हिंडनबर्ग के हथियार से देश की अर्थव्यवस्था पर हमला

सुशील दीक्षित विचित्र

अभिजात्य दंभ में डूबे पश्चिमी देशों द्वारा भारत को कमजोर करने के षड्यंत्र नए नहीं हैं लेकिन यह नया है कि विपक्ष भारतीय अस्मिता और प्रगति पर प्रहार करने का प्रयास करने वाली विदेशी संस्थाओं के साथ खड़ा हो जाता है । कभी कभी तो ऐसा लगता है कि भारत के खिलाफ दुष्प्रचार की जो टूलकिट्स गाहे बगाहे हर तरह की मीडिया में दिखाई पड़ने लगती है उसमें कहीं न कहीं भारत में ही बैठे लोगों का भी हाथ है । असहिष्णुता और अवार्ड लौटाऊ जैसे पुराने आंदोलनों को छोड़ दे और ताजा घटनाओं पर ही चर्चा करें तो पिछले एक साल में तीन महत्वपूर्ण मौकों पर तीन तरफ से भारत पर हमला किया गया। उन हमलों का कारण केवल चुनाव ही नहीं हैं बल्कि विश्व पटल पर भारत का बढ़ता हुआ दबदबा भी है । वह पांचवी से चौथी अर्थव्यवस्था बनने के लिए अग्रसर है और जल्दी ही रक्षा सामग्री निर्यात करने वाला तीसरा देश बनने वाला है ।

जनवरी 2022 में बजट सत्र से ठीक पहले इजराइली कम्पनी की पेगासस को ले कर अमरीका के आभार न्यूयार्क टाइम्स में एक रिपोर्ट छापी गयी जिसमें पेगासस स्पाईवेयर से राहुल गांधी समेत सौ महत्वपूर्ण लोगों की जासूसी कराने की बात कही गयी थी । इसे ले कर राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर देशद्रोह का आरोप लगाया था । कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने लोकसभा के दोनों सदनों में हंगामा किया था । इसी वर्ष यूपी , उत्तराखंड , पंजाब समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव भी थे । 2023 में भी लोकसभा का बजट सत्र चल रहा है । नौ राज्यों के चुनाव है और 2024 में लोकसभा के चुनाव होंगे । ऐसे समय में अमेरिका की ही एक संस्था हिंडनबर्ग द्वारा अडानी के खिलाफ रिपोर्ट प्रकाशित करना माना जा रहा है कि इसके पीछे सुनियोजित षड्यंत्र है । दोनों ही ग्रुप अमेरिका के ही है । इसी बीच बीबीसी ने भी इसी षड्यंत्र के तहत मोदी और भारत की छवि को खराब करने वाली गुजरात दंगों पर एकतरफा डाक्यूमेंट्री जारी कर दी । कांग्रेस ने दोनों ही मामलों को ले कर जो रुख अपनाया उससे सहमत नहीं हुआ जा सकता । केरल के नेता अनिल एंटोनी ने डाक्यूमेंट्री को भारत की सम्प्रभुता पर हमला माना । इसके बाद कांग्रेसी नेताओं ने इतना डराया धमकाया कि आजिज आकर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी।

