड़ को अलग-अलग दिनों में फैलाया जा सकता था, जिससे संभावित रूप से ऐसी त्रासदियों को रोका जा सकता था।

अत्यधिक प्रचार के कारण महाकुंभ में बेहिसाब भीड़ जमा हो गई। इसके अतिरिक्त वीआईपी यानी अति विशिष्ट को ज़रूरत से ज़्यादा महत्त्व और आमजन को अनेक रास्तों पर रोकना या वापस भेजना या मोक्ष मार्ग पर अति विशिष्ट के लिए अलग मार्ग भी एक कारण। भगदड़ के लिए बस एक छोटी—सी गलती की ज़रूरत होती है। एक बात और असरदार या धनी लोग द्वारा अपने पैसों के दम पर सामान्य तीर्थयात्रियों का हक़ मार लेना, उनको पीछे धकेल देना। क्या यह पाप नहीं है? क्या गंगाजी इस तरह के पापिओं के पाप धो पाएगी? दिवंगत आत्माओं को शांति मिले।