बिजनौर लोकसभा सीट : त्रिकोणीय मुकाबले ने बढ़ाई उम्मीदवारों की धड़कनें

Bijnor Lok Sabha seat: Triangular contest increases the heartbeats of the candidates

अजय कुमार

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जिला बिजनौर अपने भीतर काफी पुरानी विरासत सजोये हुए हैं। बिजनौर आर्य जगत के प्रकाश स्तंभ स्वामी श्रद्धानंद, वैज्ञानिक डॉ. आत्माराम और भारत के पहले इंजीनियर राजा ज्वाला प्रसाद जैसे विभूतियों की जन्मस्थली है। साहित्य के क्षेत्र में बिजनौर ने कई महत्वपूर्ण मानक स्थापित किये हैं। कालिदास ने यहां बहने वाली मालिनी नदी को अपने नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम का आधार बनाया। उर्दू साहित्य में भी बिजनौर जिला गौरवशाली स्थान रखता है। बात राजनीति की कि जाये तो यहां से कई बड़े नेता चुनाव लड़े और जीते। बिजनौर लोकसभा सीट का चुनाव हमेशा रोमांचक रहता है। बिजनौर लोकसभा सीट पर इस बार सियासी समीकरण काफी बदले हुए हैं। यह वही सीट है जिससे बसपा सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस की मीरा कुमार पहली बार संसद पहुंचीं। यह वही सीट है, जिस पर मायावती, रामविलास पासवान और जयाप्रदा को हार का स्वाद चखना पड़ा था। इस सीट पर लोकसभा चुनाव पर पांच बार कांग्रेस को तो चार बार भाजपा का कब्जा रहा। रालोद ने दो बार व सपा तथा बसपा ने एक-एक बार इस सीट पर परचम लहराया।

देश में 1952 में हुए पहले चुनाव से लेकर 1971 तक यह सीट कांग्रेस के पास ही रही. आपातकाल के बाद 1977 और 1980 में जनता दल ने इस सीट पर जीत हासिल की. 1989 में बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने इस सीट से जीत हासिल की. उसके बाद 2014 तक इस सीट पर हुए आठ चुनावों में चार बार भारतीय जनता पार्टी, दो बार राष्ट्रीय लोकदल और एक-एक बार समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने जीत हासिल की. 2011 की जनगणना के अनुसार, बिजनौर की आबादी लगभग 36 लाख थी।

जनगणना के अनुसार, बिजनौर में 55.18 फीसदी हिंदू और 44.04 फीसदी मुस्लिम रहते हैं। बिजनौर लोकसभा क्षेत्र में कुल पांच विधानसभा सीटें शामिल हैं। ये सीटें हैं पुरकाजी, मीरापुर, बिजनौर, चांदपुर और हस्तिनापुर। वर्ष 1985 में हुआ उपचुनाव सबसे अधिक यादगार रहा, जिसमें तीन दिग्गज मैदान में उतरे। इसी चुनाव में कांग्रेस की मीरा कुमार पहली बार यहां से सांसद चुनी गईं। उन्होंने लोकदल प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को हराया. बसपा सुप्रीमो मायावती निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ीं और वह तीसरे नंबर पर रहीं थीं. 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में मायावती का सितारा बुलंद हुआ। वह जीतीं और पहली बार लोकसभा पहुंचीं। वर्ष 1991 में फिर से मायावती को हार का मुंह देखना पड़ा। भाजपा के मंगलराम प्रेमी ने उन्हें पराजित किया।

2019 में जहां यहां से राष्ट्रीय लोकदल,समाजवादी पार्टी और बसपा का संयुक्त प्रत्याशी मैदान में था तो बीजेपी और कांग्रेस अलग-अलग ताल ठोक रही थीं, 2019 के चुनाव में इस सीट पर बसपा के मलूक नागर ने 5,56,556 वोटों से जीत हासिल की। बीजेपी के भारतेंद्र सिंह 4,86,362 वोटों के साथ दूसरे और कांग्रेस के नसीमुद्दीन सिद्दीकी 25,833 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे.जबकि 2014 में भाजपा के कुंवर भारतेंद्र सिंह ने 486,913 वोट प्राप्त करके यह सीट जीती, जो वोट शेयर का लगभग 45.9 प्रतिशत था। तब समाजवादी पार्टी के शाहनवाज राणा 281,136 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे. लेकिन इस बार रालोद-बीजेपी तो कांग्रेस और सपा के बीच राजनैतिक गठबंधन हुआ है। बसपा अकेले चुनाव लड़ रही है। बिजनौर सीट एक हॉट सीट रही है.बसपा प्रमुख मायावती यहीं से पहली बार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचीं थी. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी उम्मीदवार मूलक नागर की जीत हुई थी. इस चुनाव में बीएसपी ने उनका टिकट काट लिया है उनकी जगह हाल ही में आरएलडी छोड़कर बीएसपी में शामिल हुए ब्रिजेंद्र सिंह को टिकट दिया है.

बसपा प्रत्याशी विजेंद्र सिंह ने कहा कि हम आरोप प्रत्यारोप की राजनीति पर विश्वास नहीं करते, ना ही हम बदले की राजनीति में विश्वास करते हैं. युवाओं को हम हिंदू मुस्लिम की राजनीति में नहीं झोंकना चाहते. हमारे बुजुर्ग कहते थे- तू हिंदू ना बनेगा ना मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा. वहीं सपा प्रत्याशी दीपक सैनी ने कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का शुक्रिया. बात रही टिकट काटने की, उनका फ़ैसला है. उनका सम्मान करता हूं. सपा प्रत्याशी दीपक सेनी के पिता समाजवादी पार्टी के मौजूदा विधायक हैं. हमने उनसे पूछा कि बीजेपी परिवारवाद पर चोट करती है, आप ख़ुद विधायक पुत्र हैं और सांसदी का टिकट मिल गया. पिताजी विधायक हैं इसका मतलब ये नहीं की हम में क़ाबिलियत नहीं हैं, काबिल हैं. पिछड़े वर्ग से आते है. लगातार पिछड़े वर्ग में काम करते हैं. युवाओं की आवाज़ उठाने का मौक़ा राष्ट्रीय अध्यक्ष जी ने दिया है.

आरएलडी-बीजेपी गठबंधन के तहत आरएलडी के खाते गई बिजनौर सीट पर जयंत चौधरी ने चंदन चौहान पर भरोसा जताया है. जमीन पर आरएलडी और बीजेपी के कैडर मिलकर चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं, पोस्टर से लेकर नारों तक दोनों पार्टियां एकजुट होकर मैदान में डटी हुई हैं. आरएलडी उम्मीदवार चंदन चौहान कहते हैं कि जनता के वही मुद्दे हैं. विकसित भारत में क्या भूमिका बिजनौर की रहेगी, क्या भूमिका यूपी में रहेगी. आने वाले समय में बेहतर बदलाव और शांति सुरक्षा के साथ पूरा यूपी तरक़्क़ी करे ये भूमिका सुनिश्चित करेंगे. चौधरी चरण सिंह का गुलदस्ता जो पूरे पश्चिमी यूपी नहीं देश के अंदर, तरक्क़ी कर रहा है. 36 बिरादरी हर धर्म, जाति के लोग अपना समर्थन इस गठबंधन को दे रहे हैं।