पहले भारत की संप्रभुता पर हमला। प्रधानमंत्री ही नहीं देश की छवि पर कालिख पोतने का कुत्सित प्रयास ब्रिटेन किया गया। इसके तुरंत बाद अडानी पर आर्थिक अव्यवस्था के आरोप लगा कर तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था पर हमला। हमलावर यही नहीं रुकते हैं। वे आगे बढ़ कर सनातन परम्परा और जातियों पर हमला करते हैं । सभी मामलों में देखें तो इनके पीछे कहीं न कहीं कांग्रेस खड़ी है और यदि नहीं खड़ी है तो घटिया आरोपों को आगे बढ़ाते हुए देश की तबाही के इच्छुक देशों का हथियार बन रही है । आप सारी दुनिया में चिराग ले कर ढूंढ आये आप को किसी भी देश में छोटी से छोटी पार्टी ऐसी नहीं मिलेगी जो अपने ही देश की तबाही चाहती हो । भारत इसका अपवाद है । कोरोना काल में पश्चिम बंगाल के विशुद्ध साम्प्रदायिक जिस फुरेरा शरीफ से देश में पचास करोड़ लोगों की दुआ मांगी गयी थी , विधानसभा के पिछले चुनाव में राहुल गांधी ने उसकी पार्टी को अपना सहयोगी बनाया था । बात है कि कांग्रेस – कम्युनिस्ट और फुरेरा शरीफ की पार्टी से बने बेमेल गठबंधन का एक भी प्रत्याशी नहीं जीता और कांग्रेस पश्चिम बंगाल में हासिये से भी बाहर हो गयी। पश्चिमी देशों के हमले को राहुल गांधी राजनीतिक अवसर मानते रहे हैं और उसी के सहारे वे अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश करते हैं । राफेल में भी देश ने यही देखा । हंगर देशों की लिस्ट में भारत को भिखारी पाकिस्तान और दिवालिया होने की कगार पर खड़े श्रीलंका से भी बदतर बताने और पेगासस के मामले में भी यही देखा गया । बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर भी यही देखने को मिल रहा है । हिंडनबर्ग अमरीका की वह संस्था है जो इतनी अविश्वसनीय मानी जाती है कि वह अपने ही देश की कंपनियों के बारे में कोई रिपोर्ट जारी नहीं कर सकती । अमेरिका ब्लैकलिस्टेड है । दरअसल हिंडनवर्गीयों और बीबीसीओ जैसी संस्थाओं को तभी से बहुत छटपटाहट हो रही है जबसे भारत ने प्रगतिपथ पर मजबूती से बढ़ते हुए उनके देश को कहीं न कहीं पछाड़ दिया है । वैश्विक पटल पर मोदी का बढ़ता कद , जी 20 की अध्यक्षता , आर्थिक और सामरिक क्षेत्र में भारत का आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना आदि ऐसे कारक हैं जो भारतविरोधी विदेश संस्थाओं और भीतरखाने सरकारों में एक भय व्याप्त हो चुका है ।

दुनिया इस से भी बेखबर नहीं है कि कांग्रेस के शीर्षस्थ नेता मोदी से व्यक्तिगत दुश्मनी मानते हैं और इस दुश्मनी का वे लाभ उठाते भी रहे हैं । षड्यंत्रकारी संस्थाओं की भरसक कोशिश है कि किसी भी तरह मोदी सरकार को अस्थिर कर दिया जाये । कांग्रेस और राहुल सोनिया मानते हैं कि भारत पर शासन करने का उनका नैसर्गिक अधिकार है जिसका मोदी ने हरण कर लिया । इस सबसे अंधे विरोध में ही नहीं अंधे क्रोध से भी ग्रसित हो कर जैसी राजनीति का रहे हैं उससे लगता है कि उनका लोकतंत्र पर कोई भरोसा नहीं । महाराष्ट्र और कर्नाटक में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस जनमत का अपहरण कर चुकी है । यह अलग बात है कि दोनों ही जगह उसकी भारी किरकिरी हुई। विसंगति देखिए, खुद आर्थिक घोटाले में जमानत पर चल रहे राहुल गांधी , चिदंबरम आदि मोदी पर उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने का आरोप लगाते आये हैं जबकि असलियत यह है कि कांग्रेस खुद ही उद्योगपतियों को नाजायज तरीके से लाभ पहुंचाने में लगी रही । यह काम 2004 से 2014 में मोदी के आने तक धड़ल्ले से चलता रहा । 2013 में तो हालात इतने खराब हो गये थे कि मनमोहन सिंह सरकार के वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने 500 सौ टन सोना गिरवीं रखने की सलाह दी थी । हालत इसलिए नहीं खराब हुए कि देश में पैसा नहीं था । इसलिए खराब हुए कि कांग्रेस सरकार ने बैंकों पर नाजायज दबाव डाल कर मित्र उद्योगपतियों को अरबों खरबों का कर्ज दिलाया । कांग्रेस के सहयोग से देश को लूटने वाले विजय माल्या , मेहुल चौकसी समेत लगभग तीस उद्योगपति एक शंख रुपया जो दस ट्रिलियन बताया जाता है ले कर भाग गये । इनमें से किसी को भी मोदी के आने के बाद एक रुपया नहीं मिला जबकि कांग्रेस सरकार ने एक रुपया भी इनसे वसूल नहीं किया। विजय माल्या जब हजारो करोड़ रूपये ले कर भागा था तब राहुल गांधी ने इसका आरोप मोदी पर ही मढ़ा था लेकिन लंदन की अदालत की टिप्पणी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम को विजय माल्या द्वारा किये गए घोटाले के लिए साफ़ साफ़ जिम्मेदार ठहराती है ।

