
बृज खंडेलवाल
ब्रज वृंदावन देवालय समिति ने शाह जी मंदिर में आयोजित अपनी साधारण सभा में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रस्तावित ठाकुर श्री बाँके बिहारी मंदिर न्यास अध्यादेश का सर्वसम्मति से बहिष्कार करने का प्रस्ताव पारित किया। यह अध्यादेश न केवल मंदिरों की स्वायत्तता के लिए खतरा है, बल्कि वृंदावन की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं पर गहरा आघात माना जा रहा है। सभा में गोस्वामी समाज के सेवायतों ने एक स्वर में कहा कि यह प्रस्ताव मंदिरों की प्राचीन परंपराओं और वंशानुगत अधिकारों को नष्ट करने का प्रयास है, जो सनातन धर्म और वैष्णव भक्ति की आत्मा को चोट पहुँचाता है।
गोस्वामी समाज और मंदिर परंपरा
वृंदावन के मंदिर, विशेष रूप से ठाकुर श्री बाँके बिहारी मंदिर, भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का जीवंत प्रतीक हैं। गोस्वामी समाज पिछले 500 वर्षों से इन मंदिरों की सेवा में समर्पित है, जो केवल प्रशासनिक कार्य नहीं, बल्कि वैष्णव भक्ति और सनातन धर्म का आधार है। कुछ मंदिरों में गोस्वामियों की 20 से अधिक पीढ़ियों ने मंदिरों की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक विरासत को संरक्षित रखा है। यह परंपरा मुगल काल, ब्रिटिश शासन, और स्वतंत्र भारत में संवैधानिक प्रावधानों द्वारा मान्यता प्राप्त है।
न्यास अध्यादेश: संवैधानिक और सांस्कृतिक चुनौतियाँ
प्रस्तावित ठाकुर श्री बाँके बिहारी मंदिर न्यास अध्यादेश के तहत मंदिर प्रबंधन को सरकारी बोर्ड के अधीन लाने की योजना है। इसके साथ ही, उच्चतम न्यायालय में सरकार द्वारा दाखिल हस्तक्षेप याचिका में 197 अन्य ब्रज मंदिरों के अधिग्रहण की माँग ने विवाद को और गहरा दिया है। सेवायतों ने इस कदम को संवैधानिक मूल्यों और धार्मिक स्वायत्तता के खिलाफ बताया।
उन्होंने तर्क दिया कि यह अध्यादेश संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव निषेध), 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), 26 (धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार), 29 (सांस्कृतिक अधिकार), और 31A (संपत्ति के अधिकार) का उल्लंघन करता है। 500 वर्षों से चली आ रही परंपराएँ भारतीय कानून में बाध्यकारी हैं और संवैधानिक संशोधनों से भी ऊपर हैं। मंदिर की संपत्ति और सेवा भगवान को समर्पित है, जिसमें गोस्वामी समाज न्यासी के रूप में कार्य करता है।
सप्त देवालय सर्किट और क्षति की आशंका
सप्त देवालय सर्किट के विकास पर भी सभा में गहन चर्चा हुई। सेवायतों ने आशंका जताई कि इससे मंदिरों को क्षति हो सकती है। उन्होंने माँग की कि ब्रज का विकास मंदिर सेवायतों और आचार्यों की सलाह से हो, ताकि सांस्कृतिक और धार्मिक संरचना को कोई नुकसान न पहुँचे।
गोस्वामी समाज का योगदान
गोस्वामी समाज ने 500 वर्षों से मंदिरों के संचालन, त्योहारों, भीड़ प्रबंधन, और भक्त सुविधाओं में कुशलतापूर्वक योगदान दिया है। यह व्यवस्था पारदर्शी, भक्त-केंद्रित, और शास्त्रसम्मत रही है। मंदिर की आय पर सरकारी नियंत्रण को सेवायतों ने संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन बताया।
सांस्कृतिक धरोहर पर खतरा
सेवायतों का कहना है कि वंशानुगत परंपराओं की समाप्ति से वृंदावन की मूल पहचान और सांस्कृतिक आत्मा नष्ट हो जाएगी। यह कदम सामाजिक अस्थिरता और सांस्कृतिक क्षरण का कारण बन सकता है। उन्होंने सरकार से माँग की कि प्रस्तावित न्यास को अविलंब निरस्त किया जाए और गोस्वामी समाज के वंशानुगत अधिकारों को संरक्षित किया जाए।
कानूनी और नैतिक आधार
गोस्वामी समाज ने जोर देकर कहा कि धार्मिक संस्थानों को अपनी पूजा पद्धति और प्रबंधन तय करने का पूर्ण अधिकार है। यह अधिकार वेद, पुराण, आगम, संविधान, और न्यायिक निर्णयों द्वारा संरक्षित है। सरकार का कोई भी कदम तर्कसंगत और संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए।
देवालय समिति ने सभी सांसदों और विधायकों से इस प्रस्ताव को निरस्त करने और गोस्वामी समाज के अधिकारों की रक्षा करने की अपील की।
बैठक में समिति के अध्यक्ष श्री आलोक कृष्ण गोस्वामी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष गोस्वामी श्री कृष्णानन्द भट्ट, उपाध्यक्ष श्री गोविन्द शरण पाण्डेय दाऊजी, कोषाध्यक्ष महंत श्री गोविन्द शर्मा, सहसचिव श्री गौरव गोस्वामी, श्री विजय किशोर गोस्वामी, श्री प्रेम कुमार गोस्वामी (छोटी सरकार ), श्री प्रशांत शाह, श्री दामोदर गोस्वामी, श्री कृष्णन जी, श्री लक्ष्मी नारायण तिवारी, श्री भगवत स्वरुप शर्मा, श्री रूद्र प्रताप सिंह, श्री गोपाल कृष्ण गोस्वामी, श्री हरिश्चन्द्र गोस्वामी, जगन्नाथ पोद्दार आदि उपस्थित थे l
सभा में समिति के अध्यक्ष श्री आलोक कृष्ण गोस्वामी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष गोस्वामी श्री कृष्णानन्द भट्ट, उपाध्यक्ष श्री गोविन्द शरण पाण्डेय दाऊजी, कोषाध्यक्ष महंत श्री गोविन्द शर्मा, सहसचिव श्री गौरव गोस्वामी, और अन्य प्रमुख सदस्य उपस्थित थे।
प्रस्तावित न्यास अध्यादेश न केवल मंदिरों की स्वायत्तता, बल्कि वृंदावन की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान पर गहरा आघात है। गोस्वामी समाज और ब्रज वृंदावन देवालय समिति ने इस कदम को असंवैधानिक, अनैतिक, और सांस्कृतिक धरोहर के लिए हानिकारक बताया। सरकार को चाहिए कि वह इस प्रस्ताव को वापस ले और मंदिरों की परंपरागत व्यवस्था को संरक्षित रखे, ताकि ब्रज की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत अक्षुण्ण रहे।