लंदन की वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत की जज एम्मा अर्बथनॉट ने विजय माल्या के मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री चिदंबरम द्वारा बैंको की आपत्ति के बावजूद ब्लैकलिस्टेड किये जा चुके विजय माल्या को कर्ज देने वाली चिट्ठियों में हजारों कोड का और अधिक कर्ज देने की सिफारिश की गयी थी । उन्होंने अपनी टिप्पणी में सवाल भी किया था कि विजय माल्या सर अधिक उस लूट का जिम्मेदार क्यों न भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री पी चिदंबरम को ठहराया जाए । उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने का एक उदाहरण राजीव गांधी के समय का भी है जब भोपाल गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार पूंजीपति एंडरसन को तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने रातों रात जेल से भगा कर विमान से विदेश भगा दिया था ।

कांग्रेस की एक और मुश्किल है कि उसके नेता बिना तथ्यों के अफवाह उड़ानें में तो माहिर हैं लेकिन उनके उठाये सवालों को जबाब आते हैं उनसे मुंह मोड़ लेते हैं । उन्होंने आरोप लगाया कि अडानी प्रकरण से एलआईसी डूबने वाली है । एलआईसी ने इस पर जबाब दिया कि उनका मात्र एक प्रतिशत रुपया अडानी की कंपनियों में लगा है । आरबीआई ने भी स्पष्टीकरण दिया कि ऐसे मामलों से उनकी वित्तीय स्थिति अपर कोई फर्क नहीं पड़ता। अडानी और उनको हुए भारी घाटे की बात करें । व्यापार में हानि लाभ चलता रहता है । शेयर मार्केट कभी स्थिर नहीं देखा गया । बैंक्स हमेशा से ही उद्योगपतियों को भारी भारी ऋण देती हैं । बिना ऋण के कोई कारोबार नहीं चलता । बैंक्स की आय का सबसे बड़ा जरिया ऋण ही है । इसकी बसूली भी होती रहती है लेकिन देश के किसानों पर जो दस लाख करोड़ रुपया बकाया है उसकी विपक्ष चर्चा ही नहीं करना चाहता । इतना रुपया कई देशों की अर्थव्यवस्था से भी बहुत अधिक है । अलबत्ता आरबीआई के बाद एसबीआई ने कहा कि उन्होंने अडानी ग्रुप को 27 हजार करोड़ रूपये दिए जो कुल 0.88 प्रतिशत है । पीएनबी का सात हजार करोड़ रुपए अडानी ग्रुप में लगा है । सेबी ने कहा कि हम बाजार के व्यवस्थित और कुशल कामकाज को बनाए रखना चाहते हैं. खास शेयरों में अत्यधिक अस्थिरता को दूर करने के लिए सार्वजनिक रूप से निगरानी की व्यवस्था भी मौजूद है. सेबी ने कहा कि निगरानी की व्यवस्था र किसी भी शेयर में कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव होने पर कुछ शर्तों के साथ खुद ही चालू हो। इसके बाबजूद कांग्रेस का इस मुद्दे को उठा कर लोकसभा से सड़क तक शोर मचाना साबित करता है कि दिशाहीन कांग्रेस और राहुल गांधी के पास कोई और मुद्दा नहीं रह गया है और वे अपनी जिद्द के सामने सच मानने को तैयार नहीं है । राफेल मामले पर भी राहुल गांधी ने अंबानी पर हमला बोला था । तरह तरह की अफवाहे फैलाने में कांग्रेस जी जान से लगी रही । संसद नहीं चलने दी । इसी को मुद्दा बना कर कांग्रेस ने चौकीदार चोर है के नारे पर चुनाव लड़ा था और कांग्रेस और खुद राहुल गांधी अमेठी से हार गये थे और यूपी में कांग्रेस केवल एक सीट ही जीत पायी थी ।

इसलिए राहुल गांधी और समूची कांग्रेस को आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है कि क्या कारण है कि वह जो भी मुद्दा उठाती है उसमें खुद ही घिर जाती है । जनता उससे और कट जाती है । उसकी जमीन और खिसक जाती है । यदि राहुल गांधी ने अपनी पार्टी की नीति रीति में शीघ्र ही परिवर्तन नहीं किया तो आगे 2024 में उनकी राह और भी कठिन हो सकती हैं ।